हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

24 July 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (18 जुलाई, 2022 से 22 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    अदालतें संविदात्मक मामलों में न्यायिक पुनर्विचार तभी कर सकती हैं, जब दुर्भावनापूर्ण/मनमानापन दिखाया जाए: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि संविदात्मक मामलों में न्यायालय द्वारा न्यायिक पुनर्विचार बहुत सीमित है और जब तक दुर्भावना और मनमानी नहीं दिखाई जाती, तब तक न्यायालय प्रशासनिक कार्रवाई में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

    प्राधिकृत डीलर से प्राप्त ट्रकों की संबंधित श्रेणी की बुकिंग रसीद के आधार पर याचिकाकर्ता को ई-निविदा आमंत्रण नोटिस में भाग लेने की अनुमति नहीं देने में दूसरे प्रतिवादी की कार्रवाई को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका में न्यायमूर्ति जी राधा रानी की ओर से यह टिप्पणी आई।

    केस टाइटल: प्रकाश सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया।

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    मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति नियमों के तहत सहायता प्राप्त करने वाला परिवार नए नियमों के तहत लाभ नहीं ले सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के समय परिवार के किसी सदस्य ने पहले से ही प्रचलित नियमों के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त कर ली हो तो वह नए नियमों के तहत लाभ का दावा नहीं कर सकता।

    जस्टिस जयश्री ठाकुर की पीठ ने आगे कहा कि यदि याचिकाकर्ता को 2019 के नए नियमों के तहत अनुकंपा नियुक्ति के लाभ का दावा करने की अनुमति दी जाती है, जबकि वह सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के समय प्रचलित 2006 के नियमों के तहत पहले ही वित्तीय सहायता प्राप्त कर चुका है, तो यह "दोहरे लाभ" का लाभ उठाने की कोशिश होगी, जिसकी कानून में अनुमति नहीं है।

    केस टाइटल: सौरव बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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    यौन शोषण के बाद पीड़िता और आरोपी के शादी कर लेने या बच्चे का जन्म हो जाने मात्र से बलात्कार का अपराध कम नहीं होता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यौन शोषण के बाद पीड़िता और आरोपी के बीच शादी हो जाने या बच्चे का जन्म हो जाने मात्र से बलात्कार का अपराध कम नहीं हो जाता। इसने आगे कहा कि नाबालिग की सहमति अर्थहीन है और कानून की नजर में इसका कोई महत्व नहीं है।

    जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने यह भी कहा कि नाबालिग को बहला-फुसलाकर और शारीरिक संबंध बनाने के बाद आरोपी द्वारा नाबालिग की सहमति का दावा करने के कृत्य को उचित नहीं माना जा सकता है, क्योंकि बलात्कार केवल पीड़िता के खिलाफ ही नहीं बल्कि पूरे समाज के खिलाफ अपराध है, जो नाबालिग लड़की के लिए कम विकल्प छोड़ता है, बल्कि उसे "आरोपी की अनुरूप चलने को मजबूर करता है।"

    केस का शीर्षक: जगबीर बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार

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    धारा 50 साक्ष्य अधिनियम | संबंध स्थापित करने के लिए स्कूल प्रमाणपत्रों को पेश न होना संबंध के विशेष ज्ञान वाले व्यक्ति पर अविश्वास करने का कोई आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र प्रस्तुत न करने से संपत्ति के स्वामित्व की घोषणा के एक मुकदमे में मृतक व्यक्ति के साथ वादी के संबंध स्थापित करने के लिए जांचे गए गवाहों के साक्ष्य मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

    ज‌स्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार और जस्टिस एस रचैया की खंडपीठ ने 11.11.2019 के एक आदेश को चुनौती देने वाली धर्मराव और अन्य द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें वादी सैयद आरिफा परवीन द्वारा दायर मुकदमे की अनुमति दी गई, जिसमें उसे वादा भूमि का पूर्ण मालिक घोषित किया गया और आगे की घोषणा की गई कि अब्दुल बास @ सैयद अब्दुल बासित (वादी के पिता) द्वारा प्रतिवादियों के पक्ष में निष्पादित बिक्री विलेख खराब थे और वादी के हित को बाध्य नहीं करते थे। प्रतिवादी को वादी के कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा की सहायक राहत भी प्रदान की गई थी।

    केस टाइटल: धर्मराव पुत्र शरणप्पा शबदी और अन्य बनाम सैयद आरिफा परवीन पत्नी मुश्ताक अहमद

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    मालिक जब्ती कार्यवाही में शामिल वाहन की वापसी का हकदार नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब भी कोई वाहन किसी अपराध में शामिल होता है तो जब जब्ती की कार्यवाही अधिकारियों के समक्ष लंबित हो तो उसे मालिक को वापस नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस भरत चक्रवर्ती न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अंतरिम हिरासत को खारिज करने के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। विचाराधीन वाहन को तमिलनाडु निषेध अधिनियम की धारा 4(1)(एएए), 4(1-ए) के तहत अपराध में शामिल होने के लिए जब्त किया गया था। निचली अदालत ने कहा कि वैध मालिक को वाहन की अंतरिम हिरासत सौंपना वांछनीय नहीं था क्योंकि जब्ती की कार्यवाही पहले ही शुरू हो चुकी थी और लंबित थी।

    केस टाइटल : मेसर्स फ्रेंड्स ब्रदर्स इंटरप्राइजेज प्रा लिमिटेड बनाम राज्य प्रतिनिधि द्वारा पुलिस निरीक्षक

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    धारा 84 आईपीसी | अभियुक्त को चिकित्सकीय विक्षिप्तता नहीं, बल्‍कि "कानूनी विक्षिप्तता" साबित करनी होगी : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने हाल ही में आईपीसी की धारा 84 के संदर्भ में 'कानूनी विक्षिप्तता' और 'चिकित्सा विक्षिप्तता' के बीच के अंतर स्पष्ट किया है। न्यायालय ने कहा कि मामले को आईपीसी की धारा 84 के दायरे में लाने के लिए अभियुक्तों को यह साबित करना होगा कि वे कानूनी वि‌‌क्षिप्तता से पीड़ित थे।

    केस टाइटल: तूफान @ तोफान बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    धारा 138 एनआई एक्ट | पावर ऑफ अटॉर्नी धारक के साक्ष्य तब तक विश्वसनीय नहीं होते जब तक कि उनके पास लेन-देन का उचित ज्ञान न हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि धारा 138 के तहत अपराध का आरोप लगाने वाले शिकायतकर्ता को ऐसे लेनदेन में अटॉर्नी होल्डर की शक्ति के ज्ञान के बारे में एक विशिष्ट दावा करना चाहिए। जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा कि एक मुख्तारनामा धारक जिसे लेनदेन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, उसे मामले में गवाह के रूप में पेश नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: शिबू एलपी बनाम नीलकांतन और अन्य।

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    दावों के निर्णय के बिना मध्यस्थ निर्दिष्ट दावों के खिलाफ एकमुश्त राशि नहीं दे सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि एक अवॉर्ड, जिसमें दावों के निर्णय के बिना निर्दिष्ट दावों के खिलाफ एकमुश्त राशि प्रदान की जाती है, वह टिकाऊ नहीं है। जस्टिस विभु बाखरू की खंडपीठ ने कहा कि एक मध्यस्थ न्यायाधिकरण केवल न्याय के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किसी पार्टी के निर्दिष्ट दावों के खिलाफ एकमुश्त राशि नहीं दे सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि ए एंड सी एक्ट की धारा 34 (4) के तहत एक आवेदन को नुकसान की राशि को स्पष्ट करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, जब यह किसी गणना पर आधारित नहीं है।

    केस टाइटल: कांति बिजली उत्पादन निगम लिमिटेड बनाम पालटेक कूलिंग टावर्स एंड इक्विपमेंट्स लिमिटेड OMP (COMM।) 154 of 2021

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    इससे पहले कि अदालत पक्षकार की सहमति पर कार्य करे, सीपीसी की धारा 89 के तहत मध्यस्थता के संदर्भ में पक्षकार अपनी सहमति वापस ले सकता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि पक्षकार अदालत द्वारा इस तरह के संदर्भ पर कार्यवाही करने से पहले किसी भी समय सीपीसी की धारा 89 के तहत मध्यस्थता के संदर्भ के लिए अपनी सहमति वापस ले सकता है।

    जस्टिस उमेश ए. त्रिवेदी की खंडपीठ सिविल जज के उस आदेश के खिलाफ अनुच्छेद 227 के तहत एक विशेष दीवानी आवेदन पर विचार कर रही थी, जिसके तहत पक्षकारों द्वारा संयुक्त रूप से याचिका को नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (बाद में 'कोड' के रूप में संदर्भित) धारा 89(2)(ए) के तहत मध्यस्थ को विवाद को संदर्भित करने के लिए दिया गया था। इसे मूल वादी पर खारिज कर दिया गया, जिसने शुरू में उसी के लिए सहमति दी थी। हालांकि, इसे मध्यस्थ को भेजने के लिए सहमति वापस ले ली।

    केस टाइटल: कृष्णा कैलिब्रेशन सर्विसेज बनाम जैस्मीन भारत पटेल, आर/स्पेशल सिविल एप्लीकेशन नंबर 5682 ऑफ 2021।

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    एनडीपीएस एक्ट-रिकवरी के 15 दिनों के भीतर एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करने में विफलता जमानत का आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के प्रावधानों के तहत आरोपित एक आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए दोहराया है कि केवल इसलिए कि जब्त किए गए प्रतिबंधित पदार्थ की रासायनिक विश्लेषण रिपोर्ट 15 दिनों के भीतर प्राप्त नहीं हुई है,यह एक आरोपी को जमानत पर रिहा करने का कोई आधार नहीं है।

    जस्टिस मोहम्मद नवाज़ की एकल पीठ ने एक जाकिर हुसैन द्वारा दायर जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा, ''केवल इसलिए कि 15 दिनों के भीतर रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है, आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आधार नहीं है। एफएसएल रिपोर्ट प्राप्त करने में कोई अत्यधिक देरी नहीं हुई है।''

    केस टाइटल- जाकिर हुसैन बनाम स्टेट बाय इंटेलिजेंस ऑफिसर

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    बैंक गारंटी के विस्तार मात्र से ही दावा अवधि नहीं बढ़ जाती : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बैंक गारंटी का आह्वान बैंक गारंटी की शर्तों के अनुसार ही होगा, अन्यथा यह खुद ही अमान्य हो जाएगी। जस्टिस वी कामेश्वर राव की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि बैंक गारंटी की शर्तें अनुबंध में प्रदान की गई दोष देयता अवधि की समाप्ति की तारीख से 90 दिनों की अवधि प्रदान करती हैं, ऐसी अवधि की समाप्ति के बाद बैंक गारंटी का आह्वान किया जाता है तो इसकी केवल बैंक गारंटी के विस्तार के काणर अनुमति नहीं है।

    केस टाइटल: हरजी इंजीनियरिंग वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम पंजाब और सिंध बैंक और एएनआर

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    सीआरपीसी की धारा 438 यह नहीं कहती है कि एक घोषित अपराधी को अग्रिम जमानत याचिका दायर करने से रोक दिया जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 438 यह नहीं कहती है कि एक घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) को ऐसी याचिका दायर करने से रोक दिया जाएगा। इसका अर्थ हुआ यह हुआ कि कोर्ट ने संकेत दिया कि एक भगोड़ा अपराधी भी अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) याचिका दायर कर सकता है।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान की पीठ ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 82 (भगोड़ा व्यक्ति के लिए उद्घोषणा) घोषित अपराधी द्वारा अग्रिम जमानत आवेदन दाखिल करने में न तो कोई शर्त पैदा लगाता है और न ही कोई प्रतिबंध लगाता है।

    केस टाइटल - सुरेश बाबू बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य [आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन U/S 438 CR.P.C. संख्या – 3532 ऑफ 2022]

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    मुख्य सुर्खियां जब वैधानिक प्रावधानों के अनुसार 'पूर्व अनुमति' प्राप्त किए बिना ड्यूटी की जाती है तो उच्च वेतनमान का दावा नहीं किया जा सकताः कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को उच्च वेतनमान से इनकार करने के आदेश की आलोचना करते हुए एक रिट याचिका में कहा कि जब प्रासंगिक अनिवार्य वैधानिक प्रावधानों के उचित अनुपालन के बिना कर्तव्यों का पालन किया जाता है तो वेतन वृद्धि का दावा नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: दिलीप कुमार घोष बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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    कामगार मुआवजा अधिनियम | जब पिछली बीमारी का कोई संकेत ना हो तो अचानक मौत को काम के तनाव के रूप में माना जाए: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक बीमा अपील द्वारा एक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि काम की प्रकृति के बारे में आयुक्त के निष्कर्ष - श्रमिक मुआवजा अधिनियम और चोट की धारा 30 के तहत अपील द्वारा चुनौती के लिए खुले नहीं हैं। न्यायालय ने अधिनियम की लाभकारी प्रकृति को ध्यान में रखते हुए इसकी उदार व्याख्या पर जोर दिया। यह माना गया कि किसी भी अचानक हुई मौत को तनाव और काम के तनाव के रूप में माना जाएगा, जब पिछली बीमारी के बारे में कोई संकेत नहीं है।

    केस टाइटल: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सांबिरेडी वेंकटरमण 5 अन्य

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    पुलिस अधिकारी को ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने का अधिकार नहीं, केवल लाइसेंसिंग प्राधिकरण ही ऐसा कर सकता है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पुलिस अधिकारी को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने या उसका ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने का कोई अधिकार नहीं है, केवल लाइसेंसिंग प्राधिकरण को ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने और उसे सस्पेंड करने का अधिकार है।

    जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की खंडपीठ ने प्रिया भट्टाचार्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए उक्त टिप्पणी की। याचिका में सहायक पुलिस आयुक्त, यातायात विभाग, कोलकाता द्वारा पारित आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें अधिक खर्च के कारण 90 दिनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस निलंबित कर दिया गया था।

    केस टाइटल- प्रियाशा भट्टाचार्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य

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    वैधानिक जनादेश के अनुपालन के अनुसार एक बार धान के खेत में बदलाव हो जाने के बाद, तहसीलदार को कर का पुनर्मूल्यांकन करना होगाः केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि वैधानिक जनादेश के अनुपालन के अनुसार एक बार धान के खेत में बदलाव हो जाने के बाद, तहसीलदार को कर का पुनर्मूल्यांकन करना होगा और केरल कंजर्वेशन पैडी लैंड एंड वेट लैंड एक्ट एक्ट की धारा 27 सी के अनुसार राजस्व रिकॉर्ड में आवश्यक प्रविष्टियां करनी होंगी।

    जस्टिस एन नागरेश ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा पुनः दावा की गई भूमि धान की भूमि थी और इसलिए, उसे उस मामले के लिए इसे गैर-अधिसूचित भूमि के रूप में मानने या राजस्व मंडल अधिकारी से संपर्क करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल: प्रकाश ओएस बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    महाधिवक्ता कार्यालय में विधि अधिकारियों की नियुक्ति सार्वजनिक रोजगार नहीं, ऐसी प्रोफेशनल नियुक्तियों के लिए आरक्षण नहीं: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में महाधिवक्ता कार्यालय में विधि अधिकारियों की नियुक्ति में आरक्षण की मांग वाली याचिका को खारिज करने के अपने फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा एक पेशेवर शुल्क के लिए एक पेशेवर की नियुक्ति है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत उल्लिखित आरक्षण सार्वजनिक रोजगार/सेवाओं/पदों के लिए उनके आवेदन में सीमित हैं।

    जस्टिस शील नागू और जस्टिस एके शर्मा ने रिट कोर्ट के फैसले से सहमति जताई और यह माना कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और एमपी लोक सेवा (अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जन जातियां और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण) अधिनियम, 1994 के अनुरूप था।

    केस टाइटल: ओबीसी एडवोकेट वेलफेयर एसोसिएशन बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्‍य।

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    आयकर रिटर्न दाखिल करने में विफलता| उपयुक्त प्राधिकारी की स्वीकृति के बिना आईटी एक्ट की धारा 276CC के तहत अभियोजन की अनुमति नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली ने स्पष्ट किया कि प्रधान आयुक्त/उपयुक्त प्राधिकारी की मंजूरी के बिना किसी व्यक्ति पर आयकर अधिनियम की धारा 276-सीसी (आय की रिटर्न प्रस्तुत करने में विफलता) के तहत अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। जस्टिस आशा मेनन की सिंगल जज बेंच ने कहा, "चूंकि कानून कहता है कि आईटी अधिनियम की धारा 278 बी के तहत मंजूरी के बिना विभाग आईटी अधिनियम की धारा 276 सीसी के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी पाए गए व्यक्ति के खिलाफ आगे नहीं बढ़ सकता। याचिकाकर्ता पर मुकदमा चलाने के लिए विशिष्ट मंजूरी के अभाव में एसीएमएम उसके खिलाफ शिकायत का संज्ञान नहीं ले सकता। अगर वह ऐसा करता है तो बिना नींव के मकान बनाने जैसा होगा।"

    मामले टाइटल: विपुल अग्रवाल बनाम आयकर कार्यालय

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    सीआरपीसी की धारा 245(2)| मामले के "किसी भी पिछले चरण में" आरोपी को बरी करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति का अर्थ है जिस स्तर पर कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया गया है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 245(2) के तहत आरोपी को बरी करने की कोर्ट की शक्ति पर विचार करते हुए हाल ही में कहा है कि प्रावधान में प्रयुक्त शब्द "किसी भी पिछले चरण में" का अर्थ उस चरण से होगा जब मजिस्ट्रेट मामले का संज्ञान लेता है। कोर्ट ने इस प्रकार विशेष न्यायालय (सीमा शुल्क) के न्यायिक मजिस्ट्रेट के बरी आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मजिस्ट्रेट ने "चेक एंड कॉल ऑन" के चरण में आरोपमुक्त करने संबंधी याचिका की अनुमति दी थी।

    केस शीर्षक: सहायक आयुक्त सीमा शुल्क बनाम एस गणेशन

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    अगर पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया है तो पूरी तरह से तर्कसंगत आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि अगर पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया है, तो पूरी तरह से तर्कसंगत आदेश पारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, अगर संज्ञान आदेश के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत ने रिकॉर्ड पर सामग्री पर अपना दिमाग लगाया है।

    केस टाइटल- ओम प्रकाश एंड अदर बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एंड अन्य [आवेदन U/S 482 No.- 3041 of 2022]

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    सीआरपीसी की धारा 125 तत्काल सहायता के लिए है, अदालतें बहुत अधिक तकनीकी दृष्टिकोण नहीं अपना सकतीं : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने भरण-पोषण से संबंधित एक रिट याचिका पर फैसला करते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिकाओं का फैसला करते समय अदालतों को बहुत तकनीकी नहीं होना चाहिए। अदालत ने कहा, " उक्त प्रावधान तत्काल सहायता के लिए बनाया गया है, वह भी किसी व्यक्ति की वित्तीय प्रकृति में ताकि वह जीवित रह सके।"

    केस टाइटल - जगन्नाथ भगनाथ बेदके बनाम हरिभाऊ जगन्नाथ बेदके

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    CrPC की धारा 173 (8) के तहत केवल अन्वेषण एजेंसी ही आगे की अन्वेषण के लिए आवेदन कर सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत के तहत केवल अन्वेषण एजेंसी (Investigative Agency) ही आगे की अन्वेषण के लिए आवेदन कर सकती है।

    जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की खंडपीठ ने आगे कहा कि सुनवाई शुरू होने के बाद, न तो मजिस्ट्रेट स्वयं संज्ञान लेते हैं और न ही शिकायतकर्ता द्वारा दायर एक आवेदन पर किसी मामले में आगे की जांच का निर्देश दे सकते हैं।

    केस टाइटल - फरहा फैज बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. और 3 अन्य [आपराधिक विविध रिट याचिका संख्या – 1430 ऑफ 2021]

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    एसिड अटैक सर्वाइवर को कोई 'गंभीर चोट' न होने पर भी आरोपी के खिलाफ IPC की धारा 326A के तहत आरोप तय किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने स्पष्ट किया कि आईपीसी की धारा 326 ए के तहत आरोपी के खिलाफ आरोप तय किया जा सकता है, भले ही एसिड अटैक (Acid Attack) सर्वाइवर को कोई गंभीर चोट न लगी हो। कोर्ट ने आगे कहा कि एसिड अटैक सर्वाइवर को गंभीर चोट हर मामले में अनिवार्य नहीं है।

    केस टाइटल - ओयस @ अवेश बनाम यूपी राज्य [आपराधिक संशोधन संख्या - 2022 का 2407]

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    यदि योग्य आवेदकों की संख्या रिक्तियों से अधिक है, तो चयन समिति तर्कसंगत मानदंड के आधार पर उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट कर सकती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को फैसला सुनाया कि एक पद के लिए एक उपयुक्त उम्मीदवार को नामित करने के लिए गठित एक चयन समिति ऐसे योग्य आवेदकों की संख्या को कम करने के लिए योग्य आवेदकों को शॉर्टलिस्ट कर सकती है, बशर्ते शॉर्टलिस्टिंग के मानदंड उन योग्यताओं के लिए उम्मीदवारों को बाहर न करें, जिन योग्यताओं को पहले कभी अधिसूचित नहीं किया गया था।

    जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ एक याचिका पर विचार कर रही थी जिसमें केरल राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष के पद के लिए राज्य चयन समिति द्वारा अपनाई गई शॉर्टलिस्टिंग प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाया गया था।

    केस टाइटल: केरल राज्य और अन्य बनाम केएस गोविंदन नायर

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    धारा 143A एनआई एक्ट| आरोपियों को सुनवाई का मौका दिए बिना अंतरिम मुआवजा नहीं दिया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 143-ए के तहत, अदालत अंतरिम मुआवजे के भुगतान का निर्देश दे सकती है, यहां तक कि शिकायतकर्ता द्वारा इसके लिए प्रार्थना किए बिना, लेकिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना नहीं।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज पीठ ने हिमांशु गुप्ता द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और उसे 20% अंतरिम मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश देने वाले आदेश को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: हिमांशु गुप्ता और वी नारायण रेड्डी

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    वादी की मृत्यु पर कानूनी उत्तराधिकारियों के प्रतिस्थापन के लिए आवेदन को यह जांचे बिना खारिज नहीं किया जा सकता है कि 'मुकदमे के अधिकार' जीवित है या नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक मुकदमे के लिए एकमात्र वादी की मृत्यु के बाद रिकॉर्ड पर आने की मांग करने वाले कानूनी प्रतिनिधियों द्वारा किए गए एक आवेदन को एक निचली अदालत यह विचार किए बिना खारिज नहीं कर सकती है कि कानूनी प्रतिनिधियों पर 'मुकदमा करने का अधिकार' जीवित है या नहीं।

    जस्टिस आर देवदास की एकल पीठ ने इस प्रकार दो मार्च, 2020 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसके तहत निचली अदालत ने शोभा और मृतक यल्लप्पा बी पाटिल की अन्य बेटियों द्वारा दायर आवेदन को कानूनी प्रतिनिधियों के रूप में रिकॉर्ड पर लाने की अनुमति की मांग को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: शोभा और अन्य बनाम करेवा और अन्य

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    यूएपीए | केवल विशेष न्यायालय/सत्र न्यायालय को जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने का अधिकार है: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि केवल विशेष न्यायालय या विशेष न्यायालय की अनुपस्थिति में विशेष न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग करने वाला सत्र न्यायालय किसी अपराध के आरोपी व्यक्ति को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के प्रावधान के तहत जमानत दे सकता है/अस्वीकार कर सकता है।

    यह माना गया कि न्यायिक मजिस्ट्रेट के पास न तो उक्त अधिनियम के तहत अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार क्षेत्र है और न ही उसे ऐसे अपराधों की कोशिश करने या जमानत देने/अस्वीकार करने का अधिकार क्षेत्र है।

    केस टाइटल: पी/एस बांदीपोरा बनाम हिलाल अहमद पारे के माध्यम से जम्मू-कश्मीर राज्य।

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    धारा 125 सीआरपीसी | भरण-पोषण का उद्देश्य पुरुष को पत्नी और बच्चों के संबंध में नैतिक दायित्व को पूरा करने के लिए मजबूर करना है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 का प्रावधान, जिसके तहत भरण-पोषण का प्रावधान किया गया है, उसका उद्देश्य सामाजिक उद्देश्य को पूरा करना है। किसी व्यक्ति को उस नैतिक दायित्व को पूरा करने के लिए मजबूर करना है, जो पत्नी और बच्चों के संबंध में समाज के प्रति देय है।

    जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव एक पति द्वारा फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें सीआरपीसी की धारा 125(3) के तहत प्रतिवादी पत्नी द्वारा दायर एक आवेदन को आंशिक रूप से अनुमति दी गई थी।

    केस टाइटल: विशेष तनेजा बनाम रीता

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    दशकों तक तदर्थ आधार पर कार्यरत कर्मचारी स्थायी या सेवा के नियमितीकरण का हकदार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया है कि एक कर्मचारी स्थायी या सेवा के नियमितीकरण की मांग करने का हकदार नहीं होगा, भले ही उसने दशकों तक तदर्थ (Ad Hoc)आधार पर काम किया हो।

    जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस अमित महाजन ने कहा, "यह भी तय कानून है कि भले ही कोई योजना कुछ दशकों से चल रही हो या संबंधित कर्मचारी दशकों से तदर्थ आधार पर काम करता रहा हो, यह कर्मचारी को स्थायी या नियमित करने का अधिकार नहीं देगा।"

    केस टाइटल: देश दीपक श्रीवास्तव और अन्‍य बनाम दिल्ली हाईकोर्ट और अन्‍य।

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    किसी भी तरह की वसूली कार्यवाही शुरू करने से पहले वैधानिक अपील दायर करने का अधिकार अनिवार्य है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मोहम्मद निजामुद्दीन की पीठ ने माना कि किसी भी तरह की वसूली कार्यवाही शुरू करने से पहले वैधानिक अपील दायर करने का अधिकार अनिवार्य है। याचिकाकर्ता/निर्धारिती ने इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर से डेबिट करके अधिनिर्णय आदेश से उत्पन्न मांग की वसूली की कार्रवाई को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता को वैधानिक अपील दायर करने का कोई अवसर दिए बिना वसूली कार्यवाही शुरू करना वेस्ट बंगाल जीएसटी एक्ट, 2017 की धारा 78 का उल्लंघन है, जो किसी भी वसूली कार्यवाही शुरू करने से पहले अनिवार्य है।

    केस टाइटल: पुरुलिया मेटल कास्टिंग प्रा. लिमिटेड बनाम सहायक आयुक्त राज्य कर, पुरुलिया प्रभार और अन्य।

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    अपीलीय अदालतें केवल "असाधारण परिस्थितियों" में सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकती हैं: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलीय न्यायालय केवल "असाधारण परिस्थितियों" में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 ('सीआरपीसी') की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकते हैं और इसका उपयोग केवल साक्ष्य में मौजूद कमी को भरने के लिए नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने निचली अपीलीय अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा, "यह कानून का तय प्रस्ताव है कि कमियों को भरने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 और 391 और साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत याचिकाओं की अनुमति नहीं दी जा रही है। केवल असाधारण परिस्थितियों में अपीलीय स्तर पर अदालत सीआरपीसी की धारा 391 के संदर्भ में अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकती है।"

    केस टाइटल: निर्मल भट्टाचार्य और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

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    "लक्ष्मण रेखा पार की": मद्रास हाईकोर्ट ने जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के खिलाफ ट्वीट का स्वत: संज्ञान लेते हुए सवुक्कू शंकर के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू की

    मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने मदुरै बेंच रजिस्ट्री को निर्देश दिया है कि वह उनके खिलाफ ट्वीट करने का स्वत: संज्ञान लेकर यूट्यूबर / कमेंटेटर सवुक्कू शंकर के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला दर्ज करें। कोर्ट ने रजिस्ट्री को फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया मध्यस्थों को पक्षकार बनाने और उनके अनुपालन अधिकारियों को नोटिस भेजने का भी निर्देश दिया। कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सचिव को भी पक्षकार बनाया है।

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    कर्मचारी की नौकरी के अंतिम चरण में रिटायरमेंट की तारीख में बदलाव नहीं किया जा सकता : तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम के एक कर्मचारी द्वारा दायर रिट याचिका को अनुमति दी, जिसमें उसकी 'समय से पहले' सेवानिवृत्ति (Retirement) को चुनौती दी गई थी और सभी परिणामी लाभों के साथ नौकरी में बहाली की मांग की गई थी। जस्टिस पी.माधवी देवी ने कहा कि कर्मचारी के सर्विस रिकॉर्ड में नियोक्ता को जन्म तिथि में बदलाव की अनुमति नहीं है, जब वह अपनी सेवानिवृत्ति के करीब है।

    केस टाइटल : एमए महबूब बनाम तेलंगाना राज्य सड़क परिवहन निगम

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    भरण पोषण संबंधित मामला - न्यायालयों को बच्चे/पत्नी के आवासीय प्रमाण के संबंध में आपत्ति नहीं उठानी चाहिए, विधिवत शपथ पत्र स्वीकार करना चाहिए : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि फैमिली कोर्ट को पीड़ित पक्षों (पत्नी और बच्चों) के उस हलफनामे को स्वीकार करना चाहिए, जिसमें वैवाहिक घर से दूर उनके निवास स्थान के बारे में बताया गया है और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण की मांग करने वाले एक आवेदन पर सुनवाई करते समय अधिकार क्षेत्र का मुद्दा न उठाया जाए।

    जस्टिस ई.एस.इंदिरेश (sitting at Dharwad) की एकल पीठ ने संगीता और उसके नाबालिग बच्चे की तरफ से दायर एक याचिका को अनुमति देते हुए फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है,जिसमें उनकी याचिका की अनुरक्षणीयता के संबंध में इस आधार पर आपत्ति की गई थी कि वाद शीर्षक में दिखाया गया पता और याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश किए गए दस्तावेज में दिया गया पता आपस में मेल नहीं खाता है।

    केस टाइटल- संगीता पत्नी बापू लमनी व अन्य बनाम बापू पुत्र सोमाप्पा लमनी

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    यदि जांच प्रक्रिया दहलीज़ पर हो तो अग्रिम जमानत याचिका से निपटने के दौरान एफआईआर दर्ज करने में देरी को ध्यान में नहीं रखा जा सकता : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि एफआईआर दर्ज करने में देरी को अग्रिम जमानत पर विचार के दौरान ध्यान में नहीं रखा जा सकता, जबकि जांच प्रक्रिया अपने शुरुआती बिंदु (दहलीज़) पर हो। जस्टिस राजेश भारद्वाज की खंडपीठ ने मनिंदरपाल सिंह को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया , जिस पर आईपीसी की धारा 354, 354-ए, 354-डी और धारा 452 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

    केस टाइटल - मनिंदरपाल सिंह बनाम पंजाब राज्य

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    IPC की धारा 420 के तहत धोखाधड़ी के अपराध का गठन के लिए आरोपी की ओर से धोखा देने का इरादा स्थापित होना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 के तहत दंडनीय धोखाधड़ी (Cheating) के अपराध का गठन करने के लिए, विशिष्ट आरोप होना चाहिए कि शुरुआत से ही, आरोपी की ओर से धोखा देने का एक बेईमान इरादा होना चाहिए।

    जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल पीठ ने आईपीसी की धारा 34 के साथ पठित धारा 420, 504, 506 (बी) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए दायर चार्जशीट को रद्द करने की मांग करने वाले दो आरोपियों द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: एम धनलक्ष्मी @ लक्ष्मी राजन एंड अन्य बनाम कर्नाटक राज्य

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    धारा 138 एनआई एक्ट| गैर-कार्यकारी निदेशक कंपनी के कार्यों/ चूक के लिए उत्तरदायी नहीं हैं, जब तक कि वे दिन-प्रतिदिन के मामलों में शामिल न हों: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने टेक्प्रो‍ सिस्टम्स लिमिटेड के स्वतंत्र गैर-कार्यकारी निदेशकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि वे कंपनी के दिन-प्रतिदिन के कामकाज के लिए जिम्मेदार नहीं थे। अदालत नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत चेक बाउंस मामले में ट्रायल कोर्ट के समक्ष आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने का अनुरोध करने वाले एक आवेदन पर विचार कर रही थी।

    मामला संख्या : 2021 की आपराधिक आवेदन संख्या 74

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    एक बार एक पक्ष द्वारा विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने का अधिकार छोड़ दिया जाता है, तो इसे पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक ‌हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि यदि किसी पक्ष ने विरोधी पक्ष द्वारा उठाए गए विवाद की मध्यस्थता पर विवाद किया है, तो मध्यस्थता खंड को लागू करने वाले नोटिस के जवाब में, यह माना जाता है कि उसने मध्यस्थता के लिए विवाद का संदर्भ लेने के अपने अधिकार को माफ कर दिया है।

    कोर्ट ने कहा कि यदि किसी पक्ष द्वारा एक बार अधिकार माफ कर दिया जाता है, तो उसे पुनः प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है और इसलिए, पार्टी को यह तर्क देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि वाणिज्यिक न्यायालय के समक्ष विरोधी पक्ष द्वारा स्थापित मुकदमा कानून द्वारा वर्जित था।

    केस टाइटल : वाई हरीश और अन्य बनाम वाई सतीश और अन्य

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    जहां परिस्थितियों की आवश्यकता है, वहां अभियोजन पक्ष जांच अधिकारी की जांच करने से चूक नहीं सकतेः कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि जिन मामलों में सभी उचित संदेहों से परे आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए परिस्थितियां जरूरी हैं, जांच अधिकारी की जांच करना आवश्यक है।

    डॉ. जस्टिस एचबी प्रभाकर शास्त्री की सिंगल जज बेंच ने कहा, "हालांकि यह नहीं माना जा सकता है कि, सभी मामलों में, आवश्यक रूप से जांच अधिकारी की जांच की जानी चाहिए, हालांकि, उन मामलों में जहां सभी उचित संदेहों से परे अभियुक्त के कथित अपराध को साबित करने के लिए, परिस्थितियां वारंट करती हैं कि जांच अधिकारी को जांच जरूर होना चाहिए, ऐसे मामलों में उसकी अनिवार्य रूप से जांच की जानी चाहिए।"

    केस टाइटल: परवेज पाशा बनाम द स्टेट तिलक पार्क पुलिस तुमकुर द्वारा।

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    विधवा बहू अपने पति की संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ होने पर ससुर से भरण-पोषण मांग सकती हैः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि एक विधवा बहू को अपने ससुर पर भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है, यदि उसके ससुर के पास भूसंपत्ति/सहदायिक संपत्ति है जिसमें विधवा के पति के अधिकार और हित थे।

    भरण-पोषण का आदेश जारी करते हुए, जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की खंडपीठ ने दोहराया, ''यह कानून का सुस्थापित प्रस्ताव है कि एक संयुक्त मिताक्षरा परिवार के प्रबंधक का परिवार के सभी पुरुष सदस्यों, उनकी पत्नियों और उनके बच्चों को बनाए रखने के लिए कानूनी दायित्व बनता है, और पुरुष सदस्यों में से एक की मृत्यु होने पर वह उसकी विधवा और उसके बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है।''

    केस टाइटल- नंद किशोर लाल बनाम श्रीमती चंचला लाल

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    तीसरे पक्ष से बिक्री के विचार के बाद गिरवी रखी गई संपत्ति को रीलीज करने के लिए बैंक एनओसी से इनकार नहीं कर सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि एक बार जब बैंक एक ऋण चूककर्ता द्वारा गिरवी रखी गई संपत्ति को बेचने के लिए सहमत हो जाता है और एक तीसरा पक्ष बैंक के साथ एक वैध समझौता करने के बाद उक्त संपत्ति की खरीद के लिए पूर्ण प्रतिफल का भुगतान करता है, तो बैंक पलट नहीं सकता है और टाइटल डीड, अनापत्ति प्रमाण पत्र / अदेय प्रमाण पत्र से इनकार नहीं कर सकता है।

    जस्टिस वैभवी नानावती ने इस प्रकार प्रतिवादी सिंडिकेट बैंक को निर्देश दिया कि वह संबंधित संपत्ति पर प्रभार जारी करे और संपत्ति के मूल स्‍वामित्व दस्तावेजों को दो सप्ताह के भीतर आवेदक (क्रेता) को सौंप दे। पीठ ने पाया कि आवेदक ने प्रतिवादी संख्या 2 (ऋण चूककर्ता) के माध्यम से बैंक को 2.5 करोड़ रुपये की पूरी राशि जमा कर दी थी, जिसे प्रतिवादी नंबर एक बैंक द्वारा स्वीकार कर लिया गया था और साथ ही भुनाया गया था।

    केस टाइटल: मेसर्स महालक्ष्मी टेक्सटाइल्स A PROPRIETORSHIP FIRM THORUGH ITS PRORPRIETOR भारतीबेन महेशभाई चेवली बनाम सिंडिकेट बैंक, सूरत मेन ब्रांच।

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    अगर याचिका दायर करने के बाद आरोपी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 82 और 83 के तहत उद्घोषणा की जाती है तो अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad high Court) ने कहा कि अगर किसी आरोपी द्वारा अग्रिम जमानत याचिका दायर करने के बाद सीआरपीसी की धारा 82 या 83 के तहत उद्घोषणा या कुर्की की कार्यवाही की प्रक्रिया शुरू की जाती है तो यह ऐसी जमानत याचिका पर विचार करने पर रोक नहीं लगाती है।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान की खंडपीठ ने मनीष यादव को अग्रिम जमानत दे दी, जो भारतीय सेना में सेवारत एक सैन्यकर्मी है और उस पर बलात्कार का मामला दर्ज किया गया है।

    केस टाइटल - मनीष यादव बनाम यूपी राज्य [आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन यू/एस 438 सीआरपीसी संख्या – 4645 ऑफ 2022]

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    घरेलू घटना की रिपोर्ट घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत मामलों के न्यायनिर्णयन के लिए अनिवार्य नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा है कि एक मजिस्ट्रेट पीड़ित व्यक्ति द्वारा दायर शिकायत या आवेदन का संज्ञान ले सकता है और घरेलू घटना की रिपोर्ट (डीआईआर) के बिना भी घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत प्रतिवादी को नोटिस जारी कर सकता है।

    जस्टिस राजीव सिंह की पीठ ने प्रभा त्यागी बनाम कमलेश देवी 2022 लाइव लॉ (एससी) 474 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का उल्लेख किया , जिसमें यह माना गया था कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 मजिस्ट्रेट के लिए अनिवार्य नहीं करती है कि वह घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कोई आदेश पारित करने से पहले एक संरक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता द्वारा दायर एक घरेलू घटना की रिपोर्ट पर विचार करे।

    आवेदक के लिए वकील:- रिशद मुर्तजा, ऐश्वर्या मिश्रा, सैयद अली जाफर रिजविक

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    हाईकोर्ट अनुच्छेद 227 के तहत लोअर कोर्ट्स के समक्ष मामलों की प्रगति की निगरानी के लिए अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग हाईकोर्ट्स द्वारा निचली अदालतों के समक्ष मामलों की प्रगति की निगरानी के लिए नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले इस कोर्ट के लिए निचली फोरम के समक्ष मामलों की प्रगति की निगरानी करना संभव नहीं है।"

    केस टाइटल: फिरोज अहमद बनाम राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, दिल्ली और अन्य

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    अस्थायी कर्मचारी भी संविधान के अनुच्छेद 311 के तहत संरक्षित, उन्हें उचित जांच किए बिना नहीं हटाया किया जा सकता: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि अस्थायी कर्मचारी भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 311 के प्रावधानों के तहत संरक्षित है। उनकी सेवाओं को उचित जांच किए बिना समाप्त नहीं किया जा सकता। चूंकि इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई जांच नहीं हुई थी और न ही उसे सुनवाई का मौका दिया गया था, इसलिए जस्टिस मोहन लाल की पीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ बर्खास्तगी के आदेश को स्पष्ट रूप से टिकाऊ नहीं माना।

    केस टाइटल: संजीव कुमार बनाम भारत संघ।

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    धारा 21 आरटीआई अधिनियम | यदि वास्तविक कारण दिए गए हैं तो जन सूचना अधिकारी को जानकारी देने में देरी के लिए दंडित नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कर्नाटक सूचना आयोग द्वारा पारित एक आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें एक उप वन संरक्षक (जन सूचना अधिकारी के रूप में प्रतिनियुक्त) को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी प्रस्तुत करने में देरी के लिए 10,000 / - रुपये का जुर्माना देने का निर्देश दिया गया है।

    जस्टिस सीएम पूनाचा की सिंगल जज पीठ ने अंबाडी माधव द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए कहा, "भले ही सूचना प्रस्तुत करने में कुछ देरी हुई हो, रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता द्वारा देरी के लिए कारण बताए गए हैं और उक्त कारण वास्तविक हैं।"

    केस शीर्षक: अंबाडी माधव बनाम कर्नाटक सूचना आयोग

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    मोटर दुर्घटना दावा याचिका मूल दावेदार की मृत्यु पर समाप्त नहीं होती, कानूनी प्रतिनिधियों को प्रतिस्थापित किया जा सकता है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा पारित पुरस्कार के संचालन पर रोक लगाने के लिए बीमा कंपनी द्वारा दायर एक अपील को खारिज कर दिया है, जिसके तहत न्यायाधिकरण ने दावेदार के कानूनी प्रतिनिधियों की याचिका को स्वीकार कर लिया और 7.5% प्रति वर्ष की ब्याज दर के साथ 1,79,000/ रुपये का मुआवजा दिया।

    केस टाइटल: नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड अपने सहायक प्रबंधक के माध्यम से बनाम सत्या देवी (मृतक के बाद से) अपने कानूनी वारिसों और अन्य के माध्यम से।

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    धारा 148ए आयकर अधिनियम | जहां वैधानिक प्राधिकरण प्रक्रिया का पालन किया गया है और कार्यवाही अभी तक समाप्त नहीं हुई है, रिट कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कर निर्धारण वर्ष 2018-19 के लिए आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 148ए (बी) और 148 के तहत याचिकाकर्ता को जारी नोटिस को रद्द करने के लिए प्रमाणिक प्रकृति की एक रिट याचिका पर विचार करते हुए निर्णय दिया कि किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है क्योंकि 1961 के अधिनियम में परिकल्पित प्रक्रिया का पालन किया गया था और प्राधिकरण ने अपने अधिकार क्षेत्र में कार्य किया था।

    केस टाइटल: मिडलैंड माइक्रोफिन लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य

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