अपीलीय अदालतें केवल "असाधारण परिस्थितियों" में सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकती हैं: झारखंड हाईकोर्ट

Shahadat

20 July 2022 5:13 AM GMT

  • अपीलीय अदालतें केवल असाधारण परिस्थितियों में सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकती हैं: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलीय न्यायालय केवल "असाधारण परिस्थितियों" में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 ('सीआरपीसी') की धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकते हैं और इसका उपयोग केवल साक्ष्य में मौजूद कमी को भरने के लिए नहीं किया जा सकता है

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी की एकल न्यायाधीश पीठ ने निचली अपीलीय अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा,

    "यह कानून का तय प्रस्ताव है कि कमियों को भरने के लिए सीआरपीसी की धारा 311 और 391 और साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 के तहत याचिकाओं की अनुमति नहीं दी जा रही है। केवल असाधारण परिस्थितियों में अपीलीय स्तर पर अदालत सीआरपीसी की धारा 391 के संदर्भ में अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकती है।"

    संक्षिप्त तथ्य:

    निचली अदालत ने याचिकाकर्ताओं को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 452/457 के तहत दोषी ठहराया था। उक्त आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ताओं द्वारा अपीलीय न्यायालय में सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अपील दायर की गई। अपीलीय न्यायालय के समक्ष दो निर्णयों को प्रदर्शित करने के लिए उक्त अपील में अपीलकर्ताओं द्वारा दिनांक 17.02.2016 को दायर किया गया। हालांकि, उसको खारिज कर दिया गया। इस प्रकार, यह याचिका अपर सत्र न्यायाधीश-पंचम, जमशेदपुर द्वारा पारित अस्वीकृति के उक्त आदेश दिनांक 19.01.2017 को रद्द करने की मांग को लेकर दायर की गई।

    पक्षकारों के तर्क:

    याचिकाकर्ताओं के वकील नागमणि तिवारी ने प्रस्तुत किया कि अपीलीय न्यायालय ने उक्त याचिका को दायर करने के उद्देश्य की सराहना किए बिना खारिज कर दिया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अपीलीय न्यायालय को सीआरपीसी की धारा 391 के तहत अतिरिक्त सबूत स्वीकार करने की शक्ति है।

    प्रतिवादी नंबर दो के वकील हर्ष चंद्र ने प्रस्तुत किया कि आक्षेपित आदेश में कोई अवैधता नहीं है और निचली अपीलीय अदालत ने तय किए गए उदाहरणों पर भरोसा करने के बाद उस निष्कर्ष पर पहुंची। इसके अलावा, उन्होंने आरोप लगाया कि मुकदमे में याचिकाकर्ताओं द्वारा उचित परिश्रम नहीं दिखाया गया। उन्होंने कहा कि पहले के मौकों पर याचिकाकर्ताओं ने ट्रायल कोर्ट के सामने इस तथ्य को लाने की कोशिश तक नहीं की थी। फिर, उसने अपील के प्रारंभिक चरण में भी ऐसा नहीं किया। इस प्रकार, निचली अपीलीय अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।

    राज्य की विशेष लोक अभियोजक प्रिया श्रेष्ठ ने प्रस्तुत किया कि आक्षेपित आदेश में कोई अवैधता नहीं है और न्यायालय ने पूरी सामग्री को देखने के बाद याचिका खारिज की।

    न्यायालय की टिप्पणियां:

    न्यायालय ने आक्षेपित आदेश का अध्ययन करने के बाद पाया कि अपर अपीलीय न्यायालय ने मामले के सभी पहलुओं का ध्यान रखा। हाईकोर्ट ने फिर दोहराया कि साक्ष्य में कमी को भरने के लिए सीआरपीसी की धारा 391 के तहत याचिका दायर की जा सकती है। अपीलीय अदालतें केवल असाधारण परिस्थितियों में धारा 391 के तहत अतिरिक्त साक्ष्य की अनुमति दे सकती हैं।

    कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं ने ट्रायल कोर्ट के सामने दो दस्तावेजों को रिकॉर्ड में लाने के लिए उचित परिश्रम नहीं दिखाया। याचिकाकर्ताओं द्वारा दो निर्णयों को प्रदर्शित करने के लिए दायर याचिका को देखते हुए न्यायालय को यह प्रतीत हुआ कि अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार करने के लिए आग्रह करने के लिए एक शब्द भी नहीं कहा गया। उक्त तथ्यों के आलोक में यह अभिनिर्धारित किया गया कि अपर सत्र न्यायाधीश-पंचम, जमशेदपुर द्वारा पारित आक्षेपित आदेश में कोई अवैधता नहीं है। तदनुसार, याचिका को योग्यता के आधार पर खारिज कर दिया गया।

    केस टाइटल: निर्मल भट्टाचार्य और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य।

    केस नंबर: सी.आर.एम.पी. 2017 का नंबर 453

    तारीख: 14 जुलाई 2022

    कोरम: जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी

    याचिकाकर्ताओं के वकील: एडवोकेट नागमणि तिवारी

    प्रतिवादियों के लिए वकील: एडवोकेट हर्ष चंद्र और विशेष लोक अभियोजक प्रिया श्रेष्ठ

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (झा) 66

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