अगर पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया है तो पूरी तरह से तर्कसंगत आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Brij Nandan

21 July 2022 4:01 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि अगर पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया है, तो पूरी तरह से तर्कसंगत आदेश पारित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, अगर संज्ञान आदेश के अवलोकन से ऐसा प्रतीत होता है कि अदालत ने रिकॉर्ड पर सामग्री पर अपना दिमाग लगाया है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि पुलिस रिपोर्ट का अर्थ है एक पुलिस अधिकारी द्वारा एक मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत रिपोर्ट भेजना।

    जस्टिस समीर जैन की पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अगर कोर्ट द्वारा पारित संज्ञान आदेश में अनियमितता भी होती है तो भी उस आधार पर सीआरपीसी की धारा 465 के मद्देनज़र कार्यवाही को दूषित नहीं किया जा सकता है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि सीआरपीसी की धारा 465 में कहा गया है कि जब तक न्याय की विफलता नहीं होती है, तब तक किसी सक्षम अदालत के किसी भी निष्कर्ष, सजा या आदेश को अनियमितता के कारण पलटा नहीं जाएगा।

    पूरा मामला

    कोर्ट एक चार्जशीट को रद्द करने के लिए दायर 482 सीआरपीसी याचिका के साथ-साथ अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट- IV, इटावा द्वारा पारित संज्ञान / समन आदेश और आईपीसी की धारा 323, 504, 506, 308 के तहत एक मामले की पूरी कार्यवाही पर विचार कर रहा था।

    अदालत के समक्ष, याचिकाकर्ता का प्राथमिक तर्क यह था कि एसीजेएम-IV, इटावा द्वारा पारित संज्ञान आदेश गलत, गूढ़ प्रकृति का है और इसे बिना किसी दिमाग के आवेदन के पारित किया गया है।

    दूसरी ओर, राज्य के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि वर्तमान मामला राज्य का मामला है, इसलिए विस्तृत संज्ञान आदेश पारित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी और इस प्रकार, नीचे की अदालत ने इसे वैध रूप से पारित किया।

    कोर्ट के समक्ष यह रेखांकित किया गया कि कोर्ट ने संज्ञान आदेश पारित करते समय जांच अधिकारी द्वारा जांच के दौरान एकत्र की गई केस डायरी और अन्य दस्तावेजों और साक्ष्य के टुकड़ों का अवलोकन किया था और इस प्रकार, संज्ञान आदेश में कोई अवैधता नहीं थी।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    प्रारंभ में, गुजरात राज्य बनाम अफरोज मोहम्मद हसनफट्टा (2019) 20 एससीसी 539 और प्रदीप एस वोडेयार बनाम कर्नाटक राज्य एलएल 2021 एससी 691 मामलों में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने देखा कि वर्तमान मामले में, पुलिस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया गया था इसलिए, पूरी तरह से तर्कसंगत आदेश पारित करने के लिए निचली अदालत की कोई आवश्यकता नहीं थी।

    अदालत ने टिप्पणी की,

    "वर्तमान मामले में, संज्ञान आदेश दिनांक 20.03.2020 से पता चलता है कि इसे पारित करते समय, नीचे की अदालत ने चार्जशीट, केस डायरी और अन्य दस्तावेजों को देखा, जो जांच अधिकारी द्वारा जांच के दौरान एकत्र किए गए थे और उसके बाद अदालत का विचार था कि संज्ञान लेने के लिए प्रथम दृष्टया आधार पर्याप्त है, इसलिए, यह नहीं कहा जा सकता है कि रिकॉर्ड पर सामग्री को देखे बिना, निचली की अदालत ने संज्ञान लिया।"

    इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अगर संज्ञान आदेश में कोई अनियमितता हुई है, तो भी उसके आधार पर कार्यवाही को रद्द नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "संज्ञान लेने का आदेश प्रकृति में अंतःक्रियात्मक है। और सीआरपीसी की धारा 465 के अनुसार उस अनियमितता के आधार पर कार्यवाही को दूषित नहीं किया जा सकता है।"

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि प्रदीप एस वोडेयार मामले (सुप्रा) में, शीर्ष अदालत ने यह भी देखा था कि संज्ञान लेने के आदेश में अनियमितता से आपराधिक मुकदमे में कार्यवाही खराब नहीं होगी।

    अंत में, चार्जशीट और रिकॉर्ड पर मौजूद अन्य दस्तावेजों को देखते हुए कोर्ट ने पाया कि प्रथम दृष्टया, आईपीसी की धारा 323, 504, 506, और 308 के तहत अपराध आवेदकों के खिलाफ बनाया गया था। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला कि आवेदकों के खिलाफ दायर की गई शीट में कोई अवैधता नहीं है।

    केस टाइटल- ओम प्रकाश एंड अदर बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. एंड अन्य [आवेदन U/S 482 No.- 3041 of 2022]

    केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ 331

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:




    Next Story