हाईकोर्ट
वैवाहिक उपाय एक-दूसरे से जुड़े हो सकते हैं, पर क्रूरता के आरोप चुनिंदा रूप से नहीं उभर सकते: हाईकोर्ट ने धारा 498-A की FIR रद्द की
जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख उच्च न्यायालय ने यह माना है कि धारा 125 दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 तथा धारा 498-A आईपीसी के तहत चलने वाली कार्यवाही को हमेशा अलग-अलग और सख्ती से विभाजित रखना आवश्यक नहीं है, क्योंकि दहेज माँग, मानसिक क्रूरता, शारीरिक उत्पीड़न और घरेलू हिंसा से जुड़ी शिकायतें प्रायः आपस में जुड़ी होती हैं। हालाँकि, न्यायमूर्ति संजय परिहार ने यह स्पष्ट किया कि यदि पत्नी किसी घरेलू उत्पीड़न का दावा करती है, तो ऐसे आरोप सामान्यतः सभी समानांतर कार्यवाहियों में...
यमुना के बाढ़ वाले इलाकों में कोई कंस्ट्रक्शन या रिहायश की इजाज़त नहीं, कब्रिस्तान के बहाने भी नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यमुना के बाढ़ वाले इलाकों में कोई कंस्ट्रक्शन या रिहायशी कब्ज़ा करने की इजाज़त नहीं है, भले ही ऐसा कब्ज़ा कब्रिस्तान या धार्मिक इस्तेमाल के बहाने ही क्यों न किया जा रहा हो।जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की डिवीजन बेंच ने कहा,"बाढ़ वाले इलाकों में लोगों को कब्रिस्तान या किसी और मकसद से अपने घर, मकान, शेड वगैरह बनाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।"यह बात यमुना नदी के किनारे और बाढ़ वाले इलाकों में अवैध कंस्ट्रक्शन को रोकने के लिए दायर एक याचिका पर...
साइबर फ्रॉड की कहानी: कैसे एक रिटायर्ड पुलिस अधिकारी एक बड़े इन्वेस्टमेंट स्कैम का शिकार हो गया?
निवेश घोटालों की कानूनी वास्तुकला और मानव लागत जिसे आपराधिक कानून रिकॉर्ड करने के लिए संघर्ष करता है।पंजाब पुलिस से सेवानिवृत्त पुलिस महानिरीक्षक (आईजीपी), अमर सिंह चहल, जिन्हें एक ऑनलाइन निवेश घोटाले में अपनी जीवन भर की बचत के नुकसान के बाद आत्महत्या का प्रयास करने के बाद गंभीर स्थिति में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, वो बच गए हैं और अब ठीक हो रहे हैं , जो पहले एक व्यक्तिगत त्रासदी के रूप में सामने आया था, उसे दूरगामी कानूनी और संस्थागत प्रभावों वाले मामले में बदल दिया है।जैसे ही चहल ने जीवन...
अनुमान के आधार पर कॉपियों का पुनर्मूल्यांकन नहीं; अधिनियम में प्रावधान न होने पर राहत संभव नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी छात्र या छात्रा को यह लगता है कि पुनर्मूल्यांकन होने पर उसके अंक बढ़ सकते हैं, तो मात्र इस अनुमान के आधार पर उत्तर पुस्तिकाओं का पुनर्मूल्यांकन नहीं कराया जा सकता, क्योंकि उ.प्र. इंटरमीडिएट एजुकेशन एक्ट, 1921 में पुनर्मूल्यांकन का कोई वैधानिक प्रावधान मौजूद नहीं है। अदालत ने कहा कि जब तक नियम इसकी अनुमति न दें, ऐसी मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता।मामले में याचिकाकर्ता ने इंटरमीडिएट परीक्षा में प्राप्त अंकों से असंतुष्ट होकर हिंदी और जीवविज्ञान...
भारतीय संविधान के तहत आर्थिक स्वतंत्रता: लॉकियन स्वतंत्रतावाद से परे
आर्थिक स्वतंत्रता को अक्सर पूंजीवाद का एक अंतर्निहित घटक माना जाता है, जो इस मुक्तिवादी विश्वास पर आधारित है कि व्यक्तियों के पास राज्य के हस्तक्षेप के खिलाफ प्राकृतिक अधिकार हैं। जॉन लॉक ने स्वतंत्रतावाद के अपने सिद्धांत को व्यक्त किया, जो कई मायनों में बेंटहम के उपयोगितावाद (खुशी को अधिकतम करने) के विचार से बहुत अलग था। स्वतंत्रतावाद के विचार ने व्यक्तिगत अधिकारों पर जोर दिया। लॉक ने तर्क दिया कि सर्वोच्च प्रकृति ने व्यक्तियों को प्राकृतिक अधिकार प्रदान किए हैं, जो उन्हें अत्यधिक राज्य...
अत्यंत अफसोसजनक स्थिति: 9 साल पुराने मामले में एडवोकेट जनरल शामिल न करने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को लगाई कड़ी फटकार
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने राज्य सरकार की कानूनी कार्यप्रणाली और मुकदमों के प्रति उसके लापरवाह रवैये पर गहरी नाराजगी व्यक्त करते हुए इसे अत्यंत अफसोसजनक स्थिति करार दिया है। कोर्ट ने यह तीखी टिप्पणी 2016 के एक पुराने मामले की सुनवाई के दौरान की, जिसमें राज्य सरकार ने नौ वर्षों तक एडवोकेट जनरल को पेश होने का अनुरोध नहीं किया और अंततः जब नवंबर 2025 में उन्हें इस मामले में शामिल किया गया तो उन्हें केस से संबंधित जरूरी दस्तावेज और रिकॉर्ड तक उपलब्ध नहीं कराए गए।जस्टिस संगीता चंद्रा और जस्टिस...
अनुच्छेद 21 के अधिकार मूल कर्तव्यों के पालन से जुड़े हैं: 2020 बेंगलुरु दंगों के मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने जमानत से किया इनकार
कर्नाटक हाईकोर्ट ने वर्ष 2020 के बेंगलुरु दंगों से जुड़े मामले में आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त स्वतंत्रता का अधिकार तभी सार्थक होता है, जब व्यक्ति संविधान में निहित अपने मूल कर्तव्यों का पालन करता है। कोर्ट ने कहा कि केवल अधिकारों का दावा नहीं किया जा सकता बल्कि उनके साथ कर्तव्यों का निर्वहन भी अनिवार्य है।जस्टिस के एस मुदगल और जस्टिस वेंकटेश नाइक टी की खंडपीठ ने कहा कि आरोपी अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के...
किसानों को ज़मीन अधिग्रहण के बदले मुआवज़े में बढ़ोतरी मांगने के अधिकार के बारे में सूचित करना राज्य का कर्तव्य: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि लैंड एक्विजिशन एक्ट, 1894 की धारा 28-A के तहत मुआवज़े को फिर से तय करने की मांग करने वाले आवेदनों को सर्टिफाइड कॉपी जमा न करने जैसे बहुत ज़्यादा तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि धारा 28-A एक फायदेमंद प्रावधान है जिसे ज़मीन मालिकों के बीच मुआवज़े में असमानता को खत्म करने के लिए बनाया गया। इसके उद्देश्य को पूरा करने के लिए इसकी उदारता से व्याख्या की जानी चाहिए। इसने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि जिन किसानों की आजीविका का एकमात्र स्रोत अनिवार्य अधिग्रहण...
कलंक लगाकर बिना सुनवाई बर्खास्तगी बर्दाश्त नहीं: सिविल डिफेंस एक्ट की धारा पर दिल्ली हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने सिविल डिफेंस एक्ट, 1968 की धारा 6(2) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखते हुए अत्यंत महत्वपूर्ण कानूनी व्यवस्था दी। अदालत ने स्पष्ट किया कि प्रशासन इस धारा का उपयोग किसी स्वयंसेवक पर 'कलंक' लगाकर उसे बिना सुनवाई के सेवा से बाहर करने के लिए एक 'ढाल' के रूप में नहीं कर सकता।जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने उन सिविल डिफेंस स्वयंसेवकों की बर्खास्तगी आदेश रद्द कर दिया है, जिन्हें COVID-19 महामारी के दौरान ड्यूटी पर कथित रूप से रिपोर्ट न करने के कारण अवांछनीय...
इनकम टैक्स एक्ट के तहत चैरिटेबल मानी गई संस्था को FCRA में अलग नजरिए से नहीं देखा जा सकता: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने स्पष्ट किया कि जिस ट्रस्ट को इनकम टैक्स एक्ट (Income Tax Act) के तहत चैरिटेबल संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है, उसे विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (FCRA) के तहत उस दर्जे से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इनकम टैक्स एक्ट की धारा बारह ए के तहत वैध पंजीकरण रखने वाली संस्था की चैरिटेबल हैसियत को नजरअंदाज करना कानूनन उचित नहीं है।जस्टिस जी आर स्वामीनाथन की एकल पीठ अरष विद्या परंपरा ट्रस्ट की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें गृह मंत्रालय द्वारा ट्रस्ट का...
ध्वस्त मकानों का मुआवजा दोषी अधिकारियों से ही वसूला जाए, राज्य पर नहीं डाला जा सकता बोझ: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान की अधिग्रहित भूमि पर हुए अवैध निर्माण और अतिक्रमण के मामले में कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि जिन अधिकारियों की लापरवाही और मिलीभगत से यह स्थिति पैदा हुई, उन्हीं से ध्वस्त मकानों का मुआवजा वसूला जाना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ऐसी अवैधताओं के लिए राज्य के खजाने पर बोझ डालना न्यायसंगत नहीं है।चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने रिम्स की भूमि पर हुए अतिक्रमण से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिए।...
बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में कैविएट प्रक्रिया में खामी: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जारी किए व्यापक दिशानिर्देश
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य में बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में कैविएट पर नोटिस जारी करने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए।उन मामलों में होने वाली दिक्कतों को देखते हुए जिनमें बाहर के वकील शामिल होते हैं, जस्टिस जे.जे. मुनीर ने कहा:“हमारा मानना है कि कई संभावित दिक्कतों से बचने के लिए मामले में पेश होने वाले बाहर के वकील को बोर्ड द्वारा अपने एक ऐसे सहयोगी को रखने के लिए कहा जा सकता है, जो उस स्टेशन पर रहता हो जहां बोर्ड की बेंच स्थित है, यानी उस बेंच पर जहां कैविएट दायर की गई। वैकल्पिक रूप...
'HIV पॉजिटिव कर्मचारी को स्थायी न करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन': बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि किसी कर्मचारी को सिर्फ़ इसलिए पक्का न करना कि वह HIV पॉजिटिव है, मनमाना, भेदभावपूर्ण और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि जब कोई कर्मचारी बिना किसी रुकावट के अपने सहकर्मियों की तरह ही काम करता रहता है तो उसके HIV स्टेटस को कम सैलरी पर वही काम करवाते हुए उसे पक्का करने का फ़ायदा न देने का आधार नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि ऐसा इनकार करना दुश्मनी वाला भेदभाव है और समानता और गरिमा के संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ़ है।जस्टिस...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध तोड़फोड़ और रेवेन्यू रिकॉर्ड में एकतरफ़ा बदलाव के लिए राज्य पर ₹20 लाख का जुर्माना लगाया
छुट्टियों के दौरान एक आदेश पारित करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की संपत्ति पर अवैध रूप से ढांचा गिराने और याचिकाकर्ता की संपत्ति के संबंध में रेवेन्यू रिकॉर्ड में एकतरफ़ा आदेश पारित करके बदलाव करने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।जुर्माना लगाते हुए जस्टिस आलोक माथुर ने टिप्पणी की:“सिर्फ़ विवादित आदेश रद्द करना याचिकाकर्ता को पूरा न्याय देने के लिए काफ़ी नहीं होगा, जिसकी संपत्ति को राज्य अधिकारियों ने अवैध रूप से गिरा दिया है। उपरोक्त कार्रवाई के लिए, राज्य...
CPC की धारा 24 के तहत ट्रांसफर आदेश के खिलाफ विशेष अपील सुनवाई योग्य नहीं, क्योंकि यह 'निर्णय' नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि CPC की धारा 24 के तहत ट्रांसफर आवेदन पर दिए गए आदेश के खिलाफ विशेष अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट नियम, 1952 के अध्याय VIII नियम 5 के तहत सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि ऐसा आदेश कोई निर्णय नहीं है।जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच ने कहा,“CPC की धारा 24 के तहत पारित आदेश कोई निर्णय नहीं है। इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट नियम, 1952 के अध्याय VIII नियम 5 के तहत इस आधार पर अपील सुनवाई योग्य नहीं है।”CPC की धारा 24 हाईकोर्ट या जिला कोर्ट को अपनी मर्जी से या किसी...
SHANTI और परमाणु कानून में 'शांति' का विरोधाभास
भारतीय पारंपरिक और आध्यात्मिक कल्पना में शांति शांत, आश्वासन और विश्राम का प्रतीक है। फिर भी भारत को बदलने के लिए परमाणु ऊर्जा के सतत दोहन और उन्नति (संक्षेप में शांति) अधिनियम, जिसे अब संसदीय पारित होने के बाद 20 दिसंबर को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है, ने विपरीत प्रभाव उत्पन्न किया है। परमाणु ऊर्जा के आसपास लंबे समय से चली आ रही चिंताओं को दूर करने के बजाय, इसने सुरक्षा, जवाबदेही और न्याय के बारे में अनसुलझे प्रश्नों को फिर से खोल दिया है-ऐसे प्रश्न जिन्हें संसद का मानना था कि उसने परमाणु...
धारा 2(वा) दंड प्रक्रिया संहिता के तहत 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी को वरीयता, चाचा का दावा खारिज: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 2(वा) के अंतर्गत पीड़ित अथवा विधिक उत्तराधिकारी की पहचान के लिए अपनाई जाने वाली 'निकटतम विधिक उत्तराधिकारी' की कसौटी पर पत्नी मृतक के चाचा से अधिक अधिकारयुक्त मानी जाएगी। न्यायालय ने कहा कि मृतक की पत्नी, पारिवारिक और विधिक संबंधों की दृष्टि से चाचा की तुलना में अधिक निकट उत्तराधिकारी है।जस्टिस राजेश सिंह चौहान और जस्टिस अभ्देश कुमार चौधरी की खंडपीठ ने यह टिप्पणी उस याचिका पर की, जिसमें मृतक के चाचा...
करीब 25 साल बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने CISF अधिकारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति रद्द की
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के सहायक कमांडेंट की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को लगभग 25 वर्ष बाद रद्द करते हुए कहा कि यह सख्त दंड ऐसे आरोपों पर आधारित था, जिन्हें ठोस साक्ष्यों से साबित नहीं किया जा सका। न्यायालय ने माना कि विभागीय कार्रवाई ने अधिकारी की प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंचाई।जस्टिस दिनेश मेहता और जस्टिस विमल कुमार यादव की खंडपीठ ने कहा कि वर्ष 2005 में यौन उत्पीड़न के आरोपों के आधार पर अधिकारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी गई। अब जब लगभग 25 वर्ष बीत चुके हैं और...
दिवालिया कार्यवाही के कारण खाते अवरुद्ध होने पर चेक बाउंस का आपराधिक मामला नहीं बनता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने चेक अनादर से जुड़े तीन आपराधिक मामलों को रद्द करते हुए दोहराया कि यदि दिवालिया कानून के तहत बैंक खाते अवरुद्ध हों तो ऐसे मामलों में चेक बाउंस के आधार पर आपराधिक अभियोजन नहीं चलाया जा सकता।जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की एकल पीठ ने सुमेरु प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक फरहाद सूरी और धीरन नवलखा द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 केवल उन्हीं मामलों में लागू होती है, जहां भुगतान धनराशि की कमी के कारण विफल होता...
चेक बाउंस मामलों में समझौते के बाद मजिस्ट्रेट निष्पादन अदालत की भूमिका नहीं निभा सकता: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) के तहत चेक बाउंस से जुड़े मामलों में यदि पक्षकारों के बीच वैध समझौता दर्ज हो जाता है तो ट्रायल मजिस्ट्रेट का कर्तव्य केवल उस समझौते के अनुरूप शिकायत का निपटारा करना है। इसके बाद मजिस्ट्रेट न तो समझौते के पालन की निगरानी कर सकता है और न ही उसे लागू कराने के लिए निष्पादन अदालत की तरह कार्य कर सकता है।जस्टिस संजय धर ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई करते हुए की, जिसमें याचिकाकर्ता साजिद अहमद मलिक ने...




















