हाईकोर्ट
परिस्थितियों में बदलाव न होने पर भी लगातार जमानत याचिका सुनवाई योग्य: जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि किसी अधीनस्थ आपराधिक अदालत द्वारा पहले जमानत याचिकाएँ खारिज की जा चुकी हों, तब भी हाईकोर्ट के समक्ष successive (लगातार) जमानत याचिका पर विचार करने के लिए परिस्थितियों में बदलाव (change of circumstances) होना अनिवार्य नहीं है।जस्टिस संजय धर ने बलात्कार के एक मामले में आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि उच्च न्यायालय, एक वरिष्ठ (superior) अदालत होने के नाते, ऐसी तकनीकी सीमाओं से बंधा नहीं है। यह मामला धारा 376...
विदेश यात्रा का अधिकार: बेल शर्त उल्लंघन पर पासपोर्ट ज़ब्ती का ट्रायल कोर्ट आदेश राजस्थान हाईकोर्ट ने किया रद्द
राजस्थान हाईकोर्ट ने विदेश यात्रा की अनुमति लिए बिना देश छोड़ने के कारण बेल शर्तों के उल्लंघन पर पासपोर्ट ज़ब्त किए गए एक आरोपी को राहत दी। न्यायालय ने कहा कि ऐसे हालात में पासपोर्ट को लगातार ज़ब्त रखना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।जस्टिस अनूप कुमार ढांढ की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता का कृत्य अनुचित था और यह अदालत के आदेश की अवहेलना के समान है। कोर्ट ने टिप्पणी की, “अदालत के आदेशों की अवहेलना कानून के शासन की नींव पर प्रहार...
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोऑपरेटिव सोसाइटी चुनाव विवाद में आर्बिट्रेटर के आदेशों पर सिंगल जज के स्टे पर सुनाया खंडित फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की एक डिवीजन बेंच ने सिंगल जज के एक आदेश को चुनौती देने के खिलाफ खंडित फैसला सुनाया, जिसमें सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट, जो एक आर्बिट्रेटर के तौर पर काम कर रहे है, उनके आदेश पर रोक लगा दी गई थी। इस आदेश से उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव सोसाइटी एक्ट 1965 के तहत बहुजन निर्बल वर्ग सहकारी गृह निर्माण समिति लिमिटेड (याचिकाकर्ता) के चुनाव परिणाम पर रोक लगा दी गई।जस्टिस राजन रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार की बेंच इस मामले से निपटने में सिंगल जज के अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल पर सहमत नहीं...
पूरी तरह से धार्मिक या स्वैच्छिक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने धर्मार्थ ट्रस्ट को इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट के तहत 'इंडस्ट्री' माना
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख के हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि जम्मू-कश्मीर धर्मार्थ ट्रस्ट अपनी गतिविधियों के व्यवस्थित, संगठित और व्यावसायिक स्वरूप के कारण इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947 के तहत "इंडस्ट्री" की कानूनी परिभाषा को पूरा करता है।जस्टिस एम ए चौधरी ने फैसला सुनाया कि ट्रस्ट के संचालन को पूरी तरह से धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं माना जा सकता है, जो निस्वार्थ और स्वैच्छिक तरीके से किए जाते हैं। इसलिए वे श्रम कानून सुरक्षा के अधीन हैं।यह फैसला धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा दायर रिट याचिका खारिज करते...
पति के परिवार वालों द्वारा यौन उत्पीड़न भी IPC की धारा 498A के तहत क्रूरता का एक रूप है, इसके लिए अलग ट्रायल की ज़रूरत नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पति के परिवार वालों द्वारा पत्नी पर किया गया यौन उत्पीड़न भी भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A के तहत क्रूरता का एक रूप है और इसके लिए अलग ट्रायल की ज़रूरत नहीं है।जस्टिस अमित महाजन ने कहा कि अगर पत्नी ऐसे परिवार वालों के खिलाफ आरोप लगाती है तो यह धारा 498A में बताई गई शारीरिक क्रूरता का भी हिस्सा हो सकता है।कोर्ट ने साफ किया कि IPC की धारा 498A और 376 के तहत दोनों अपराध इस तरह से जुड़े होने चाहिए कि वे "एक ही लेन-देन बनाने के लिए एक साथ जुड़े हुए...
पासपोर्ट पहचान का भी ज़रिया, इसे जमा करने की ज़मानत की शर्त रूटीन तरीके से नहीं लगाई जा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट ज़मानत देते समय रूटीन तरीके से यह देखते हुए पासपोर्ट जमा करने की शर्त नहीं लगा सकते कि "पासपोर्ट न केवल यात्रा दस्तावेज़ के रूप में ज़रूरी है, बल्कि अन्य उद्देश्यों के लिए भी ज़रूरी है, खासकर पहचान के साधन के रूप में।"ज़मानत की शर्त को चुनौती देने वाली एक याचिका को मंज़ूर करते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को अपने पासपोर्ट जमा करने का निर्देश देने वाली शर्त रद्द की। साथ ही यह भी अनिवार्य किया कि वे विदेश यात्रा करने से पहले ट्रायल कोर्ट से पहले अनुमति...
HIV पॉजिटिव होने के आधार पर कर्मचारी की सेवा समाप्त करना मनमाना और गैरकानूनी: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि किसी कर्मचारी को केवल HIV पॉजिटिव होने के आधार पर सेवा से हटाना न केवल मनमाना है, बल्कि कानून के भी खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि मानव प्रतिरक्षा अपूर्णता विषाणु एवं उपार्जित प्रतिरक्षा अपूर्णता सिंड्रोम (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 2017 में निर्धारित सुरक्षा उपायों का पालन किए बिना की गई ऐसी कार्रवाई अवैध है।जस्टिस सी. हरि शंकर और जस्टिस ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने सीमा सुरक्षा बल (BSF) के एक कांस्टेबल को सेवा से हटाए जाने का आदेश रद्द करते...
अरावली पुनर्वर्गीकरण और संवैधानिक पर्यावरणवाद: एक कानूनी आलोचना
अरावली पहाड़ियों को फिर से परिभाषित करनानवंबर 2025 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने औपचारिक रूप से अरावली पहाड़ियों की एक समान परिभाषा को स्वीकार कर लिया, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक विशेषज्ञ समिति द्वारा अनुशंसित था। इस परिभाषा के अनुसार, आसपास के इलाके से 100 मीटर की न्यूनतम सापेक्ष राहत प्रदर्शित करने वाले केवल भू-रूप "अरावली पहाड़ियों" के रूप में योग्य हैं। यह न्यायिक समर्थन पर्यावरण शासन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, जो भारत की सबसे प्राचीन और पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पर्वत...
लोकतंत्र और अकादमिक अनुशासन में संतुलन ज़रूरी: छात्र संघ चुनावों पर राजस्थान हाईकोर्ट के भविष्यगत दिशा-निर्देश
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनावों को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए स्पष्ट किया कि छात्र लोकतंत्र और अकादमिक अनुशासन एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं बल्कि दोनों का संतुलन ही उच्च शिक्षा संस्थानों की मजबूती का आधार है। कोर्ट ने 2025-26 के लिए छात्र संघ चुनाव न कराए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया, लेकिन साथ ही भविष्य के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए।जस्टिस समीर जैन ने कहा कि याचिकाकर्ता छात्रों के पास इस मामले में लोकस स्टैंडी नहीं है...
Right to be Forgotten पर टकराव: इंडियन कानून ने लेख हटाने के आदेश के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया
कानूनी सर्च इंजन इंडियन कानून ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसे एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूरी तरह बरी किए गए व्यक्ति से जुड़ी खबरें और यूआरएल हटाने का निर्देश दिया गया। ट्रायल कोर्ट ने यह आदेश आरोपी के 'राइट टू बी फॉरगॉटन' यानी भुला दिए जाने के अधिकार को स्वीकार करते हुए पारित किया।इस मामले में जस्टिस अनिश दयाल ने इंडियन कानून की अपील पर नोटिस जारी किया। इंडियन कानून की ओर से अधिवक्ता अपार गुप्ता और नमन कुमार पेश हुए जबकि सीनियर एडवोकेट...
गैंगस्टर एक्ट के नाम पर चयनात्मक कार्रवाई से कानून का राज कमजोर: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश गैंगस्टर एवं असामाजिक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम के तहत जांच और अभियोजन की प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए कहा कि चयनात्मक जांच और चयनात्मक अभियोजन कानून के शासन के विरुद्ध है और इससे शासन व्यवस्था पर जनता का भरोसा कमजोर होता है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि प्रभावशाली और संगठित अपराध से जुड़े लोग जमानत की शर्तों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं और अदालतों में बार-बार स्थगन लिया जाता है, जबकि अभियोजन तंत्र उन्हें प्रभावी ढंग से चुनौती देने में विफल रहता है।जस्टिस...
एकल अभिभावक की देखभाल क्षमता को लैंगिक नजरिए से आंकना अनुचित: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट के समक्ष लंबित मामलों का निपटारा करते समय किसी एकल अभिभावक की देखभाल संबंधी जिम्मेदारियों और चुनौतियों का आकलन लैंगिक दृष्टिकोण से करना न तो उचित है और न ही कानूनी रूप से स्वीकार्य। अदालत ने स्पष्ट किया कि बच्चे की देखभाल की भूमिका चाहे मां निभाए या पिता उससे जुड़ी भावनात्मक, मानसिक और भौतिक जिम्मेदारियां समान होती हैं और केवल इस आधार पर कि देखभालकर्ता पिता है उसके प्रयासों को कमतर नहीं आंका जा सकता।जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने यह टिप्पणी ऐसे मामले में की,...
प्रशासन की कानून से अनभिज्ञता अदालतों पर बोझ बढ़ा रही है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि कई बार सरकारी प्राधिकरण कानून की स्थिति से अनभिज्ञ रहते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अदालतों में अनावश्यक मुकदमों की बाढ़ आ जाती है और कोर्ट का रोस्टर अवरुद्ध हो जाता है। अदालत ने कहा कि इस तरह की लापरवाही न केवल न्यायिक समय की बर्बादी है बल्कि आम नागरिकों को भी अनावश्यक रूप से मुकदमेबाजी के लिए मजबूर करती है।जस्टिस मंजू रानी चौहान ने यह टिप्पणी उस मामले में की, जिसमें एक अशिक्षित याचिकाकर्ता ने अपनी ही संविदात्मक अनुकंपा नियुक्ति को चुनौती देते हुए...
राष्ट्रपति के संदर्भ पर फैसले के बाद अनुत्तरित सवाल
तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल में निर्णय दिए गए अधिकांश कानूनी मुद्दों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2025 के राष्ट्रपति संदर्भ पर अपनी सलाहकारी राय में फिर से देखा गया था। अनुच्छेद 143 के तहत कार्य करने वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने एक ऐसी राय दी जिसमें पूर्ववर्ती मूल्य है, जिसने कुछ हद तक तमिलनाडु राज्य में निर्धारित कानून को खारिज कर दिया। हालांकि, एक सलाहकारी राय के रूप में, यह उस मामले में डिवीजन बेंच द्वारा जारी अंतिम निर्णय या ऑपरेटिव निर्देशों को नहीं बदलता है।दोनों के बीच तुलना से...
दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन अपराधों में पीड़ित मुआवजे के दुरुपयोग पर चिंता जताई, प्रभावी कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देश जारी किए
दिल्ली हाईकोर्ट ने यौन अपराधों के मामलों में कुछ पीड़ितों को मिले मुआवजे के दुरुपयोग पर चिंता जताई और पीड़ित मुआवजा तंत्र के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देश जारी किए।जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि FIR दर्ज होने के बाद पीड़ित को अंतरिम मुआवजा दिया जाता है, लेकिन बाद में पीड़ित अपने आरोपों से पीछे हट सकती है, समझौता कर सकती है, या FIR या कार्यवाही रद्द करने की मांग कर सकती है।कोर्ट ने कहा,"ऐसी स्थितियों में अक्सर यह पाया जाता है कि पहले से दिया गया अंतरिम मुआवजा न तो पीड़ित द्वारा वापस...
यूपी पुलिस ने धर्मांतरण मामले में FIR और चार्जशीट में यूपी कानून की जगह गलती से छत्तीसगढ़ कानून लगाया: हाईकोर्ट ने कार्रवाई के निर्देश दिए
इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ बेंच) ने हाल ही में यूपी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए, जिन्होंने गलती से यूपी गैर-कानूनी धर्मांतरण निषेध अधिनियम, 2021 की जगह छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 के तहत FIR दर्ज की और उसके बाद चार्जशीट दाखिल की।जस्टिस राजीव सिंह की बेंच ने न सिर्फ सीतापुर के पुलिस अधीक्षक (SP) को चार्जशीट वापस कर दी, बल्कि संबंधित कोर्ट द्वारा पारित संज्ञान आदेश को भी रद्द कर दिया।संक्षेप में मामला2022 में सीतापुर के धर्मांतरण मामले में नैमिश गुप्ता की शिकायत पर...
प्रिंसिपल एम्प्लॉयर और कॉन्ट्रैक्टर के ज़रिए रखे गए मज़दूर के बीच कोई मालिक-कर्मचारी संबंध नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
जस्टिस रेनू भटनागर की बेंच वाली दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि कॉन्ट्रैक्टर के ज़रिए रखा गया मज़दूर प्रिंसिपल एम्प्लॉयर का कर्मचारी नहीं होता, अगर दावा करने वाला व्यक्ति विश्वसनीय सबूतों के साथ सीधा मालिक-कर्मचारी संबंध साबित करने में नाकाम रहता है।मामले के तथ्यमज़दूर 2001 से इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (IGL) में ड्राइववे सेल्स मैन (DSM) के तौर पर काम कर रहा था। उसे 2005 में नौकरी से निकाल दिया गया। उसने दावा किया कि उसकी सेवाएं इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट का पालन किए बिना गैर-कानूनी तरीके से...
पति की मौत के बाद ससुराल वालों की मर्ज़ी पर दुल्हन के नाबालिग होने के कारण हिंदू शादी को अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) के तहत एक हिंदू शादी को ससुराल वालों की मर्ज़ी पर शादी के समय दुल्हन के नाबालिग होने का दावा करके बाद में अमान्य घोषित नहीं किया जा सकता।हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 का उप-खंड (iii) यह शर्त रखता है कि हिंदू शादी के लिए दूल्हे की उम्र 21 साल और दुल्हन की उम्र 18 साल होनी चाहिए। अधिनियम की धारा 11 अमान्य शादियों के बारे में बताती है, जहां धारा 5 के उप-खंड (i), (ii) और (iv) का उल्लंघन शादी को अमान्य घोषित...
क्या आरोपी सेशंस कोर्ट जाए बिना नए सबूतों के आधार पर सीधे हाईकोर्ट में लगातार जमानत याचिका दायर कर सकता है? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया जवाब
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि दूसरी जमानत याचिका, या लगातार जमानत याचिकाएं, हाईकोर्ट द्वारा ट्रायल के दौरान इकट्ठा किए गए सबूतों के आधार पर सुनी जा सकती हैं, भले ही ये सबूत सेशंस कोर्ट या हाईकोर्ट के पास तब उपलब्ध न हों जब पिछली जमानत याचिका खारिज की गई थी।हालांकि, जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की बेंच ने साफ किया कि सही मामलों में हाईकोर्ट आवेदक-आरोपी को नए सबूतों के आधार पर सेशंस कोर्ट के सामने लगातार जमानत याचिकाएं दायर करने का निर्देश दे सकता है।संक्षेप में मामलाकोर्ट ने साफ किया कि...
पटना हाईकोर्ट ने CBI बनाम मीर उस्मान मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद स्पीडी ट्रायल के लिए गाइडलाइंस जारी की
12 दिसंबर 2025 को जारी सर्कुलर में पटना हाईकोर्ट ने सभी ट्रायल कोर्ट को प्रशासनिक निर्देश जारी किए, जिनका मकसद सुनवाई को तेज़ी से पूरा करना है।यह सर्कुलर CBI बनाम मीर उस्मान मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पालन में जारी किया गया। इसमें साफ तौर पर SLP (Crl.) नंबर 969/2025 (सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन बनाम मीर उस्मान @ आरा @ मीर उस्मान अली) में 22 सितंबर 2025 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैराग्राफ 37 का ज़िक्र है, जिसमें कोर्ट ने हाईकोर्ट को ट्रायल कोर्ट्स के लिए उचित प्रशासनिक गाइडलाइंस...



















