उड़ीसा हाईकोर्ट
'मृत्यु पूर्व घोषणा किसी व्यक्ति विशेष को संबोधित करने की आवश्यकता नहीं है': उड़ीसा हाईकोर्ट ने भाई की हत्या के लिए व्यक्ति की सजा को बरकरार रखा
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना है कि मृत्यु पूर्व बयान को किसी विशेष व्यक्ति को संबोधित करने की आवश्यकता नहीं है और यहां तक कि मृतक का दर्द से चिल्लाना, हत्यारे के नाम का खुलासा करना, को भी वैध मृत्यु पूर्व बयान के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, यदि न्यायालय घोषणा की स्वैच्छिकता और सत्यता के बारे में संतुष्ट है।अपने भाई की हत्या के लिए एक व्यक्ति की सजा को बरकरार रखते हुए, जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस सावित्री राठो की खंडपीठ ने आगे कहा – "मृत्यु पूर्व बयान केवल इस कारण से एक ठोस सबूत है कि...
KIIT यूनिवर्सिटी के खिलाफ नेपाली स्टूडेंट की मृत्यु मामले में NHRC की कार्यवाही पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
किंजलाल औद्योगिक प्रौद्योगिकी संस्थान (KIIT) को अस्थायी राहत देते हुए उड़ीसा हाईकोर्ट ने फरवरी में नेपाली स्टूडेंट की कथित आत्महत्या के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा शुरू की गई कार्यवाही और आदेशों पर अंतरिम रोक लगाई।जस्टिस डॉ. संजीब कुमार पाणिग्रही ने अपने आदेश में कहा,“यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि जब अर्ध-न्यायिक संस्थाएं आदेश पारित करती हैं तो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन केवल औपचारिकता नहीं बल्कि मूलभूत आवश्यकता है। नोटिस का अभाव या सुनवाई का अवसर न देना ऐसी...
Sec.14 HMA| शादी के 1 साल से पहले तलाक मांगने के लिए असाधारण कठिनाई दिखाने वाला अलग आवेदन दायर किया जाना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना है कि चूंकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 14 शादी के एक वर्ष के भीतर तलाक के लिए याचिका की प्रस्तुति पर रोक लगाती है, इसलिए याचिकाकर्ता को धारा 14 (1) के प्रावधान के अनुसार एक वर्ष की अनिवार्य प्रतीक्षा अवधि को माफ करने के लिए प्रतिवादी द्वारा 'असाधारण कठिनाई' या 'असाधारण भ्रष्टता' का प्रचार करते हुए एक अलग आवेदन दायर करना होगा।वैधानिक आवश्यकता को रेखांकित करते हुए, जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चितरंजन दास की खंडपीठ ने कहा – "अदालत ऐसे मामलों में याचिका...
फैमिली कोर्ट देरी और आलस्य के सामान्य सिद्धांतों द्वारा शासित होते हैं, न कि परिसीमन अधिनियम के सख्त प्रावधानों द्वारा: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि फैमिली कोर्ट परिसीमा अधिनियम, 1963 के तहत निर्धारित कठोर सीमा अवधि द्वारा शासित नहीं होते हैं, बल्कि देरी और आलस्य के सामान्य सिद्धांत उनके निर्णयों पर लागू होते हैं।जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दाश की डिवीजन बेंच ने आगे कहा कि पक्षों की 'वैवाहिक स्थिति' से संबंधित विवाद 'कार्रवाई का सतत कारण' है और इसलिए, ऐसे विवादों पर विचार करने और उनका निर्णय करने के लिए कोई सख्त सीमा अवधि लागू नहीं होती है।इसने कहा, “वैवाहिक स्थिति को स्थापित करने या...
अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे हिंदू पिता की पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि दूसरे/ अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे न केवल स्व-अर्जित बल्कि अपने पिता की पैतृक संपत्ति के भी उत्तराधिकारी हैं, क्योंकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 16 अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करती है और हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) वैध बच्चों को वर्ग-I वारिस के रूप में माता-पिता की स्व अर्जित संपत्ति के उत्तराधिकारी होने का अधिकार देता है।अवैध/अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के उत्तराधिकार के अधिकार के बारे में कानून की स्थिति को स्पष्ट...
पुलिस डाॅग अदालत में गवाही नहीं दे सकता, उसके संचालक का साक्ष्य महज सुनी हुई बात, इसकी पुष्टि की आवश्यकता: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने कोर्ट ऑफ एडहॉक, एडिशनल सेशन जज, भुवनेश्वर की ओर से पारित दो दशक पुराने आदेश को बरकरार रखा है, जिसके तहत वर्ष 2003 में एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार और हत्या के आरोपी दो व्यक्तियों को बरी कर दिया गया था। जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने उस खोजी कुत्ते के साक्ष्य को खारिज कर दिया, जिसने गंध के निशान का पीछा करते हुए एक आरोपी की दुकान की ओर इशारा किया था। पीठ ने तर्क दिया,“...चूंकि कुत्ता अदालत में गवाही नहीं दे सकता, इसलिए उसके संचालक को...
NDPS Act | कानून न्याय के उद्देश्य को आगे बढ़ाए बिना जब्त वाहन को अनिश्चित काल तक रखने की अनुमति नहीं देता: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (NDPS Act) के तहत प्रावधान बिना किसी उचित कारण के जब्त वाहन को अनिश्चित काल तक रखने का आदेश नहीं देते, खासकर तब जब ऐसा रखने से वाहन का क्षरण और मूल्यह्रास होता है।संरचनात्मक और आर्थिक क्षरण को रोकने के लिए वाहन की अंतरिम रिहाई के महत्व को रेखांकित करते हुए डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा -“कानून संपत्ति को अनिश्चित काल तक रखने की अनुमति नहीं देता, जब उसकी हिरासत न्याय के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए...
दहेज विवाद के बाद बहू से पालतू कुत्ते की कस्टडी मांगने वाली महिला पर उड़ीसा हाईकोर्ट ने जुर्माना लगाया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महिला पर एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया, जिसने अपनी बहू से अपने पालतू कुत्ते की कस्टडी वापस लेने के लिए रिट याचिका दायर की थी।मामला कथित तौर पर दहेज विवाद से उत्पन्न हुआ जिसमें बहू ने ससुराल वालों के खिलाफ FIR दर्ज कराई और ससुराल छोड़कर चली गई। इसके बाद ससुराल वालों से दहेज की संपत्ति जब्त कर ली गई। उन संपत्तियों के साथ बहू कथित तौर पर परिवार के पालतू कुत्ते को भी अपने साथ ले गई।इस तरह की कार्रवाई से व्यथित होकर सास ने एक रिट याचिका दायर की, जिसमें राज्य को भी...
उड़ीसा हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति को तलाक दिया, जिसके खिलाफ पत्नी ने 45 एफआईआर दर्ज कराई थीं; कहा- 'कानून शादी में कष्ट सहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता'
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में क्रूरता के आधार पर एक जोड़े को तलाक दे दिया, जबकि पत्नी ने पति के खिलाफ कई तुच्छ आपराधिक मामले दर्ज किए, उसके बुजुर्ग माता-पिता को उसके वैवाहिक घर से बाहर निकालने का प्रयास किया और बार-बार आत्महत्या करने की धमकी दी, जिससे पति को गंभीर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक संकट हुआ। जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि पत्नी द्वारा आत्महत्या करने की बार-बार दी गई धमकी वास्तव में क्रूरता का एक रूप है और कहा -“आत्महत्या करने या इससे भी...
आरोपों में नफरत भरी हुई है, एक दशक पहले ही शादी पूरी तरह टूट चुकी है: उड़ीसा हाईकोर्ट ने जोड़े को तलाक की अनुमति दी
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-b) के तहत परित्याग के आधार पर जोड़े को तलाक की अनुमति दी। साथ ही यह भी कहा कि पिछले एक दशक से भी अधिक समय से यह जोड़ा एक-दूसरे के खिलाफ नफरत भरे आरोप लगा रहा है और शादी पूरी तरह टूट चुकी है।पति-पत्नी के बीच गंभीर वैवाहिक मतभेदों को उजागर करते हुए जस्टिस बिभु प्रसाद राउत्रे और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने कहा,“पिछले 12 वर्षों के दौरान किसी भी पक्ष द्वारा वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया। इसलिए...
S.138 NI Act | यदि शिकायतकर्ता अवैध लेनदेन में शामिल हैं तो चेक बाउंस का मामला कायम नहीं रखा जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि अगर शिकायतकर्ता स्वयं अवैध लेनदेन में भागीदार है, या दूसरे शब्दों में, यदि शिकायतकर्ता ने अवैध उद्देश्य को पाने के लिए शुरू में पैसों को भुगतान किया है तो वह निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत आरोपी के खिलाफ चेक बाउंस का मामला नहीं चला सकती। आरोपी के खिलाफ धारा 138 के तहत आरोप को खारिज करते हुए जस्टिस सिबो शंकर मिश्रा की एकल पीठ ने कहा -“वर्तमान मामले में इन पैरी डेलिक्टो का सिद्धांत स्पष्ट रूप से लागू होता है।...
S. 245 CrPC | मजिस्ट्रेट के लिए आरोपी की डिस्चार्ज याचिका को स्वीकार/अस्वीकार करते समय कारण दर्ज करना अनिवार्य: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 245 के तहत किसी अभियुक्त द्वारा दायर डिस्चार्ज याचिका को न केवल स्वीकार करने के लिए बल्कि उसे खारिज करने के लिए भी मजिस्ट्रेट के लिए कारण दर्ज करना अनिवार्य है। जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने कानून के प्रावधान के तहत आवश्यकता को स्पष्ट करते हुए कहा - धारा 245 में प्रयुक्त भाषा, "और ऐसा करने के लिए उसके कारण दर्ज करें" केवल उस मामले को संदर्भित नहीं कर सकती है जहां डिस्चार्ज के लिए आवेदन स्वीकार किया जाता है और तब नहीं जब उसे...
S. 239 CrPC| अभियुक्त को तब बरी किया जा सकता है, जब अभियोजन सामग्री, जिसका भले ही खंडन न किया गया हो, दोषसिद्धि का संकेत न दे: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि किसी अभियुक्त को तब बरी कर दिया जाना चाहिए जब आरोप तय करने के लिए विचार के समय प्रस्तुत सामग्री ऐसी प्रकृति की हो कि यदि उसका खंडन न किया जाए तो भी वह अभियुक्त की दोषसिद्धि का संकेत नहीं देती। दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 239 के तहत अभियुक्त को बरी करने के लिए कानून के सिद्धांतों को लागू करते हुए जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस सावित्री राठो की खंडपीठ ने कहा -“यदि यह मानने का कोई आधार नहीं है कि अभियुक्त ने कोई अपराध किया है तो आरोपों को निराधार माना जाना...
किशोर अंतर-धार्मिक संबंध: पीड़िता से विवाह करने के बाद मुस्लिम व्यक्ति के विरुद्ध POCSO मामला खारिज, कोर्ट ने कहा- संबंध प्रेमपूर्ण थे, जबरदस्ती नहीं
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में मुस्लिम व्यक्ति के विरुद्ध यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत अन्य बातों के साथ-साथ आरोपों को खारिज कर दिया, जिस पर नाबालिग हिंदू लड़की का अपहरण करने और उसके साथ बार-बार यौन संबंध बनाने का आरोप है, क्योंकि बाद में उसने पीड़ित लड़की से विवाह कर लिया और एक खुशहाल वैवाहिक जीवन शुरू कर दिया।प्रचलित कानून के संदर्भ में पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए जस्टिस सिबो शंकर मिश्रा की एकल पीठ ने कहा -“इस मामले में याचिकाकर्ता के विरुद्ध मुकदमा...
वैवाहिक स्थिति से संबंधित विवाद फैमिली कोर्ट के अनन्य क्षेत्राधिकार में आता है: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि पक्षकारों की वैवाहिक स्थिति से संबंधित विवाद फैमिली कोर्ट एक्ट, 1984 (Family Court Act) के तहत स्थापित फैमिली कोर्ट के अनन्य क्षेत्राधिकार में आता है। इसका निर्णय किसी अन्य सिविल कोर्ट द्वारा नहीं किया जा सकता।जिला जज के आदेश द्वारा परिवर्तित किए जा रहे सिविल जज (सीनियर डिवीजन) द्वारा पारित आदेश निरस्त करते हुए जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल पीठ ने कहा -"यह आश्चर्यजनक है कि फैमिली कोर्ट की स्थापना और संचालन के बाद भी ट्रायल कोर्ट ने न केवल मुकदमे को आगे बढ़ाया, बल्कि...
13 वर्षीय बलात्कार पीड़िता को मां बनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट ने 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी
उड़ीसा हाईकोर्ट ने सोमवार (03 मार्च) को 13 वर्षीय नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 24 सप्ताह से अधिक पुराने गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति दे दी। पीड़िता सिकल सेल एनीमिया और मिर्गी जैसी गंभीर बीमारियों से भी पीड़ित है। डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने नाबालिग के अवांछित गर्भ को उसके शरीर और मन पर 'असहनीय बोझ' करार दिया और कहा, “एक तेरह वर्षीय लड़की को गर्भ को पूर्ण अवधि तक ले जाने के लिए मजबूर करना उसके शरीर और मन पर असहनीय बोझ डालेगा, जिसके लिए वह न तो तैयार है और न ही...
BNSS की धारा 379 | न्यायालय शिकायत करने या करने से इनकार करने से पहले प्रारंभिक जांच करने के लिए बाध्य नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 379 के तहत शिकायत करने या उसे अस्वीकार करने के लिए धारा 215, बीएनएसएस में संदर्भित अपराधों के लिए प्रारंभिक जांच करना न्यायालय के लिए अनिवार्य नहीं है। प्रक्रियात्मक प्रावधान को स्पष्ट करते हुए जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की एकल पीठ ने कहा, "...ऐसा प्रतीत होता है कि बीएनएसएस की धारा 379 प्रारंभिक जांच को अनिवार्य नहीं बनाती है, इसलिए हर मामले में ऐसा तरीका अपनाने की आवश्यकता नहीं हो सकती है। हालांकि, न्यायालय...
डीमैट एकाउंट के लिए पैन-आधार लिंकेज संवैधानिक रूप से वैध, उड़ीसा हाईकोर्ट ने आधार के अनिवार्य उपयोग के खिलाफ पूर्व सांसद की याचिका खारिज की
उड़ीसा हाईकोर्ट ने पूर्व सांसद तथागत सतपथी की ओर से दायर एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने डीमैट एकाउंट के संचालन के उद्देश्य से आधार को परामनेंट एकाउंट नंबर (PAN) से अनिवार्य रूप से जोड़ने की आवश्यकता को चुनौती दी थी। उपर्युक्त आवश्यकता को संवैधानिक और 'निजता के अधिकार' पर एक उचित प्रतिबंध मानते हुए डॉ जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा -“आयकर अधिनियम की धारा 139AA के तहत पैन और डीमैट खातों के साथ आधार को अनिवार्य रूप से जोड़ना पुट्टस्वामी में निर्धारित संवैधानिक...
Probation Of Offenders Act| उड़ीसा हाईकोर्ट ने 1991 में धोखे से यौन संबंध बनाने के आरोपी को रिहा किया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ दोषसिद्धि और सजा के आदेश को बरकरार रखा है, जिसे एक नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने का दोषी ठहराया गया था, जिसमें उसे धोखे से यह विश्वास दिलाया गया था कि वह उसका कानूनी रूप से विवाहित पति है और उसके बाद, गोलियां देकर गर्भपात का कारण बना।जस्टिस बिरजा प्रसन्ना सतपथी की एकल पीठ ने हालांकि अपराधी परिवीक्षा अधिनियम के प्रावधानों के तहत उन्हें इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए रिहा कर दिया कि अपराध वर्ष 1991 का है और दोषी अब 63 साल का है। "वर्ष 1991 की घटना को...
'यह धारणा कि महिला केवल शादी करने के लिए अंतरंग संबंध बनाती है, पितृसत्तात्मक है': उड़ीसा हाईकोर्ट ने शादी के झूठे वादे पर सेक्स को अपराध बनाने पर सवाल उठाया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने 'शादी के झूठे वादे' पर यौन संबंध को अपराध घोषित करने के पीछे की अंतर्निहित धारणा पर सवाल उठाया है और कहा है कि यह धारणा कि एक महिला किसी पुरुष के साथ केवल शादी के 'प्रस्तावना' के रूप में अंतरंगता में संलग्न होती है, एक पितृसत्तात्मक विचार है और न्याय का सिद्धांत नहीं है। महिला कामुकता और शारीरिक स्वायत्तता पर बंधन लगाने के खिलाफ एक शक्तिशाली टिप्पणी में डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा -"न्याय की खोज में, कानून को नैतिक पुलिसिंग का साधन नहीं बनना चाहिए। इसे...