उड़ीसा हाईकोर्ट

भरतपुर सैन्य अधिकारी और वकील पर हमला: उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया, मीडिया को पीड़ितों की पहचान प्रकाशित करने से रोका
भरतपुर सैन्य अधिकारी और वकील पर हमला: उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया, मीडिया को पीड़ितों की पहचान प्रकाशित करने से रोका

उड़ीसा हाईकोर्ट ने सोमवार को भुवनेश्वर के भरतपुर पुलिस थाने में एक सैन्य अधिकारी और उसकी महिला वकील मित्र को कथित तौर पर हिरासत में प्रताड़ित करने के मामले का स्वतः संज्ञान लिया। यह कार्रवाई लेफ्टिनेंट जनरल पीएस शेखावत, जनरल ऑफिसर कमांडिंग और कर्नल के पत्र के बाद की गई, जिसमें मुख्य न्यायाधीश से स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह किया गया था।विवाद की पृष्ठभूमियह मामला 22 सिख रेजिमेंट के एक सैन्य अधिकारी और उसकी महिला मित्र, जो एक वकील है, को अवैध हिरासत में रखने और कथित तौर पर हिरासत में प्रताड़ित करने...

Senior Advocate Designation| स्थायी समिति को कुछ वकीलों की उम्मीदवारी को पूर्ण न्यायालय से स्थगित करने का अधिकार नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
Senior Advocate Designation| स्थायी समिति को कुछ वकीलों की उम्मीदवारी को पूर्ण न्यायालय से स्थगित करने का अधिकार नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि सीनियर एडवोकेट के पदनाम के लिए गठित 'स्थायी समिति' को कुछ एडकोकेट के नाम विचार के लिए पूर्ण न्यायालय को प्रस्तुत किए बिना उनकी उम्मीदवारी को रोकने/समाप्त करने/स्थगित करने का अधिकार नहीं है।'स्थायी समिति' के कामकाज के दायरे को स्पष्ट करते हुए, जस्टिस संगम कुमार साहू और डॉ जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की खंडपीठ ने कहा – "विशेष रूप से, नियम 6 (6) की आवश्यकता है कि स्थायी समिति द्वारा विचार किए गए सभी नाम, इसकी मूल्यांकन रिपोर्ट के साथ, पूर्ण न्यायालय को प्रस्तुत किए...

उड़ीसा हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा कथित रूप से हमला किए गए सेना के मेजर के वकील-मित्र को जमानत दी, निचली अदालत के प्रारूप आदेश की आलोचना की
उड़ीसा हाईकोर्ट ने पुलिस द्वारा कथित रूप से हमला किए गए सेना के मेजर के वकील-मित्र को जमानत दी, निचली अदालत के "प्रारूप आदेश" की आलोचना की

उड़ीसा हाईकोर्ट ने बुधवार को सेना के एक मेजर की महिला मित्र को जमानत दे दी, जिसे कथित तौर पर हिरासत में यातना दी गई थी और भुवनेश्वर के भरतपुर पुलिस स्टेशन के पुलिसकर्मियों के साथ हाथापाई के बाद गिरफ्तार किया गया था।मामले को तत्काल सुनवाई के लिए लेने के बाद, जस्टिस आदित्य कुमार महापात्र की एकल पीठ ने दोनों पर हमला करने के लिए पुलिसकर्मियों को कड़ी फटकार लगाई। पीठ ने पुलिस को पवित्र प्रक्रियाओं का उल्लंघन करने के लिए दोनों को अवैध रूप से हिरासत में लेने के लिए फटकार लगाई और कहा, “…गिरफ्तार करने...

धारा 377 आईपीसी | उड़ीसा हाईकोर्ट ने 4 साल के लड़के के साथ गुदा मैथुन के लिए दोषी ठहराए गए किशोर की हिरासत अवधि कम की
धारा 377 आईपीसी | उड़ीसा हाईकोर्ट ने 4 साल के लड़के के साथ गुदा मैथुन के लिए दोषी ठहराए गए किशोर की हिरासत अवधि कम की

उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय में कानून के साथ संघर्षरत एक बच्चे (child in conflict with law) की हिरासत की अवधि कम कर दी है। उसे चार साल के एक बच्चे के साथ जबरन गुदा मैथुन करने का दोषी पाया गया था। ‌कोर्ट ने उसे दो साल के लिए सुरक्षित स्थान पर हिरासत में रखने का आदेश दिया था। दोष की पुष्टि करते हुए लेकिन हिरासत की अवधि कम करते हुए, जस्टिस डॉ संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि घटना 04.12.2022 को हुई थी और घटना की तारीख से, याचिकाकर्ता/सीसीएल काफी समय से...

उड़ीसा हाईकोर्ट ने पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय से सिलेंडर विस्फोट मामलों में बीमा कवरेज के बारे में जागरूकता फैलाने को कहा
उड़ीसा हाईकोर्ट ने पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय से सिलेंडर विस्फोट मामलों में बीमा कवरेज के बारे में जागरूकता फैलाने को कहा

उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय से कहा है कि वह एलपीजी सिलेंडरों के संचालन में सुरक्षा मानदंडों के संबंध में तेल विपणन कंपनियों के लिए एक मजबूत विज्ञापन नीति तैयार करे तथा दुर्घटनावश सिलेंडर फटने की स्थिति में बीमा कवरेज के बारे में लोगों में जागरूकता फैलाए।बीमा कवरेज के बारे में आम जनता की अज्ञानता को उजागर करते हुए जस्टिस डॉ संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा, "लेकिन, गैस रिसाव दुर्घटनाओं के कई पीड़ित इस मानदंड से अनभिज्ञ हैं कि गैस कंपनियां...

मोटर दुर्घटना दावों के मामलों का अंतर-जिला ट्रांसफर संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत होगा, सीपीसी के तहत नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
मोटर दुर्घटना दावों के मामलों का अंतर-जिला ट्रांसफर संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत होगा, सीपीसी के तहत नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि मोटर दुर्घटना दावों के मामलों को ट्रिब्यूनल से दूसरे ट्रिब्यूनल में अंतर-जिला ट्रांसफर के लिए आवेदन संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत किया जा सकता है, न कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के प्रावधानों के तहत।जस्टिस संजय कुमार मिश्रा की एकल पीठ ने प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों और उदाहरणों की जांच करते हुए कहा -“पीड़ित पक्ष को MV Act के तहत दायर दावों के मामलों के अंतर-जिला ट्रांसफर की मांग करते हुए संबंधित जिला जज के समक्ष जाना होगा और अंतर-जिला ट्रांसफर के लिए पीड़ित पक्ष को...

अनुपातहीन और अनुचित: उड़ीसा हाईकोर्ट ने तिहरे हत्याकांड के दोषी व्यक्ति की मौत की सजा को कम किया
'अनुपातहीन और अनुचित': उड़ीसा हाईकोर्ट ने तिहरे हत्याकांड के दोषी व्यक्ति की मौत की सजा को कम किया

उड़ीसा हाईकोर्ट ने बुधवार को एक व्यक्ति को सुनाई गई मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया, जिसे जमीन-जायदाद के विवाद से संबंधित प्रतिशोध लेने के लिए एक परिवार के तीन सदस्यों, जिनमें दो महिलाएं भी शामिल हैं, की हत्या करने के लिए निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराया गया था। जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने दोषी कैदी और सह-आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए कहा-"हमारा मानना ​​है कि जनता की राय या समाज की अपेक्षा अपीलकर्ता नबीन देहुरी की मौत की सजा की पुष्टि करने की हो...

न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही केवल आरोपों के समर्थन में हलफनामा न होने के आधार पर रद्द नहीं की जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट
न्यायिक अधिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही केवल आरोपों के समर्थन में हलफनामा न होने के आधार पर रद्द नहीं की जा सकती: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि न्यायिक अधिकारी के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को केवल इसलिए रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि जिन आरोपों के आधार पर कार्रवाई की गई थी, उनका समर्थन विधिवत शपथ-पत्र द्वारा नहीं किया गया था। जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चित्तरंजन दास की खंडपीठ ने एक न्यायिक अधिकारी की उसके खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द करने की याचिका को खारिज करते हुए कहा, “हालांकि दिशा-निर्देश का उद्देश्य न्यायिक अधिकारियों को अनुचित उत्पीड़न से बचाना है, लेकिन यह न्यायिक...

मतदाता पहचान पत्र/मतदाता सूची जन्म तिथि का निर्णायक प्रमाण नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
मतदाता पहचान पत्र/मतदाता सूची जन्म तिथि का निर्णायक प्रमाण नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि मतदाता सूची/मतदाता पहचान पत्र में दी गई जन्म तिथि, भले ही साक्ष्य अधिनियम की धारा 35 के तहत सार्वजनिक दस्तावेज के रूप में प्रासंगिक हो लेकिन वास्तविक जन्म तिथि का निर्णायक प्रमाण नहीं है।मतदाता पहचान पत्र में दी गई जन्म तिथि के आधार पर बीमा दावा खारिज करते हुए डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा,“यह आम तौर पर भारतीय न्यायालयों द्वारा स्वीकार किया जाता है कि मतदाता पहचान पत्र/मतदाता सूची में दर्ज जन्म तिथि पर किसी व्यक्ति की आयु निर्धारित करने...

ओडिशा हाईकोर्ट ने पटनागढ़ विधानसभा सीट से उप मुख्यमंत्री केवी सिंह देव के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार की
ओडिशा हाईकोर्ट ने पटनागढ़ विधानसभा सीट से उप मुख्यमंत्री केवी सिंह देव के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार की

ओडिशा हाईकोर्ट ने गुरुवार को 2024 के विधानसभा चुनाव में पटनागढ़ निर्वाचन क्षेत्र से ओडिशा के उपमुख्यमंत्री कनक वर्धन सिंह देव के निर्वाचन को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार कर ली।यह याचिका तत्कालीन सत्तारूढ़ पार्टी बीजू जनता दल (बीजद) द्वारा मैदान में उतारी गई उम्मीदवार सरोज कुमार मेहर ने दायर की है। मेहर सिंह देव से 1357 मतों के अल्प अंतर से चुनाव हार गए क्योंकि उन्हें 92,466 वोट मिले जबकि सिंह देव को 93,823 वोट मिले। मेहर ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 80 से 84 और धारा 100 के प्रावधानों के...

कुल्हाड़ी के नुकीले हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया, हत्या नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि गैर-इरादतन हत्या में बदली
कुल्हाड़ी के नुकीले हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया, हत्या नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि गैर-इरादतन हत्या में बदली

उड़ीसा हाईकोर्ट ने व्यक्ति की हत्या की दोषसिद्धि बदल दी। उक्त व्यक्ति को निचली अदालत ने अपने भतीजे की हत्या करने के लिए दोषी पाया था। उसे आईपीसी की धारा 304, भाग-I के तहत गैर इरादतन हत्या के लिए दोषी ठहराया गया।अपीलकर्ता को आंशिक राहत प्रदान करते हुए जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चित्तरंजन दास की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि कुल्हाड़ी जैसे धारदार हथियार रखने के बावजूद, उसने नुकीले हिस्से का इस्तेमाल नहीं किया और केवल कुंद हिस्से का इस्तेमाल किया।खंडपीठ ने कहा,“ऐसी स्थिति के बावजूद...

रथ यात्रा के दौरान बनाई गई अस्थायी दुकानों को किसी व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
रथ यात्रा के दौरान बनाई गई अस्थायी दुकानों को किसी व्यावसायिक गतिविधि की अनुमति नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने पुरी नगर पालिका को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि रथ यात्रा के दौरान बनाई गई अस्थायी दुकानें बड़ा डंडा (भगवान जगन्नाथ का भव्य मार्ग) पर अतिक्रमण न करें और साथ ही उन दुकानों में कोई व्यावसायिक गतिविधि न की जाए।नगर निकाय को आदेश जारी करते हुए चीफ जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह और जस्टिस सावित्री राठो की खंडपीठ ने कहा,“पुरी नगर पालिका की ओर से बनाई जाने वाली अस्थायी दुकानें किसी भी तरह से बड़ा डंडा पर अतिक्रमण नहीं करेंगी और किसी भी व्यावसायिक गतिविधि के लिए उपयोग नहीं की जाएंगी।...

BNS बेयर एक्ट बार लाइब्रेरी को उपलब्ध कराएं: उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्थगन लिए रखी शर्त
BNS बेयर एक्ट बार लाइब्रेरी को उपलब्ध कराएं: उड़ीसा हाईकोर्ट ने स्थगन लिए रखी शर्त

उड़ीसा हाईकोर्ट ने कुछ पक्षों को इस शर्त पर स्थगन दिया कि उन्हें भारतीय न्याय संहिता (BNS) के बेयर एक्ट की प्रति बार लाइब्रेरी को उपलब्ध करानी होगी।डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही कुछ आपराधिक पुनर्विचार याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे। ऐसे ही मामले में बुलाए जाने के बावजूद विपक्षी पक्ष यानी 'बालासोर सदर सब डिविजनल हाउसिंग बिल्डिंग को-ऑपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड, बालासोर की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ।न्यायाधीश ने विपक्षी पक्ष को अंतिम अवसर प्रदान किया तथा अल्टीमेटम दिया कि यदि वह अगली तिथि पर उपस्थित...

सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला को मातृत्व अवकाश का अधिकार: उड़ीसा हाईकोर्ट
सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला को मातृत्व अवकाश का अधिकार: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक निर्णय में माना कि सरोगेसी के माध्यम से मातृत्व प्राप्त करने वाली महिला कर्मचारी को भी मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) का लाभ उठाने का अधिकार है, क्योंकि यह न केवल संबंधित महिला के लिए फायदेमंद है, बल्कि नवजात शिशु के स्वस्थ पालन-पोषण के लिए भी आवश्यक है।महिला कर्मचारियों के महत्वपूर्ण अधिकार को न्यायिक स्वीकृति प्रदान करते हुए डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा,“संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार में मातृत्व का अधिकार और प्रत्येक बच्चे के...

S.27 Evidence Act | खोज को तभी दूषित नहीं माना जाता जब सामग्री खुले तौर पर सुलभ हो, जब तक कि वह लोगों की खुली आंखों से दिखाई न दे: उड़ीसा हाईकोर्ट
S.27 Evidence Act | खोज को तभी दूषित नहीं माना जाता जब सामग्री 'खुले तौर पर सुलभ' हो, जब तक कि वह लोगों की 'खुली आंखों' से दिखाई न दे: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि किसी वस्तु/सामग्री की खोज के लिए अभियुक्त के बयान को दूषित नहीं माना जाता, यदि वह 'खुले तौर पर सुलभ' हो, बल्कि इसे तब दूषित माना जा सकता है, जब वह उस क्षेत्र से गुजरने वाले लोगों की 'नंगी आंखों' से दिखाई दे।जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने कानून की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा,"यह स्पष्ट करना बहुत महत्वपूर्ण है कि केवल इसलिए कि कोई वस्तु जनता के लिए खुले तौर पर सुलभ है, वह धारा 27 के तहत साक्ष्य को दूषित नहीं करेगी। जांच यह पता लगाना नहीं...

उड़ीसा हाईकोर्ट ने वर्ष 2023 के लिए अपना रिपोर्ट कार्ड जारी किया, जिला जजों का वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने वर्ष 2023 के लिए अपना रिपोर्ट कार्ड जारी किया, जिला जजों का वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया

उड़ीसा हाईकोर्ट ने 28 से 30 जून 2024 तक जिला जजों का वार्षिक सम्मेलन-2024 आयोजित किया। इसने वर्ष 2023 के लिए अपना रिपोर्ट कार्ड वार्षिक रिपोर्ट के रूप में भी जारी किया।उद्घाटन समारोह शुक्रवार को ओडिशा न्यायिक अकादमी कटक में आयोजित किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में चीफ जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में राज्य के सभी 30 जिलों के जिला जजों और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेटों के साथ हाईकोर्ट के जजों ने भी भाग लिया।इस अवसर पर बोलते हुए जस्टिस शशिकांत मिश्रा ने कार्यक्रम की तुलना...

लोक अदालतों के निर्णय स्वतंत्र निर्णय नहीं, उन्हें नियमित न्यायाधीशों की भूमिका निभाने के प्रलोभन से बचना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट
लोक अदालतों के निर्णय स्वतंत्र निर्णय नहीं, उन्हें नियमित न्यायाधीशों की भूमिका निभाने के प्रलोभन से बचना चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने दोहराया कि लोक अदालतों द्वारा पारित 'निर्णय' स्वतंत्र न्यायिक निर्णय नहीं हैं बल्कि 'निष्पादन योग्य आदेश' के रूप में पक्षों द्वारा सहमत समझौते या समझौते की शर्तों को शामिल करने का प्रशासनिक कार्य है।डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने लोक अदालतों को नियमित न्यायालयों के रूप में कार्य करने से परहेज करने की सलाह दी और कहा -“लोक अदालतों को नियमित न्यायाधीशों की भूमिका निभाने के अपने प्रलोभन से बचना चाहिए। उन्हें लगातार मध्यस्थ के रूप में कार्य करने का प्रयास करना...

तलादंडा नहर में पर्यावरण अनुकूल नौका विहार सुविधा क्यों रोकी गई?: उड़ीसा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा
तलादंडा नहर में पर्यावरण अनुकूल नौका विहार सुविधा क्यों रोकी गई?': उड़ीसा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा

उड़ीसा हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा कि पिछले साल नवंबर से ही इसके उद्घाटन के दूसरे महीने पूरा होने से पहले ही तलदंडा नहर में पर्यावरण अनुकूल नौका विहार सुविधा क्यों रोक दी गई।जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस वी. नरसिंह की खंडपीठ कटक शहर में विभिन्न विकासात्मक गतिविधियों की निगरानी के लिए न्यायालय द्वारा दर्ज जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी।पीठ गुरुवार को दोपहर के भोजन के बाद के सत्र में कटक के लोगों के सामने आने वाले कई मुद्दों पर सुनवाई करने के लिए एकत्रित हुई।सुनवाई के दौरान न्यायालय...

Sec.306 IPC। किसी लड़की से सगाई करने के बाद उससे शादी करने से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
Sec.306 IPC। किसी लड़की से सगाई करने के बाद उससे शादी करने से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी लड़की से सगाई करने के बाद उससे शादी करने से इनकार करना भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत 'आत्महत्या के लिए उकसाना' नहीं होगा।याचिकाकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए, जस्टिस सिबो शंकर मिश्रा की सिंगल जज बेंच ने कहा – “… इस अदालत को लगता है कि याचिकाकर्ता द्वारा अकेले शादी करने की अनिच्छा के साथ मृतका के साथ सगाई करने के कार्य को दंडनीय अपराध नहीं बनाया जा सकता है, धारा 306 आईपीसी के तहत बहुत कम। जीवन भर के लिए अपरिवर्तनीय प्रतिबद्धता देने...

अपीलीय अदालत समय से पहले रिहा किए गए दोषी को फिर से कारावास का आदेश नहीं दे सकती, जब तक कि ऐसी रिहाई के अधिकार को चुनौती न दी जाए: उड़ीसा हाईकोर्ट
अपीलीय अदालत समय से पहले रिहा किए गए दोषी को फिर से कारावास का आदेश नहीं दे सकती, जब तक कि ऐसी रिहाई के अधिकार को चुनौती न दी जाए: उड़ीसा हाईकोर्ट

उड़ीसा हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण विसंगति को स्पष्ट करते हुए माना कि कार्यकारी अधिकारियों के पास आजीवन कारावास की सजा पाए कैदियों की समयपूर्व रिहाई के मामले पर विचार करने की निर्बाध शक्ति है, भले ही उनकी अपील अपीलीय न्यायालय के समक्ष लंबित हो। जस्टिस संगम कुमार साहू और जस्टिस चित्तरंजन दाश की खंडपीठ ने यह भी माना कि अपीलीय न्यायालय, अपील पर निर्णय लेने और दोष को बरकरार रखने के बाद, दोषी को उचित सरकार द्वारा समयपूर्व रिहा किए जाने के बाद सजा के शेष भाग को पूरा करने के लिए आत्मसमर्पण करने का आदेश...