सीआरपीसी की धारा 245(2)| मामले के "किसी भी पिछले चरण में" आरोपी को बरी करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति का अर्थ है जिस स्तर पर कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया गया है: मद्रास हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

21 July 2022 5:05 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 245(2)| मामले के किसी भी पिछले चरण में आरोपी को बरी करने की मजिस्ट्रेट की शक्ति का अर्थ है जिस स्तर पर कोर्ट द्वारा संज्ञान लिया गया है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 245(2) के तहत आरोपी को बरी करने की कोर्ट की शक्ति पर विचार करते हुए हाल ही में कहा है कि प्रावधान में प्रयुक्त शब्द "किसी भी पिछले चरण में" का अर्थ उस चरण से होगा जब मजिस्ट्रेट मामले का संज्ञान लेता है।

    कोर्ट ने इस प्रकार विशेष न्यायालय (सीमा शुल्क) के न्यायिक मजिस्ट्रेट के बरी आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मजिस्ट्रेट ने "चेक एंड कॉल ऑन" के चरण में आरोपमुक्त करने संबंधी याचिका की अनुमति दी थी।

    जस्टिस भरत चक्रवर्ती ने निम्न टिप्पणी की:

    "मामले के किसी भी पिछले चरण में" वाक्यांश का अर्थ है फाइल के साथ संज्ञान लिया गया, अन्यथा, मामले में 'आरोपमुक्त' नहीं हो सकता है। इसलिए, मेरा मानना है कि इस मामले में, सीआरपीसी की धारा 200 के तहत चरण शुरू नहीं हुआ है और उससे पहले ही (आरोपमुक्ति से संबंधित) ऐसी अर्जी दायर नहीं की जा सकती है।"

    मौजूदा मामले में, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा अधिकृत एक सुरक्षा एजेंसी चला रहे प्रतिवादी/प्रथम आरोपी ने अपने कर्मचारियों के माध्यम से हवाईअड्डे के अंदर कार्गो शेड से मोबाइल फोन के कवर में सोने की छड़ें लाने में मदद की थी, जो मिलीभगत और साजिश है तथा सीमा शुल्क सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 132, 135 के तहत दंडनीय अपराध है। इसके आधार पर, सीमा शुल्क से संबंधित स्पेशल कोर्ट के समक्ष एक निजी शिकायत दर्ज की गई थी।

    निजी शिकायत को "चेक एंड कॉल ऑन के लिए प्रस्तावित" के कैप्शन के तहत स्थगित कर दिया गया था। इससे पहले कि शिकायत को फाइल पर लिया जाए या इसे क्रमांकित किया जाता, आरोपी ने मुकदमा समाप्त करने के लिए एक आवेदन दिया, जिसे अनुमति दे दी गई।

    प्रतिवादी/अभियुक्त ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 132 के तहत अपराध के संबंध में, अपीलीय प्राधिकारी ने पहले ही माना था कि जहां तक आरोपी नंबर 1 के खिलाफ आरोपों का संबंध है, वह (सोने का) आयातक नहीं है और आरोपी/प्रतिवादी की ओर से न तो कोई गलत घोषणा की गयी थी या न कोई चूक हुई थी, इसलिए उसे इस तरह की गलत घोषणा या कर्तव्य की चोरी के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, सीमा शुल्क अधिनियम की धारा 114 (एए) के तहत लगाया गया जुर्माना टिकाऊ नहीं है। माल ले जाने, हटाने, छिपाने या कारोबार करने से संबंधित धारा 135(1)(बी) के तहत अपराध के संबंध में, दंड निर्धारित करने का संबंधित प्रावधान धारा 112(बी) है। अपीलकर्ता प्राधिकारी ने माना था कि धारा 112 (बी) के तहत जुर्माना आरोपी/अपीलकर्ता के खिलाफ टिकाऊ नहीं है और तथ्यों के आईने में उसने आदेश दिया कि धारा 112 (ए) के तहत जुर्माना लगाया जाना चाहिए था।

    इस प्रकार, उन्होंने तर्क दिया कि कथित अपराधों को पहले ही अपीलकर्ता प्राधिकारी द्वारा योग्यता के आधार पर निपटाया गया था और मामले का अंत हो चुका है।

    उन्होंने यह भी तर्क दिया था कि चूंकि मामले की जांच राजस्व आसूचना निदेशालय द्वारा की जा रही थी, इसलिए परिपत्रों के अनुसार महानिदेशक से स्वीकृति प्राप्त की जानी थी और इसलिए, विभाग के परिपत्रों के अनुसार मंजूरी के अभाव में, कार्यवाही समाप्त किये जाने लायक है।

    पुनरीक्षण याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आरोपों को समाप्त करने का आवेदन समय से पहले था, क्योंकि मजिस्ट्रेट ने अभी तक मामले का संज्ञान नहीं लिया था। पूर्व संज्ञान चरण के दौरान, आरोपी कोई राय कायम नहीं कर सकता। जहां तक परिपत्र का संबंध था, वह याचिकाकर्ता के लिए बाध्यकारी थे और प्रतिवादी द्वारा इसका उपयोग नहीं किया जा सकता था। याचिकाकर्ता ने वास्तव में आयुक्त और डीजीआरआई से पूर्व स्वीकृति प्राप्त की थी। इसके अलावा, अपीलकर्ता प्राधिकारी का निर्णय गुणदोष के आधार पर नहीं किया गया था ताकि आपराधिक अदालतों को बाध्य किया जा सके।

    कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न इस प्रकार यह पहचानना था कि क्या "मामले के किसी भी पिछले चरण में" वाक्यांश में शिकायत का "चेक और कॉल" चरण शामिल होगा, जहां मजिस्ट्रेट ने शिकायत का संज्ञान भी नहीं लिया है।

    'अजय कुमार घोष बनाम झारखंड सरकार' में, सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि पिछले चरण का मतलब सीआरपीसी की धारा 200 से 204 तक और धारा 244 के तहत अभियोजन के साक्ष्य के पूरा होने से होगा। इस प्रकार, "पिछला चरण" तब से था जब मजिस्ट्रेट ने अपराध का संज्ञान लिया था। 'संज्ञान लेने के रूप में क्या होगा' इस सवाल का जवाब देते हुए, कोर्ट ने कहा कि यह वही चरण होगा जहां मजिस्ट्रेट शिकायत में लगाए गए आरोपों का आधिकारिक नोटिस लेता है।

    वर्तमान मामले में, शिकायत की प्रस्तुति पर, बिना किसी आधिकारिक नोटिस के, मामले को केवल "चेक एंड कॉल" पृष्ठांकन के साथ स्थगित कर दिया गया था। न तो शिकायत को क्रम संख्या दिया गया था और न ही शपथ पत्र दर्ज किया गया है। यह वह चरण है, जिसमें शिकायत में किसी भी प्रकार के आरोपों का संज्ञान लेने से पहले शिकायत के प्रारूप को देखा जा रहा है।

    इस प्रकार, कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 200 का चरण शुरू नहीं हुआ था और ऐसे स्तर पर आरेापमुक्त करने के लिए अर्जी दायर नहीं की जा सकती थी। कोर्ट ने इस प्रकार मजिस्ट्रेट को कानून के अनुसार शिकायत पर आगे बढ़ने का निर्देश दिया और मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने के बाद शिकायतकर्ता को आरोपमुक्त करने संबंधी अर्जी दायर करने की आजादी दी।

    केस शीर्षक: सहायक आयुक्त सीमा शुल्क बनाम एस गणेशन

    केस नंबर: 2022 का सीआरएल.आर.सी.नंबर 372

    उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (मद्रास) 310

    याचिकाकर्ता के वकील: श्री एन.पी.कुमार, विशेष लोक अभियोजक, केंद्र सरकार

    प्रतिवादी के लिए वकील: श्री एस गणेशन (पार्टी-इन-पर्सन)

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