सीआरपीसी की धारा 438 यह नहीं कहती है कि एक घोषित अपराधी को अग्रिम जमानत याचिका दायर करने से रोक दिया जाएगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Brij Nandan

21 July 2022 11:35 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 438 यह नहीं कहती है कि एक घोषित अपराधी (Proclaimed Offender) को ऐसी याचिका दायर करने से रोक दिया जाएगा। इसका अर्थ हुआ यह हुआ कि कोर्ट ने संकेत दिया कि एक भगोड़ा अपराधी भी अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) याचिका दायर कर सकता है।

    जस्टिस राजेश सिंह चौहान की पीठ ने आगे कहा कि सीआरपीसी की धारा 82 (भगोड़ा व्यक्ति के लिए उद्घोषणा) घोषित अपराधी द्वारा अग्रिम जमानत आवेदन दाखिल करने में न तो कोई शर्त पैदा लगाता है और न ही कोई प्रतिबंध लगाता है।

    इस संबंध में, कोर्ट ने लवेश बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) (2012) 8 एससीसी 730 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लेख किया, यह नोट करने के लिए कि शीर्ष न्यायालय ने 'सामान्य रूप से' शब्द का इस्तेमाल किया है। इसका अर्थ है- आमतौर पर घोषित अपराधी की अग्रिम जमानत याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए।

    यहां पाठकों द्वारा यह ध्यान दिया जा सकता है कि लवेश मामले (सुप्रा) में, शीर्ष न्यायालय ने इस प्रकार देखा था,

    " आम तौर पर, जब आरोपी "फरार" हो जाता है और "घोषित अपराधी" घोषित किया जाता है, तो अग्रिम जमानत देने का कोई सवाल ही नहीं है। हम दोहराते हैं कि जब कोई व्यक्ति जिसके खिलाफ वारंट जारी किया गया था और वारंट के निष्पादन से बचने के लिए फरार है या खुद को छुपा रहा है और संहिता की धारा 82 के तहत घोषित अपराधी के रूप में घोषित अग्रिम जमानत की राहत का हकदार नहीं है।"

    गौरतलब है कि इसी पीठ (न्यायमूर्ति राजेश सिंह चौहान) ने पिछले हफ्ते कहा था कि किसी आरोपी द्वारा अग्रिम जमानत याचिका दायर करने के बाद सीआरपीसी की धारा 82 या 83 के तहत उद्घोषणा या कुर्की की कार्यवाही शुरू करने पर रोक नहीं है।

    कोर्ट के समक्ष मामला

    आईपीसी की धारा 323, 504, 506, 313, 376, 377, 377 के तहत एक मामले में अपनी गिरफ्तारी की आशंका जताते हुए सुरेश बाबू ने सीआरपीसी में 438 याचिका दायर कर अग्रिम जमानत की मांग की, क्योंकि उसकी पिछली याचिका सत्र अदालत द्वारा खारिज कर दी गई थी।

    आवेदक पर आरोप है कि शादी का झांसा देकर उसका शोषण किया और शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए और उसके बाद उसने उससे शादी करने से इनकार कर दिया।

    अनिवार्य रूप से, उन्होंने 16 मार्च, 2022 को सत्र न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी और उद्घोषणा सीआरपीसी की धारा 82 के तहत 24 मार्च, 2022 (जमानत याचिका के लंबित रहने के दौरान) को जारी किया गया था, और 5 अप्रैल, 2022 को जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।

    सेशन कोर्ट ने अग्रिम जमानत अर्जी को खारिज करते हुए कहा था कि सीआरपीसी की धारा 82 के तहत उद्घोषणा आरोपियों के खिलाफ जारी किया गया है। फिर, उसने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट का रुख किया।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    शुरुआत में, कोर्ट ने कहा कि आरोपी/आवेदक को अग्रिम जमानत दाखिल करने की तारीख 16 मार्च, 2021 को घोषित अपराधी घोषित नहीं किया गया था, इसलिए कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की:

    "मेरे लिए ऐसा बार वर्तमान आवेदक को उसी धारा यानी सीआरपीसी की धारा 438 के तहत इस न्यायालय के समक्ष अपनी अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करने से नहीं रोक सकता था और इसलिए, उसकी अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई की जा सकती है और अंत में मैरिट के आधार पर निपटारा किया जा सकता है।धारा 438 Cr.P.C के तहत कहीं भी यह संकेत नहीं दिया गया है कि घोषित अपराधी को इस तरह के आवेदन को दर्ज करने से रोक दिया जाएगा। इस तरह के घोषित अपराधी को अग्रिम जमानत दी जाएगी या नहीं, यह विशेष मुद्दे के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।"

    इसलिए, अदालत ने वर्तमान आवेदन की स्थिरता के संबंध में विपक्षी दलों के वकील द्वारा उठाई गई आपत्ति को इस कारण से खारिज कर दिया कि उद्घोषणा धारा 82/83 सीआरपीसी के तहत आवेदक के खिलाफ जारी किया गया था।

    आवेदक के खिलाफ आरोपों के संबंध में, कोर्ट ने प्रथम दृष्टया देखा कि यदि विवाह के झूठे वादे पर शारीरिक संबंध स्थापित किया गया था और शारीरिक संबंध प्रकृति में सहमति से थे और यह लंबे समय तक चलता था, तो प्रथम दृष्टया इसे बलात्कार नहीं माना जा सकता है, लेकिन इसे वादे का उल्लंघन माना जा सकता है।

    नतीजतन, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वर्तमान F.I.R. एक वर्ष तीन महीने, और तेईस दिनों की अस्पष्टीकृत देरी की गई थी। अदालत ने आरोप पत्र दाखिल करने तक स्वतंत्रता की रक्षा करना उचित पाया और उसकी जमानत याचिका को अनुमति दी।

    हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि आरोपी अभी तक जांच अधिकारी के सामने पेश नहीं हुआ है, इसलिए अदालत ने आरोपी को 25 जुलाई, 2022 को जांच अधिकारी के सामने पेश होने का निर्देश दिया।

    केस टाइटल - सुरेश बाबू बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य [आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन U/S 438 CR.P.C. संख्या – 3532 ऑफ 2022]

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ 332

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें:




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