भरण पोषण संबंधित मामला - न्यायालयों को बच्चे/पत्नी के आवासीय प्रमाण के संबंध में आपत्ति नहीं उठानी चाहिए, विधिवत शपथ पत्र स्वीकार करना चाहिए : कर्नाटक हाईकोर्ट

Manisha Khatri

19 July 2022 12:15 PM GMT

  • भरण पोषण संबंधित मामला - न्यायालयों को बच्चे/पत्नी के आवासीय प्रमाण के संबंध में आपत्ति नहीं उठानी चाहिए, विधिवत शपथ पत्र स्वीकार करना चाहिए : कर्नाटक हाईकोर्ट

    Karnataka High Court

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि फैमिली कोर्ट को पीड़ित पक्षों (पत्नी और बच्चों) के उस हलफनामे को स्वीकार करना चाहिए, जिसमें वैवाहिक घर से दूर उनके निवास स्थान के बारे में बताया गया है और आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत पति से भरण-पोषण की मांग करने वाले एक आवेदन पर सुनवाई करते समय अधिकार क्षेत्र का मुद्दा न उठाया जाए।

    जस्टिस ई.एस.इंदिरेश (sitting at Dharwad) की एकल पीठ ने संगीता और उसके नाबालिग बच्चे की तरफ से दायर एक याचिका को अनुमति देते हुए फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया है,जिसमें उनकी याचिका की अनुरक्षणीयता के संबंध में इस आधार पर आपत्ति की गई थी कि वाद शीर्षक में दिखाया गया पता और याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश किए गए दस्तावेज में दिया गया पता आपस में मेल नहीं खाता है।

    बेंच ने जागीर कौर व अन्य बनाम जसवंत सिंह,एआईआर 1963 एससी 1521 के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर भरोसा किया और कहा कि,

    ''चूंकि सीआरपीसी की धारा 125 एक सामाजिक उपाय है जो निराश्रित पत्नी और बच्चों को तत्काल राहत प्रदान करता है,प्रथम दृष्टया, पीड़ित पक्षों (पत्नी और बच्चों) द्वारा दायर विधिवत शपथ पत्र को स्वीकार करते हुए कि वे वैवाहिक घर से दूर रह रहे हैं और हलफनामे में दिखाया गया पता स्वीकार किया जाना चाहिए। वास्तव में फैमिली कोर्ट को याचिकाकर्ताओं द्वारा एक हलफनामे द्वारा समर्थित याचिका में दिए गए पते को स्वीकार करते हुए प्रतिवादी को नोटिस जारी करना चाहिए था।''

    पीठ ने यह भी कहा कि,''याचिकाकर्ताओं के आवासीय प्रमाण के संबंध में उस समय आपत्ति उठाना ही सीआरपीसी की धारा 125 के दायरे के उद्देश्य को ही विफल कर देगा।''

    इसके अलावा पीठ ने कहा, ''हो सकता है, न्यायालय के कार्यनिर्वाह क्षमता के संबंध में क्षेत्राधिकार संबंधी पहलू की आवश्यकता हो, हालांकि, इस तरह की आवश्यकता ऊपर वर्णित कारणों से सीआरपीसी की धारा 125 के प्रावधानों के लिए अपवाद हो सकती है।''

    तदनुसार कोर्ट ने कहा, ''यदि आवेदक/याचिकाकर्ता ने शपथ पत्र में अपने आवासीय पते का खुलासा करते हुए एक हलफनामे के साथ एक याचिका दायर की है, तो यह निराश्रित पत्नी/बच्चों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए कार्यवाही जारी रखने के लिए पर्याप्त है।''

    कोर्ट ने याचिका को अनुमति दे दी और याचिकाकर्ताओं को अपनी आवासीय स्थिति साबित करने का अवसर प्रदान करने के बाद उनके आवेदन पर नए सिरे से विचार के लिए इस मामले को फैमिली कोर्ट में वापस भेज दिया। साथ ही कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं द्वारा इस तरह के संतोषजनक सबूत प्रदान किए जाते हैं, तो फैमिली कोर्ट से अनुरोध किया जाता है कि वह आठ महीने की समय अवधि के भीतर जल्द से जल्द उनकी याचिका का निपटारा कर दे।

    केस टाइटल- संगीता पत्नी बापू लमनी व अन्य बनाम बापू पुत्र सोमाप्पा लमनी

    केस नंबर-आरईवी.पीईटी फैमिली कोर्ट नंबर 100043/2020

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (केएआर) 273

    आदेश की तारीख-7 जुलाई, 2022

    प्रतिनिधित्व- याचिकाकर्ताओं के लिए एडवोकेट पवित्रा एन कावली

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें



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