हाईकोर्ट अनुच्छेद 227 के तहत लोअर कोर्ट्स के समक्ष मामलों की प्रगति की निगरानी के लिए अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Brij Nandan

18 July 2022 11:58 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग हाईकोर्ट्स द्वारा निचली अदालतों के समक्ष मामलों की प्रगति की निगरानी के लिए नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा,

    "भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले इस कोर्ट के लिए निचली फोरम के समक्ष मामलों की प्रगति की निगरानी करना संभव नहीं है।"

    कोर्ट अनुच्छेद 227 के तहत दायर एक याचिका पर विचार कर रहा था जिसमें राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग को एक मामले में तेजी से, अधिमानतः दिन-प्रतिदिन के आधार पर निर्णय लेने और योग्यता के आधार पर अपील का फैसला करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।

    कोर्ट ने कहा,

    "भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग केवल उन मामलों में किया जा सकता है जहां फोरम, इस न्यायालय के अधीक्षण क्षेत्राधिकार के अधीन, इस तरह से कार्य करता है जो पर्यवेक्षी सुधार की मांग करता है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि 2019 से SCDRC के समक्ष याचिकाकर्ता की अपील के लंबित होने का तथ्य हाईकोर्ट के लिए फोरम को एक महीने के भीतर फैसला करने का निर्देश देने का आधार नहीं हो सकता है।

    आगे कहा गया,

    "यह कोर्ट एससीडीआरसी के समक्ष लंबित मामलों की संख्या या कार्य की बाधा से अनजान है जिसके तहत यह काम कर रहा है।"

    अदालत ने इस प्रकार याचिकाकर्ता द्वारा पसंद किए गए मामले को यथासंभव शीघ्रता से तय करने के लिए एससीडीआरसी को निर्देश के साथ याचिका का निपटारा किया।

    अदालत ने आदेश दिया,

    "एससीडीआरसी याचिकाकर्ता के मामले की तात्कालिकता पर विचार करेगा, इसके समक्ष लंबित मामलों की संख्या और अन्य मामलों को ध्यान में रखते हुए जो अधिक पुराने या अधिक जरूरी हो सकते हैं।"

    तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।

    केस टाइटल: फिरोज अहमद बनाम राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, दिल्ली और अन्य

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (दिल्ली) 663

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:




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