हिमाचल हाईकोर्ट

मेडिकल कॉलेज की मान्यता से पहले उसमें किया गया शिक्षण कार्य  पात्रता के लिए शिक्षण अनुभव में नहीं गिना जा सकता: HP हाईकोर्ट
मेडिकल कॉलेज की मान्यता से पहले उसमें किया गया शिक्षण कार्य पात्रता के लिए शिक्षण अनुभव में नहीं गिना जा सकता: HP हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने माना कि भारतीय चिकित्सा परिषद अधिनियम, 1956 की धारा 10ए के तहत किसी मेडिकल कॉलेज की औपचारिक मान्यता या स्थापना से पहले अर्जित शिक्षण अनुभव को वैधानिक भर्ती नियमों के अनुसार सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए पात्रता निर्धारित करने के उद्देश्य से वैध नहीं माना जा सकता। खंडपीठ में चीफ जस्टिस जी.एस. संधावालिया और जस्टिस रंजन शर्मा शामिल थे।क्या है मामला?याचिकाकर्ता ने वर्ष 2000-2001 में MBBS की परीक्षा उत्तीर्ण की। उन्होंने जुलाई 2016 में हिमाचल प्रदेश...

MV Act | मृतक की विवाहित बेटियां कंसोर्टियम लॉस के लिए मुआवजे की हकदार, वित्तीय निर्भरता की हानि के लिए नहींः HP हाईकोर्ट
MV Act | मृतक की विवाहित बेटियां कंसोर्टियम लॉस के लिए मुआवजे की हकदार, वित्तीय निर्भरता की हानि के लिए नहींः HP हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत, आय के नुकसान के लिए मुआवजा केवल परिवार के उन सदस्यों को दिया जाता है जो मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर थे। हालांकि, विवाहित बेटियां अपने पिता पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं हैं, फिर भी कंसोर्टियम लॉस के मद में मुआवजे की हकदार हैं। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर ने कहा,"आश्रित कानूनी उत्तराधिकारी, अन्य मदों के तहत मुआवजे के अलावा कंसोर्टियम लॉस के भी हकदार होंगे, जबकि अन्य परिवार के सदस्य जो मृतक के आश्रित-कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हैं, हालांकि,...

नौकरी में धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराधों में अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम लागू नहीं होता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
नौकरी में धोखाधड़ी जैसे गंभीर अपराधों में अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम लागू नहीं होता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अपराधियों की परिवीक्षा अधिनियम का लाभ ऐसे मामलों में नहीं दिया जा सकता है जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के शैक्षिक प्रमाण पत्र का दुरुपयोग करके धोखाधड़ी के माध्यम से सरकारी नौकरी हासिल करता है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह के धोखाधड़ीपूर्ण कृत्य से दूसरे व्यक्ति को सरकारी नौकरी से वंचित किया जाता है। न्यायमूर्ति राकेश कैंथला ने कहा,“याचिकाकर्ता/आरोपी ने रोजगार हासिल करने के लिए मोहन सिंह के प्रमाण पत्र का इस्तेमाल किया था। इस तरह से, वह एक व्यक्ति...

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्रामीण भूमि अधिग्रहण के लिए दो के गुणक पर मुआवज़ा देने का आदेश दिया
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने ग्रामीण भूमि अधिग्रहण के लिए दो के गुणक पर मुआवज़ा देने का आदेश दिया

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की उस अधिसूचना को खारिज कर दिया, जिसमें ग्रामीण भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवज़ा गुणक को एक निर्धारित किया गया था। न्यायालय ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिग्रहित भूमि के लिए गुणक कारक दो होना आवश्यक है। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि राज्य सभी भूस्वामियों के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करने से ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब भूमि स्वामियों को उचित मुआवज़ा नहीं मिल पाता, जो भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 में उचित...

मूल्यांकन अधिकारी एक ही समय में अभियोजक, न्यायाधीश और निष्पादक के रूप में कार्य नहीं कर सकता: HP हाईकोर्ट
मूल्यांकन अधिकारी एक ही समय में अभियोजक, न्यायाधीश और निष्पादक के रूप में कार्य नहीं कर सकता: HP हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि मूल्यांकन अधिकारी को विश्वविद्यालय को अपना मामला प्रस्तुत करने का उचित अवसर प्रदान करना चाहिए तथा वह एक ही समय में अभियोजक, न्यायाधीश तथा निष्पादक की भूमिका निभाते हुए कानून को अपने हाथ में नहीं ले सकता। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुशील कुकरेजा ने कहा, “मूल्यांकन अधिकारी ने कानून को अपने हाथ में लिया तथा एक ही समय में अभियोजक, न्यायाधीश तथा निष्पादक की भूमिका निभाई।”तथ्ययाचिकाकर्ता, जेपी सूचना प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की स्थापना 2002 में हुई थी और इसका...

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए व्यक्तिगत पसंद व्यावसायिक पाठ्यक्रम के विस्तार का अधिकार नहीं देती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए व्यक्तिगत पसंद व्यावसायिक पाठ्यक्रम के विस्तार का अधिकार नहीं देती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि किसी छात्र द्वारा प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने और सेमेस्टर परीक्षा में शामिल न होने का व्यक्तिगत निर्णय उसे व्यावसायिक पाठ्यक्रम पूरा करने के लिए निर्धारित समय-सीमा में विस्तार का हकदार नहीं बनाता। जस्टिस अजय मोहन गोयल ने कहा,“याचिकाकर्ता ने स्वयं एमबीए चतुर्थ सेमेस्टर की परीक्षा में शामिल न होने का निर्णय लिया, क्योंकि वह हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहता था। यह उसका व्यक्तिगत निर्णय था। ऐसा नहीं है कि जो व्यक्ति एचएएस परीक्षा या...

वरिष्ठता का दावा तब तक स्वीकार्य नहीं, जब तक कि स्थानांतरण आदेश में पूर्व सेवा को स्पष्ट रूप से समाप्त नहीं कर दिया जाता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
वरिष्ठता का दावा तब तक स्वीकार्य नहीं, जब तक कि स्थानांतरण आदेश में पूर्व सेवा को स्पष्ट रूप से समाप्त नहीं कर दिया जाता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि वरिष्ठता के लिए दावा कायम नहीं रखा जा सकता, जहां स्थानांतरण की शर्तों में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि पिछली सेवा को वरिष्ठता के उद्देश्य से नहीं गिना जाएगा। जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस रंजन शर्मा ने कहा, “जब यह शर्त प्रदान की गई कि पिछली वरिष्ठता जब्त कर ली जाएगी, तो भविष्य में वरिष्ठता के लिए दावा नहीं किया जा सकता। यदि ऐसा कोई तरीका अपनाया जाता है तो यह अपात्रों को पात्र बनाने और उक्त पद को ऐसे व्यक्ति द्वारा भरने के बराबर होगा जो कट ऑफ डेट के समय पात्र...

भर्ती नियमों के तहत वैधानिक सेवा आवश्यकताएं अनिवार्य; प्रशासनिक अनुमोदन के जरिए उन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता: HP हाईकोर्ट
भर्ती नियमों के तहत वैधानिक सेवा आवश्यकताएं अनिवार्य; प्रशासनिक अनुमोदन के जरिए उन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता: HP हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और जस्टिस रंजन शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि सीमित प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से पदोन्नति या भर्ती के लिए पात्रता को लागू सेवा नियमों के तहत वैधानिक सेवा आवश्यकता का सख्ती से पालन करना चाहिए, और प्रशासनिक अनुमोदन इन अनिवार्य पात्रता मानदंडों को रद्द नहीं कर सकते। तथ्ययाचिकाकर्ता को हिमाचल प्रदेश अधीनस्थ न्यायालय कर्मचारी नियम, 2012 के तहत 30.12.2016 को सिविल और सत्र प्रभाग, कुल्लू में एक कॉपीस्‍ट के रूप में नियुक्त किया गया था। उन्हें दो साल की...

पद सृजित करने में राज्य की देरी, संविदा कर्मचारियों को नियमितीकरण के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
पद सृजित करने में राज्य की देरी, संविदा कर्मचारियों को नियमितीकरण के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पद सृजित करने में राज्य की देरी संविदा कर्मचारियों को राज्य की नियमितीकरण नीति के तहत सेवा की निर्धारित अवधि पूरी करने के बाद नियमितीकरण के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती।जस्टिस सत्येन वैद्य,“यदि पदों का सृजन उचित समय के भीतर किया गया होता तो याचिकाकर्ता दिनांक 4.4.2013 के संचार के अनुसार भी नियमितीकरण के लिए पात्र होते, क्योंकि उन सभी ने 31.3.2013 तक 6 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है।”मामलाइस मामले में याचिकाकर्ता विभिन्न विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरणों के कर्मचारी थे।...

लगभग 2 साल बीत गए, एक भी गवाह से पूछताछ नहीं हुई: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने NDPS आरोपी को जमानत दी, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया
लगभग 2 साल बीत गए, एक भी गवाह से पूछताछ नहीं हुई: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने NDPS आरोपी को जमानत दी, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मंगलवार (3 जून) को नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट के तहत एक आरोपी को जमानत दी। निर्णय में मुकदमे की कार्यवाही शुरू करने में अनुचित देरी का हवाला दिया गया।जस्टिस राकेश कैंथला की पीठ ने पाया कि याचिकाकर्ता एक साल और नौ महीने से हिरासत में है। यह भी देखा गया कि इस अवधि के दौरान अभियोजन पक्ष एक भी गवाह की जांच करने में विफल रहा। इस प्रकार, अदालत ने इस तरह की देरी को याचिकाकर्ता के त्वरित सुनवाई के मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना।अदालत ने कहा,"याचिकाकर्ता...

आयकर अधिनियम की धारा 148 के तहत उचित कारण बताए बिना नोटिस जारी नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
आयकर अधिनियम की धारा 148 के तहत उचित कारण बताए बिना नोटिस जारी नहीं किया जा सकता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि आयकर 1961 की धारा 148 के तहत पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही शुरू करने के लिए मूल्यांकन अधिकारी द्वारा उचित कारण बताए बिना नोटिस जारी नहीं किया जा सकता। “धारा 148 मूल्यांकन अधिकारी को पुनर्मूल्यांकन कार्यवाही शुरू करने में सक्षम बनाती है, जहां माना जाता है कि कर योग्य आय मूल्यांकन से बच गई है”।जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सुशील कुकरेजा ने कहा,“मूल्यांकन अधिकारी को यह समझने की आवश्यकता है कि धारा 148 के तहत नोटिस के गंभीर नागरिक या बुरे परिणाम होते हैं और इसे इतनी...

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने चेक राशि के पूर्ण भुगतान पर NI Act की धारा 138 के तहत सजा घटाकर टिल राइजिंग ऑफ कोर्ट कर दिया
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने चेक राशि के पूर्ण भुगतान पर NI Act की धारा 138 के तहत सजा घटाकर 'टिल राइजिंग ऑफ कोर्ट' कर दिया

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत सजा को घटाकर 'टिल राइजिंग ऑफ कोर्ट' (Till Rising Of Court) कर दिया, यह मानते हुए कि अधिनियम में कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है, लेकिन जहां अभियुक्त ने पूरी डिफ़ॉल्ट राशि जमा कर दी है, वहां सजा कम की जा सकती है।जस्टिस वीरेंद्र सिंह:"इस तथ्य पर विचार करते हुए कि परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत NI Act की धारा 138 के तहत दंडनीय अपराध के लिए कोई न्यूनतम सजा प्रदान नहीं की गई, इस न्यायालय का विचार है कि सजा की मात्रा संशोधित...

CCS पेंशन नियम | प्रभावी तिथि से पहले समयपूर्व रिटायरमेंट नोटिस वापस लेना अनुमेय: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
CCS पेंशन नियम | प्रभावी तिथि से पहले समयपूर्व रिटायरमेंट नोटिस वापस लेना अनुमेय: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 43(6) के तहत, कोई कर्मचारी सक्षम प्राधिकारी की विशेष स्वीकृति और वैध कारण बताने के अधीन, प्रभावी होने से पहले समयपूर्व सेवानिवृत्ति का नोटिस वापस ले सकता है। कोर्ट ने कहा,"सीसीएस (पेंशन) नियम, 1972 के नियम 43(6) में निर्दिष्ट किया गया है कि कोई सरकारी कर्मचारी जिसने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का विकल्प चुना है और नियुक्ति प्राधिकारी को आवश्यक सूचना दे दी है, वह उस प्राधिकारी की विशेष स्वीकृति के बिना अपना नोटिस...

चुनावों में मतगणना प्रक्रिया का उचित सत्यापन आवश्यक: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
चुनावों में मतगणना प्रक्रिया का उचित सत्यापन आवश्यक: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि जब मतगणना प्रक्रियाओं के उचित संचालन के बारे में प्रश्न उठते हैं, तो यह निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक रिकॉर्डों की जांच करना आवश्यक है कि क्या मतगणना लागू नियमों के अनुसार की गई थी। जस्टिस अजय मोहन गोयल ने कहा,"यह उचित होता कि प्राधिकृत अधिकारी पूरे अभिलेख की जांच करके यह पता लगाता कि क्या मतगणना वास्तव में हिमाचल प्रदेश पंचायती राज (चुनाव) नियम, 1994 में निर्धारित प्रावधानों के अनुसार की गई थी या नहीं।" तथ्ययाचिकाकर्ता, श्रीमती अनीता और निजी प्रतिवादी ने...

मजिस्ट्रेट संज्ञान लेने के बाद भी CrPC की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच का निर्देश दे सकते हैं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
मजिस्ट्रेट संज्ञान लेने के बाद भी CrPC की धारा 173(8) के तहत आगे की जांच का निर्देश दे सकते हैं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि जब न्यायालय को लगता है कि उचित जांच नहीं की गई है, तो मजिस्ट्रेट मामले का संज्ञान लेने के बाद भी पुलिस को आगे की जांच करने का निर्देश देने के लिए सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत स्वप्रेरणा से शक्ति का प्रयोग कर सकता है। जस्टिस सुशील कुकरेजा ने कहा,"संज्ञान लेने के बाद भी मजिस्ट्रेट पुलिस को आगे की जांच करने का निर्देश देने के लिए सीआरपीसी की धारा 173(8) के तहत स्वप्रेरणा से शक्ति का प्रयोग कर सकता है"। याचिकाकर्ता, जो उस समय मिल्क चिलिंग सेंटर कटौला के प्रभारी...

ऑनलाइन भर्ती फॉर्म में मामूली गलतियों के लिए उम्मीदवारी को अस्वीकार नहीं किया जा सकता: HP हाईकोर्ट
ऑनलाइन भर्ती फॉर्म में मामूली गलतियों के लिए उम्मीदवारी को अस्वीकार नहीं किया जा सकता: HP हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि रिक्रूटमेंट एप्‍लीकेशन में मामूली मगर वास्तविक त्रुटियों, जैसे कि गलती से श्रेणी का चयन, के कारण उम्मीदवारी को रद्द नहीं करना चाहिए, और उम्मीदवारों को ऐसी गलतियों को सुधारने का अवसर दिया जाना चाहिए। ज‌स्टिस ज्योत्सना रेवल दुआ ने कहा,"यह एक अनजाने में हुई गलती, एक वास्तविक त्रुटि का मामला था, जो संभवतः साइबर कैफे के अंत में की गई थी, जिसकी सहायता याचिकाकर्ता ने ऑनलाइन भर्ती आवेदन दाखिल करने के लिए ली थी।" तथ्ययाचिकाकर्ता, मंजना ने 4 अक्टूबर 2024 को जारी एक...

एनपीडीएस अधिनियम के तहत सजा सुनाते समय अदालतों को आनुपातिकता के सिद्धांत को लागू करना चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
एनपीडीएस अधिनियम के तहत सजा सुनाते समय अदालतों को आनुपातिकता के सिद्धांत को लागू करना चाहिए: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट के तहत सजा सुनाते समय ट्रायल कोर्ट को आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए और केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित मात्रा-आधारित सजा ढांचे से विचलित नहीं होना चाहिए। जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा,"विद्वान ट्रायल कोर्ट ने माना कि हेरोइन का समाज पर गंभीर प्रभाव पड़ता है, लेकिन केंद्र सरकार ने मात्रा निर्धारित करते समय पहले ही इसका ध्यान रखा है। विधानमंडल ने भी 10 साल तक की सजा की सीमा प्रदान करते समय उसी पर विचार...

HPPCL इंजीनियर की रहस्यमयी मौत | हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मामला CBI को सौंपा, DGP ने SIT जांच पर जताई चिंता
HPPCL इंजीनियर की 'रहस्यमयी' मौत | हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने मामला CBI को सौंपा, DGP ने SIT जांच पर जताई चिंता

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (HPPCL) के चीफ इंजीनियर विमल नेगी की 'रहस्यमयी' मौत की जांच को 'असाधारण' स्थिति मानते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को सौंप दिया।जस्टिस अजय मोहन गोयल की पीठ ने नेगी की पत्नी द्वारा जांच ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया। एकल जज ने केंद्रीय एजेंसी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राज्य कैडर का कोई भी अधिकारी उसके द्वारा गठित SIT का हिस्सा न हो।अपने 71-पृष्ठ के आदेश में न्यायालय...

शादी का झूठा वादा करने और बार-बार शादी टालने के आधार पर बलात्कार का आरोप - बलात्कार का आधार नहीं हो सकता: HP हाईकोर्ट
शादी का झूठा वादा करने और बार-बार शादी टालने के आधार पर बलात्कार का आरोप - बलात्कार का आधार नहीं हो सकता: HP हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह से इनकार करने के स्पष्ट आरोप के अभाव में भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत बलात्कार के आरोप तय नहीं किए जा सकते। न्यायालय ने टिप्पणी की कि जब पक्षकार पांच साल से लंबे समय से रिश्ते में हैं तो यह निर्धारित करना मुश्किल हो जाता है कि उनका यौन संबंध केवल विवाह करने के वादे पर आधारित था।जस्टिस राकेश कैंथला ने कहा,"शिकायत में एक भी ऐसा कथन नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता से विवाह करने से इनकार कर दिया था या उनके बीच विवाह असंभव हो गया था। तथ्य यह है कि पक्षों ने...

बार-बार अवज्ञा और आदेशों का पालन न करने पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा न्यायोचित; हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
बार-बार अवज्ञा और आदेशों का पालन न करने पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा न्यायोचित; हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने एक सरकारी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर की अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि वरिष्ठों के आदेशों की बार-बार अवज्ञा को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इससे अनुशासनहीनता और अव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। जस्टिस सत्येन वैद्य ने कहा,"वरिष्ठों के आदेशों का बार-बार पालन न करने की अवज्ञा को हल्के में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि इससे प्रतिवादी विश्वविद्यालय जैसे सार्वजनिक संस्थान में अनुशासनहीनता और अव्यवस्था पैदा होगी।"तथ्ययाचिकाकर्ता डॉ. एस.डी. सांखयान,...