विधवा बहू अपने पति की संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ होने पर ससुर से भरण-पोषण मांग सकती हैः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

Manisha Khatri

19 July 2022 6:00 AM GMT

  • विधवा बहू अपने पति की संपत्ति से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ होने पर ससुर से भरण-पोषण मांग सकती हैः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    Chhattisgarh High Court

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने माना है कि एक विधवा बहू को अपने ससुर पर भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है, यदि उसके ससुर के पास भूसंपत्ति/सहदायिक संपत्ति है जिसमें विधवा के पति के अधिकार और हित थे।

    भरण-पोषण का आदेश जारी करते हुए, जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की खंडपीठ ने दोहराया,

    ''यह कानून का सुस्थापित प्रस्ताव है कि एक संयुक्त मिताक्षरा परिवार के प्रबंधक का परिवार के सभी पुरुष सदस्यों, उनकी पत्नियों और उनके बच्चों को बनाए रखने के लिए कानूनी दायित्व बनता है, और पुरुष सदस्यों में से एक की मृत्यु होने पर वह उसकी विधवा और उसके बच्चों का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है।''

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमिः

    प्रतिवादी ने 11-7-2008 को अपीलकर्ता के बेटे से शादी की थी। प्रतिवादी के पति की 21-6-2012 को मृत्यु हो गई। प्रतिवादी के बयान के अनुसार, उसके पति की मृत्यु के बाद उसके प्रति ससुराल वालों के व्यवहार में काफी बदलाव आ गया और परिवार के लोगों ने उससे दूरी बना ली। उसके बाद उसे उसके पैतृक घर ले जाया गया।

    प्रतिवादी ने आगे बताया कि उसके पति की बैंक पासबुक और एटीएम कार्ड को ससुराल वालों ने अपने पास रख लिया था। प्रतिवादी ने यह भी दलील दी कि अपीलकर्ता के पास 11.78 एकड़ और 3.97 एकड़ कृषि भूमि की पैतृक संपत्ति है। साथ ही विभिन्न स्थानों पर स्थित तीन दुकान एवं मकान भी है, जिसमें उसके दिवंगत पति का भी अधिकार निहित था। प्रतिवादी के अनुसार, उसके पास अपना भरण-पोषण करने के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है। इसलिए उसने भरण-पोषण के तौर पर प्रतिमाह 7,000 दिलाए जाने की मांग की।

    फैमिली कोर्ट ने साक्ष्यों का मूल्यांकन करने के बाद आक्षेपित आदेश के तहत अपीलकर्ता को निर्देश दिया था कि वह प्रतिवादी को भरण-पोषण के तौर पर प्रतिमाह 2,500 रुपये की राशि का भुगतान करे। इससे व्यथित होकर अपीलार्थी ने उक्त आदेश के विरूद्ध अपील दायर कर दी।

    अपीलकर्ता की दलीलेंः

    अपीलकर्ता के वकील श्री संजय पटेल ने प्रस्तुत किया कि ससुर से भरण-पोषण प्राप्त करने के लिए, बहू को यह साबित करना आवश्यक है कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और वह पति की संपत्ति से भरण पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है। उन्होंने तर्क दिया कि इन तथ्यों को प्रतिवादी द्वारा विश्वसनीय और पुख्ता सबूत देकर साबित नहीं किया गया है।

    उन्होंने आगे प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट के समक्ष सीपीसी के आदेश 41 नियम 27 के तहत दायर दस्तावेज में कहा गया है कि भूमि पहले ही प्रतिवादी के नाम पर दर्ज हो चुकी है। इसलिए, यह सुझाव दिया गया कि वह ऐसी संपत्तियों से अपनी आजीविका कमा सकती है और परिणामस्वरूप, ससुर को भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। अपने तर्क का समर्थन प्रदान करने के लिए, उन्होंने दयाली सुखलाल साहू बनाम अंजू बाई संतोष साहू, 2010 (3) सीजीएलजे 459 और पार्वती बनाम दानपात्रा सिंह व अन्य के मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों पर भरोसा किया।

    प्रतिवादी का तर्कः

    प्रतिवादी के वकील श्री सौरभ साहू ने प्रस्तुत किया कि प्रतिवादी खुद को बनाए रखने में असमर्थ है और संपत्ति, जो अपीलकर्ता द्वारा प्रबंधक के रूप में रखी गई है, एक सहदायिक/समउत्तराधिकारी संपत्ति है, जिसमें प्रतिवादी के मृत पति का अधिकार निहित था। उन्होंने आगे तर्क दिया कि चूंकि उसके पति की संपत्ति से भरण-पोषण की राशि का भुगतान नहीं किया गया है, इसलिए वह अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार है।

    न्यायालय की टिप्पणियांः

    कोर्ट ने कहा कि हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की धारा 19 के तहत वर्णित प्रावधानों के अनुसार, एक विधवा बहू केवल तभी भरण-पोषण का दावा कर सकती है, जब वह अपनी कमाई से या अपने पति की संपत्ति से या उसके पिता या माता, या उसके बेटे या बेटी, यदि कोई हो, या उनकी संपत्ति से खुद को बनाए रखने में असमर्थ हो। विधवा बहू द्वारा भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार सशर्त है।

    अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि ससुर के पास सहदायिक संपत्ति का कब्जा है, जिसमें से विधवा बहू ने कोई हिस्सा प्राप्त नहीं किया है, इसलिए उसे भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है। हालांकि, यह ससुर द्वारा अपने हाथ में रखी गई सहदायिक संपत्ति के हिस्से तक सीमित होगा जिसमें विधवा बहू ने कोई हिस्सा नहीं लिया है।

    कोर्ट ने कहा कि धारा 19 की उप-धारा (1) (ए) के तहत अधिमान्य अधिकार इंगित करता है कि विधवा बहू पहले अपने पति की संपत्ति से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होगी और उसके बाद पिता या माता पर दावा किया जा सकता है। यद्यपि खंड में 'या' शब्द का प्रयोग किया गया है, जो एक विधवा को धारा में उल्लिखित लोगों में से किसी एक से दावा करने का अधिकार देता है, फिर भी धारा उप-भाग (ए) और (बी) में विभाजित है। इसलिए, विधवा को विकल्प देने के लिए तरजीही मिसालें मौजूद हैं। इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि विधवा द्वारा भरण-पोषण का दावा करने के लिए पति की संपत्ति सबसे पहले आती है।

    तदनुसार, यह निष्कर्ष निकाला गया,

    ''उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, जब पति की संपत्ति ससुर के पास मौजूद है, तो बहू को अपने पति की संपत्ति छोड़ने और उसके माता या पिता की संपत्ति पर दावा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, हमारा विचार है कि दावा करने के लिए बहू के पिता या माता की बजाय पति की संपत्ति को प्राथमिकता दी जा सकती है। नतीजतन, हम मानते हैं कि बहू ( यहां प्रतिवादी) ससुर से भरण-पोषण का दावा करने की हकदार होगी।''

    केस टाइटल- नंद किशोर लाल बनाम श्रीमती चंचला लाल

    केस नंबर- एफएएम नंबर 200/2015

    निर्णय की तारीख- 4 जुलाई 2022

    कोरम- गौतम भादुड़ी और दीपक कुमार तिवारी, जे.जे.

    अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट- श्री संजय पटेल,एडवोकेट

    प्रतिवादी के लिए एडवोकेट- श्री सौरभ साहू,एडवोकेट

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (सीएचएच) 52

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