राज�थान हाईकोट
बौद्धिक संपदा अधिकारों का उल्लंघन सार्वजनिक हित को प्रभावित करता है, अदालतों को अंतरिम निषेधाज्ञा देने में तत्पर होना चाहिए: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा है कि बौद्धिक संपदा अधिकारों (Intellectual Property Rights) के स्पष्ट उल्लंघन के मामलों में, न केवल प्रभावित पक्ष के हितों की सुरक्षा के लिए बल्कि सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए भी तत्काल निषेधाज्ञा (Injunction Order) जारी किया जाना आवश्यक है।जस्टिस अनूप कुमार धंड की पीठ ने इस संदर्भ में राजनी प्रोडक्ट्स द्वारा दायर अस्थायी निषेधाज्ञा (Temporary Injunction) याचिका को स्वीकार कर लिया।याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि प्रतिवादी उनकी पंजीकृत “Swastik” ट्रेडमार्क का लगभग समान और...
राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश: चयन प्रक्रिया समाप्त मानकर मूल दस्तावेज वापस लेने पर महिला की क्लर्क नियुक्ति से इनकार गलत
राजस्थान हाईकोर्ट ने महिला को क्लर्क के रूप में नियुक्ति देने का निर्देश दिया, जिसने चौथी प्रतीक्षा सूची में उम्मीदवारों की तुलना में अधिक अंक प्राप्त किए लेकिन उसे इस आधार पर नियुक्ति देने से मना कर दिया गया कि तीन पूरक चयन सूचियाँ जारी होने और प्रक्रिया समाप्त होने के बाद उसने अपने मूल दस्तावेज वापस ले लिए और एक पूर्व-टाइप किए गए हलफनामे पर हस्ताक्षर किए, जिसमें कहा गया कि वह भविष्य में इस पद के लिए कोई दावा नहीं करेगी।जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा कि राज्य ने खुद ही अपने मूल दस्तावेजों को अत्यधिक...
योग्यता की जांच चयन के बाद नहीं, बल्कि अंतिम चरण में होनी चाहिए: राजस्थान हाईकोर्ट ने चयन के बावजूद पद से वंचित आशा कार्यकर्ता की नियुक्ति के आदेश दिए
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वे आंगनवाड़ी केंद्र मंडेला में आशा सहयोगिनी के पद पर महिला को नियुक्त करें, जिसका चयन तो हुआ था लेकिन उसे पहले की चयन प्रक्रिया को रद्द किए बिना नया विज्ञापन जारी करके पद से वंचित कर दिया गया।हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिवादियों ने दावा किया कि याचिकाकर्ता उस गांव की निवासी नहीं होने के आधार पर पात्रता के मामले में पात्र नहीं है, जहां उसे आशा सहयोगिनी के रूप में काम करना है।जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि उम्मीदवार की...
राजस्थान हाईकोर्ट ने 2002 में वार्षिक वेतन वृद्धि रोकने के दंड के खिलाफ सरकारी कर्मचारी की याचिका खारिज की
तीन वार्षिक ग्रेड वेतन वृद्धि रोकने के साथ-साथ अपील और पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज करने के दंड को चुनौती देने वाली सरकारी कर्मचारी की याचिका खारिज करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने कहा कि दो दशकों से अधिक की देरी के कारण उसकी याचिका पर रोक लगी हुई।जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने अपने आदेश में कहा,"ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता दो दशकों से अधिक समय से इस मामले को लेकर सो रहा था। अचानक वह बीस साल बाद जागा और उक्त अत्यधिक देरी के बारे में तत्काल रिट याचिका में कोई उचित स्पष्टीकरण दिए बिना इस न्यायालय का...
Industrial Disputes Act | रविवार और अन्य सवेतन छुट्टियों को भी कर्मचारी की निरंतर सेवा के रूप में माना जाना चाहिए: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने केंद्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण (CIT) का आदेश खारिज कर दिया, जिसमें बैंक ऑफ बड़ौदा के एक कर्मचारी की सेवा अवधि की गणना करते समय रविवार और अन्य सवेतन छुट्टियों को ध्यान में नहीं रखा गया।जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (अधिनियम) की धारा 25-बी(2) के साथ-साथ अमेरिकन एक्सप्रेस इंटरनेशनल बैंकिंग कॉरपोरेशन के कर्मचारी बनाम अमेरिकन एक्सप्रेस इंटरनेशनल बैंकिंग कॉरपोरेशन के प्रबंधन (मामला) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह माना...
राजस्थान हाईकोर्ट ने उन सरकारी कर्मचारियों के निलंबन, जहां अनुशासनात्मक कार्यवाही विचाराधीन है, पर दिशा-निर्देश जारी किए
राजस्थान हाईकोर्ट ने उन मामलों में सक्षम प्राधिकारियों/राज्य के विभागाध्यक्षों द्वारा पालन किए जाने वाले दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जहां राजस्थान सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम के नियम 13 के तहत विभागीय कार्यवाही के विचाराधीन या लंबित रहने के दौरान दोषी कर्मचारियों को निलंबित किया गया था। जस्टिस अरुण मोंगा ने राज्य को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निलंबन करने की शक्ति रखने वाले सभी सक्षम प्राधिकारी निलंबन आदेश की तिथि से 30 दिनों की उचित समय सीमा का पालन करें, तथा आरोप...
राजस्थान हाईकोर्ट ने खाप पंचायतों की अवैध गतिविधियों, ऑनर किलिंग, भूत-प्रेत जैसी सामाजिक बुराइयों की जांच के लिए पैनल नियुक्त किया
विशेष रूप से राजस्थान के पश्चिमी भाग में कई “सामाजिक बुराइयों” को देखते हुए, जिनमें सामाजिक बहिष्कार, खाप पंचायतों द्वारा कथित अवैध गतिविधियां, जातिगत भेदभाव, ऑनर किलिंग, प्रेम विवाह के खिलाफ निषेध, भूत-प्रेत जैसी बुराइयाँ शामिल हैं हाईकोर्ट ने विभिन्न गांवों का जमीनी अध्ययन करने के लिए 5 सदस्यीय आयोग का गठन किया।जस्टिस फरजंद अली ने कहा कि इस मुद्दे को दो चरणों में निपटाया जाएगा, जिसमें पहले चरण में बीमारी की पहचान करने का प्रयास किया जाएगा और अगले चरण में उन कुप्रथाओं को खत्म करने या रोकने की...
सामाजिक बहिष्कार और खाप पंचायतों पर राजस्थान हाईकोर्ट का सख्त, विशेष आयोग का गठन
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य में प्रचलित सामाजिक बहिष्कार, खाप पंचायतों द्वारा लगाए जाने वाले अवैध दंड, ऑनर किलिंग और अन्य सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने का आदेश दिया है। जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ में विभिन्न आपराधिक याचिकाओं की सुनवाई के दौरान समाज में व्याप्त गंभीर समस्याओं पर गहन मंथन किया गया।याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि राजस्थान के विभिन्न जिलों जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, नागौर, जालौर और पाली में खाप पंचायतें अब भी सामाजिक बहिष्कार और आर्थिक दंड जैसे अवैध...
CrPC की धारा 145 के तहत कार्रवाई से पहले शांति भंग का ठोस सबूत जरूरी: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने पुनः पुष्टि की है कि दंड प्रक्रिया संहिता CrPC की धारा 145 के तहत भूमि विवाद से उत्पन्न शांति भंग होने की आशंका के मामले में कार्यवाही शुरू करने से पहले, शांति भंग की आसन्न संभावना या तत्काल खतरे को स्पष्ट करने के लिए ठोस और विश्वसनीय सामग्री प्रस्तुत करना आवश्यक है।संदर्भ के लिए, धारा 145 उन मामलों की प्रक्रिया निर्धारित करती है जहां भूमि या जल से संबंधित विवाद से शांति भंग होने की संभावना हो सकती है। वहीं, धारा 146 श मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि यदि मामला आपातकालीन...
MV Act | कंसोर्टियम' के तहत दिया जाने वाला मुआवजा माता-पिता के अलावा मृतक के भाई-बहनों को भी देय: राजस्थान हाईकोर्ट ने दोहराया
राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मृत्यु के मामले में मोटर वाहन अधिनियम 1988 (MV Act) के तहत हेड कंसोर्टियम को दिया जाने वाला मुआवजा मृतक के माता-पिता तक ही सीमित नहीं हबल्कि उसके भाई-बहनों को भी देय है।इस प्रकार न्यायालय ने कहा कि हालांकि कोई भी राशि मृतक के माता-पिता और भाई-बहनों को मुआवजा नहीं दे सकती लेकिन उचित मुआवजा देना न्यायालय का कर्तव्य है।सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए जस्टिस डॉ. नूपुर भाटी ने अपने आदेश में रेखांकित किया,"यह न्यायालय...
कई दोषी कर्मचारियों के खिलाफ संयुक्त जांच तभी संभव जब उनके पास समान अनुशासनात्मक प्राधिकारी हों: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि ऐसे मामलों में जहां एक से अधिक दोषी कर्मचारी हों और उन पर एक जैसे या समान आरोप हों, उनके विरुद्ध समग्र अनुशासनात्मक कार्यवाही तभी हो सकती है जब ऐसे सभी दोषी कर्मचारियों के सक्षम और अनुशासनात्मक प्राधिकारी एक ही हों। यदि सभी कर्मचारियों के लिए ऐसे प्राधिकारी अलग-अलग हों, तो एक का अधिकार क्षेत्र दूसरे द्वारा नहीं छीना जा सकता।इसके अलावा, जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कानून की यह स्थापित स्थिति है कि यदि आरोप पत्र के साथ संलग्न...
समझौते के आधार पर अपहरण, चोरी जैसे गैर-समझौते योग्य अपराधों को रद्द करने की अनुमति देना खतरनाक मिसाल स्थापित करेगा: राजस्थान हाईकोर्ट
पक्षों द्वारा सौहार्दपूर्ण समझौता करने के बाद अपहरण चोरी जैसे गैर-समझौते योग्य अपराधों के लिए दर्ज की गई FIR रद्द करने से इनकार करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि समझौते के आधार पर ऐसे मामलों को रद्द करने की अनुमति देना आपराधिक कानून के मूल उद्देश्य को कमजोर करेगा और अपराधियों को बढ़ावा देगा।ऐसा करने से अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे अपराधों को रद्द करने से एक खतरनाक मिसाल स्थापित होगी, जिसमें आरोपी मौद्रिक समझौतों के माध्यम से न्याय से बच सकते हैं।जस्टिस फरजंद अली ने कहा कि...
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 | हस्ताक्षरों की वास्तविकता के बारे में कोई संदेह न होने पर न्यायालय हस्ताक्षरों की तुलना करने के लिए विशेषज्ञ की राय लेने से मना कर सकता है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने पुष्टि की कि सामान्यतः न्यायालय को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 के तहत विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए, जब उसे स्वीकृत और विवादित हस्ताक्षरों की तुलना करनी हो।हालांकि वह ऐसी विशेषज्ञ की राय लेने से तभी मना कर सकता है, जब तुलना के बाद हस्ताक्षरों की वास्तविकता के बारे में कोई संदेह न हो।जस्टिस अनूप कुमार ढांड ने धारा 45 का हवाला दिया, जिसमें प्रावधान है कि न्यायालय हस्ताक्षरों और हस्तलेखों की वास्तविकता के बारे में राय बनाने के लिए विशेषज्ञ के साक्ष्य की मांग कर सकता है, जिन...
प्रतीक्षा सूची की वैधता घटाने के लिए नहीं है 45 दिन पहले सिफारिश का सर्कुलर: राजस्थान HC
राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि कार्मिक विभाग के 5 अप्रैल 2021 के परिपत्र के क्लॉज 11 के तहत निर्धारित 45 दिनों की समय सीमा का उद्देश्य प्रतीक्षा सूची की वैधता को छह महीने से कम करने का नहीं था, भले ही प्रतीक्षा सूची से सिफारिशें निर्धारित समय सीमा के भीतर नहीं की गई हों।5 अप्रैल 2021 के कार्मिक विभाग के परिपत्र के क्लॉज 11 में यह प्रावधान किया गया था:"प्रतीक्षा सूची मुख्य सूची जारी होने की तारीख से छह महीने तक प्रभावी रहती है। इस छह महीने की अवधि समाप्त होने के बाद, न तो विभाग प्रतीक्षा...
राजस्थान हाईकोर्ट ने नियमों के तहत पूर्ण पेंशन की बहाली पर सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की शिकायतों की जांच के लिए विशेषज्ञ पैनल के गठन का सुझाव दिया
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य को सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों द्वारा उठाई गई शिकायतों की जांच करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव दिया है, जिसमें दावा किया गया है कि राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन का कम्यूटेशन) नियमों के तहत पूर्ण पेंशन बहाल करने की 14 साल की अवधि वित्तीय नुकसान की ओर ले जा रही है और इस पर फिर से काम करने की जरूरत है। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि नियमों की योजना के तहत पेंशन के कम्यूटेशन के मामले में 14 साल की अवधि के बाद पूर्ण पेंशन बहाल की जाती है। याचिकाकर्ताओं के...
राजस्थान हाईकोर्ट ने नियमों के तहत पूर्ण पेंशन की बहाली पर रिटायर सरकारी कर्मचारियों की शिकायतों की जांच के लिए विशेषज्ञ पैनल के गठन का सुझाव दिया
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य को रिटायर सरकारी कर्मचारियों द्वारा उठाई गई शिकायतों की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति गठित करने का सुझाव दिया, जिसमें दावा किया गया कि राजस्थान सिविल सेवा (पेंशन का कम्यूटेशन) नियमों के तहत पूर्ण पेंशन बहाल करने की 14 साल की अवधि वित्तीय नुकसान की ओर ले जा रही है। इस पर फिर से काम करने की जरूरत है।याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि नियमों की योजना के तहत पेंशन के कम्यूटेशन के मामले में 14 साल की अवधि के बाद पूर्ण पेंशन बहाल की जाती है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, पेंशन की बहाली...
पार्टी अपने वकील से मामले की स्थिति के बारे में जानकारी ले सकती है, वकील से संवाद की कमी मात्र अपील दायर करने में देरी को माफ करने का आधार नहीं है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने ढाई साल की रोक के बाद निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को खारिज करने के खिलाफ दायर चुनौती को खारिज करते हुए कहा कि वह केवल इस आधार पर देरी को माफ नहीं कर सकता कि याचिकाकर्ता को उसके वकील ने निचली अदालत द्वारा पारित आदेश के बारे में सूचित नहीं किया, जबकि उसके वकील ने अपने मामले की स्थिति के बारे में पूछने में विफलता का कोई औचित्य नहीं दिया। जस्टिस मनोज कुमार गर्ग की पीठ एक पति ("याचिकाकर्ता") द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके खिलाफ जुलाई 2023 में...
90% श्रवण बाधित अभ्यर्थी को गलती से दिव्यांग श्रेणी में नहीं माना गया: राजस्थान हाईकोर्ट ने मानवीय आधार पर नियुक्ति का निर्देश दिया
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य को याचिकाकर्ता को नियुक्ति देने का निर्देश दिया, जो 90% श्रवण बाधित है और उसने 2018 में सफाई कर्मचारी के पद के लिए आवेदन किया था, लेकिन कुछ सॉफ्टवेयर त्रुटि के कारण दिव्यांग श्रेणी के तहत लॉटरी के लिए उसका नाम नहीं माना गया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी नियुक्ति नहीं हो पाई।जस्टिस अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति अनुचित लग सकती है, क्योंकि उसने दिव्यांग श्रेणी के तहत पद के लिए लॉटरी में भाग नहीं लिया। हालांकि, मुकदमेबाजी की ऐसी अनिश्चितताएं हैं,...
न्यायालय दोषी कर्मचारी के विरुद्ध आरोपों की सत्यता का निर्णय करने के लिए अनुशासनात्मक प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर सकता: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में जारी आरोप-पत्र के विरुद्ध सामान्यतः रिट याचिका तब तक नहीं दायर की जा सकती, जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि आरोप-पत्र ऐसे प्राधिकारी द्वारा जारी किया गया, जो अनुशासनात्मक कार्यवाही आरंभ करने के लिए सक्षम नहीं है।जस्टिस अनूप कुमार ढांड की पीठ ने कहा कि न्यायालय द्वारा आरोप-पत्र में हल्के या नियमित तरीके से हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता तथा प्रारंभिक चरण में आरोप-पत्र को निरस्त करने की मांग करने के बजाय दोषी कर्मचारी को अनुशासनात्मक...
राजस्थान हाईकोर्ट ने पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोपी पति को जमानत दी, कहा- उसने उसे पीटा हो सकता है, लेकिन प्रथम दृष्टया कोई 'उकसाने' का मामला साबित नहीं हुआ
पत्नी की आत्महत्या के मामले में आरोपी पति को जमानत देते हुए राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि भले ही अभियोजन पक्ष के अनुसार पति पत्नी को पीटता था और उसके साथ दुर्व्यवहार करता था, लेकिन ऐसा कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं है, जिससे पता चले कि उसने अपनी पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने या सहायता करने के लिए कोई काम किया हो।जस्टिस कुलदीप माथुर की पीठ ने कहा कि यह स्थापित कानून है कि आत्महत्या के लिए उकसाने में किसी व्यक्ति को उकसाने या जानबूझकर किसी को ऐसा करने में मदद करने की मानसिक प्रक्रिया शामिल...