जानिए हमारा कानून
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 53 से 56 : अधिकारियों को मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति
राजस्व प्रशासन में न्याय और कार्यप्रणाली की पारदर्शिता बनाए रखने के लिए प्रकरणों के स्थानांतरण, समेकन (consolidation), उपस्थितियों और कार्यवाही की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से तय की गई है। राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 53 से 56 तक इन्हीं पहलुओं से संबंधित हैं। ये धाराएं यह सुनिश्चित करती हैं कि एक ही प्रकृति के प्रकरण एक ही अधिकारी द्वारा देखे जाएं, पक्षकारों को सुनवाई का पूरा अवसर मिले और न्यायिक प्रक्रिया सरल और व्यवस्थित हो।धारा 53 – सरकार और अन्य अधिकारियों को मामलों को स्थानांतरित...
क्या Allopathy और Ayurveda Doctors को समान वेतन मिलना चाहिए?
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय State of Gujarat v. Dr. P.A. Bhatt (2023) में यह अहम मुद्दा उठाया गया कि क्या Indian Systems of Medicine (जैसे Ayurveda) के डॉक्टर, MBBS (Allopathy) डॉक्टरों के समान वेतन (Equal Pay) के हकदार हैं? यह मामला Service Law और संविधान के Equality सिद्धांत (Equality under Constitution) के बीच के संबंध को उजागर करता है, खासकर Article 14 और Article 16 के संदर्भ में।अदालत ने यह स्पष्ट किया कि क्या केवल पदनाम "Medical Officer" होने के कारण दोनों को समान वेतन मिलना चाहिए या उनके...
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम 1961 की धारा 56 के अंतर्गत कम शुल्क चुकाने की स्थिति में विधिक प्रक्रिया
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम, 1961 की धारा 56 (Section 56) उन परिस्थितियों को संबोधित करती है जहाँ वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) के लिए कम शुल्क का भुगतान किया गया हो।यह धारा सुनिश्चित करती है कि यदि किसी त्रुटि या अज्ञानता के कारण कम शुल्क का भुगतान हुआ है, तो उसे कैसे सुधारा जा सकता है और यदि जानबूझकर ऐसा किया गया है, तो क्या दंड निर्धारित है। धारा 56(1): त्रुटि के कारण कम शुल्क का भुगतान यदि किसी वसीयत या उत्तराधिकार पत्र पर कम...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 447 के अंतर्गत हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक मामलों का स्थानांतरण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 447 हाईकोर्ट (High Court) को यह शक्ति देती है कि वह न्याय के हित में, या किसी विशिष्ट परिस्थिति में, किसी आपराधिक मामले को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित (Transfer) कर सके। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि हाईकोर्ट कब, क्यों और किस प्रक्रिया से ऐसा कर सकता है, और इससे संबंधित कौन-कौन सी परिस्थितियाँ हैं जिनमें यह शक्ति प्रयोग की जाती है।उचित और निष्पक्ष सुनवाई की संभावना न होने की स्थिति में हस्तक्षेपधारा 447(1)(a) के अनुसार, यदि...
ST/SC Act के अंतर्गत जातिसूचक शब्दों द्वारा क्राइम
यदि अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्य को लोक स्थान पर अपमानित या शर्मिन्दा करने के आशय से "चमार" कहा गया था, तो यह सचमुच अधिनियम की धारा 3 (1) (x) के अन्तर्गत अपराध है। क्या शब्द " चमार" अपमानित करने या शर्मिन्दा करने के आशय से प्रयुक्त किया गया था, उस सन्दर्भ में अर्थान्वयित किया जायेगा जिसमें यह प्रयुक्त हुआ था। यह बात स्वरन सिंह बनाम स्टेट धू स्टैंडिंग काउंसिल, 2008 के मामले में कही गई है।सुदामा गिरि एवं अन्य बनाम झारखण्ड राज्य 2009 के मामले में अपीलार्थी ने अभिकथित रूप से सूचनादाता को "चमार" कहा...
SC/ST Act में धमकी से संबंधित क्राइम
निरसित हो चुकी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504 के अधीन आरोप का सम्बन्ध था, पीड़िता को इस आशय/जानकारी के साथ प्रकोपित करना, जिससे कि वह शान्ति भंग कर सके अथवा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504 में यथा इंगित कोई अन्य अपराध कारित कर सके, का साक्ष्य में अभाव है। जहाँ तक भारतीय दण्ड संहिता की धारा 506 के अधीन आरोप का सम्बन्ध है, कोर्ट ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 506 के भाग 1 और भाग 2 के बीच अन्तर को विस्तारपूर्वक स्पष्ट किया है।संक्षिप्त रूप में कथित भारतीय दण्ड संहिता की धारा 506 के अधीन अपराध बनाने...
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 447 के अंतर्गत हाईकोर्ट द्वारा आपराधिक मामलों का स्थानांतरण
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 447 हाईकोर्ट (High Court) को यह शक्ति देती है कि वह न्याय के हित में, या किसी विशिष्ट परिस्थिति में, किसी आपराधिक मामले को एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में स्थानांतरित (Transfer) कर सके। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि हाईकोर्ट कब, क्यों और किस प्रक्रिया से ऐसा कर सकता है, और इससे संबंधित कौन-कौन सी परिस्थितियाँ हैं जिनमें यह शक्ति प्रयोग की जाती है।उचित और निष्पक्ष सुनवाई की संभावना न होने की स्थिति में हस्तक्षेपधारा 447(1)(a) के अनुसार, यदि...
राजस्थान न्यायालय शुल्क मूल्य निर्धारण अधिनियम, 1961 की धारा 55 : वसीयत या उत्तराधिकार पत्र के लिए प्रस्तुत संपत्ति का मूल्यांकन
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) की धारा 55 (Section 55) न्यायालय को कलेक्टर द्वारा प्रस्तुत संपत्ति के मूल्यांकन पर जांच करने का अधिकार प्रदान करती है।यह धारा सुनिश्चित करती है कि वसीयत (Probate) या उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) के लिए प्रस्तुत संपत्ति का मूल्यांकन सही और निष्पक्ष हो, ताकि न्यायालय द्वारा उचित शुल्क निर्धारित किया जा सके। धारा 50 और 54 का संदर्भ धारा 50 (Section 50) के अनुसार,...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 49 से 52 : ग्राम सेवकों की सजा, नियंत्रण, न्यायिक प्रक्रिया और भूमि निरीक्षण संबंधी अधिकार
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 ग्रामीण प्रशासन की आधारभूत संरचना को कानूनी रूप से व्यवस्थित करता है। इस अधिनियम के अंतर्गत ग्राम सेवकों, पटवारियों, लम्बरदारों और अन्य भू-राजस्व अधिकारियों के अधिकार, कर्तव्य, दायित्व और दंड का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।विशेष रूप से धारा 49 से 52 में ग्राम सेवकों के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई, चौकीदारों के नियंत्रण, न्यायिक कार्यवाही के स्थान और भूमि में प्रवेश व सर्वेक्षण से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। इस लेख में हम इन चार धाराओं की व्याख्या सरल...
क्या व्यावसायिक संस्था भी उपभोक्ता हो सकती है उपभोक्ता संरक्षण के तहत?
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की समझ (Understanding the Consumer Protection Act, 1986)उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 एक ऐसा कानून है जिसे उपभोक्ताओं (Consumers) के हितों की रक्षा के लिए बनाया गया था। इस अधिनियम (Act) का मुख्य उद्देश्य यह है कि आम आदमी को धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार व्यवहार (Unfair Trade Practices) से बचाया जाए और उन्हें न्याय की आसान पहुँच (Access to Justice) मिले। यह अधिनियम एक सामाजिक कल्याण कानून (Social-Welfare Legislation) माना जाता है, इसलिए अदालतें इसके प्रावधानों...
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 45 से 48 तक : ग्राम सेवकों के वेतन की सुरक्षा, कर्तव्य, नियुक्ति की प्रक्रिया और अयोग्यता
राजस्थान भू राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएं 45 से 48 तक ग्राम सेवकों की सेवा शर्तों को सुरक्षित और व्यवस्थित करने हेतु बनाई गई हैं। इन धाराओं में ग्राम सेवकों के वेतन पर कानूनी सुरक्षा, उनके कर्तव्य, नियुक्ति की विधि तथा किन व्यक्तियों को नियुक्त नहीं किया जा सकता – इन सभी विषयों को स्पष्ट किया गया है। इस लेख में हम इन चारों धाराओं की सरल हिंदी में व्याख्या करेंगे ताकि आमजन और ग्राम प्रशासन से जुड़े सभी व्यक्ति इसे सहजता से समझ सकें।धारा 45 : वेतन की कुर्की से संरक्षण धारा 45 के अनुसार, ग्राम...
राजस्थान न्यायालय शुल्क और वादों के मूल्य निर्धारण अधिनियम 1961 की धारा 54 के अंतर्गत कलेक्टर द्वारा संपत्ति के मूल्यांकन की जांच
राजस्थान कोर्ट फीस और मुकदमों का मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961) में वसीयत (Probate) और उत्तराधिकार पत्र (Letters of Administration) से संबंधित प्रक्रियाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।इस अधिनियम की धारा 54 (Section 54) कलेक्टर द्वारा संपत्ति के मूल्यांकन की जांच की प्रक्रिया को निर्धारित करती है। यह धारा सुनिश्चित करती है कि संपत्ति का मूल्यांकन सही और निष्पक्ष हो, ताकि न्यायालय द्वारा उचित शुल्क निर्धारित किया जा सके। धारा 50 और 51 का...
न्याय के हित में सुप्रीम कोर्ट द्वारा केस ट्रांसफर करने की शक्ति और प्रक्रिया: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 446
धारा 446 का संबंध ऐसे मामलों से है जिनमें Supreme Court (सुप्रीम कोर्ट) को यह लगता है कि किसी आपराधिक केस (Criminal Case) या अपील (Appeal) को एक High Court (हाई कोर्ट) से दूसरी High Court या एक Criminal Court (आपराधिक न्यायालय) से दूसरे राज्य उसी स्तर की या उच्च स्तर की Criminal Court में ट्रांसफर (Transfer) करना न्याय के हित में (In the interest of justice) होगा।यह प्रावधान (Provision) यह सुनिश्चित करता है कि न केवल न्याय किया जाए बल्कि ऐसा होता हुआ भी दिखे। यदि किसी भी पक्ष को यह डर हो कि उसे...
क्या राष्ट्रीय सुरक्षा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्राकृतिक न्याय से ऊपर हो सकती है?
मुख्य मुद्दा: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा (Freedom of Speech and National Security)Madhyamam Broadcasting Ltd. v. Union of India के फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, विशेष रूप से प्रेस की आज़ादी, एक लोकतांत्रिक समाज की बुनियाद है और इसे सिर्फ इस आधार पर नहीं छीना जा सकता कि सरकार को कोई खतरा महसूस हो रहा है। Article 19(1)(a) के अंतर्गत आने वाला यह अधिकार केवल तब ही सीमित किया जा सकता है जब उसके लिए ठोस और न्यायोचित (Justified) कारण हों। केवल...
SC/ST Act का विस्तार क्षेत्र
एक मामले में यह तर्क किया गया था कि किसी व्यक्ति को उसकी उपस्थिति के बिना बोर्ड पर यह प्रदर्शित करके भी अपमानित किया जा सकता है कि अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति से सम्बन्धित लोगों को किसी स्थान में प्रवेश करने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जायेगा, को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है, इसके कारण कोई कृत्य सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 7 (1) (घ) को आकर्षित करते हुए अस्पृश्यता के आधार पर अपमान, न कि वर्ष 1989 को अधिनियम संख्यांक 33 की धारा 3 (x) के अधीन यथा अनुचिंतित अपमान हो सकता है।अधिनियम...
SC/ST Act में Proportionality of Sentence
Proportionality of Sentence के पक्ष पर उसे अभियुक्त के दाण्डिक आचरण की आपराधिकता के अनुसार विहित किया जाना है। दण्डादेशित करने की प्रणाली को ऐसी रीति में प्रवर्तित होना है, जो समाज की सामूहिक अन्तरात्मा को प्रदर्शित कर सके और उसे तथ्यों से इस तरह से उद्भूत होना चाहिए, जैसे दिया गया मामला मांग करता है। किस प्रकार के मामलों में मृत्युदण्ड प्रदान किया जाना चाहिए, विभिन्न न्यायिक निर्णयों में विचार-विमर्श की विषयवस्तु रही है। इसी तरह से ये दिशानिर्देश, जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302, (जो मृत्यु...
SC/ST Act के अंतर्गत प्रकरण में की गयी कमियों का विचारण
SC/ST Act से जुड़े एक प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया है कि मामले के तथ्यों पर बिना किसी हिचकिचाहट के यह कहा जा सकता है कि अभियोजन सशक्त और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करके अभिकथित अपराध को साबित करने में विपन्न रूप में विफल हुआ है। अन्य शब्दों में वर्तमान मामला मुख्य अभियोजन साक्षियों के साक्ष्य अनेक विरोधों के साथ अस्थिर तथा कमजोर चरण पर आधारित है। पुनः अधिकांश अभियोजन साक्षीगण विद्रोही हो गये हैं और अभियोजन मामले का कोई स्वतन्त्र साक्षी समर्थन नहीं किया है। रूचिकर रूप में, कोई पहचान...
SC/ST Act के अपराधों में समय समय पर आए Judgement की महत्वपूर्ण बातें
इस एक्ट में न्यूनतम दण्डादेश पर विधि अधिनियम की धारा 3 (1) ऐसी अवधि के लिए दण्ड का प्रावधान करती है, जो 6 मास से कम की नहीं होगी, परन्तु जो 5 वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने के साथ हो सकेगी। इसलिए, केवल प्रश्न यह है कि क्या उच्च न्यायालय संविधि के द्वारा अनुचिन्तित न्यूनतम दण्ड से कम दण्डादेश प्रदान कर सकता है। जहाँ न्यूनतम दण्डादेश का प्रावधान किया गया हो, वहाँ न्यायालय न्यूनतम दण्डादेश से कम दण्डादेश अधिरोपित नहीं कर सकता है। यह भी अभिनिर्धारित किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 142 के...
राजस्थान कोर्ट फीस मूल्यांकन अधिनियम, 1961 की धाराएं 52 और 53 : वसीयत या उत्तराधिकार पत्र के लिए आवश्यक शुल्क
राजस्थान कोर्ट फीस और मुकदमों का मूल्यांकन अधिनियम, 1961 के अध्याय VI में वसीयत (प्रोबेट) और उत्तराधिकार पत्र (लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन) से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। इस अध्याय की धाराएं 50 से 58 तक हैं, जो इन दस्तावेजों के लिए आवेदन, शुल्क निर्धारण, और अन्य संबंधित प्रक्रियाओं को स्पष्ट करती हैं। विशेष रूप से, धाराएं 52 और 53 इन प्रक्रियाओं में न्यायालय की भूमिका और शुल्क के संबंध में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान करती हैं।धारा 52: वसीयत या उत्तराधिकार पत्र की अनुमति धारा 52 के...
क्या किसी फैसले को केवल इस आधार पर दोबारा परखा जा सकता है कि बाद के फैसले में पहले के निर्णय को गलत बताया गया है?
सुप्रीम कोर्ट ने Government of NCT of Delhi v. K.L. Rathi Steels Ltd. (2023) के मामले में एक अहम सवाल पर विचार किया क्या किसी अदालत के फैसले की समीक्षा (Review) केवल इसलिए की जा सकती है क्योंकि किसी बाद के फैसले में पहले के निर्णय (Precedent) को पलट दिया गया है? यह सवाल न केवल सिविल कानून बल्कि संवैधानिक कानून से भी जुड़ा हुआ है, और यह Code of Civil Procedure, 1908 की Order XLVII Rule 1 के तहत Review की सीमाओं को लेकर बेहद महत्वपूर्ण है। इस मामले में दो जजों की बेंच — जस्टिस एम.आर. शाह और जस्टिस...