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धारा 195 CrPC से संबंधित सिद्धांत: सुप्रीम कोर्ट ने संक्षेप में बताया
सुप्रीम कोर्ट ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 195 से संबंधित सिद्धांतों का सारांश दिया।यह प्रावधान लोक सेवकों के वैध अधिकार की अवमानना, लोक न्याय के विरुद्ध अपराध और साक्ष्य में दिए गए दस्तावेजों से संबंधित अपराधों के लिए संज्ञान लेने की शर्तें निर्धारित करता है।जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने विभिन्न उदाहरणों से निम्नलिखित सिद्धांत निकाले:i. धारा 195 CrPC के तहत निर्धारित प्रक्रिया अनिवार्य प्रकृति की है।ii. यह धारा किसी व्यक्ति के सामान्य अधिकार और मजिस्ट्रेट के...
क्या हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जा सकता है? प्रकाश बनाम फुलवती का विश्लेषण
प्रकाश बनाम फुलवती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 (Hindu Succession Amendment Act, 2005), जो बेटियों को हिंदू संयुक्त परिवार (Hindu Joint Family) में समान उत्तराधिकार अधिकार (Equal Coparcenary Rights) प्रदान करता है, क्या इसे पूर्वव्यापी (Retrospective) रूप से लागू किया जा सकता है। इस मामले में कोर्ट ने संशोधन के दायरे और सीमाओं को स्पष्ट किया।मुख्य मुद्दा: क्या संशोधन पूर्वव्यापी है? 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act,...
वॉरंट मामलों में ट्रायल का निष्कर्ष और शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति: धारा 271 और 272, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), वॉरंट मामलों (Warrant Cases) की सुनवाई के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया प्रदान करती है। धारा 271 और 272 ट्रायल के निष्कर्ष और शिकायतकर्ता (Complainant) की अनुपस्थिति से संबंधित प्रक्रियाओं पर ध्यान केंद्रित करती हैं। ये प्रावधान अभियोजन और आरोपी दोनों के लिए निष्पक्षता सुनिश्चित करते हैं।धारा 271: ट्रायल का निष्कर्ष (Conclusion of Trial) धारा 271 उस प्रक्रिया का वर्णन करती है जिसका पालन मजिस्ट्रेट (Magistrate) को ट्रायल...
इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को कानूनी मान्यता: भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 का योगदान
1 जुलाई 2024 से लागू हुआ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Bharatiya Sakshya Adhiniyam) भारतीय कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन लेकर आया है। यह अधिनियम 1872 के औपनिवेशिक-युग के भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की जगह लेता है और आधुनिक तकनीकी प्रगति के अनुरूप साक्ष्य के नियमों को अपडेट करता है।भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita) के साथ यह अधिनियम भी भारत के आपराधिक न्याय प्रणाली में व्यापक बदलाव लाने का...
धारा 308 के तहत एक्सटॉरशन की सजा: भारतीय न्याय संहिता 2023 – भाग 2
इस लेख के पहले भाग में हमने एक्सटॉरशन (Extortion) की परिभाषा और इसके मुख्य तत्वों को समझा। हमने देखा कि कैसे डर और ईमानदारी से हटकर मंशा (Dishonest Intent) का इस्तेमाल किसी व्यक्ति को उसकी मर्ज़ी के खिलाफ कार्य करने के लिए मजबूर करने में किया जाता है।इस दूसरे भाग में, हम धारा 308 के अंतर्गत एक्सटॉरशन के लिए दी जाने वाली सज़ा पर चर्चा करेंगे। इसमें विभिन्न परिस्थितियों के लिए सज़ा के प्रावधान (Provisions) दिए गए हैं, जिन्हें उदाहरणों (Examples) के साथ समझाया जाएगा। सामान्य एक्सटॉरशन के लिए सज़ा...
सजा होने पर अदालत सिर्फ भर्त्सना पर भी अपराधी को छोड़ सकती है?
किसी अपराधी ठहराए गए व्यक्ति को भर्त्सना(Condemn) पर भी छोड़ा जा सकता है। न्याय व्यवस्था को इस तरह बनाया गया है कि अपराधी को सज़ा नहीं दी जाए बल्कि सुधारा जाए लेकिन ऐसा सुधार यह सुधार केवल छोटे मामलों में और ऐसे अपराध जिन्हें कोई व्यक्ति प्रथम दफा करता है तब ही संभव है। अभ्यस्त अपराधियों के लिए इस प्रकार के सुधारात्मक विचार को नहीं रखा जाता है। इस सिद्धांत को यहां पर नहीं माना जाता है या फिर गंभीर प्रकृति के अपराधों के मामले में सुधार के विचार को दरकिनार कर दिया जाता है तथा अपराधी को दंडित किया...
क्रिमिनल केस में आरोपी कब हो सकता है सरकारी गवाह?
किसी क्रिमिनल केस में अभियोजन अनेक आरोपियों में से किसी एक आरोपी को अभियोजन के विटनेस के रूप में खड़ा कर सकता है एवं ऐसे आरोपी को अपने स्टेटमैंट के आधार पर क्षमादान दिए जाने जैसी व्यवस्था भी उपलब्ध है। कभी-कभी गंभीर प्रकृति के अपराधों के मामले में अभियोजन पक्ष को यथेष्ट साक्ष्य नहीं मिल पाते हैं जिस कारण दोषी होते हुए भी अभियुक्तों को दोषमुक्ति का मिल पाने का अवसर मिल जाता है। अभियोजन पक्ष प्रकरण की सभी वास्तविक बातों को कोर्ट के सामने लाने हेतु अभियुक्तों में से किसी एक अभियुक्त को सरकारी गवाह...
अभियोजन गवाहों की जिरह, अभियुक्त का बचाव और साक्ष्य प्रस्तुत करना की प्रक्रिया: धारा 269 और 270 BNSS, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023), यह सुनिश्चित करती है कि गंभीर मामलों (Warrant Cases) की सुनवाई एक संगठित और निष्पक्ष तरीके से हो।इसकी धारा 269 और 270 अभियोजन पक्ष (Prosecution) के साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद की प्रक्रिया, आरोप तय करने (Framing of Charges), गवाहों की जिरह (Cross-Examination), और अभियुक्त (Accused) के बचाव (Defence) की प्रक्रिया पर प्रकाश डालती है। यह प्रावधान प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करते हैं। धारा 269: आरोप तय...
एक्सटॉरशन की परिभाषा और उदाहरण : धारा 308, भारतीय न्याय संहिता 2023 – भाग 1
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) ने कई अपराधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है। इन अपराधों में से एक है एक्सटॉरशन (Extortion), जो धारा 308 के तहत आता है। यह धारा बताती है कि एक्सटॉरशन क्या है, इसके आवश्यक तत्व क्या हैं, और इसे समझाने के लिए कई उदाहरण (Illustrations) दिए गए हैं।एक्सटॉरशन की परिभाषा (Definition of Extortion: Section 308(1)) एक्सटॉरशन तब होती है जब कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी दूसरे व्यक्ति को चोट (Injury) का डर दिखाकर उसे डराता है और उस डर का इस्तेमाल कर...
पुरानी भारतीय साक्ष्य अधिनियम और नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के बीच अंतर
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (Bharatiya Sakshya Adhiniyam, 2023) एक महत्वपूर्ण सुधार है, जो औपनिवेशिक युग के भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) को आधुनिक बनाकर बदलता है।इसका उद्देश्य वर्तमान कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करना और भारतीय न्याय प्रणाली को आधुनिक प्रक्रियाओं के साथ सामंजस्य स्थापित करना है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य (Digital Evidence) और गवाहों (Witnesses) की जांच में। यहाँ पुराने और नए कानूनों के बीच मुख्य अंतर को सरल शब्दों में समझाया गया है: 1. आधुनिक...
धार्मिक संस्थानों में रिट अधिकारिता की सीमाएं क्या हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने हालिया फैसले में रिट अधिकारिता (Writ Jurisdiction) और धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता (Autonomy) के बीच जटिल संबंधों पर विचार किया।यह निर्णय धार्मिक न्यासों और मंदिरों के धर्मिक और लौकिक (Secular) मामलों में न्यायिक निगरानी की सीमा स्पष्ट करने पर केंद्रित था। यह मामला असम राज्य के अधिनियम (Assam State Acquisition of Lands Belonging to Religious or Charitable Institutions Act) की धारा 25ए (Section 25A) की व्याख्या और कामाख्या मंदिर के संदर्भ में धार्मिक स्वतंत्रता (Religious...
महिलाओं के साथ छेड़छाड़ से संबंधित अपराध
महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करना संज्ञेय अपराध है और ऐसे अपराधों पर सीधे पुलिस थाने से FIR दर्ज़ होती है। इस तरह के अपराधों पर महिलाओं को सतर्क रहना चाहिए तथा दांडिक कार्यवाही इस प्रकार के अपराधियों के विरुद्ध खुलकर दर्ज करवायी जानी चाहिए। समाज में यदि इस तरह के अपराधियों को दंड दिए जाने लगे तो महिलाओं के विरुद्ध होने वाले विभिन्न अपराध को रोका जा सकता है तथा बलात्कार जैसी घटनाएं जो आज समाज के लिए नासूर बन गयी है उन्हें भी कम किया जा सकता है।भारतीय न्याय संहिता के अंतर्गत महिलाओं का पीछा करना, उन्हें...
ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट क्रिमिनल केस की शुरुआत कैसे करता है?
पुलिस इन्वेस्टिगेशन खत्म होने के बाद ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट क्रिमिनल केस की शुरुआत करता है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता BNSS की धारा 187 के अंतर्गत पुलिस को अपना इन्वेस्टिगेशन समाप्त करने के लिए एक समय सीमा दी गयी है। इस समय अवधि के भीतर पुलिस द्वारा अपना इन्वेस्टिगेशन प्रस्तुत कर दिया जाता है। जब पुलिस अपना इन्वेस्टिगेशन प्रस्तुत कर देती है तो मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही का प्रारंभ होता है।आरोप विरचित करने के पूर्व अभियुक्त को उन्मोचन करने के पूर्व मजिस्ट्रेट को अपनी कार्यवाही का प्रारंभ करना...
मतदाताओं को उम्मीदवारों के बारे में जानकारी प्राप्त करने का संवैधानिक आधार और जवाबदेही से जुड़े महत्वपूर्ण मामले
चुनाव लोकतंत्र (Democracy) की बुनियाद हैं, जहां जनता अपनी संप्रभु इच्छाओं को व्यक्त करती है। लेकिन राजनीति में अपराधीकरण (Criminalization) और भ्रष्ट आचरण (Corrupt Practices) इन चुनावी प्रक्रियाओं को कमजोर करते हैं।चुनावी कानून (Electoral Law) में "अनुचित प्रभाव" (Undue Influence) का मतलब केवल सीधा दबाव डालने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें भ्रामक (Misleading) तरीके अपनाना, जैसे कि जरूरी जानकारी छुपाना, भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान को कई मामलों में व्याख्या कर एक नई दिशा दी है।अनुचित...
क्लर्क या सेवक द्वारा चोरी और नुकसान पहुंचाने की तैयारी के साथ चोरी : धारा 306 और 307, भारतीय न्याय संहिता, 2023
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) ने चोरी (Theft) के अपराध को लेकर कई प्रावधान दिए हैं, जो विभिन्न परिस्थितियों में चोरी के अपराध को समझने और उसे दंडित करने की रूपरेखा तैयार करते हैं।धारा 306 और 307 चोरी के विशेष मामलों को संबोधित करती हैं, जो विश्वासघात या किसी को नुकसान पहुंचाने की तैयारी के साथ की जाती हैं। ये प्रावधान अपराध की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए सख्त दंड का प्रावधान करते हैं। धारा 306: क्लर्क या सेवक द्वारा चोरी यह धारा उन मामलों पर लागू होती है जहां...
चुनाव में उम्मीदवार द्वारा अपने आपराधिक मामलों की जानकारी छुपाना 'अनुचित प्रभाव' और 'भ्रष्ट आचरण' के दायरे में आता है?
चुनाव किसी संवैधानिक लोकतंत्र (Constitutional Democracy) की नींव होते हैं, जहां जनता अपनी इच्छा को स्वतंत्र और निष्पक्ष (Free and Fair) तरीके से व्यक्त करती है।लेकिन राजनीति का अपराधीकरण (Criminalization of Politics) और भ्रष्टाचार (Corruption) इस प्रक्रिया के सामने गंभीर चुनौतियाँ खड़ी करते हैं। भारत के सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने कई मामलों में मतदाताओं के सूचित निर्णय (Informed Choice) लेने के अधिकार को अहमियत दी है। इसी संदर्भ में, कृष्णमूर्ति बनाम शिवकुमार एवं अन्य...
पुलिस रिपोर्ट के बिना शुरू हुए मामलों का ट्रायल: सेक्शन 267 और 268 भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) में वॉरंट मामलों (Warrant Cases) के लिए ट्रायल प्रक्रिया का विस्तार से उल्लेख किया गया है।जहाँ पहले के सेक्शन 264 से 266 पुलिस रिपोर्ट पर आधारित मामलों की प्रक्रिया बताते हैं, वहीं सेक्शन 267 और 268 उन मामलों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो बिना पुलिस रिपोर्ट के शुरू होते हैं। इन प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ट्रायल साक्ष्य आधारित हो और आरोपित (Accused) को तब तक अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचाया जाए जब तक...
अदालत द्वारा आरोपियों को पेशी पर आने से छूट दिया जाना
अदालत में किसी भी प्रकरण में अनेकों पेशियों पर किसी मामले का फैसला होता है। ऐसी पेशियों पर पक्षकारों को हाज़िर होना रहता है। क्रिमिनल केस में तो आरोपियों को हर पेशी पर अदालत में हाज़िर होना होता है। BNSS के अंतर्गत ऐसे भी प्रावधान किए गए हैं जहां आरोपियों को अदालत पेशी पर हाज़िर होने मुक्ति भी दे सकती है। अभियुक्त को यदि वह जमानत पर छूटा हुआ है या फिर जेल में निरूद्ध है यह दोनों ही परिस्थितियों में कोर्ट में व्यक्तिगत तौर पर हाजिरी देना होती है।कभी किसी अभियोजन पक्ष द्वारा मामले में उचित साक्ष्य...
क्रिमिनल केस के पेंडिंग रहते नए आरोपियों के नाम कैसे जोड़े जाते हैं?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता BNSS के अंतर्गत किसी क्राइम का ट्रायल सुना जाता है। कई दफा ऐसी स्थिति बनती है जब ट्रायल के बीच किन्हीं नए आरोपियों के नाम सामने आते हैं। ऐसी स्थिति में अदालत को यह शक्ति प्राप्त है कि वह नए आरोपियों के नाम मुकदमे में जोड़ दे और उन पर भी अपराध का ट्रायल चलाया जाए। इस शक्ति का अर्थ यह है कि कोर्ट मामले में अभियुक्तों को जोड़ देने की शक्ति रखता है। निजी परिवाद पर या पुलिस द्वारा किए गए अन्वेषण के आधार पर विचारण की कार्यवाही की जाती है परंतु यहां पर यह विशेष शक्ति कोर्ट...
कौन से क्राइम्स में होता है सेशन ट्रायल
सेशन ट्रायल क्रिमिनल अदालती प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण और विशद ट्रायल है। यह ट्रायल बड़े अपराधों में होता है और लंबी प्रक्रिया होती है। सेशन ट्रायल सेशन जज के द्वारा किया जाता है। सेशन जज किसी भी ऐसे अपराध का स्वयं सीधे संज्ञान नहीं करता है जो उसके जो द्वारा BNSS की प्रथम सूची के अनुसार विचारणीय है। इस हेतु पहले कोई भी न्यायिक मजिस्ट्रेट ऐसे अपराध का संज्ञान करता है उसके पश्चात उसे विचारण हेतु सेशन जज को सुपुर्द कर देता है।बहस की धारा 248 के अंतर्गत किसी भी सेशन कोर्ट के समक्ष विचारण पब्लिक...