आयकर रिटर्न दाखिल करने में विफलता| उपयुक्त प्राधिकारी की स्वीकृति के बिना आईटी एक्ट की धारा 276CC के तहत अभियोजन की अनुमति नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

21 July 2022 5:40 AM GMT

  • आयकर रिटर्न दाखिल करने में विफलता| उपयुक्त प्राधिकारी की स्वीकृति के बिना आईटी एक्ट की धारा 276CC के तहत अभियोजन की अनुमति नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली ने स्पष्ट किया कि प्रधान आयुक्त/उपयुक्त प्राधिकारी की मंजूरी के बिना किसी व्यक्ति पर आयकर अधिनियम की धारा 276-सीसी (आय की रिटर्न प्रस्तुत करने में विफलता) के तहत अपराध के लिए मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

    जस्टिस आशा मेनन की सिंगल जज बेंच ने कहा,

    "चूंकि कानून कहता है कि आईटी अधिनियम की धारा 278 बी के तहत मंजूरी के बिना विभाग आईटी अधिनियम की धारा 276 सीसी के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी पाए गए व्यक्ति के खिलाफ आगे नहीं बढ़ सकता। याचिकाकर्ता पर मुकदमा चलाने के लिए विशिष्ट मंजूरी के अभाव में एसीएमएम उसके खिलाफ शिकायत का संज्ञान नहीं ले सकता। अगर वह ऐसा करता है तो बिना नींव के मकान बनाने जैसा होगा।"

    याचिकाकर्ता के साथ-साथ कंपनी मेसर्स एएसएम ट्रैक्सिम प्राइवेट लिमिटेड पर निर्धारण वर्ष 2012-13 के लिए समय पर आईटीआर दाखिल नहीं करने पर आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 276-सीसी और धारा 278-बी के उल्लंघन के लिए मामला दर्ज किया गया है। याचिकाकर्ता ने उक्त शिकायत और उससे उत्पन्न होने वाली सभी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप तय करने का आदेश भी शामिल है।

    कोर्ट ने नोट किया कि वर्तमान मामले में कंपनी मेसर्स एएसएम ट्रैक्सिम प्रा. लिमिटेड "निर्धारिती" के रूप में है।

    इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि मंजूरी विशेष रूप से कंपनी के खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करने के लिए है, न कि याचिकाकर्ता के लिए, जो "व्यक्ति" के रूप में निदेशक होने/कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार है।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आईटी अधिनियम की धारा 2(35)(बी) के तहत याचिकाकर्ता को प्रमुख अधिकारी के रूप में माना जा सकता है, हालांकि इसके लिए उसे पहले नोटिस जारी किया जाना चाहिए, जिसमें यह संकेत दिया गया हो कि उसे कंपनी के प्रधान अधिकारी के रूप में माना जाएगा।

    अदालत इस तर्क से सहमत थी, उसने यह भी नोट किया कि अधिनियम की धारा 278 बी के अपराध के समय जो "व्यक्ति" कंपनी का प्रभारी है या इसके व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार है, उसे ही अपराध का दोषी समझा जाएगा। यह प्रावधान याचिकाकर्ता को कवर करेगा।

    कोर्ट ने कहा,

    "निदेशक होने के नाते उसके खिलाफ अधिनियम की धारा 278 बी के तहत अनुमान होगा, जब समय के भीतर आईटीआर दायर नहीं किया गया और अधिनियम की धारा 276 सीसी के तहत अपराध किया गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह अनुमान खंडन योग्य है, लेकिन यह ट्रायल का मामला होगा। इस प्रकार, भले ही दलीलों के लिए याचिकाकर्ता की ओर से आग्रह किया गया तर्क स्वीकार किया जाना है कि धारा 235-बी के तहत मूल्यांकन अधिकारी द्वारा उसे अधिसूचित नहीं किया गया और न ही उसे प्रधान अधिकारी अपराधी घोषित किया गया है, फिर भी उस पर मामला नहीं दर्ज किया जा सकता।

    इस प्रकार शिकायत को खारिज कर दिया गया और याचिका को स्वीकार कर लिया गया।

    मामले टाइटल: विपुल अग्रवाल बनाम आयकर कार्यालय

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