हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

31 July 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (25 जुलाई, 2022 से 29 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 81(5) मोटर वाहन... मुख्य सुर्खियां धारा 81(5) मोटर वाहन अधिनियम | विलंब को माफ करने के बाद नवीनीकृत परमिट वास्तविक समाप्ति की तारीख से प्रभावी माना जाता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बीमा कंपनी इस आधार पर बीमाकर्ता (वाहन मालिक) की देयता की क्षतिपूर्ति करने की अपनी जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकती है कि दुर्घटना की तारीख पर फिटनेस प्रमाणपत्र और वाहन का परमिट लागू नहीं था।

    जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार और जस्टिसं एस रचैया की खंडपीठ ने डॉ नरसिमुलु नंदिनी मेमोरियल एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा दायर अपील और मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा पारित संशोधित आदेश को स्वीकार कर लिया।

    केस टाइटल: डॉ नरसिमुलु नंदिनी मेमोरियल एजुकेशन ट्रस्ट बनाम बानू बेगम और अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 195(1) एफआईआर दर्ज करने पर रोक नहीं लगाती, न ही लोक सेवक द्वारा लिखित शिकायत न्यायालय के समक्ष दायर करने के बारे में कहा गया है: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हाल ही में कहा कि सीआरपीसी की धारा 195 (1) में कहीं भी यह नहीं कहा गया कि लोक अधिकारी द्वारा लिखित शिकायत न्यायालय के समक्ष दायर की जानी है। कोर्ट ने कहा कि उक्त प्रावधान भी एफआईआर दर्ज करने पर रोक नहीं लगाता है।

    केस टाइटल: रमेश मेंडोला बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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    जब अभियोजन स्वयं किसी मकसद से प्रभावित होता है, तो कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग रोकने के लिए उसे रद्द भी कर सकता है: मद्रास हाईकोर्ट

    नशीले पदार्थ रखने और तमिलनाडु निषेध अधिनियम 1937 की धारा 4 (1) (ए) के तहत आरोपित एक व्यक्ति के खिलाफ अंतिम रिपोर्ट रद्द करते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन दुर्भावनापूर्ण था।

    आरोपी के पास से एक कार में 96 आईएमएफएल रम की बोतलें मिलीं। कार को रोक लिया गया और जांच अधिकारी ने रम की बोतलें जब्त कर लीं। अपराध 10.07.2021 को दर्ज किया गया था और अंतिम रिपोर्ट अगले दिन 11.07.2021 को दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि अभियोजन कुछ और नहीं, बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है और आरोपी के खिलाफ मुकदमा आगे बढ़ाने के लिए कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है।

    केस शीर्षक: जयशंकर बनाम सरकार एवं अन्य

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    अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 14ए में 1989 अधिनियम के तहत आदेश के खिलाफ अपील दायर करने पर रोक लगाने की कोई सीमा अवधि नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 14ए, अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक आदेश के खिलाफ अपील दायर करने पर कोई सीमा नहीं रखती है।

    चीफ जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव- I और जस्टिस सौरभ लावानिया की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा 1989 के अधिनियम की धारा 14A की उप-धारा (3) के दूसरे प्रावधान को संदर्भ में: अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) संशोधन अधिनियम, 2015 की धारा 14A का प्रावधान में रद्द किए जाने के बाद अधिनियम के प्रावधानों के तहत किसी आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की कोई सीमा नहीं है।

    केस टाइटल- गुलाम रसूल खान और अन्य बनाम यूपी राज्य और अन्य।

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    पुलिस गिरफ्तारी की शक्ति का उपयोग दंडात्मक उपकरण के रूप में न करें, सीआरपीसी की धारा 41 के तहत अनिवार्य सुरक्षा उपायों का पालन करें: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने फैसला सुनाया कि राज्य और पुलिस किसी व्यक्ति को दंडात्मक उपकरण या उत्पीड़न से निपटने के साधन के रूप में गिरफ्तार करने के लिए अपनी शक्ति का उपयोग नहीं कर सकते हैं और उनका कर्तव्य है कि वे सीआरपीसी की धारा 41 के तहत प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों का पालन करें।

    केस टाइटल: मोहम्मद रफ़ी बनाम सतीश कुमार एम.वी

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    यदि प्रतिवादी लिखित बयान दर्ज करने के बाद साक्ष्य नहीं पेश कर सका तो डिक्री प्रकृति में एकतरफा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक डिक्री और निर्णय को रद्द कर दिया जो प्रकृति में एकतरफा था, क्योंकि प्रतिवादी ने खराब स्वास्थ्य के कारण परीक्षण के दौरान सबूत पेश नहीं कर सका था।

    कोर्ट ने कहा, "आक्षेपित डिक्री और निर्णय केवल प्रकृति में एकपक्षीय हैं क्योंकि इस मामले में प्रतिवादी के साक्ष्य पेश नहीं किए गए थे और वह अदालत में उपस्थित होने में विफल रहे ... हालांकि ट्रायल कोर्ट ने एक विस्तृत निर्णय दिया। उस विचार में भी हमें लगता है कि प्रतिवादी को एक अवसर दिया जाना चाहिए...।"

    केस टाइटल: एस सुब्रह्मण्यम नायडू बनाम वी रामचंद्र नायडू

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    धारा 226 - 228 सीआरपीसी का उद्देश्य आपराधिक मामले का शीघ्र निस्तारण सुनिश्चित करना, पार्टियों को देरी की रणनीति अपनाने से बचना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या और हमले के एक मामले से बरी करने के लिए सीआरपीसी की धारा 227 के तहत याचिकाकर्ता-आरोपी द्वारा दायर आवेदन पर पुनर्विचार की मांग वाली एक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है। जस्टिस समीर दवे की खंडपीठ ने कहा कि सह-अभियुक्त के साथ याचिकाकर्ता द्वारा कई आवेदन दायर करने के कारण आरोप और आरोप तय करना बार-बार टाला गया है, जिससे अंततः ट्रायल लंबा खिंच गया।

    केस टाइटल: गोपालभाई नारंभाई @ नारूभाई भगुभाई रताडिया बनाम गुजरात राज्य

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    कोर्ट फीस के भुगतान में छूट राज्य का विषय और कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम के तहत इसकी गारंटी नहीं: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 12 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सहित उसमें निर्दिष्ट व्यक्तियों को कोर्ट फीस के भुगतान में छूट प्रदान नहीं करती है। कोर्ट फीस में छूट के लिए स्टेट कोर्ट फीस एक्ट के प्रावधानों को लागू करना होगा।

    केस टाइटल: कटेपोगु दानमैया बनाम अध्यक्ष, कानूनी सेवा प्राधिकरण

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    चार्जशीट की फोटोस्टेट कॉपी होने पर भी इसे डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए 'अधूरी' नहीं कहा जा सकता: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सोमवार को कहा कि चार्जशीट के रूप में चार्जशीट की फोटोस्टेट कॉपी को रिकॉर्ड में पेश करने पर उसे डिफॉल्ट जमानत देने के लिए अपूर्ण चार्ज-शीट नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इस कारण से कि मूल दस्तावेजों को न्यायालय की अनुमति से रिकॉर्ड में लाया जा सकता है और अन्यथा साक्ष्य की रिकॉर्डिंग के दौरान उनकी स्वीकार्यता को भी चुनौती दी जा सकती है।

    केस टाइटल: वकील अहमद डार बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर।

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    आत्महत्या के लिए उकसाना | कार्यस्थल पर बिना किसी विशिष्ट कृत्य केवल दबाव बनाने का आरोप आईपीसी की धारा 306 को आकर्षित नहीं करेगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी। जस्टिस सुब्बा रेड्डी सत्ती ने जियो वर्गीस बनाम राजस्थान राज्य (2021) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए दोहराया कि बिना किसी सकारात्मक कार्य के केवल दबाव या उत्पीड़न का आरोप आईपीसी की धारा 306 की सामग्री को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

    केस टाइटल: बी.श्रीदेवी बनाम आंध्र प्रदेश का राज्य

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    मध्यस्थ संस्था को संदर्भित करने के लिए मामले को मेंशन करना पर्याप्त; मध्यस्थ के नाम के लिए पार्टी की आवश्यकता नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने फैसला सुनाया कि एक पार्टी द्वारा जारी एक नोटिस, जिसमें कहा गया है कि मामला वास्तुकला परिषद को भेजा जाएगा, मध्यस्थता खंड के आह्वान के उद्देश्य के लिए पर्याप्त है, क्योंकि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 का अर्थ में वास्तुकला परिषद एक मध्यस्थ संस्था है।

    जस्टिस सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने कहा कि यह पर्याप्त है यदि मामले को मध्यस्थता के लिए संस्था को संदर्भित करने के लिए उल्लेख किया गया है और कोई विशेष आवश्यकता नहीं है कि एक पक्ष को मध्यस्थ का नाम देना चाहिए।

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    आरोपी को एससी/एसटी एक्ट 3 (2) (वी) के तहत बिना इस सबूत के दोषी नहीं ठहराया जा सकता कि पीड़ित की जाति के आधार पर अपराध हुआ : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत किए गए अपराध के लिए किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिए यह दिखाने के लिए सबूत होना चाहिए कि आरोपी ने इस आधार पर अपराध किया कि व्यक्ति/पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है।

    केस टाइटल- पिंटू गुप्ता बनाम यू.पी. राज्य [आपराधिक अपील संख्या - 2017 का 4083]

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    विभागीय कार्यवाही में निर्दोष पाया गया कर्मचारी पेंशन भुगतान में देरी पर ब्याज का हकदारः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में हरियाणा विद्युत प्रसार निगम लिमिटेड के पूर्व कर्मचारी को राहत दी, जो सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करने के बाद सेवानिवृत्त हो चुका था, लेकिन उसके पेंशन लाभ को प्रतिवादियों ने रोक दिया था। कोर्ट ने कहा, " ..... एक बार याचिकाकर्ता को निर्दोष पाया जाता है और प्रतिवादी-विभाग के कार्यों के कारण उसे पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है..वह ..विलंबित भुगतानों पर ब्याज अनुदान का हकदार हो जाता है, जो कानून के स्थापित सिद्धांत के अनुरूप है।"

    केस टाइटल: राम मेहर बनाम हरियाणा विद्युत प्रसार निगम लिमिटेड और अन्य।

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    यदि माता-पिता ने जमा नहीं किया हो तो अनुकंपा नियुक्त प्राप्त आदिवासी को जाति प्रमाण पत्र जरूर प्रस्तुत करना होगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने फैसला सुनाया है कि आरक्षित श्रेणी के पद के लिए अनुकंपा पर नियुक्त प्राप्त व्यक्ति को जाति वैधता प्रमाण पत्र जमा करने से छूट नहीं दी जाएगी, खासकर यदि पद के मूल धारक ने अपने जीवनकाल में जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया हो।

    चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस रविंद्र घुगे और जस्टिस विभा कंकनवाड़ी ने दो रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ताओं को जाति प्रमाण पत्र पेश करने से छूट देने के लिए ग्रामीण विकास विभाग को निर्देश देने की मांग की गई थी क्योंकि उनकी नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर हुई थी।

    केस टाइटल- ओम बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य और शीतल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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    आदेश 6 नियम 4 सीपीसी को लिखित बयान में संशोधन के लिए लागू नहीं किया जा सकता: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश VI नियम 4 के प्रावधानों के तहत दायर एक आवेदन को गलत बयानी, धोखाधड़ी या जानबूझकर चूक के आरोपों के विवरण के उदाहरण के लिए विशिष्ट होना चाहिए और इस प्रावधान को लिखित बयान में संशोधन तक बढ़ाया नहीं जा सकता है।

    केस टाइटल: गुलाम हसन खानयारी बनाम रेयाज अहमद भट और अन्य।

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    मुख्य सुर्खियां अस्पष्ट आधार पर अदालत निष्पादन से पहले निवारक निरोध आदेश में हस्तक्षेप कर सकती है : गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि यदि कोई आदेश अस्पष्ट और अप्रासंगिक आधारों पर पारित किया जाता है तो निवारक निरोध आदेशों को निष्पादन से पहले के चरण में यानी आरोपी व्यक्ति को हिरासत में लेने से पहले आदेश में हस्तक्षेप किया जा सकता है। याचिकाकर्ता ने वर्तमान आवेदन दायर किया है, क्योंकि उसे निषेध अधिनियम की धारा 65AE, 81 और 98 (2) के तहत दंडनीय अपराधों के लिए एफआईआर में असामाजिक गतिविधि की रोकथाम अधिनियम (Prevention of Anti-Social Activities Act (PASA अधिनियम)) के तहत हिरासत में लिया गया है। उसने चुनाव लड़ा कि उसकी कथित गतिविधि ने जनता के रखरखाव पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाला।

    केस टाइटल: अनिलसिंह लघुभा जडेजा बनाम गुजरात राज्य

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    परमादेश की रिट निजी गलतियों के खिलाफ उपचार नहीं, कोर्ट निजी निकाय के आंतरिक प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्‍ली हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि परमादेश की रिट निजी गड़बड़ियों के खिलाफ उपचार नहीं है, कहा कि इस तरह की रिट का दायरा निजी अथॉरिटी के खिलाफ है, जो इस प्रकार के सार्वजनिक कर्तव्य के प्रवर्तन तक सीमित एक सार्वजनिक कर्तव्य का पालन कर सकता है। चीफ ज‌स्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने यह भी कहा कि एक परमादेश की रिट में अदालत एक निजी निकाय के आंतरिक प्रबंधन में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है।

    टाइटल: प्रकाश सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।

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    आंसर की की शुद्धता पर संदेह की स्थिति में एग्जाम अथॉरिटी को लाभ दिया जाना चाहिए न कि उम्मीदवार को: त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हाल ही में परीक्षा नियंत्रक द्वारा दायर अपील की अनुमति देते हुए कहा कि आंसर की की शुद्धता पर संदेह की स्थिति में लाभ उम्मीदवार के बजाय एग्जाम अथॉरिटी को जाना चाहिए।

    चीफ जस्टिस इंद्रजीत महंती और जस्टिस एसजी चट्टोपाध्याय की खंडपीठ ने टिप्पणी की: "मौजूदा मामले में बहुविकल्पीय प्रश्नों में दिए गए विकल्पों में से कोई भी स्पष्ट रूप से गलत प्रतीत नहीं होता है। इस प्रकार, रण विजय सिंह और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य (2018) 2 एससीसी 357 (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय किया गया अनुपात हमारे द्वारा पालन किया जाना चाहिए, जहां सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि कोर्ट को मुख्य उत्तरों की शुद्धता को मान लेना चाहिए और संदेह की स्थिति में उस धारणा पर आगे बढ़कर लाभ उम्मीदवार के बजाय एग्जाम अथॉरिटी को जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: त्रिपुरा राज्य और अन्य। वी. श्रीमती संगीता चक्रवर्ती

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    अनुच्छेद 226 | रिट कोर्ट किसी पक्ष को राहत देने से सिर्फ इसलिए वंचित नहीं कर सकता कि उसने विशेष राहत की मांग नहीं की है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को रिट अपील की अनुमति देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग करने वाला न्यायालय केवल इस कारण से राहत देने से मना नहीं कर सकता है कि विशिष्ट राहत नहीं मांगी गई है।

    जस्टिस पी.बी. सुरेश कुमार और जस्टिस सी एस सुधा की खंडपीठ ने कहा, केवल इस कारण से कि रिट याचिका में विशिष्ट राहत की मांग नहीं की गई है, यह अदालत के लिए संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत शक्ति का प्रयोग करने के लिए राहत देने के लिए बाधा नहीं है, जिसका पक्ष हकदार है।

    केस टाइटल: स्मिता एमजी बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    पहली शादी का खुलासा किए बिना दूसरी शादी करके सेक्स के लिए सहमति प्राप्त करना प्रथम दृष्टया रेप: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने एक मराठी अभिनेत्री द्वारा दायर रेप केस में 'पति' को डिस्चार्ज करने से इनकार करते हुए कहा कि पहली शादी का खुलासा किए बिना दूसरी शादी करके सेक्स के लिए सहमति प्राप्त करना प्रथम दृष्टया रेप है। जस्टिस एनजे जमादार ने कहा कि प्रथम दृष्टया, दंड संहिता की धारा 375 का खंड चार जिसके तहत रेप के अपराध को परिभाषित किया गया है, वर्तमान मामले में आकर्षित होता है।

    केस टाइटल – सिद्धार्थ बंथिया बनाम महाराष्ट्र राज्य एंड अन्य।

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    यदि दावेदार धोखाधड़ी करता है तो मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण अपने ही आदेश वापस ले सकता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ( Motor Accident Claims Tribunal) के समक्ष मामले में दावेदार पक्षकार ट्रिब्यूनल के साथ धोखाधड़ी करता है तो ट्रिब्यूनल को अपना आदेश वापस लेने का अधिकार है, जिसके द्वारा उसने राहत दी थी।

    केस टाइटल: द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम ठाकोर कानाजी विराजी

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    कल्याणकारी राज्य में सरकार वादी के रूप में सामान्य व्यक्ति के समान मानदंडों के अधीन है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि कल्याणकारी राज्य में वादी के रूप में सरकार आमतौर पर उन्हीं मानदंडों द्वारा शासित होती है जो आम लोगों को नियंत्रित करते हैं।

    जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित और जस्टिस पी कृष्णा भट की खंडपीठ ने राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण, बेलगावी के उस आदेश का विरोध करते हुए समाज कल्याण विभाग के माध्यम से राज्य द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए उक्त अवलोकन किया। इस आदेश के तहत प्रतिवादी बसवराज यारदेमी को रसोई सहायक के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटल: स्टेट ऑफ कर्नाटक रेप बाई इट्स सेकेंडरी सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट और बसवराज बनाम याराडेमी और एएनआरआई

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    संज्ञेय अपराध का प्रथम दृष्टया मामला नहीं बना तो एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच आवश्यक: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट हाल ही में एक एफआईआर को रद्द करने की अनुमति दी क्योंकि एफआईआर में लगाए गए आरोपों की फेस वैल्यू या शिकायत निराधार थी और ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2014) में निर्धारित दिशानिर्देशों के आलोक में एफआईआर दर्ज करने से पहले कोई प्रारंभिक जांच नहीं की गई थी।

    केस टाइटल: जे कृष्णा किशोर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    आयुर्वेदिक डॉक्टर 62 वर्ष की आयु पूरी होने तक सेवा में बने रहने के हकदार: राजस्थान हाईकोर्ट

    राजस्थान हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों की तुलना में एलोपैथिक डॉक्टरों के लिए अलग-अलग उम्र की सेवानिवृत्ति को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के बैच की सुनवाई करते हुए कहा कि एलोपैथिक डॉक्टरों की तरह आयुर्वेदिक डॉक्टर 62 वर्ष की आयु पूरी होने तक सेवा में बने रहने के हकदार हैं।

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    धारा 164 सीआरपीसी के तहत दर्ज किए गए बयान ठोस सबूत नहीं, केवल पुष्टि के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के आरोपी एक व्यक्ति की दोषसिद्धि के आदेश को यह देखने के बाद रद्द कर दिया कि निचली अदालत को सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज गवाहों के बयान को चिकित्सा साक्ष्य के साथ पुष्टि करने में गुमराह किया गया था, जबकि वास्तव में सभी स्वतंत्र गवाह पक्षद्रोही हो गए थे।

    केस टाइटल: शिव बनाम राज्य पुलिस निरीक्षक के माध्यम से

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    चेक का अनादर | सामान्य खंड अधिनियम की धारा 27 के तहत शिकायतकर्ता के पक्ष में वैधानिक नोटिस की तामील का अनुमान: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि सामान्य खंड अधिनियम की धारा 27 के आलोक में चेक ‌डिसऑनर मामले में अभियुक्तों को नोटिस तामील करने से इनकार नहीं किया जा सकता है, जो शिकायतकर्ता के पक्ष में एक अनुमान प्रदान करता है कि नोटिस दिया गया था।

    ज‌स्टिस जसजीत सिंह बेदी की पीठ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, लुधियाना द्वारा पारित फैसले के खिलाफ याचिकाकर्ता की अपील को खारिज करने और न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा दोषसिद्धि के फैसले को बरकरार रखने के खिलाफ एक पुनरीक्षण याचिका पर विचार कर रही थी।

    केस टाइटल: अनिल धीर और अन्‍य बनाम पंजाब राज्य और दूसरा

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    जेजे एक्ट | किशोर न्याय बोर्ड द्वारा धारा 15 के तहत जांच धारा 12 के तहत जमानत देने और विचार से पहले अनिवार्य नहीं: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किशोर न्याय देखभाल और संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत जमानत याचिका पर विचार करते समय जेजे बोर्ड द्वारा सामाजिक जांच रिपोर्ट पर पूर्व विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि विधान मंडल का कभी ऐसा इरादा नहीं था।

    जस्टिस एमए चौधरी की पीठ ने कहा, "कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे का प्राथमिक मूल्यांकन ट्रायल के आगे के उद्देश्य के लिए है, यानी कि क्या उस पर किशोर न्याय बोर्ड या बाल न्यायालय द्वारा मुकदमा चलाया जाना चाहिए। यह जेजे अधिनियम, 2015 की धारा 12 के तहत दायर आवेदन पर विचार करने के लिए किशोर न्याय बोर्ड की शक्ति को कम नहीं करेगा।"

    केस टाइटल: जुबैर अहमद तेली बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर।

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    बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी व्यक्ति को देश के किसी हिस्से या वहां लोगों की स्थिति पर सवाल उठाने की अनुमति नहीं देती है: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू- कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को इस सीमा तक नहीं बढ़ाया जा सकता है कि किसी व्यक्ति को कश्मीर को सेना का कब्जा कहने या यह कहने की अनुमति दी जाए कि कश्मीर के लोगों को गुलामों के रूप में रखा जा रहा है।

    केस टाइटल: मुज़मिल बट बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

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    एमएसएमईडी अधिनियम की धारा 15 और 16 अनिवार्य प्रावधान, मध्यस्थ को चक्रवृद्धि ब्याज न देने का कारण बताना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश की पुष्टि की है, जिसके द्वारा उसने धारा 15 और 16 के संदर्भ में ब्याज नहीं देने के लिए एक मध्यस्थ निर्णय को रद्द कर दिया था, जो कि एमएसएमईडी अधिनियम के अनिवार्य प्रावधान हैं।

    जस्टिस विभु बाखरू और जस्टिस अमित महाजन की पीठ ने कहा कि एक बार जब मध्यस्थ ने यह माना है कि एमएसएमईडी अधिनियम पक्षों के बीच विवाद पर लागू होता है, तो उसे अधिनियम की धारा 15 और 16 के संदर्भ में ब्याज नहीं देने के कारण बताए जाने चाहिए।

    केस टाइटल: भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड बनाम भाटिया इंजीनियरिंग कंपनी, FAO(COMM) 117 of 2021

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    वैधानिक उपचारों का इस्तेमाल किए बिना निजी सिविल विवादों को निपटाने के लिए अनुच्छेद 226 का इस्तेमाल "हाथ मरोड़ने" के लिए नहीं किया जा सकता: त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक व्यक्ति द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज कर दिया, जिसे उसने वैकल्पिक उपायों को समाप्त किए बिना दायर किया था। कोर्ट ने कहा कि वे उत्तरदाताओं की बांह मरोड़ने के लिए अनुच्छेद 226 रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

    केस टाइटल : श्री सुब्रत साहा और अन्य बनाम नगर आयुक्त और अन्य

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    POSH Act की धारा 18 के तहत अपील दायर करने में देरी को लिमिटेशन एक्ट की धारा 5 के तहत माफ किया जा सकता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act/SHW Act) के तहत जांच रिपोर्ट के खिलाफ अपील दायर करने में पीड़िता की देरी को माफ किया जा सकता है, यदि इस तरह की देरी को सही तरह से समझाया गया है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने आगे कहा कि सीमा अधिनियम की धारा 5 (जो कुछ मामलों में निर्धारित अवधि के विस्तार का प्रावधान करती है) उन अपीलों के संबंध में लागू होगी जिन्हें कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम के धारा 18 के तहत प्राथमिकता दी जा सकती है।

    केस टाइटल: डीबी कॉर्प लिमिटेड बनाम शैलजा नकवी और अन्य।

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    मृतक कर्मचारी के आश्रित को अनुकंपा नियुक्ति की पेशकश एक रियायत है, अधिकार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया है कि मृतक कर्मचारी के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति केवल रियायत है और अधिकार नहीं है। जस्टिस चंद्रधारी सिंह की सिंगल जज बेंच ने कहा, "अनुकम्पा के आधार पर रोजगार देने के पीछे पूरा उद्देश्य परिवार को अचानक संकट से उबरने में सक्षम बनाना है। मृतक कर्मचारी के आश्रित को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति उक्त नियम का अपवाद है। यह एक रियायत है और अधिकार नहीं है।"

    केस टाइटल: मंजू देवी बनाम हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड

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    खुले स्‍थान/दूसरों को दिखने वाले स्‍थान से आपत्तिजनक वस्तु की बरामदगी से साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के साक्ष्य का उल्लंघन होता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि जब किसी आपत्तिजनक वस्तु की बरामदगी ऐसी जगह से की जाती है, जो खुली हरे या दूसरों को दिखाई देती हो तो यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत साक्ष्य को खराब करता है।

    केस टाइटल- रामवृक्ष बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

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    किसी विशेष समुदाय में पैदा हुए व्यक्ति को केवल उसकी मां/पत्नी दूसरे समुदाय से होने के कारण जाति प्रमाण पत्र से वंचित नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने मंगलवार को कहा कि किसी विशेष समुदाय में पैदा हुए व्यक्ति को केवल उसके निवास में बदलाव के कारण या उसकी मां और पत्नी दूसरे समुदाय से होने के कारण जाति प्रमाण पत्र से वंचित नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस वीजी अरुण ने कहा कि किसी व्यक्ति की सामुदायिक स्थिति का निर्धारण करने के लिए, उस जाति के बारे में जांच की जानी चाहिए जिसमें आवेदक का जन्म हुआ है और उसका पालन-पोषण कैसे हुआ और केवल यह तथ्य कि उसने निवास बदल लिया या दूसरी जाति के व्यक्ति से शादी कर ली, ये कारकों का निर्धारण नहीं हैं।

    केस टाइटल: आर कार्तिक बनाम केरल राज्य एंड अन्य।

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    एनआई अधिनियम के तहत छोटे अपराधों के लिए दोषी व्यक्ति के पैरोल आवेदन पर "उदारता" से विचार किया जाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने बेंगलुरू के केंद्रीय कारागार के जेल अधीक्षक को नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के तहत दोषी ठहराए गए आरोपी द्वारा दायर पैरोल आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया है। आवेदक ने विवादित राशि का 50% सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में जमा करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इस राशि की व्यवस्था करने के लिए पैरोल की मांग की है। दोषसिद्धि के विरुद्ध आरोपी की अपील सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है।

    केस टाइटल: बी एम मुनिराजू बनाम जेल अधीक्षक

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    एनसीटीई एक्ट। कारण बताओ नोटिस की तामील एक संस्थान के लिए महत्वपूर्ण; यह उन्हें कथित कमियों के लिए अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करता है : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि कारण बताओ नोटिस की तामील एक संस्थान के लिए एक महत्वपूर्ण संचार है क्योंकि यह उन्हें कथित कमियों के लिए अपना पक्ष रखने का अवसर प्रदान करता है, जिसके विफल होने पर प्रतिकूल परिणाम का पालन करना होगा। जस्टिस संजीव नरूला ने कहा, "यह अवसर उन संस्थानों के लिए महत्वपूर्ण है जिनकी मान्यता और संचालन दांव पर है।"

    केस: एरीन इंस्टिट्यूट ऑफ़ एजुकेशन बनाम नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन और अन्य।

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    आरटीआई अधिनियम की धारा 11 | सार्वजनिक रोजगार में प्राथमिकता चाहने वाले व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत अंतर-जातीय विवाह प्रमाण पत्र में व्यक्तिगत जानकारी होती है, नोटिस अनिवार्य: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल में दोहराया कि तीसरे पक्षकार के निजता के अधिकार के तहत ली जाने वाली जानकारी आरटीआई आवेदनों के माध्यम से उन्हें नोटिस दिए बिना नहीं मांगी जा सकती।

    जस्टिस आनंद वेंकटेश उस याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें तमिलनाडु सूचना आयोग को उन व्यक्तियों के संबंध में विवरण प्रदान करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है जिन्होंने अंतरजातीय विवाह की विशेष श्रेणी के तहत जिला रोजगार कार्यालय में अपना रजिस्ट्रेशन कराया है और ऐसे व्यक्तियों द्वारा प्रदान किए गए प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने के लिए कहा है।

    केस टाइटल: पी.अधवन सेरल बनाम तमिलनाडु सूचना आयोग और अन्य

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    एनटीपीसी लॉ ऑफिसर का चयन करने के लिए CLAT PG टेस्ट रैंकिंग का उपयोग किया जा सकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को माना कि नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी) में असिस्टेंट लॉ ऑफिसर के पद पर आवेदन करने के लिए आवेदकों को CLAT PG टेस्ट पास करने की लिए अनिवार्य शर्त वैध है।

    जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सी.पी. की खंडपीठ ने इस प्रकार एकल न्यायाधीश के निर्णय के खिलाफ एनटीपीसी द्वारा दायर अपील की अनुमति दी। खंडपीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन है। तदनुसार, एकल न्यायाधीश के निर्णय को रद्द किया गया।

    केस टाइटल: एनटीपीसी बनाम ऐश्वर्या मोहन

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    एनडीपीएस अधिनियम | प्रतिबंधित पदार्थों की सैंपलिंग के दौरान स्थायी आदेशों का उल्लंघन अभियोजन के खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष पैदा करता है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत नमूना चयन और जब्ती के संबंध में स्थायी आदेशों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है और स्थायी आदेशों के पर्याप्त अनुपालन के अभाव में अभियोजन पक्ष के खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकालना ही पड़ेगा।

    केस टाइटल : बाबा सो चांडेकर और अन्य बनाम तेलंगाना सरकार

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