आत्महत्या के लिए उकसाना | कार्यस्थल पर बिना किसी विशिष्ट कृत्य केवल दबाव बनाने का आरोप आईपीसी की धारा 306 को आकर्षित नहीं करेगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

29 July 2022 6:10 AM GMT

  • आत्महत्या के लिए उकसाना | कार्यस्थल पर बिना किसी विशिष्ट कृत्य केवल दबाव बनाने का आरोप आईपीसी की धारा 306 को आकर्षित नहीं करेगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आरोपी को अग्रिम जमानत दे दी।

    जस्टिस सुब्बा रेड्डी सत्ती ने जियो वर्गीस बनाम राजस्थान राज्य (2021) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए दोहराया कि बिना किसी सकारात्मक कार्य के केवल दबाव या उत्पीड़न का आरोप आईपीसी की धारा 306 की सामग्री को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

    मामले के संक्षिप्त तथ्य

    अभियोजन का मामला यह है कि मृतक की पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसका पति यानी मृतक नौ साल से प्राथमिक कृषि सहकारी समिति में लिपिक के रूप में काम करता था। यह आरोप लगाया गया कि चूंकि लोन वसूली में देरी हो रही थी, उसके उच्च अधिकारी उसके पति पर लोन वसूली के लिए दबाव बना रहे थे। आरोप है कि आरोपी के दबाव के चलते मृतक ने आत्महत्या कर ली। उक्त शिकायत के आधार पर अपराध दर्ज किया गया। मामले में याचिकाकर्ता आरोपी नंबर तीन है।

    याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि उसे गलत धारणा के साथ अपराध में फंसाया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि घटना की कथित तारीख पर याचिकाकर्ता और सोसायटी के अन्य अधिकारी सोसायटी द्वारा आयोजित ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए असाइनमेंट टूर पर थे। साथ ही आत्महत्या के लिए उकसाने के संबंध में याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई भी ठोस सबूत नहीं है। इसके अलावा, वह सीईओ हैं और प्रक्रिया के अनुसार, सीईओ को लोन रिकवरी के संबंध में निर्देश देने के लिए अध्यक्ष जिम्मेदार है। मृतक के साथ उसका कोई सीधा संपर्क नहीं है. जो सोसायटी का सचिव है।

    न्यायालय का विश्लेषण

    जस्टिस सुब्बा रेड्डी सत्ती ने जियो वर्गीस (सुप्रा) पर भरोसा किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल उत्पीड़न का आरोप आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध को आकर्षित नहीं करेगा जब तक कि इस तरह की कार्रवाई पीड़ित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर न करे।

    उन्होंने कहा,

    "भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए कथित रूप से उकसाने के लिए क्या आवश्यक है कि आत्महत्या के अपराध के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कार्य का आरोप होना चाहिए। जब तक आरोपी की ओर से आत्महत्या के लिए मजबूर करने की कार्रवाई का आरोप न हो तब तक यह अपने आप में पर्याप्त है।"

    एक अन्य मामले में एम. मोहन बनाम तमिलनाडु राज्य (2011) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा किया गया कि आईपीसी की धारा 306 में मृतक को आत्महत्या करने के लिए उकसाने में सकारात्मक कार्य शामिल है।

    कोर्ट ने कहा,

    "केवल उत्पीड़न के आरोप पर बिना किसी सकारात्मक कार्रवाई के आरोपी की ओर से घटना के समय के करीब, जिसने व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए प्रेरित किया या मजबूर किया, आईपीसी की धारा 306 के संदर्भ में दोषसिद्धि टिकाऊ नहीं है।"

    अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में शिकायत के आधार पर याचिकाकर्ता द्वारा कोई उकसावे की बात नहीं की गई, जिसके कारण मृतक ने आत्महत्या की। इसलिए आईपीसी की धारा 306 के तहत मामला नहीं बनेगा।

    तदनुसार, याचिकाकर्ता को जमानत देने की अनुमति दी गई।

    याचिकाकर्ता के वकील - ओ कैलाशनाथ रेड्डी,

    प्रतिवादी के लिए वकील- सरकारी सहायक लोक अभियोजक सूरा वेंकट साईनाथ

    केस टाइटल: बी.श्रीदेवी बनाम आंध्र प्रदेश का राज्य

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