यदि माता-पिता ने जमा नहीं किया हो तो अनुकंपा नियुक्त प्राप्त आदिवासी को जाति प्रमाण पत्र जरूर प्रस्तुत करना होगा: बॉम्बे हाईकोर्ट

Avanish Pathak

28 July 2022 11:14 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट, मुंबई

    बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने फैसला सुनाया है कि आरक्षित श्रेणी के पद के लिए अनुकंपा पर नियुक्त प्राप्त व्यक्ति को जाति वैधता प्रमाण पत्र जमा करने से छूट नहीं दी जाएगी, खासकर यदि पद के मूल धारक ने अपने जीवनकाल में जाति प्रमाण पत्र प्रस्तुत नहीं किया हो।

    चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस रविंद्र घुगे और जस्टिस विभा कंकनवाड़ी ने दो रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ताओं को जाति प्रमाण पत्र पेश करने से छूट देने के लिए ग्रामीण विकास विभाग को निर्देश देने की मांग की गई थी क्योंकि उनकी नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर हुई थी।

    जस्टिस घुगे द्वारा लिखे गए एक निर्णय ने निम्नलिखित प्रश्न का सकारात्मक उत्तर दिया-

    "क्या अनुकंपा पर नियुक्त व्यक्ति को जाति/जनजाति वैधता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है, जब माता-पिता ने जाति/जनजाति प्रमाण पत्र के आधार पर एक पद पर रोजगार पाया हो, जो विशेष रूप से पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित था और जिन्होंने सेवा में रहते हुए अपनी मृत्यु तक वैधता प्रमाण पत्र जमा नहीं किया था?"

    चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता ने फैसले से सहमति व्यक्त की, उन्होंने एक अलग नोट में जोड़ा कि हमारे देश में बेईमान लाभ और विशेषाधिकार पाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं...।

    याचिकाकर्ताओं को उनके पिताओं की मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर नियुक्त किया गया था। पिता अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पदों पर नियुक्त थे। हालांकि, उन्होंने अपनी नियुक्तियों के दौरान आदिवासी वैधता प्रमाण पत्र जमा नहीं किया था। नांदेड़ जिला परिषद ने याचिकाकर्ताओं को अनुकंपा के आधार पर इस शर्त के साथ नियुक्त किया कि उन्हें नियुक्ति के छह महीने के भीतर अपना जनजातीय वैधता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा। याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी।

    अदालत की सहायता कर रहे एडवोकेट महेश एस देशमुख ने कहा कि आरक्षित श्रेणी के पद पर नियुक्त व्यक्ति को वैधता प्रमाण पत्र जमा करना होता है। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो उसका कानूनी उत्तराधिकारी जो उसकी मृत्यु के बाद अनुकंपा के आधार पर रोजगार प्राप्त करता है, उसे अपना वैधता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा।

    याचिकाकर्ता के वकील सी आर थोराट ने विभिन्न निर्णयों का हवाला दिया और तर्क दिया कि पिता की नियुक्ति आरक्षित श्रेणी के पदों पर की गई थी, जबकि आरक्षित श्रेणी के पदों पर याचिकाकर्ताओं की अनुकंपा नियुक्ति नहीं की गई थी।

    अदालत ने प्रस्तुतियां और विभिन्न मिसालों का विश्लेषण किया और निष्कर्ष निकाला कि किसी अन्य अदालत ने इस मामले में कानून के सवाल से निपटा नहीं है। जस्टिस रवींद्र घुगे ने योग्यता की कमी के कारण याचिकाओं को खारिज करते हुए फैसला सुनाया।

    जस्टिस घुगे ने अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, भारतीय खाद्य निगम और अन्य बनाम जगदीश बलराम बहिरा और अन्य पर भरोसा किया और निष्कर्ष निकाला, "सुशासन यह अनिवार्य करेगा कि एक अनुकंपा नियुक्त व्यक्ति जो केवल अपने पिता की नियुक्ति के आधार पर पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित पद पर नियुक्ति के आधार पर रोजगार में प्रवेश प्राप्त करता है, उसे अपना वैधता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करना होगा"।

    उन्होंने तैयार किए गए मुद्दे का सकारात्मक उत्तर दिया और कहा, "मृत कर्मचारी द्वारा कब्जा किया गया आरक्षित श्रेणी का पद कर्मचारी की मृत्यु के बाद एक खुली श्रेणी के पद में परिवर्तित नहीं किया जाएगा।"

    केस नंबर-Writ Petition No. 6750 of 2022 and Writ Petition No. 6771 of 2022

    केस टाइटल- ओम बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य और शीतल बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

    निर्णय पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

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