हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

4 Sep 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (29 अगस्त, 2022 से 2 सितंबर, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    निवारक निरोध आदेश के खिलाफ बंदी के प्रतिनिधित्व पर विचार न करना संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत दिए गए अधिकारों का उल्लंघन: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि निवारक निरोध आदेश के खिलाफ एक बंदी के प्रतिनिधित्व हिरासतकर्ता प्राधिकारी द्वारा विचार नहीं करना, संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत ऐसे बंदी के अधिकारों का उल्लंघन है।

    जस्टिस संजीव कुमार ने कहा, "मेरा सुविचारित मत है कि निरोध का आक्षेपित आदेश कानून की नजर में टिकाऊ नहीं है, इसमें उसकी मां द्वारा उसकी ओर से किए गए अभ्यावेदन पर प्रतिवादियों द्वारा विचार नहीं किया गया है। प्रतिवेदन करने के लिए हिरासत में लिए गए व्यक्ति का अधिकार और सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस पर विचार करना संविधान के अनुच्छेद 22 के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को दी गई मौलिक अधिकार की गारंटी है और इस तरह के अधिकार का उल्लंघन नजरबंदी को अवैध और असंवैधानिक बना देता है।"

    केस टाइटल: एजाज अहमद सोफी बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और अन्य

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    धारा 319 सीआरपीसी | जांच या परीक्षण के दरमियान अदालत द्वारा एकत्र की गई सामग्री का ही उपयोग अतिरिक्त आरोपी को दोषारोपित करने के लिए किया जा सकता है: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि जांच या परीक्षण के दरमियान अदालत द्वारा एकत्र की गई सामग्री का उपयोग ही केवल धारा 319 सीआरपीसी के तहत अतिरिक्त आरोपी के दोषारोपण के लिए किया जा सकता है, न कि मामले की जांच के दरमियान जांच एजेंसी द्वारा एकत्र की गई सामग्री का उपयोग...।

    जस्टिस संजय धर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके संदर्भ में मेसर्स जेके स्टेशनर्स ने विशेष न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत आरोप पत्र में धारा 5 (1) (डी) सहपठित जम्मू-कश्मीर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 5(2) और रणबीर दंड संहिता की धारा 120-बी, 201 और 204 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था।

    केस टाइटल: मैसर्स जेके स्टेशनर्स बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

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    [मेडिकल लापरवाही] मेडिकल पेशेवरों के खिलाफ आपराधिक कानून लागू करने से पहले विशेषज्ञ की राय लेना आवश्यक: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को फैसला सुनाया कि आपराधिक लापरवाही के अपराध के लिए मेडिकल पेशेवरों पर मुकदमा चलाने से पहले आपराधिक अदालत को मेडिकल एक्सपर्ट की राय लेनी चाहिए। यदि इस तरह की राय से मेडिकल पेशेवर के खिलाफ आपराधिक लापरवाही का प्रथम दृष्टया मामला बनता है तो तभी आपराधिक कानून की मशीनरी को चालू किया जाना चाहिए।

    जस्टिस संजय धर की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके माध्यम से याचिकाकर्ता ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पुलवामा द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी। इसमें एसएचओ, पी/एस, पुलवामा को एफआईआर दर्ज करने और मामले की जांच करने का निर्देश जारी किया गया। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पूर्वोक्त निर्देश के अनुसार पी/एस पुलवामा के साथ दर्ज की गई आरसीपी की धारा 304-ए के तहत अपराध के लिए दर्ज एफआईआर को भी चुनौती दी गई।

    केस टाइटल: फारूक अहमद भट बनाम सैयद बशारत सलीम

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    अनुच्छेद 30 | अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त संस्थान अल्पसंख्यक समुदाय से योग्य प्रिंसिपल की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र, अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का प्रबंधन "अल्पसंख्यक समुदाय" के योग्य व्यक्ति को उस संस्थान का नेतृत्व करने के लिए या तो वाइस प्रिंसिपल या प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त करने का "सचेत विकल्प" बनाता है तो अदालत इसमें हस्तेक्षप नहीं कर सकती।

    यह कहते हुए कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अधिकार इस संबंध में पूर्ण है, जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने आगे कहा: "प्रत्येक भाषाई अल्पसंख्यक की अपनी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सीमाएं हो सकती हैं। उसे ऐसी संस्कृति और भाषा के संरक्षण का संवैधानिक अधिकार है। इस प्रकार, उसे शिक्षकों को चुनने का भी अधिकार होगा, जिनके पास पात्रता और योग्यता है, जैसा कि उनके उनके धर्म और समुदाय के तथ्य से प्रभावित हुए बिना वास्तव में प्रदान किया गया है। वही स्कूल प्रबंधन द्वारा परिभाषित प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: बीरपाल सिंह बनाम नूतन मराठी सीनियर सेकेंडरी स्कूल और अन्य

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    [पॉक्सो एक्ट] पीड़िता की जन्मतिथि साबित करने के लिए स्कूल की प्रधानाध्यापिका द्वारा जारी प्रमाणपत्र पर्याप्त नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने अपनी बेटी के साथ बार-बार बलात्कार (Rape Case) करने वाले पिता की पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) के तहत दोषसिद्धि को खारिज करते हुए कहा कि स्कूल की प्रधानाध्यापिका द्वारा जारी किए गए प्रमाण पत्र को पीड़ित उम्र स्थापित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं माना जा सकता है।

    जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस सी. जयचंद्रन की खंडपीठ ने इस प्रकार कहा, "स्कूल में रखा गया रजिस्टर एक सार्वजनिक दस्तावेज नहीं है और प्रधानाध्यापक द्वारा जारी प्रमाण पत्र को द्वितीयक साक्ष्य नहीं माना जा सकता है। इसलिए हम पाते हैं कि अभियोजन द्वारा स्थापित उम्र का कोई प्रमाण नहीं है।"

    केस टाइटल: शाजू @ शाजू बनाम केरल राज्य एंड अन्य।

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    केवल फेसबुक तस्वीरें व्यक्तिगत मित्रता नहीं दिखाती हैं, 'रिश्ते की डिग्री' पूर्वाग्रह की आशंका की तर्कसंगतता निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि जहां चयन प्रक्रिया में 'पूर्वाग्रह' की उचित संभावना रिश्ते के आधार पर आरोपित की जाती है, पार्टियों के बीच संबंधों की निकटता की डिग्री 'इतनी अधिक' होनी चाहिए कि वे पूर्वाग्रह की एक उचित आशंका दे सकें।

    जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और ज‌स्टिस सीएस सुधा ने ऐसा अवलोकन करते हुए कहा कि वर्तमान मामले में, चयनित उम्मीदवार (9वें प्रतिवादी) और चयन समिति के सदस्य (8वें प्रतिवादी) के बीच एक मात्र संबंध पूर्वाग्रह मानने के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

    केस टाइटल: प्रबंधक, मलंकारा सीरियाई कैथोलिक कॉलेज और अन्य बनाम डॉ रेशमी पीआर और अन्य और अन्य जुड़े मामले

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    ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट की धारा 27 (डी) के तहत निर्धारित न्यूनतम सजा को कम किया जा सकता है, यदि आरोपी याचिका में बारगेन करता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 27 (डी) के तहत निर्धारित न्यूनतम सजा से कम सजा देने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है, यह देखते हुए कि आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 265-बी के तहत एक दलील दी थी और उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। इसने राज्य सरकार द्वारा सजा बढ़ाने की मांग वाली एक अपील को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम एसबी शिवशंकर

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    धारा 147 एमवी एक्ट| 1994 के संशोधन से पहले माल वाहन में यात्रा करने वाले व्यक्ति को मुआवजा देने के लिए बीमा कंपनी उत्तरदायी नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 147 के तहत बीमा कंपनी पर दायित्व नहीं लगाया जा सकता है यदि दुर्घटना पीड़ित माल वाहन में यात्रा कर रहा था और ऐसी दुर्घटना 1994 के संशोधन अधिनियम से पहले हुई थी।

    जस्टिस हेमंत प्राचक ने समझाया, "...मौजूदा अपीलकर्ता बीमा कंपनी उस पर लगाए गए दायित्व से मुक्त है क्योंकि मृतक माल वाहन में यात्रा कर रहा था और यह स्पष्ट रूप से पॉलिसी का उल्लंघन है और इसलिए, बीमा कंपनी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जाता है ... माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित अनुपात को ध्यान में रखते हुए और इस तथ्य पर विचार करते हुए कि दुर्घटना की तारीख 9.1.1994 की है यानी मोटर वाहन अधिनियम की धारा 147 में संशोधन की तारीख से पहले जो नवंबर 1994 में लागू हुई है और इसलिए, वर्तमान अपील की अनुमति दी जानी चाहिए।"

    केस टाइटल: ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम मेरामन दाना हरिजन और 6 अन्य

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    एनडीपीएस एक्ट| निजी वाहन के विपरीत सार्वजनिक परिवहन के मामले में "सचेत कब्जे" का मानक अलग: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 20 और 22 में निहित प्रावधानों में प्रयुक्त अभिव्यक्ति "कब्जा" (Possession) स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करती है कि सार्वजनिक परिवहन के मामले में सचेत कब्जे का मानक अलग होगा, यह निजी वाहन के से अलग होगा, जिसमें कुछ लोग एक दूसरे को जानते हों।

    जस्टिस संजय धर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 439 के तहत न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल किया, और थाना यारीपोरा में एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/20, 8/22 और 29 के तहत दर्ज एफआईआर के मामले में जमानत की मांग करते की थी।

    केस टाइटल: वकार अहमद डार बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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    बी.एड. ग्रेजुएशन की "बैचलर डिग्री" नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि बी.एड. डिग्री यानी बैचलर ऑफ एजुकेशन ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं है, क्योंकि उक्त कोर्स उदाहरण के तौर पर तीन-वर्षीय एलएलबी कोर्स, आर्ट या साइंस की किसी भी ब्रांच में ग्रेजुएशन होने के बाद ही पढ़ा जा सकता है। कोर्ट ने माना कि बी.एड. डिग्री ग्रेजुएशन की न्यूनतम निर्धारित योग्यता वाले पदों के लिए ओवर-क्वालिफाइड हैं। इस प्रकार, अधिक योग्यता रखने के लिए उनकी उम्मीदवारी को अस्वीकार करना कानून में गलत नहीं माना जा सकता।

    केस टाइटल: बृजेशकुमार दशरथलाल पटेल बनाम अध्यक्ष और 31 अन्य

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    बचाव पक्ष के वकील को क्रॉस एग्जामिनेशन के दौरान "पूरी तरह सजग" रहना चाहिए, सीआरपीसी की धारा 311 "दोष ठीक करने" के लिए नहीं है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 311 गवाहों को वापस बुलाने का प्रावधान करती है, लेकिन इसका मतलब बचाव में "दोष ठीक करना" नहीं है। इस प्रकार, बचाव पक्ष के वकील को क्रॉस-एग्जामिनेशन के दौरान "पूरी तरह से सजग" रहना चाहिए। यह टिप्पणी अभियोजन पक्ष के दो गवाहों को अतिरिक्त जिरह के लिए वापस बुलाने की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए की गई।

    केस टाइटल: रमन कुमार बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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    सिविल सेवा विनियमों के नियम 351-ए के तहत वसूली का आदेश केवल तभी दिया जा सकता है जब सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सरकार को उसकी पेंशन से वसूली का आदेश देने के लिए सिविल सेवा विनियम के नियम 351-ए के तहत अधिकार प्राप्त है, हालांकि, ऐसा तभी किया जा सकता है जब यह स्थापित हो कि सरकार को कुछ वित्तीय नुकसान हुआ है।

    इसी के साथ जस्टिस आलोक माथुर की पीठ ने याचिकाकर्ता (सेवानिवृत्त कार्यपालक अभियंता) को दोषी ठहराने और तीन साल की अवधि के लिए उसकी पेंशन से पांच प्रतिशत की कटौती की सजा देने के उत्तर प्रदेश सरकार का एक आदेश रद्द कर दिया।

    केस का शीर्षक - एकलव्य कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (अपर मुख्य सचिव/प्रधान सचिव पी.डब्ल्यू.डी. के माध्यम से) और अन्य।

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    [सीआरपीसी की धारा 172(3)] आरोपी को केस डायरी एक्सेस करने का कोई अधिकार नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा कि एक आरोपी को 'केस डायरी' एक्सेस करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 172 (3) के तहत सख्त प्रतिबंध है। जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश खंडपीठ ने कहा, "इसलिए मामले को सभी संबंधितों द्वारा न केवल संबंधित अदालतों द्वारा बल्कि न्यायालय उप-निरीक्षक और संबंधित जांच अधिकारी के कार्यालय द्वारा भी पूरी गंभीरता से देखे जाने की आवश्यकता है, जिनकी हिरासत में केस डायरी रखी जानी चाहिए। जबकि दंड प्रक्रिया संहिता में प्रावधान है कि आरोपी निष्पक्ष सुनवाई का हकदार है, इसका मतलब यह नहीं है कि आरोपी को संहिता के प्रावधानों के विपरीत अनुचित लाभ दिया जा सकता है।"

    केस टाइटल: शक्ति सिंह बनाम ओडिशा राज्य

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    सेशन कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि के खिलाफ अपील हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच के समक्ष होगी, अगर लगातार कारावास की सजा 10 साल से अधिक : जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सेशन कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि के खिलाफ अपील हाईकोर्ट की एक डिवीजन बेंच के समक्ष होगी, जहां कारावास की सजा 10 वर्ष से अधिक है। हालांकि, अपील की सुनवाई और फैसला एकल न्यायाधीश द्वारा किया जाएगा, यदि सजा 10 वर्ष से कम है।

    जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और जस्टिस मो अकरम चौधरी की बेंच ने आगे यह स्पष्ट किया कि जहां कई अपराधों के लिए एक ही फैसले में दी गई सजा को लगातार काटना है, जैसे कि यह कुल मिलाकर 10 साल की कैद से अधिक है, अपील एक डिवीजन बेंच के समक्ष होगी।

    केस: मुश्ताक अहमद पीर बनाम जम्मू और कश्मीर राज्य

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    [जन प्रतिनिधित्व अधिनियम] धारा 127A गैर-संज्ञेय अपराध निर्धारित करता है, पुलिस जांच के लिए मजिस्ट्रेट की अनुमति अनिवार्य: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 127-ए (पैम्फलेट, पोस्टर आदि की छपाई पर प्रतिबंध) के तहत अपराध एक गैर-संज्ञेय अपराध है और इसलिए, पुलिस जांच की अनुमति सीआरपीसी की धारा 155 के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा दी जानी चाहिए।

    जस्टिस एस. सुनील दत्त यादव की एकल पीठ ने महंतेश कौजालगी नाम के व्यक्ति की याचिका को स्वीकार कर लिया और अधिनियम की धारा 127-ए के तहत उसके खिलाफ दायर आरोपपत्र को खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: महंतेश कौजलागी बनाम कर्नाटक राज्य

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    सीआरपीसी की धारा 311 | मुकदमे में किसी भी पक्ष को गलतियां ठीक करने से रोका नहीं जा सकता, अभियोजन में गलती का लाभ अभियुक्त को जाना चाहिए: त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट (Tripura High Court) ने हाल ही में देखा कि न्यायालय सीआरपीसी की धारा 311 के तहत आरोपी द्वारा दायर आवेदन की अनुमति दे सकता है और न्याय के उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसी भी गवाह को फिर से बुलाने की अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकता है।

    जस्टिस अमरनाथ गौड़ ने कहा: "अभियोजन में कमी को अभियोजन मामले के मैट्रिक्स में निहित कमजोरी या गुप्त कील के रूप में समझा जाना चाहिए। इसका लाभ आम तौर पर मामले की सुनवाई में अभियुक्तों को जाना चाहिए, लेकिन पीड़ित पक्ष के प्रबंधन में दृष्टि इसे अपूरणीय कमी के रूप में नहीं माना जा सकता है। मुकदमे में किसी भी पक्ष को त्रुटियों को सुधारने से रोका नहीं जा सकता, यदि उचित सबूत नहीं जोड़ा गया या किसी भी साहसिक कार्य के कारण प्रासंगिक सामग्री रिकॉर्ड में नहीं लाई गई तो अदालत को ऐसी गलतियों की अनुमति देने में उदार होना चाहिए और उसमें सुधार किया जाना चाहिए।"

    केस टाइटल: त्रिपुरा राज्य बनाम सुमित बानिक और अन्य।

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    आरोप पत्र दाखिल करने में जांच एजेंसी की ओर से देरी सीआरपीसी की धारा 468 को आकर्षित नहीं करती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आरोप पत्र दाखिल करने में जांच एजेंसी की ओर से देरी सीआरपीसी की धारा 468 को आकर्षित नहीं करती, जो परिसीमा की अवधि समाप्त होने के बाद संज्ञान लेने पर रोक लगाती है। जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने कहा कि अगर एफआईआर में की गई जांच में देरी को सीआरपीसी की धारा 468(2) के दायरे में माना जाता है तो संहिता की धारा 173 का जनादेश खतरे में पड़ जाएगा।

    केस टाइटल: सुखपाल सिंह खैरा बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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    प्रथम दृष्टया राज्य सरकार जहरीली शराब के कारण मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि राज्य सरकार जहरीली शराब पीने से मरने वाले व्यक्तियों के परिजनों को मुआवजा देने के लिए प्रथम दृष्टया उत्तरदायी है क्योंकि राज्य के पास शराब के निर्माण और बिक्री पर पूर्ण नियंत्रण और विनियमन है।

    जस्टिस सूर्य प्रकाश केसरवानी और जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि यू.पी. आबकारी अधिनियम, 1910 और बनाए गए नियम, राज्य सरकार के पास शराब के निर्माण और बिक्री पर पूर्ण नियंत्रण और विनियमन है, और इस प्रकार, प्रथम दृष्टया, वे पीड़ितों या मृतक के उत्तराधिकारियों को प्रावधानों के तहत मुआवजे का भुगतान करने के लिए भी उत्तरदायी हैं। "मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना" जो जहर आदि के कारण मृत्यु या स्थायी विकलांगता के कारण मुआवजे का प्रावधान करती है।

    केस टाइटल - रानी सोनकर एंड 10 अन्य बनाम यू.पी. राज्य एंड 3 अन्य [WRIT - C No. – 24481 ऑफ 2022]

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    कथित तौर पर अनधिकृत संपत्ति के खिलाफ विध्वंस कार्रवाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक मालिक/निवासी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि किसी संपत्ति को इस आधार पर नहीं गिराया जा सकता कि वह अनधिकृत है, जब तक कि मालिक या निवासी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता। जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अनुपालन का कोई जवाब नहीं कि अगर अवसर दिया जाता तो प्रभावित करने वाले लोगों के पास कोई बचाव नहीं होता।

    केस शीर्षक: एमएस हनुनपुई बनाम दिल्ली नगर निगम और अन्य।

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    यूजीसी नियमों में निर्धारित आवश्यक सेवा अवधि को कार्य अनुभव से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जब यूजीसी के मानदंडों में 'प्रोफेसर' पद पर पदोन्नति के लिए पात्र होने के लिए 'रीडर' के पद पर 8 साल की निरंतर सेवा अनिवार्य है तो उस पद पर व्यक्ति के कार्य अनुभव के आधार पर पदोन्नति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने कहा कि यूजीसी के नियमों में पदोन्नति के मानदंड निर्धारित हैं, जिनके आधार पर पदोन्नति देना तय किया गया है।

    जस्टिस पी.बी. सुरेश कुमार और जस्टिस मैरी जोसेफ की खंडपीठ ने अपने समक्ष पुनर्विचार याचिका में कहा कि जब यूजीसी द्वारा निर्धारित योग्यताओं को निर्धारित करने वाले मानदंड हैं तो न्यायालय लाभ के लिए अपनी व्याख्या के साथ इसे प्रतिस्थापित नहीं कर सकता।

    केस टाइटल: डॉ. सी.एस. राजन बनाम रजिस्ट्रार, शंकराचार्य संस्कृत यूनिवर्सिटी और अन्य।

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    आईपीसी की धारा 306- बिना किसी इरादे के क्रोध में बोले गए शब्दों को आत्महत्या के लिए उकसाने का कारण नहीं माना जा सकता : गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने अपने एक हाल के एक फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के संबंध में स्पष्ट किया है कि परिणाम का इरादा किए बिना क्रोध या भावनाओं में बहकर बोले गए शब्द वास्तव में 'उकसाने' के समान नहीं हो सकते। इसलिए, यदि वर्तमान मामले में, आरोपी/आवेदक ने कहा था कि 'आप जो चाहें कर सकते हैं और यदि आप मरना चाहते हैं, तो आप मर सकते हैं', इनसे धारा 306 के तहत उकसाने के अपराध का गठन नहीं होगा।

    केस टाइटल- रमेश बाबूभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य

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    POCSO - पीड़ित की उम्र के निर्धारण का मुद्दा किसी भी स्तर पर उठाया जा सकता है, यहां तक कि अपीलीय फोरम में भी: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट (Meghalaya High Court) ने हाल ही में कहा कि यह न्यायालय पर निर्भर है कि पॉक्सो मामले (POCSO Act) की सुनवाई करते हुए उसे मामले को आगे बढ़ाने से पहले पीड़ित की उम्र के बारे में निश्चित होना चाहिए।

    जस्टिस डब्ल्यू. डिएंगदोह की ओर से आई यह टिप्पणी में कहा गया: "बच्चे के खिलाफ अपराध की सुनवाई विशेष अदालत द्वारा की जानी चाहिए। हालांकि, यह अदालत के लिए मामले की शुरुआत से निश्चित अधिकार होना अनिवार्य है कि उक्त मामले में पॉक्सो अधिनियम में पाई गई परिभाषा के अनुसार, बच्चा शामिल है। इस संदर्भ में,आगे की कार्यवाही शुरू करने से पहले आयु निर्धारण बहुत महत्वपूर्ण है।"

    केस टाइटल: अनवर हुसैन शेख बनाम मेघालय राज्य और अन्य

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    भारतीय अदालतें 'टेलीग्राम' को उसके प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले कॉपीराइट उल्लंघनकर्ताओं की जानकारी का खुलासा करने का निर्देश दे सकती हैं : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने पाया कि कॉपीराइट उल्लंघनकर्ताओं (Copyright Infringers) को केवल इस आधार पर मैसेजिंग प्लेटफॉर्म टेलीग्राम की नीतियों के तहत शरण लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि इसका फिजिकल सर्वर सिंगापुर में है।

    जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि भारत में अपने बड़े पैमाने पर संचालन करने वाले टेलीग्राम को उल्लंघनकर्ताओं से संबंधित प्रासंगिक जानकारी के प्रकटीकरण के लिए भारतीय कानून और उनके द्वारा पारित आदेशों का पालन करने के लिए निर्देश देना भारतीय न्यायालयों को पूरी तरह से उचित होगा।

    केस टाइटल: नीतू सिंह और अन्य बनाम टेलीग्राम एफजेड एलएलसी और अन्य।

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    आईबीसी की धारा 31 के तहत समाधान योजना लोन एग्रीमेंट के प्रति गारंटर को देयता से मुक्त नहीं करती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में दोहराया कि जहां सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की जाती है और उधारकर्ता और बैंक की किसी भी कार्रवाई से व्यथित है जिसके लिए अधिनियम के तहत उसके पास उपाय है तो किसी भी रिट याचिका पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए।

    जस्टिस संजीव नरूला ने आगे कहा कि व्यक्तिगत गारंटर की देयता की सीमा को उधारकर्ता यानी कॉर्पोरेट देनदार और व्यक्तिगत गारंटर के बीच समझौते के आलोक में निर्धारित करना होगा, जिसके लिए उपयुक्त प्लेटफॉर्म लोन वसूली न्यायाधिकरण होगा, हाईकोर्ट नहीं।

    केस टाइटल: संजय सरीन बनाम अधिकृत अधिकारी, केनरा बैंक और अन्य।

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    नगर पालिका सार्वजनिक स्थानों पर किसी मूर्ति/संरचनाओं की स्थापना के लिए अनुमति नहीं दे सकती: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि नगर निगम या नगर पालिका सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथों, फुटपाथों और अन्य सार्वजनिक उपयोगिता वाले स्थानों पर किसी भी मूर्ति/संरचना के निर्माण की अनुमति नहीं दे सकती है।

    जस्टिस रवि नाथ तिलहरी की एकल पीठ ने आगे कहा कि भले ही पहले कोई अनुमति दी गई थी जिसके अनुसार अब कोई संरचना बनाई जा रही है, वह भी सुप्रीम कोर्ट के दिनांक 18.02.2013 के विशिष्ट आदेश के विपरीत नहीं किया जा सकता है।

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    एनडीपीएस एक्ट के तहत जब्त वाहन की अंतरिम कस्टडी सीआरपीसी 451 और 457 के तहत दी जा सकती है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मजिस्ट्रेट/विशेष न्यायाधीश, एनडीपीएस एक्‍ट के पास सीआरपीसी की धारा 451 और 457 के प्रावधान के तहत वाहन/व्‍ह‌िकल (एनडीपीएस एक्ट के तहत जब्त) की अंतरिम कस्टडी के लिए आवेदन पर विचार करने की शक्ति है।

    जस्टिस साधना रानी (ठाकुर) ने कहा, "एनडीपीएस एक्ट की धारा 36-सी और 51 को देखन से यह समझ आता है कि सीआरपीसी के प्रावधान, जहां तक विशेष कानून एनडीपीएस एक्ट के विरोध में नहीं हैं, एनडीपीएस एक्ट पर लागू होंगे और जैसा कि एनडीपीएस एक्ट वाहन की अंतरिम कस्टडी के लिए कोई प्रक्रिया निर्धारित नहीं है सीआरपीसी की धारा 451 और 457 विशेष रूप से लंबित मुकदमे की संपत्ति की कस्टडी और निस्तारण और संपत्ति की जब्ती पर पुलिस द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से संबंधित है।

    केस टाइटल- राजधारी यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्‍य [CRIMINAL REVISION No. - 3607 of 2021]

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    आईपीसी की धारा 375 के तहत दिए सात विवरणों के अनुसार 'सहमति' का अर्थ आक्रामक यौन कृत्य के लिए अधूरी एवं जबरन ली गयी सहमति है : कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाल ही में आईपीसी की धारा 375 के तहत परिभाषित और आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय बलात्कार के अपराध का गठन करने के लिए सहमति (या इसकी अनुपस्थिति) की भूमिका पर विचार किया। इस बात पर जोर देते हुए कि "सहमति" (या इसकी अनुपस्थिति) की प्रबलता धारा 375 में बलात्कार के अपराध की परिभाषित विशेषता है, जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य और जस्टिस अजय कुमार मुखर्जी की पीठ ने कहा कि धारा 375 के तहत निर्धारित सात परिस्थितियां स्वतंत्र इच्छा की एक सूचित अभिव्यक्ति के बजाय "मजबूरी में की गई" सहमति के रूप में 'सहमति' का निर्माण अधिक करती हैं।

    केस टाइटल- सुरेश तिर्की बनाम द स्टेट

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    अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे मामला साबित करना चाहिए, भले ही आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान में अपना अपराध स्वीकार कर लिया होः इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भले ही किसी अभियुक्त ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज अपने बयान में आरोप स्वीकार करते हुए खुद को दोषी मान लिया हो, तब भी अभियोजन पक्ष को अपना मामला संदेह से परे स्थापित करना होगा ताकि आरोपी के अपराध के बारे में अदालत का आदेश प्राप्त किया जा सके।

    जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने कहा, ''... केवल सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान में (आरोपी द्वारा) आरोप स्वीकार करते हुए खुद को दोषी मान लेने से ही मामला समाप्त हो जाएगा और अभियोजन पक्ष के माध्यम से ठोस, विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्य के जरिए उसके खिलाफ उचित संदेह से परे अपना मामला स्थापित किए बिना ही आरोपी के दोषी होने का रास्ता साफ हो जाएगा।''

    केस टाइटल - गब्बर पटेल उर्फ धर्मेंद्र बनाम राज्य,जेल अपील संख्या - 5752/2007

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    धारा 27A केरल धान भूमि और आद्रभूमि संरक्षण अधिनियम से पहले निर्माण के लिए दिए गए बिल्डिंग परमिट के लिए ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट से इनकार नहीं कर सकते: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दो रिट याचिकाओं का निस्तारण करते हुए कहा कि ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट इस आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता है कि जिस भूमि पर बिल्ड‌िंग का निर्माण किया गया है, वह केरल पैडीलैंड एंड वेटलेंट कंजर्वेशन एक्ट (30.12.2017) के संशोधित प्रावधानों के लागू होने से पहले जारी किए गए एक वैध बिल्डिंग परमिट के अनुसार निर्मित इमारत के संबंध में पैडीलैंड या वेटलैंड है।

    केस टाइटल: उषा राजन बनाम त्रिपुनिथुरा नगर पालिका और अन्य और एस उमेश शेनॉय बनाम त्रिपुनिथुरा नगर पालिका और अन्य।

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    कोर्ट जांच अधिकारी के खिलाफ बिना जांच के आईपीसी की धारा 218 के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दे सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 218 और 219 के तहत बिना या सबूत के अनुपस्थिति में लोक सेवक के अपराध की जांच शुरू किए बिना उसके खिलाफ एफआईआर नहीं की जा सकती। आईपीसी की धारा 218 और धारा 219 लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को सजा से बचाने और भ्रष्ट तरीके से रिपोर्ट तैयार करके गलत रिकॉर्ड बनाने से संबंधित है और कोर्ट ने कहा कि लोकसेवक के खिलाफ धारा 218 के तहत अपराध दर्ज करने से पहले जांच करना आवश्यक है।

    केस टाइटल: जयराजसिंह मधुभा गढ़वी बनाम गुजरात राज्य

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    लुक आउट सर्कुलर जारी करने से पहले सब्जेक्ट को कोई नोटिस जारी नहीं किया जाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी कि लुक आउट सर्कुलर जारी करने से पहले उसके सब्जेक्ट में कोई नोटिस जारी नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "एलओसी के सब्जेक्ट के खिलाफ यात्रा के अधिकार में कटौती की जा रही है, इसलिए किसी भी समय उसे विदेश यात्रा से रोकने से पहले नहीं वह कम से कम एलओसी की प्रति के हकदार होगा, बल्कि केवल उस समय जब उसे विदेश में यात्रा करने से रोका गया हो।"

    केस टाइटल: हर्षवर्धन राव के वी. यूनियन ऑफ इंडिया

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    सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन की मंजूरी को बाद के चरण के लिए स्थगित किया जा सकता है यदि शिकायत का संबंध आधिकारिक कार्यों से न हो : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि शिकायत का संबंध आधिकारिक कार्यों से न होने पर सीआरपीसी की धारा 197 के तहत अभियोजन की मंजूरी को बाद के चरण के लिए स्थगित किया जा सकता है। यदि शिकायत किए गए कृत्यों का आधिकारिक कर्तव्य से संबंध है तो संज्ञान लेने के समय तुरंत मंजूरी प्राप्त करने के लिए सीआरपीसी की धारा 197 का प्रावधान आकर्षित होता है।

    जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा: "इसमें कोई संदेह नहीं कि कार्यवाही के किसी भी चरण में मंजूरी का सवाल उठ सकता है, लेकिन अगर मामले के तथ्य या आरोपी के कार्य उसके साथ इतने जटिल रूप से जुड़े हुए हैं कि इसे अलग नहीं किया जा सकता है तो संज्ञान लेने के समय वह तुरंत आकर्षित हो जाता है। बाद के चरण में मंजूरी की आवश्यकता को हमेशा स्थगित करने के लिए कोई कानूनी रोक नहीं है... यदि सीआरपीसी की धारा 197 को बहुत संकीर्ण रूप से समझा जाता है तो इसे कभी भी लागू नहीं किया जा सकता, किए गए किसी भी कृत्य पर लोक सेवक द्वारा किसी भी लोक सेवक को अपने आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन में अपराध करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इससे संपूर्ण विधायी मंशा विफल हो जाएगी।"

    केस टाइटल: बी के परचुरे बनाम राज्य

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    एनडीपीएस अधिनियम के तहत भांग प्रतिबंधित नहीं, पीड़ित पक्ष को यह दिखाना होगा कि यह चरस/गांजा से तैयार किया गया है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने भांग रखने के आरोपी व्यक्ति को यह कहते हुए जमानत दे दी कि भांग नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट (एनडीपीएस) के तहत नहीं आता। जस्टिस के नटराजन की एकल पीठ ने आरोपी रोशन कुमार मिश्रा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने उसे दो लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि के दो जमानतदारों के निष्पादन पर जमानत दे दी।

    केस टाइटल: रोशन कुमार मिश्रा बनाम कर्नाटक राज्य

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    सेक्‍शन 32A ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट | ट्रायल शुरू होने और सबूत सामने आने के बाद ही निर्माता को मामले में शामिल किया जा सकता है: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 की धारा 32-ए के तहत ट्रायल शुरू होने और सबूत सामने आने के बाद ही निर्माता या किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ, जो अपराध में शामिल प्रतीत होता है, अभियोग की शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है, और इससे पहले ऐसी किसी भी शक्ति का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस संजय धर की पीठ एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसके तहत याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी ड्रग्स इंस्पेक्टर द्वारा दायर शिकायत को चुनौती दी थी, जिसने ड्रग एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 की धारा 18 (ए) (i) के तहत अपराध का आरोप लगाया था। साथ ही उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिस के तहत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पुलवामा ने याचिकाकर्ता को आरोपी के रूप में शामिल किया था और उसके खिलाफ प्रक्रिया जारी की थी।

    केस टाइटल: ऋषि शर्मा, डायरेक्टर हौस्टस बायोटेक बनाम ड्रग इंस्पेक्टर

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    केवल तहबाजारी के अधिकार पर कब्जा करने से सरकारी जमीन पर कब्जा करने का अधिकार नहीं मिल जाता : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केवल तहबाजारी के अधिकार पर कब्जा करने वाले को सरकारी जमीन पर कब्जा करने या उस पर 'पक्का' निर्माण करने का अधिकार नहीं है। जस्टिस गौरांग कांत वेद प्रकाश मनचंदा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें अधिकारियों को शहर के मदनगीर में संपत्ति के परिसर के संबंध में लीज डीड या अन्य दस्तावेज निष्पादित करके लंबे और निरंतर कब्जे को नियमित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।

    केस टाइटल: वेद प्रकाश मनचंदा बनाम दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड और अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 389 और एनआई अधिनियम की धारा 148 एक-दूसरे से स्वतंत्र, एनआई अधिनियम की धारा 148 का अनुपालन न करने से अपील लंबित रहने के दौरान सजा के निलंबन को खतरा नहीं : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी है कि सीआरपीसी की धारा 389 और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 148 एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। जहां सीआरपीसी की धारा 389 दोषी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा से जुड़ी है, वहीं एनआई अधिनियम की धारा 148 दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 389 में किए गए जनादेश के लिए सहायक या पूरक है।

    सीआरपीसी की धारा 389 में अपील के लंबित रहने/ जमानत पर अपीलकर्ता की रिहा होने पर साज के निलंबन का प्रावधान है। एनआई अधिनियम की धारा 148 दोषसिद्धि के खिलाफ लंबित अपील की स्थिति में भुगतान (जुर्माने या निचली अदालत द्वारा दिए गए मुआवजे का न्यूनतम बीस प्रतिशत) का आदेश देने के लिए अपीलीय न्यायालय की शक्ति निर्धारित करता है।

    केस टाइटल: अमित कुमार (मृतक) कानूनी वारिस की मां श्रीमती सुशीला देवी के जरिये बनाम हरियाणा सरकार एवं अन्य

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    सहमति से शारीरिक संबंध रखने वाले व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की जन्म तिथि की न्यायिक जांच करने की आवश्यकता नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा, "जो व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति के साथ सहमति से शारीरिक संबंध रखता है, उसे दूसरे व्यक्ति की जन्मतिथि की न्यायिक जांच करने की आवश्यकता नहीं है।" जस्टिस जसमीत सिंह ने बलात्कार के एक मामले में आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए यह टिप्पणी की। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि दोस्त बनने के बाद सितंबर 2019 में याचिकाकर्ता ने उसे एक होटल में बुलाया और उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए और उसका वीडियो भी बनाया, जिससे उसे ब्लैकमेल किया गया।

    केस टाइटल: हंजला इकबाल बनाम राज्य एंड अन्य।

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