आईबीसी की धारा 31 के तहत समाधान योजना लोन एग्रीमेंट के प्रति गारंटर को देयता से मुक्त नहीं करती: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

31 Aug 2022 7:48 AM GMT

  • आईबीसी की धारा 31 के तहत समाधान योजना लोन एग्रीमेंट के प्रति गारंटर को देयता से मुक्त नहीं करती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में दोहराया कि जहां सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की जाती है और उधारकर्ता और बैंक की किसी भी कार्रवाई से व्यथित है जिसके लिए अधिनियम के तहत उसके पास उपाय है तो किसी भी रिट याचिका पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए।

    जस्टिस संजीव नरूला ने आगे कहा कि व्यक्तिगत गारंटर की देयता की सीमा को उधारकर्ता यानी कॉर्पोरेट देनदार और व्यक्तिगत गारंटर के बीच समझौते के आलोक में निर्धारित करना होगा, जिसके लिए उपयुक्त प्लेटफॉर्म लोन वसूली न्यायाधिकरण होगा, हाईकोर्ट नहीं।

    कोर्ट ने कहा,

    "दिवाला कार्यवाही के माध्यम से अपने लेनदारों को उसके द्वारा देय लोन से कॉर्पोरेट देनदार का निर्वहन गारंटर को उसके दायित्व से मुक्त नहीं करता, क्योंकि यह स्वतंत्र अनुबंध से उत्पन्न होता है।"

    अदालत ने इस प्रकार उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ता लोन सुविधा में गारंटर के रूप में है। उक्त याचिका उधारकर्ता और खुद के खिलाफ शुरू की गई वसूली कार्रवाई से वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण तथा प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम, 2002 (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest Act, 2002) के प्रवर्तन के तहत दायर की गई है।

    याचिकाकर्ता का मामला यह है कि एक बार समाधान योजना के लिए उधारकर्ता को इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 की धारा 31 के तहत अनुमोदित किया गया है और बैंक के दावों को संबोधित किया गया है। इस प्रकार, यह एनसीएलटी द्वारा अनुमोदित राशि से अधिक राशि के लिए वसूली की मांग नहीं कर सकता।

    यह देखते हुए कि सरफेसी अधिनियम से संबंधित मामलों में रिट याचिका पर सुनवाई का कानून अब एकीकृत नहीं है, कोर्ट ने फीनिक्स एआरसी प्राइवेट लिमिटेड बनाम विश्व भारती विद्या मंदिर और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उक्त अवलोकन को दोहराया।

    कोर्ट ने कहा,

    "... जहां सरफेसी अधिनियम के तहत कार्यवाही शुरू की जाती है और उधारकर्ता और बैंक की किसी भी कार्रवाई से व्यथित है, जिसके लिए उधारकर्ता के पास सरफेसी अधिनियम के तहत उपाय है तो ऐसे में किसी भी रिट याचिका पर सुनवाई नहीं की जानी चाहिए।"

    कोर्ट ने कहा कि चूंकि बैंक की कार्रवाई के लिए याचिकाकर्ता की चुनौती पहले से ही डीआरटी के समक्ष चुनौती का विषय है, जो निर्णय के लिए लंबित है तो ऐसे में रिट याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "इस प्रकार, यदि याचिकाकर्ता अपनी देनदारी से मुक्त नहीं होता है तो सरफेसी अधिनियम के तहत बैंक द्वारा शुरू की गई कार्यवाही को असंवैधानिक या एनसीएलटी के अनुमोदन आदेश का अपमान नहीं माना जा सकता।"

    समाधान योजना के उल्लंघन की स्थिति में परिसमापन प्रक्रिया की परिकल्पना करने वाली आईबीसी की धारा 33 (3) को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि बैंक को अपने बकाया की वसूली के लिए संपार्श्विक प्रतिभूतियों (Collateral Securities) के खिलाफ आगे बढ़ने का अधिकार है, जो एनसीएलटी द्वारा अनुमोदित योजना संकल्प से स्वतंत्र है।

    इसे बारे में कोर्ट ने कहा,

    "यह आईबीसी के तहत योजना है और यदि संसद ने अपने विवेक में संबंधित कॉर्पोरेट द्वारा समाधान योजना के गैर-कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप आईबीसी की धारा 33 (3) के तहत केवल परिसमापन प्रक्रिया का उपाय प्रदान किया है। ऐसे में यह न्यायालय सिर्फ इसलिए एक और उपाय नहीं बना सकता, क्योंकि ऊपर उल्लिखित उपाय पर्याप्त नहीं है या याचिकाकर्ता के लिए उपयुक्त नहीं है।"

    तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: संजय सरीन बनाम अधिकृत अधिकारी, केनरा बैंक और अन्य।

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