आईपीसी की धारा 306- बिना किसी इरादे के क्रोध में बोले गए शब्दों को आत्महत्या के लिए उकसाने का कारण नहीं माना जा सकता : गुजरात हाईकोर्ट
Manisha Khatri
1 Sept 2022 10:45 AM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने अपने एक हाल के एक फैसले में भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के संबंध में स्पष्ट किया है कि परिणाम का इरादा किए बिना क्रोध या भावनाओं में बहकर बोले गए शब्द वास्तव में 'उकसाने' के समान नहीं हो सकते।
इसलिए, यदि वर्तमान मामले में, आरोपी/आवेदक ने कहा था कि 'आप जो चाहें कर सकते हैं और यदि आप मरना चाहते हैं, तो आप मर सकते हैं', इनसे धारा 306 के तहत उकसाने के अपराध का गठन नहीं होगा।
ये टिप्पणियां कोर्ट ने धारा 482 के तहत दायर एक आवेदन में की हैं,जिसमें आईपीसी की धारा 306 और 114 के तहत अभियुक्तों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को चुनौती दी गई थी।
एफआईआर मृतक की विधवा(शिकायतकर्ता) ने दर्ज करवाई थी, जिसने आरोप लगाया है कि आरोपी ने उसके पति से कहा था कि वह अपनी कथित बकाया राशि का भुगतान नहीं करेगा, भले ही वह मर जाए। उसने उसके पति से यह भी कहा था कि वह जो चाहे कर सकता है और मर सकता है। इसके बाद, शिकायतकर्ता और उसके पति ने बकाया राशि का भुगतान करने वाले व्यक्तियों से मुलाकात की और उन्होंने राशि चुकाने से इनकार कर दिया।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके पति ने 'अलविदा' नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया था और उस ग्रुप में तीन लोग थे जो उसके पति के साथ काम करते थे और उन पर 3.5 करोड़ रुपये का बकाया था। बकाया राशि का भुगतान न होने से तंग आकर उसके पति और शिकायतकर्ता ने जहर खा लिया लेकिन वह बच गई। तत्काल एफआईआर 12 लोगों के खिलाफ दर्ज करवाई गई थी।
दोनों आवेदकों ने संजू बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में दिए गए फैसले पर भरोसा करते हुए आरोपों का विरोध किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि अपराध के लिए 'उकसाने' का गठन करने के लिए आपराधिक मनःस्थिति होनी चाहिए। परिणाम की इच्छा के बिना क्रोध या भावना में बोले गए शब्दों को उकसाने की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। इसके अलावा, 12 आरोपियों में से, 3 व्यक्तियों ने पक्षकार के साथ विवादों को सुलझा लिया है और उनके खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी गई है।
नतीजतन, जस्टिस निरजार एस. देसाई की पीठ ने सवाल किया कि तत्काल आवेदकों की भूमिका उन अभियुक्तों से अलग कैसे थी जिनके खिलाफ एफआईआर रद्द कर दी गई है? इसके लिए, यह कहा गया कि तत्काल आवेदकों ने कहा था 'जो आपको पसंद है वह करें और यदि आप मरना चाहते हैं, तो आप मर सकते हैं।'
मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने संजू के फैसले की ओर रुख किया और कहा,
''यहां तक कि अगर हम अभियोजन की इस कहानी को स्वीकार करते हैं कि अपीलकर्ता ने मृतक को 'जाने और मरने के लिए' कहा था, तो यह शब्द भी 'उकसाने' के घटक का गठन नहीं करते हैं। 'उकसाना' शब्द कुछ कठोर या अनुचित कार्रवाई करने या उत्तेजित करने या प्रोत्साहित करने के लिए उकसाने या आग्रह करने को दर्शाता है। इसलिए आपराधिक मनःस्थिति की उपस्थिति,उकसाने की आवश्यक सहवर्ती है। यह सामान्य ज्ञान की बात है कि झगड़े में या क्षण भर में बोले गए शब्दों को आपराधिक मनःस्थिति से नहीं जोड़ा जा सकता है। यह गुस्से और भावनात्मक स्थिति में कहे गए हैं।''
सुप्रीम कोर्ट के इस स्पष्टीकरण को ध्यान में रखते हुए, हाईकोर्ट ने पुष्टि की है कि आवेदक का मामला संजू के फैसले से पूरी तरह से कवर होता है।
नतीजतन, हाईकोर्ट ने दोनों आवेदकों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी।
केस टाइटल- रमेश बाबूभाई पटेल बनाम गुजरात राज्य
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