अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे मामला साबित करना चाहिए, भले ही आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान में अपना अपराध स्वीकार कर लिया होः इलाहाबाद हाईकोर्ट

Manisha Khatri

30 Aug 2022 2:45 PM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि भले ही किसी अभियुक्त ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज अपने बयान में आरोप स्वीकार करते हुए खुद को दोषी मान लिया हो, तब भी अभियोजन पक्ष को अपना मामला संदेह से परे स्थापित करना होगा ताकि आरोपी के अपराध के बारे में अदालत का आदेश प्राप्त किया जा सके।

    जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने कहा,

    ''... केवल सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान में (आरोपी द्वारा) आरोप स्वीकार करते हुए खुद को दोषी मान लेने से ही मामला समाप्त हो जाएगा और अभियोजन पक्ष के माध्यम से ठोस, विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्य के जरिए उसके खिलाफ उचित संदेह से परे अपना मामला स्थापित किए बिना ही आरोपी के दोषी होने का रास्ता साफ हो जाएगा।''

    इसी के साथ कोर्ट ने आरोपी/गब्बर पटेल को आईपीसी की धारा 307 के तहत संदेह का लाभ देते हुए आरोपों से बरी कर दिया है।

    संक्षेप में मामला

    पुलिस को सूचना दी गई थी कि आरोपी नशीला पदार्थ और देसी पिस्टल लेकर सड़क पर खड़ा है और घटना को अंजाम देने वाला है। पुलिस कर्मियों ने आरोपी की ओर रुख किया और तभी अचानक आरोपी ने उन पर गोली चला दी परंतु वह बच गए। हालांकि बाद में उन्होंने उस पर काबू पाकर उसे गिरफ्तार कर लिया।

    आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 307 के तहत चार्जशीट दायर की गई और मुकदमा चलाया गया और पीडब्ल्यू -1 के साक्ष्य दर्ज होने के बाद, आरोपी (सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान देते समय) से पूछा गया था कि उसके खिलाफ मामला क्यों दर्ज किया गया है? जिस पर, उसने कहा कि वह गलत था। वह अपना अपराध स्वीकार करता है। पुलिस दल पर फायरिंग करने के संबंध में एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उसने कहा कि यह सत्य है। इसके अलावा, अपने अंतिम उत्तर में कि क्या वह कुछ कहना चाहता है तो उसने कहा कि वह लंबे समय से जेल में हैं और उसके प्रति उदारता दिखाई जानी चाहिए।

    नतीजतन, ट्रायल कोर्ट ने मुकदमे का निष्कर्ष निकाला और यह कहते हुए आक्षेपित निर्णय पारित किया कि पीडब्ल्यू-1 के बयान और सीआरपीसी की धारा 313 के तहत आरोपी के बयान के साथ रिकवरी मैमो के आधार पर, अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में सफल रहा है और उसे दोषी ठहराया जाता है। इसी आदेश को चुनौती देते हुए आरोपी ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    शुरुआत में, अदालत ने कहा कि किसी को कोई चोट नहीं आई और आरोपी ने सिर्फ एक फायर किया था और वह गोली किसी को लगी नहीं थी। इसके अलावा, कोर्ट ने कहा कि उसके पास से एक खाली कारतूस के साथ एक 12 बोर की देशी पिस्तौल और एक लाइव कारतूस मिला था, फिर भी, अभियोजन पक्ष ने यह नहीं बताया कि क्या उक्त हथियार को बैलिस्टिक विशेषज्ञ के पास जांच के लिए भेजा गया था, जो घटना के समय इसके उपयोग की पुष्टि करता?।

    इसे देखते हुए, न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि बिना किसी पुष्ट साक्ष्य के उक्त हथियार के उपयोग को साबित करने के लिए केवल एक हथियार और एक खाली कारतूस की बरामदगी पर्याप्त नहीं होगी।

    इस प्रश्न के संबंध में कि क्या अभियुक्त, यदि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपने बयान में अपना अपराध स्वीकार करता है तो यह उसके खिलाफ स्थापित करने वाली परिस्थिति है या नहीं?, अदालत ने निम्नलिखित टिप्पणियां कींः

    '' सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज अपने बयान में उसने कुछ सवालों का कोई जवाब नहीं दिया है और आगे उसने दोषी होने की बात कहने के अलावा अदालत से यह भी कहा कि उसकी सजा में नरम रुख अपनाया जाए क्योंकि वह लंबे समय से जेल में है। कानून, जैसा कि यह निर्विवाद है, यह है कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दिया गया बयान सबूत नहीं है। यह सबूत का एक ठोस टुकड़ा नहीं है। इसका इस्तेमाल अभियोजन पक्ष द्वारा पेश साक्ष्य की सराहना करते हुए उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, इसे अभियोजन साक्ष्य का विकल्प नहीं कहा जा सकता है।''

    इसके अलावा, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि वर्तमान मामले में, केवल एक गवाह ने अपने बयान दर्ज करवाए थे, जो उक्त पुलिस टीम का सदस्य था, जिसने मामले के प्रत्येक और हर पहलु के लिए गवाही दी थी, परंतु फिर भी हथियार के उपयोग की पुष्टि उसके बयान में मौजूद नहीं थी।

    अदालत ने अपीलकर्ता/आरोपी को उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों से बरी करते हुए आगे कहा कि,

    ''हथियार को विशेषज्ञ विश्लेषण के लिए नहीं भेजा गया था। मामला किसी को चोट लगने का भी नहीं है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि केवल सीआरपीसी की 313 के तहत बयान में अपना दोष स्वीकार करने लेने से आरोपी को दोषी माना जा सकता है और उसको सजा दी जा सकती है।''

    केस टाइटल - गब्बर पटेल उर्फ धर्मेंद्र बनाम राज्य,जेल अपील संख्या - 5752/2007

    साइटेशन- 2022 लाइव लॉ (एबी) 402

    आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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