अनुच्छेद 30 | अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त संस्थान अल्पसंख्यक समुदाय से योग्य प्रिंसिपल की नियुक्ति के लिए स्वतंत्र, अदालतें हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

3 Sept 2022 11:05 AM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान का प्रबंधन "अल्पसंख्यक समुदाय" के योग्य व्यक्ति को उस संस्थान का नेतृत्व करने के लिए या तो वाइस प्रिंसिपल या प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त करने का "सचेत विकल्प" बनाता है तो अदालत इसमें हस्तेक्षप नहीं कर सकती।

    यह कहते हुए कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत अधिकार इस संबंध में पूर्ण है, जस्टिस चंद्र धारी सिंह ने आगे कहा:

    "प्रत्येक भाषाई अल्पसंख्यक की अपनी सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सीमाएं हो सकती हैं। उसे ऐसी संस्कृति और भाषा के संरक्षण का संवैधानिक अधिकार है। इस प्रकार, उसे शिक्षकों को चुनने का भी अधिकार होगा, जिनके पास पात्रता और योग्यता है, जैसा कि उनके उनके धर्म और समुदाय के तथ्य से प्रभावित हुए बिना वास्तव में प्रदान किया गया है। वही स्कूल प्रबंधन द्वारा परिभाषित प्रक्रिया द्वारा किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने कहा,

    "योग्य शिक्षकों के चयन के संबंध में भाषाई और सांस्कृतिक अनुकूलता को भाषाई अल्पसंख्यक की वांछनीय विशेषताओं में से एक के रूप में वैध रूप से दावा किया जा सकता है।"

    कोर्ट ने 19 दिसंबर, 2013 को विभागीय प्रोन्नति समिति के कार्यवृत्त को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसके तहत नूतन मराठी सीनियर सेकेंडरी स्कूल की वाइस प्रिंसिपल शुभदा बापट को नियुक्त किया गया। स्कूल शिक्षा निदेशालय के तहत सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल है, जो दिल्ली स्कूल शिक्षा अधिनियम और नियम, 1973 द्वारा शासित है।

    याचिकाकर्ता बीरपाल सिंह को 15 जुलाई, 1994 को स्कूल में पीजीटी (गणित) के पद के लिए चयन समिति द्वारा नियुक्त किया गया था।

    वाइस प्रिंसिपल की पोस्ट 10 दिसम्बर 2009 को रिक्त हो गई, क्योंकि तत्कालीन वाइस प्रिंसिपल को प्रिंसिपल के पद पर पदोन्नत किया गया था। दिसम्बर, 2009 से मई, 2011 तक वाइस प्रिंसिपल का पद रिक्त था। इस अवधि के दौरान, याचिकाकर्ता ने उसे उक्त पद पर पदोन्नत करने के लिए स्कूल प्रबंधन को पत्र, अभ्यावेदन और अनुस्मारक भेजे। हालांकि, कोई निर्णय नहीं लिया गया।

    शिक्षा निदेशालय के कार्यालय ने 16 मई, 2011 को स्कूल को पत्र भेजकर डी.पी.सी. वाइस प्रिंसिपल के पद के लिए दिसंबर, 2009 से प्रभावी होगी।

    याचिकाकर्ता द्वारा जनवरी, 2012 में हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका दायर की गई, जिसमें उन्होंने डीपीसी की नियुक्त तीन साल के लिए करने की प्रार्थना की। 10 दिसंबर, 2009 से स्कूल डीपीसी के अनुसार, वाइस प्रिंसिपल का पद खाली हो गया।

    स्कूल ने डीपीसी बैठक में 27 जनवरी, 2012 को बीनू चौधरी के नाम की वाइस प्रिंसिपल की पोस्ट के लिए अनुशंसा की गई। हालांकि, भर्ती नियमों के अनुसार नहीं होने के कारण नियुक्ति को पूर्वव्यापी प्रभाव से खारिज कर दिया गया। उक्त संचार को अन्य याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई।

    दोनों याचिकाओं को सामान्य निर्णय द्वारा खारिज कर दिया गया और स्कूल को नए सिरे से डीपीसी दिसंबर, 2009 से वाइस प्रिंसिपल के पद के लिए छह सप्ताह की अवधि के भीतर नियुक्त करने के लिए कहा। उक्त निर्णय के खिलाफ एलपीए को भी वर्ष 2016 में खारिज कर दिया गया।

    हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार, स्कूल ने नया डीपीसी आयोजित किया और बापट को वाइस प्रिंसिपल के रूप में नियुक्त किया गया। उक्त निर्णय से व्यथित याचिकाकर्ता ने डीपीसी के खिलाफ याचिका दायर की।

    स्कूल ने स्टैंड लिया कि यह "भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान" है। याचिकाकर्ता ने इसका कड़ा विरोध किया। दूसरी ओर, शिक्षा निदेशालय द्वारा दायर हलफनामे में स्पष्ट किया गया कि संस्थान को भाषाई अल्पसंख्यक के रूप में मान्यता प्राप्त संस्थानों की सूची में "भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान" के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।

    स्कूल का मामला यह है कि अल्पसंख्यक संस्थान होने के कारण वह नियमों द्वारा शासित अन्य संस्थानों पर लागू प्रक्रिया के अनुसार अपने स्वयं के शिक्षकों को नियुक्त करने का हकदार है। इसने इस पृष्ठभूमि में "भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान" होने का दावा किया कि मराठी भाषी समुदाय दिल्ली में भाषाई अल्पसंख्यक है।

    उसने कहा,

    "अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों को विभिन्न विशिष्ट कानूनों के तहत संरक्षित किया जाता है और प्रवर्तन के आश्वासन द्वारा भी समर्थित किया जाता है। उनके मौलिक अधिकारों का हिस्सा होने के नाते अल्पसंख्यक संस्थानों के अधिकारों को पवित्रता और सामान्य कानून की तुलना में उच्च स्थिति के साथ निवेश किया जाता है। परिणामस्वरूप हर कानूनी प्रावधान या कार्यकारी कार्रवाई समुदाय के कल्याण के लिए निहित जनादेश के अनुरूप होनी चाहिए।"

    कोर्ट ने शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार द्वारा स्कूल को "भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान" के रूप में मान्यता देते हुए 4 सितंबर, 2001 को जारी अधिसूचना में कोई अवैधता नहीं पाई।

    कोर्ट ने कहा,

    "यह निष्कर्ष निकालना सही है कि शिक्षक की नियुक्ति का निर्णय स्कूल के नियमित प्रशासन और प्रबंधन का हिस्सा है। भाषाई अल्पसंख्यक संवैधानिक जनादेश द्वारा अपनी भाषा और संस्कृति के संरक्षण का हकदार है।"

    न्यायालय ने यह भी देखा कि अल्पसंख्यक सहायता प्राप्त स्कूल का प्रबंधन किसी भी व्यक्ति को कर्मचारी या संस्था के प्रमुख के रूप में चुनने के लिए स्वतंत्र है, बशर्ते वह राज्य द्वारा निर्धारित योग्यता को पूरा करता हो।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "उपरोक्त चर्चा के अनुसार, प्रतिवादी स्कूल "भाषाई अल्पसंख्यक संस्थान" है, इसलिए स्कूल द्वारा किए गए वाइस प्रिंसिपल का चयन स्थापित कानून के विपरीत नहीं है। 19, दिसंबर, 2013 को आयोजित डी.पी.सी. में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।"

    तदनुसार याचिका खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल: बीरपाल सिंह बनाम नूतन मराठी सीनियर सेकेंडरी स्कूल और अन्य

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