केवल तहबाजारी के अधिकार पर कब्जा करने से सरकारी जमीन पर कब्जा करने का अधिकार नहीं मिल जाता : दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

29 Aug 2022 5:55 AM GMT

  • दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि केवल तहबाजारी के अधिकार पर कब्जा करने वाले को सरकारी जमीन पर कब्जा करने या उस पर 'पक्का' निर्माण करने का अधिकार नहीं है।

    जस्टिस गौरांग कांत वेद प्रकाश मनचंदा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें अधिकारियों को शहर के मदनगीर में संपत्ति के परिसर के संबंध में लीज डीड या अन्य दस्तावेज निष्पादित करके लंबे और निरंतर कब्जे को नियमित करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई।

    याचिकाकर्ता का मामला यह है कि 1990-91 से वह तहबाजारी साइट के रूप में इस साइट का उपयोग कर रहा है और प्रतिवादी अधिकारी समय-समय पर लाइसेंस शुल्क, हर्जाना और जुर्माना वसूल करते है। याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि अधिकारियों द्वारा जारी 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' के आधार पर उसके पक्ष में बिजली कनेक्शन स्वीकृत किया गया।

    याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे तत्कालीन स्लम और जे जे विभाग द्वारा नियमितीकरण नोटिस प्राप्त हुआ, जिसके तहत उन्हें 30 दिनों की अवधि के भीतर नियमितीकरण फीस का भुगतान करने के लिए कहा गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने राशि जमा कर दी। हालांकि, भुगतान और अन्य सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बावजूद, अधिकारियों द्वारा कोई लीज डीड निष्पादित नहीं की गई।

    अधिकारियों की निष्क्रियता से व्यथित याचिकाकर्ता ने सचिव, लोक शिकायत आयोग, दिल्ली सरकार से संपर्क किया और एमसीडी के स्लम और जे जे विभाग को अपने पक्ष में बिक्री विलेख निष्पादित करने का निर्देश देने की मांग की।

    याचिकाकर्ता ने तब एक रिट याचिका दायर की, जिसे हाईकोर्ट द्वारा डीयूएसआईबी को निर्देश के साथ निपटाया गया कि वह रिट याचिका को प्रतिनिधित्व के रूप में मानें और बिक्री विलेख को निष्पादित करने या अस्वीकृति का आदेश पारित करने का निर्णय लें।

    इसलिए, डीयूएसआईबी ने याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करते हुए आदेश पारित किया और कहा कि उसने सरकारी भूमि का अतिक्रमण किया। उसे भूमि से बेदखल किए जाने की आवश्यकता है। इसके बाद परिसर को सील कर दिया गया।

    याचिकाकर्ता ने तब दिल्ली के उपराज्यपाल के समक्ष निदेशक (सतर्कता), डीयूएसआईबी द्वारा पारित आदेश के खिलाफ अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। याचिकाकर्ता ने तब दिल्ली के उपराज्यपाल द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    डीयूएसआईबी का मामला है कि याचिकाकर्ता सरकारी जमीन का अतिक्रमण करने वाला है और जमीन को चिन्हित किया गया है। उक्त ज़मीन का पहले सामुदायिक शौचालय या शौचालय के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था। हालांकि, उसी पर याचिकाकर्ता द्वारा कब्जा कर लिया गया, जिसके बाद उसके द्वारा बहुमंजिला इमारत का निर्माण किया गया। याचिकाकर्ता ने विचाराधीन संपत्ति पर अपना अधिकार स्थापित करने के लिए कोई शीर्षक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया।

    कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जमीन का न तो मालिक है और न ही किरायेदार, बल्कि वह सरकारी जमीन पर अवैध और अनधिकृत कब्जा करने वाला है।

    अदालत ने कहा,

    "केवल तहबाजारी के अधिकार पर कब्जा करने वाले को सरकारी जमीन को हड़पने का अधिकार नहीं है। तहबाजारी अधिकार कब्जाधारी को पक्का निर्माण करने का अधिकार नहीं देता। वर्तमान मामले में रिकॉर्ड से पता चलता है कि याचिकाकर्ता ने सार्वजनिक उपयोगिता भूमि पर कब्जा किया और उसे अपने अधिकार में ले लिया। पक्के निर्माण की अनुमति नहीं दी जा सकती।"

    आक्षेपित निर्णय को बरकरार रखते हुए अदालत ने प्रतिवादी अधिकारियों को उक्त संपत्ति का उपयोग करने के लिए क्षति शुल्क में कटौती के बाद याचिकाकर्ता द्वारा जमा की गई राशि, यदि कोई हो, वापस करने का निर्देश देते हुए याचिका खारिज कर दी।

    अदालत ने कहा,

    "प्रतिवादियों को आगे निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता की सरकारी जमीन होने के नाते विवादित संपत्ति के कब्जे को वापस लेने के लिए तत्काल कदम उठाएं और इसे अनुमेय भूमि उपयोग के अनुसार बड़े पैमाने पर जनता के लाभ के लिए इस्तेमाल करें।"

    केस टाइटल: वेद प्रकाश मनचंदा बनाम दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड और अन्य।

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