सिविल सेवा विनियमों के नियम 351-ए के तहत वसूली का आदेश केवल तभी दिया जा सकता है जब सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

2 Sep 2022 4:49 AM GMT

  • सिविल सेवा विनियमों के नियम 351-ए के तहत वसूली का आदेश केवल तभी दिया जा सकता है जब सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकारी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद राज्य सरकार को उसकी पेंशन से वसूली का आदेश देने के लिए सिविल सेवा विनियम के नियम 351-ए के तहत अधिकार प्राप्त है, हालांकि, ऐसा तभी किया जा सकता है जब यह स्थापित हो कि सरकार को कुछ वित्तीय नुकसान हुआ है।

    इसी के साथ जस्टिस आलोक माथुर की पीठ ने याचिकाकर्ता (सेवानिवृत्त कार्यपालक अभियंता) को दोषी ठहराने और तीन साल की अवधि के लिए उसकी पेंशन से पांच प्रतिशत की कटौती की सजा देने के उत्तर प्रदेश सरकार का एक आदेश रद्द कर दिया।

    संक्षेप में मामला

    कोर्ट वास्तव में एकलव्य कुमार नामक एक व्यक्ति की रिट याचिका पर विचार कर रहा था, जिन्हें वर्ष 1992 में सहायक अभियंता के पद पर नियुक्त किया गया था और 20.11.2005 को कार्यकारी अभियंता के पद पर पदोन्नत किया गया था और तब से 30.09.2018 को उनकी सेवानिवृत्ति की तारीख तक उन्होंने उक्त पद पर काम किया।

    मार्च 2018 में उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई और मार्च 2018 में चार्जशीट दी गई, जिसमें याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप यह था कि जब उन्हें यू.पी.आर.एन.एन. का महाप्रबंधक बनाया गया था तो उन्होंने सहायक अभियंता की सिफारिश पर कार्य की आवश्यकता के अनुसार दैनिक वेतन भोगी को कार्य एजेंट का प्रभार दिया था।

    दूसरा आरोप दो दैनिक वेतन भोगियों की नियुक्ति के संबंध में था, जिन्हें कार्य एजेंट का प्रभार भी दिया गया था। आरोप पत्र के अनुसार, यह पदोन्नति अवैध थी और नियमों का उल्लंघन करती थी। फलस्वरूप याचिकाकर्ता को उक्त आरोपों का जवाब प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था।

    याचिकाकर्ता ने अक्टूबर 2018 में आरोप पत्र पर अपना जवाब प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने सभी आरोपों से इनकार कर दिया और कहा कि उसने वास्तव में दैनिक वेतन भोगियों को कार्य एजेंट के पद पर पदोन्नत नहीं किया था, बल्कि उन्हें केवल "कार्य एजेंट" के पद का कार्य सौंपा गया था।

    तत्पश्चात, जांच समाप्त की गई और याचिकाकर्ता द्वारा दायर प्रतिक्रिया / उत्तर पर विचार करते हुए सजा का आक्षेपित आदेश पारित किया गया था। जैसा कि कहा गया है, याचिकाकर्ता 30.09.2018 को सेवा से सेवानिवृत्त हो गये, और उनकी सेवानिवृत्ति के तीन साल बाद सजा का आदेश पारित किया गया।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    प्रारंभ में, कोर्ट ने नियम 351-ए का अवलोकन किया, जो राज्य सरकार को याचिकाकर्ता की पेंशन से वसूली के लिए आदेश पारित करने का अधिकार देता है, लेकिन ऐसा आदेश केवल उन मामलों में पारित किया जा सकता है जहां यह स्थापित होता है कि सरकार को कुछ वित्तीय नुकसान हुआ है।

    कोर्ट ने संज्ञान लिया कि यह नियम सरकार को यह अधिकार देता है कि वह पेंशन से रिकवरी कर सकती है, लेकिन, यह स्पष्ट रूप से दर्ज किया जाना चाहिए कि अपराधी कर्मचारी के कार्य से राज्य को आर्थिक नुकसान हुआ है और ऐसा दर्ज करना अनिवार्य है, जिसके आधार पर प्रतिवादी याचिकाकर्ता की पेंशन से वसूली का आदेश वैध रूप से पारित कर सकता था।

    कोर्ट ने आगे कहा,

    "मौजूदा मामले में, न तो याचिकाकर्ता के खिलाफ राज्य सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का कोई आरोप लगाया गया है और न ही कर्मचारियों को कार्य एजेंट के पद पर पदोन्नत करने का कोई सबूत है, इसलिए याचिकाकर्ता की पेंशन से वसूली का आदेश पारित नहीं किया जा सकता था ... इस कोर्ट का विचार है कि सजा का आदेश स्पष्ट रूप से विकृत है और आक्षेपित आदेश अवैध और मनमाना है। याचिकाकर्ता स्पष्ट तौर पर आक्षेपित आदेश पारित होने से दो साल पहले 30.09.2018 को सेवानिवृत्त हो चुका है। यह आगे देखा गया है कि जांच रिपोर्ट से स्पष्ट है कि जांच अधिकारी द्वारा कोई तारीख, समय और स्थान तय नहीं किया गया था।''

    इसे देखते हुए, कोर्ट ने आक्षेपित आदेश को अवैध और मनमाना करार दिया और तदनुसार रद्द कर दिया। इसके अलावा, इसने निर्देश दिया कि सरकार याचिकाकर्ता की पेंशन से की गई कटौती की राशि छह सप्ताह के भीतर, कटौती की तारीख से कटौती की पूर्ण वापसी तक छह फीसदी की दर से ब्याज के साथ वापस किए जाने के लिए उत्तरदायी थी।

    केस का शीर्षक - एकलव्य कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (अपर मुख्य सचिव/प्रधान सचिव पी.डब्ल्यू.डी. के माध्यम से) और अन्य।

    उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (इलाहाबाद) 408

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