बी.एड. ग्रेजुएशन की "बैचलर डिग्री" नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

Shahadat

2 Sept 2022 1:01 PM IST

  • गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि बी.एड. डिग्री यानी बैचलर ऑफ एजुकेशन ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं है, क्योंकि उक्त कोर्स उदाहरण के तौर पर तीन-वर्षीय एलएलबी कोर्स, आर्ट या साइंस की किसी भी ब्रांच में ग्रेजुएशन होने के बाद ही पढ़ा जा सकता है।

    कोर्ट ने माना कि बी.एड. डिग्री ग्रेजुएशन की न्यूनतम निर्धारित योग्यता वाले पदों के लिए ओवर-क्वालिफाइड हैं। इस प्रकार, अधिक योग्यता रखने के लिए उनकी उम्मीदवारी को अस्वीकार करना कानून में गलत नहीं माना जा सकता।

    कोर्ट ने मुख्य प्रबंधक, पंजाब नेशनल बैंक और अन्य बनाम अनित कुमार दास पर भरोसा किया, जहां माना गया कि याचिकाकर्ता-उम्मीदवारों को सहायक सुरक्षा निरीक्षक, यातायात निरीक्षक और स्टोर कीपर के पदों के लिए सही नहीं माना गया, क्योंकि वह ओवर-क्वालिफाइड है।

    कोर्ट ने कहा,

    "याचिकाकर्ता विज्ञापन के अनुसार न्यूनतम निर्धारित योग्यता से अधिक योग्यता रखते हैं और ऐसा कोई प्रावधान या नियम नहीं है जो यह निर्धारित करता है कि पद के लिए निर्धारित निम्न योग्यता के अधिग्रहण की उच्च योग्यता भी पद के लिए पर्याप्त होगी।"

    दो याचिकाकर्ताओं ने बी.एड. डिग्री ली, लेकिन इसे पदों के लिए आवश्यक स्नातक की डिग्री के समकक्ष नहीं माना गया। अन्य याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को सीजीपीए की गलत गणना के आधार पर खारिज कर दिया गया। अंत में याचिकाकर्ता में से एक को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उसके पास न्यूनतम योग्यता से अधिक योग्यता है।

    याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि बी.एड. ग्रेजुएशन डिग्री के समकक्ष है और इसे पोस्ट-ग्रेजुएशन की डिग्री नहीं कहा जा सकता। उन्होंने यह भी प्रस्तुत किया कि शब्द 'ग्रेजुएशन' और 'बैचलर' शब्दकोषों के पर्यायवाची हैं, जिसका अर्थ है कि प्रथम यूनिवर्सिटी की डिग्री वाला व्यक्ति। इसलिए, वे पद के लिए योग्य उम्मीदवार हैं।

    हालांकि, प्रतिवादी निगम ने इसका विरोध करते हुए कहा कि बी.एड. ग्रेजुएशन कोर्स नहीं है। यह केवल बीए या बीएससी प्राप्त करने के बाद शिक्षण में रुचि रखने वालों के लिए पेश किया जाता है। प्रतिवादी ने यह भी जोर दिया कि संस्थान और उसकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पद की योग्यता की प्रासंगिकता और उपयुक्तता का निर्धारण नियोक्ता के लिए है।

    पुष्टि करते हुए कि बी.एड. आर्ट या साइंस में स्नातक होना आवश्यक है, हाईकोर्ट ने समझाया कि इसे ग्रेजुएशन की स्नातक की डिग्री नहीं माना जा सकता। यह भी नोट किया कि अनीत कुमार दास मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च योग्यता रखने वाले व्यक्ति को चपरासी के पद के लिए पात्र नहीं माना।

    जस्टिस करिया ने इस आलोक में दोहराया:

    "प्रशासन की अत्यावश्यकता सामान्य कानून के मुताबिक प्रशासनिक निर्णय लेने के क्षेत्र में आता है। सार्वजनिक नियोक्ता के रूप में राज्य सामाजिक दृष्टिकोण को अच्छी तरह से ध्यान में रख सकता है जिसके लिए सामाजिक संरचना में नौकरी के अवसरों के सृजन की आवश्यकता होती है। ये सभी अनिवार्य रूप से नीति मामले हैं। न्यायिक समीक्षा को सावधानी से चलना चाहिए।"

    केस नंबर: सी/एससीए/16694/2017

    केस टाइटल: बृजेशकुमार दशरथलाल पटेल बनाम अध्यक्ष और 31 अन्य

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