सीआरपीसी की धारा 389 और एनआई अधिनियम की धारा 148 एक-दूसरे से स्वतंत्र, एनआई अधिनियम की धारा 148 का अनुपालन न करने से अपील लंबित रहने के दौरान सजा के निलंबन को खतरा नहीं : पंजाब एंंड हरियाणा हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

29 Aug 2022 5:03 AM GMT

  • सीआरपीसी की धारा 389 और एनआई अधिनियम की धारा 148 एक-दूसरे से स्वतंत्र, एनआई अधिनियम की धारा 148 का अनुपालन न करने से अपील लंबित रहने के दौरान सजा के निलंबन को खतरा नहीं : पंजाब एंंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी है कि सीआरपीसी की धारा 389 और नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 148 एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं। जहां सीआरपीसी की धारा 389 दोषी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा से जुड़ी है, वहीं एनआई अधिनियम की धारा 148 दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 389 में किए गए जनादेश के लिए सहायक या पूरक है।

    सीआरपीसी की धारा 389 में अपील के लंबित रहने/ जमानत पर अपीलकर्ता की रिहा होने पर साज के निलंबन का प्रावधान है। एनआई अधिनियम की धारा 148 दोषसिद्धि के खिलाफ लंबित अपील की स्थिति में भुगतान (जुर्माने या निचली अदालत द्वारा दिए गए मुआवजे का न्यूनतम बीस प्रतिशत) का आदेश देने के लिए अपीलीय न्यायालय की शक्ति निर्धारित करता है।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने आगे कहा कि एनआई अधिनियम की धारा 148 के तहत किए गए एक निर्णायक आदेश का पालन न करने से सीआरपीसी की धारा 389 के तहत दोषी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा और न ही पथभ्रष्ट अपराधी न्यायिक हिरासत में रखे जाने के लिए उत्तरदायी हो जाएगा।

    कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि कारावास की सजा के निष्पादन को निलंबित करने का आदेश पूर्ण रूप से प्रभावी हो, अपीलीय कोर्ट सीआरपीसी की धारा 389 के तहत दोषी को निजी बॉण्ड और मुचलके के अलावा चेक राशि का उचित प्रतिशत जमा करने का निर्देश दे सकता है।

    हालांकि, इसने आगाह किया कि अपीलीय कोर्ट को यह ध्यान में रखना चाहिए कि इस तरह के निर्देश एनआई अधिनियम के तहत राशि जमा करने के आदेश पर रोक नहीं लगाएंगे।

    "सीआरपीसी की धारा 389 के तहत दिए गए आदेश के बाद अधिनियम की धारा 148 के तहत प्रदत्त उपाय शिकायतकर्ता द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है और यदि ऐसा है तो विद्वान अपीलीय कोर्ट को सीआरपीसी की धारा 389 के तहत अर्जी का निर्धारण करते समय दोषी को चेक राशि का एक उचित प्रतिशत जमा करने के लिए कहना आवश्यक हो सकता है, साथ ही इस तथ्य को अनिवार्य रूप से दिमाग में रखना आवश्यक है कि उपरोक्त राशि 20 प्रतिशत से अधिक न हो।"

    कोर्ट ने आगे व्याख्या की:

    यदि सीआरपीसी की धारा 389 के तहत अपीलीय कोर्ट मुआवजे/चेक राशि का 20 फीसदी जमा करने की शर्त पर कारावास की सजा को निलंबित कर देता है, तो बाद में एनआई अधिनियम की धारा 148 के तहत दर्ज की गयी अर्जी में, अपीलीय कोर्ट 'दोषी की परिसम्पतत्तियों पर पड़ने वाले बोझ समेत सभी प्रासंगिक तथ्यों को ध्यान में रखते हुए', दोषी को मुआवजे की राशि का 20 फीसदी और जमा करने का निर्देश दे सकता है।

    यदि दोनों अर्जियां एक साथ दायर की जाती हैं, तो दोनों को परस्पर आनुपातिकता के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए न्यायसंगत और निष्पक्ष तरीके से निर्णय लिया जाना आवश्यक है।

    सीआरपीसी की धारा 389 के तहत किए गए आदेश के अनुपालन में, दोषी द्वारा जमा किए गए धन का संवितरण, उपयुक्त ट्रायल के परिणाम द्वारा विनियमित होगा, लेकिन अपराध संघटित होने की स्थिति में, अपीलीय कोर्ट शिकायतकर्ता को वैध रिहाई करा सकता है।

    कोर्ट शिकायतकर्ता द्वारा दायर उस याचिका पर विचार कर रहा था, जिसमें तर्क दिया गया था कि प्रतिवादी-दोषी की सजा का निलंबन तब तक प्रभावी नहीं हो सकता जब तक कि 20 फीसदी मुआवजे की राशि जमा करने के लिए एएनआई अधिनियम की धारा 148 के तहत पारित आदेश का पालन नहीं किया जाता है।

    इस तरह की दलील को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एनआई अधिनियम की धारा 148 सीआरपीसी में निहित किसी भी प्रावधान पर अधिप्रभावी होती है। हालांकि, यह संहिता की धारा 389 में किए गए अधिदेश को पूरी तरह से खत्म नहीं करती है और न ही बेदखल करती है।

    उपरोक्त निष्कर्ष एक घिसे पिटे निर्देशों में दफन हो जाता है कि सीआरपीसी की धारा 389, लागू करने योग्य कुछ प्रासंगिक शर्तों पर, एक अपराधी की स्वतंत्रता सुरक्षित रखने का काम करती है, इसलिए राहत की मांग करते हुए, उस पर लगाए गए कारावास की मूल सजा के निष्पादन के लिए, उपयुक्त अपील के लंबित रहने के दौरान सजा निलंबित हो जाती है। इसके विपरीत, इसलिए उपयुक्त अपील के लंबित रहने के दौरान धारा 148 (सुप्रा) में किया गया जनादेश शिकायतकर्ता को प्रतिपूरक/अंतरिम आर्थिक राहत के रूप में केवल व्यावहारिक है ।

    कोर्ट ने आगे कहा कि इसके अलावा, धारा 389 को एक सावधानीपूर्वक पढ़ने से पता चलता है कि, अधिनियम की धारा 148 के तहत पारित आदेश के निष्पादन को सुनिश्चित करने के लिए, एनआई अधिनियम के तहत क्षेत्राधिकार की दृष्टि से आरोपी को न्यायिक कैद में भेजने का अधिकार नहीं है।

    इसी तरह, दोषी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए एनआई अधिनियम की धारा 148 में कोई प्रावधान नहीं है, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 389 में प्रावधान किया गया है और/या विद्वान अपीलीय कोर्ट के समक्ष अपील लंबित रहने के दौरान दोषी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा को खतरे में नहीं डाला जा सकता है।

    केस टाइटल: अमित कुमार (मृतक) कानूनी वारिस की मां श्रीमती सुशीला देवी के जरिये बनाम हरियाणा सरकार एवं अन्य

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