कथित तौर पर अनधिकृत संपत्ति के खिलाफ विध्वंस कार्रवाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक मालिक/निवासी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
1 Sep 2022 6:29 AM GMT
![कथित तौर पर अनधिकृत संपत्ति के खिलाफ विध्वंस कार्रवाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक मालिक/निवासी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता: दिल्ली हाईकोर्ट कथित तौर पर अनधिकृत संपत्ति के खिलाफ विध्वंस कार्रवाई तब तक नहीं की जा सकती जब तक मालिक/निवासी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता: दिल्ली हाईकोर्ट](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2022/09/01/750x450_433132-justice-c-hari-shankar.jpg)
दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि किसी संपत्ति को इस आधार पर नहीं गिराया जा सकता कि वह अनधिकृत है, जब तक कि मालिक या निवासी को सुनवाई का पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता।
जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अनुपालन का कोई जवाब नहीं कि अगर अवसर दिया जाता तो प्रभावित करने वाले लोगों के पास कोई बचाव नहीं होता।
कोर्ट ने कहा,
"मेरे विचार से किसी भी संपत्ति को इस आधार पर ध्वस्त करने का कोई सवाल ही नहीं हो सकता कि यह अनधिकृत है, जब तक कि संपत्ति के मालिक और/या संपत्ति के कब्जे वाले/रहने वाले व्यक्ति को सुनवाई का पर्याप्त अवसर नहीं दिया जाता। इससे प्राकृतिक न्याय के उचित सिद्धांतों का पालन होता है।"
वादी नाम के हनुनपुई (यहां याचिकाकर्ता) द्वारा दीवानी मुकदमा दायर किया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि अंबावत (यहां प्रतिवादी) सूट संपत्ति की सातवीं और आठवीं मंजिल पर अवैध और अनधिकृत निर्माण कर रहा है। उसने प्रार्थना की कि उसे ध्वस्त कर दिया जाए। दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने लिखित जवाब में कहा कि पूरी संपत्ति अनधिकृत है और विध्वंस के लिए निर्देश जारी किया।
अंबावत ने तब वादी के खिलाफ मुकदमा दायर कर एमसीडी को उसके फ्लैट में हनुनपुई द्वारा किए गए कथित अवैध निर्माण को ध्वस्त करने और भविष्य में इस तरह के किसी भी अवैध निर्माण को नहीं करने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा के लिए निर्देश देने की मांग की।
याचिकाकर्ता ने उसके खिलाफ प्रतिवादी द्वारा स्थापित दीवानी मुकदमे में मुकदमे पर रोक लगाने की मांग करते हुए आवेदन दिया, जिसमें दावा किया गया कि इसमें समान और संगत मुद्दे शामिल हैं। इसके परिणाम उसके लंबित मुकदमे को प्रभावित कर सकते हैं।
सीनियर सिविल न्यायाधीश ने हालांकि उक्त आवेदन को खारिज कर दिया। उक्त आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई।
हाईकोर्ट ने कहा कि पहले के मुकदमे के लंबित रहने के दौरान बाद के मुकदमे में सुनवाई के लिए जो आवश्यक है, वह दो मुकदमों में मुद्दे की एकता और पहचान है, इस हद तक कि अंतिम निर्णय में पूर्व वाद बाद में न्यायिक निर्णय के रूप में कार्य करेगा।
हाईकोर्ट ने कहा,
"सुप्रीम कोर्ट द्वारा ट्रिपल ट्रायल की पहचान की गई है; कार्रवाई के कारण विषय-वस्तुऔर राहत की पहचान होनी चाहिए। ओवरलैपिंग अपर्याप्त है; जो आवश्यक है वह पहचान है।"
आक्षेपित आदेश को बरकरार रखते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सीनियर सिविल न्यायाधीश यह सुनिश्चित करेंगे कि याचिकाकर्ता की संपत्ति के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के अनुपालन के बाद ही की जाए।
कोर्ट ने आदेश दिया,
"यदि मुकदमा लंबित होने के बावजूद, याचिकाकर्ता की संपत्ति को ध्वस्त कर दिया जाता है तो मुकदमे में निर्णय के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। इन पहलुओं को वाद में आगे बढ़ते समय एससीजे द्वारा ध्यान में रखा जाना आवश्यक है।"
तद्नुसार याचिका का निस्तारण किया गया।
केस शीर्षक: एमएस हनुनपुई बनाम दिल्ली नगर निगम और अन्य।
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