हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

21 Aug 2022 5:00 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (15 अगस्त, 2022 से 19 अगस्त, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    पक्षकारों को जब मध्यस्थता के लिए भेजा जाता है तो सिविल कोर्ट आदेश पारित करने से पहले मध्यस्थता रिपोर्ट का इंतजार करने के लिए बाध्य: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब दीवानी अदालत ने सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 89 के तहत मध्यस्थता (Mediation) के लिए दीवानी मुकदमे के पक्षकारों को भेजा जाता है तो मुकदमे में आगे के आदेश पारित करने से पहले मध्यस्थता रिपोर्ट की प्रतीक्षा करने का दायित्व है। जस्टिस सी.एस. डायस ने मामले की सुनवाई करते हुए पूछा कि क्या निचली अदालत ने मुकदमे को 'दबाया नहीं' कहकर खारिज करने में गलती की है।

    केस टाइटल: शाइबू बी. वी. संजीव

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    केवल गलत प्रावधान का उल्लेख करने से प्राधिकरण की वैधानिक शक्ति कमजोर नहीं होती: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि प्राधिकरण द्वारा अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए गलत प्रावधान उद्धृत करने मात्र से आदेश अमान्य नहीं होगा। हाईकोर्ट ने कहा कि उक्त आदेश तब तक अमान्य नहीं होगा जब तक यह दिखाया गया है कि ऐसा आदेश अन्यथा क़ानून के अन्य प्रावधानों के तहत पारित किया जा सकता है।

    तदनुसार, जस्टिस एएस सुपेहिया ने रिट याचिकाकर्ता के खिलाफ बेदखली के आदेश को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा: "याचिकाकर्ता को अपने पिता की मृत्यु के बाद भी प्रतिवादी नगरपालिका की संपत्ति पर कब्जा करने का कोई अधिकार नहीं है, जिसे संपत्ति वर्ष 1971 में 11 महीने के लिए किराए पर दी गई थी। याचिकाकर्ता के मामले में बेदखली अधिनियम के प्रावधानों को ठीक से लागू किया गया है। इसलिए, इस न्यायालय के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।"

    केस टाइटल: जाफरखान अल्लाराकभाई राधानपुरी बनाम ढोलका नगर पालिका

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    डीवी एक्ट । मजिस्ट्रेट के पास मामले को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने, समझौता दर्ज करने और निपटारा दर्ज करने की शक्ति : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (डीवी एक्ट ) से महिलाओं के संरक्षण के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले मजिस्ट्रेट के पास सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 89 के अनुसार मामले को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने, समझौता दर्ज करने और सीपीसी के आदेश XXIII नियम 3 के सिद्धांतों को लागू करने वाले समझौते के संदर्भ में एक आदेश पारित करने की शक्ति है।

    केस: मैथ्यू डेनियल बनाम लीना मैथ्यू

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    एक वकील जो अदालतों के सामने पेश नहीं होता है और खुद को 'एडवोकेट' के रूप में नामित नहीं कर सकता है, भले ही वह बार काउंसिल में नामांकित हो: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने दोहराया कि एक वकील जो अदालतों के सामने पेश नहीं होता है और खुद को "एडवोकेट" के रूप में नामित नहीं कर सकता है, भले ही वह बार काउंसिल में नामांकित हो।

    कोर्ट ने कहा कि एडवोकेट अधिनियम और बार काउंसिल के नियमों के अनुसार, एक बार रोजगार की शर्तों के लिए एक वकील को अदालतों के सामने याचना करने और पेश होने की आवश्यकता नहीं होती है, तो रोजगार की इस अवधि के दौरान, किसी व्यक्ति को 'एडवोकेट' नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वह एक एडवोकेट के रूप में प्रैक्टिस नहीं कर रहा है।

    केस टाइटल: पृथ्वीराजसिंह भागीरथसिंह जडेजा बनाम गुजरात राज्य एंड 2 अन्य

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    सेवा मामलों से संबंधित विवाद में जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि 'सेवा मामलों' से संबंधित विवादों में जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई नहीं की जा सकती। चीफ जस्टिस डॉ एस मुरलीधर और जस्टिस राधा कृष्ण पटनायक की खंडपीठ ने प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की नियुक्ति में कथित अनियमितताओं से संबंधित मामले का फैसला करते हुए उपरोक्त सिद्धांत का पालन किया, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कई बार दोहराया गया।

    केस टाइटल: हंसमीना कुमारी दास और अन्य बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

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    माता-पिता का निर्धारण करने के लिए डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दिया जा सकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अदालत निश्चित रूप से डीएनए टेस्ट का आदेश नहीं दे सकती। इस कारण डीएनए टेस्ट का आदेश देने की प्रार्थना की अनुमति नहीं दी जा सकती। हालांकि, वर्तमान मामले में प्रतिवादी के माता-पिता के बारे में पूछताछ की जा सकती है।

    जस्टिस अलका सरीन की पीठ ने आगे कहा कि अपनी याचिका के समर्थन में सबूत जोड़कर अपने मामले को साबित करने का बोझ पक्षकार पर है। अदालत किसी पक्ष को अपने मामले को साबित करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती (डीएनए टेस्ट से गुजरना) जैसा कि मुकदमा लड़ने वाले पक्ष ने सुझाव दिया है।

    केस टाइटल: सुखदेव सिंह और अन्य बनाम जसविंदर कौर

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    चार्जशीट पर हस्तलिखित संज्ञान आदेश पारित करने के बाद प्रिंटेड प्रोफार्मा पर समन जारी करना अमान्य नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा है कि यदि संज्ञान लेने का आदेश चार्जशीट के प्रथम पृष्ठ पर हस्तलिखित में पारित किया गया है, न कि प्रोफार्मा भरकर, तो प्रिंटेड प्रोफार्मा पर समन जारी करने का आदेश मान्य होगा।

    जस्टिस मो. असलम ने स्पष्ट किया कि यदि लिखित आदेश के माध्यम से पुलिस चार्जशीट का संज्ञान लेने के बाद प्रिंटेड प्रोफार्मा पर समन जारी किया जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि संज्ञान आदेश एक प्रोफार्मा आदेश है।

    केस टाइटल - किरण कुंवर एंड 2 अन्य बनाम यू.पी. राज्य एंड अन्य [आवेदन U/S 482 No.-15581 of 2019]

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    सिविल न्यायालयों को धारा 92 सीपीसी के क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से पहले 'ट्रस्ट' की धार्मिक/धर्मार्थ प्रकृति का पता लगाना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 92 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने के लिए सिविल कोर्ट को पहले रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री से तथ्यात्मक निष्कर्ष निकालना है कि ट्रस्ट एक सार्वजनिक धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट है और यह भी कि क्या न्यायालय से संपर्क करने वाले व्यक्तियों का ट्रस्ट में कोई हित है।

    जस्टिस आर नटराज की एकल पीठ ने आदर्श सुगम संगीता अकादमी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और यहां प्रतिवादी वृंदा एस राव और पुष्पा एमके को उनके खिलाफ मुकदमा दायर करने की अनुमति देने के आदेश को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: आदर्श सुगम संगीता अकादमी बनाम वृंदा एस राव और अन्य

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    समझौते से अनुबंध समाप्त होने के बाद अनुबंध के तहत विवाद व्यर्थ, मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जा सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने व्यवस्था दी है कि एक बार जब पार्टियों के बीच समझौता हो जाने के बाद अनुबंध आपसी समझौते से समाप्त हो जाता है तो उक्त अनुबंध के तहत उत्पन्न होने वाला विवाद व्यर्थ है जिसे मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि समझौते के तथ्य सहित तथ्यों को छुपाने या दबाने वाला पक्षकार मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (ए एंड सी अधिनियम) की धारा 11 के तहत राहत का हकदार नहीं है।

    केस टाइटल: विश्वजीत सूद एंड कंपनी बनाम एल एंड टी स्टेक जेवी, मुंबई

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    कोर्ट, वकील एडवोकेट जनरल के कार्यालय में लगी आग में जले केस रिकॉर्ड के पुनर्निर्माण के लिए राज्य द्वारा उठाए गए कदमों से अवगत नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने देखा कि 17 जुलाई को स्टेट एडवोकेट जनरल कार्यालय की छठी, सातवीं, आठवीं और नौवीं मंजिल पर लगी आग में जले केस रिकॉर्ड के पुनर्निर्माण में विफल रहा है। कोर्ट ने इसे अत्यंत खेदजनक स्थिति बताई।

    जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने टिप्पणी की, "यह अत्यंत खेदजनक स्थिति है कि उक्त घटना दिनांक 17.07.2022 को आज लगभग एक माह बीत चुका है, लेकि प्रयागराज स्थित सरकारी वकील के कार्यालय में समुचित कार्य सुचारु रूप से नहीं हो पाया है। राज्य के वकील के पास रिकॉर्ड या उचित निर्देश की अनुपलब्धता के परिणामस्वरूप, वादी पीड़ित हैं।"

    केस टाइटल - विक्रम सिंह बनाम यू.पी. राज्य एंड एक अन्य [आपराधिक अपील संख्या – 729 ऑफ 2022]

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    संपत्ति का कब्जा/स्वामित्व बिजली चोरी के खिलाफ कार्यवाही के लिए प्रासंगिक विचार: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट के एक हालिया आदेश में बिजली अधिनियम की धारा 135 के तहत कथित रूप से बिना लाइसेंस के कनेक्शन के एक व्यक्ति को बरी करने के आदेश में यह स्पष्ट किया कि मामले में संपत्ति के स्वामित्व/कब्जे को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

    जस्टिस अशोककुमार जोशी ने राज्य की अपील को कई आधारों पर खारिज कर दिया, जिसमें यह तथ्य भी शामिल था कि पुलिस ने तथाकथित घटना स्थल के लिए आरोपी के कब्जे या स्वामित्व को दिखाने के लिए कोई प्रमाण पत्र या दस्तावेज नहीं मांगे थे।

    केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम बलवंतसिंह अमरसिंह राज

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    एक निश्चित समय बीतने और संकट समाप्त होने के बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा/पेशकश नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दावा या पेशकश नहीं की जा सकती है, जो महत्वपूर्ण समय व्यतीत होने और संकट समाप्त होने के बाद हो। अदालत ने टिप्पणी की, "अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य संबंधित कर्मचारी की अप्रत्याशित मौत के कारण शोक संतप्त परिवार को तत्काल वित्तीय संकट से उबारना है।"

    केस टाइटल- संजय कुमार सिंह बनाम. यू.पी. राज्य और अन्य [WRIT - A No. - 4725/2003]

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    सीआरपीसी शिकायत में संशोधन करने पर रोक नहीं लगाता, दूसरे पक्षकार के प्रति कोई पूर्वाग्रह न हो तो अदालत ऐसे अनुरोध की अनुमति दे सकती है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि परक्राम्य लिखत अधिनियम के तहत मामले में शिकायतकर्ता अपनी शिकायत में संशोधन/संशोधन कर सकता है। इस तरह के संशोधनों को किस स्तर और किस हद तक अनुमति दिए जाने के संबंध में अदालत ने कहा कि किसी भी स्तर पर साधारण संशोधन की अनुमति दी जा सकती है, जिससे आरोपी को कोई नुकसान न हो।

    जस्टिस डी.के. पालीवाल ने देखा, यह निर्विवाद है कि शिकायतकर्ता के संशोधन से संबंधित दंड प्रक्रिया संहिता में कोई विशेष प्रावधान नहीं है। साथ ही शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत में संशोधन करने की अनुमति देने के खिलाफ सीआरपीसी के तहत कोई रोक नहीं है। ... उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह स्पष्ट है कि निचली अदालत ने संशोधित आदेश पारित करने में कोई त्रुटि नहीं की। शिकायतकर्ता द्वारा किया जाने वाला संशोधन केवल साधारण दुर्बलता को ठीक करने से संबंधित है। इसके परिणामस्वरूप अभियुक्त पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है। न्यायालय द्वारा कार्यवाही के किसी भी चरण में इसकी अनुमति दी जा सकती है, क्योंकि इससे शिकायत की प्रकृति नहीं बदलती है।

    केस टाइटल: भूपेंद्र सिंह ठाकुर बनाम उमेश साहू

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    मोटर वाहन अधिनियम के तहत याचिका में दलीलों के बारीक तत्वों को शामिल न करना दावेदार के लिए घातक नहीं: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि बहस के बारीक तत्व, जिनका दीवानी मुकदमे जैसी कार्यवाही में उल्लेख किया जाना आवश्यक है, यदि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के तहत दायर दावा याचिका में उन्हें शामिल नहीं किया गया तो यह जरूरी नहीं कि दावेदार के लिए यह घातक साबित होगा।

    जस्टिस पुनीत गुप्ता की एक पीठ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपीन में याचिकाकर्ता ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, उधमपुर के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने मृतक-बेटी पर उसकी निर्भरता के कारण मुआवजे के हकदारी के संबंध में फैसला उसके खिलाफ किया था।

    केस टाइटल: राम चरण सिंह बनाम रंज्योति सिंह।

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    'वकील कोर्ट के अधिकारी हैं, वे उसी तरह के सम्मान के हकदार हैं जो न्यायिक अधिकारियों और कोर्ट के पीठासीन अधिकारियों को दिया जाता है': जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वकील कोर्ट के अधिकारी हैं और वे उसी तरह के सम्मान के हकदार हैं जो न्यायिक अधिकारियों और कोर्ट के पीठासीन अधिकारियों को दिया जा रहा है। जस्टिस संजय धर ने देखा, "बेंच और बार न्याय के रथ के दो पहिये हैं। दोनों समान हैं और कोई भी दूसरे से श्रेष्ठ नहीं है। बार के सदस्य भी अत्यंत सम्मान और गरिमा के पात्र हैं।"

    केस टाइटल: लतीफ अहमद राथर बनाम शफीका भाटी

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    पेंशन का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने हाल ही में कहा कि पेंशन (Pension) का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार (Constitutional Rights) है और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान केवल नियोक्ताओं की मर्जी से नहीं किया जा सकता है। जस्टिस वी जी अरुण ने कहा कि पेंशन आस्थगित वेतन है और इसका अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत संपत्ति के अधिकार के समान है।

    केस टाइटल: अभिलाष कुमार आर एंड अन्य बनाम केरल बुक्स एंड पब्लिकेशन सोसाइटी एंड अन्य।

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    [निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट] मामले के निपटारे में देरी धारा 143A के तहत अंतरिम मुआवजा देने का आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NIAct) की धारा 138 के तहत दायर मामले के निपटारे में देरी अधिनियम की धारा 143 ए के तहत अंतरिम मुआवजा देने का आधार नहीं हो सकता है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पद्मनाभ टीजी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और दिनांक 09.11.2021 के आदेश को रद्द कर दिया जिसमें याचिकाकर्ता को चेक राशि का 10 प्रतिशत भुगतान करने का निर्देश दिया गया और मामले को फिर से आदेश पारित करने के लिए मजिस्ट्रेट अदालत को वापस भेज दिया गया।

    केस टाइटल: पद्मनाभ टी जी वी. मैसर्स रेडिकल वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड

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    विशेष क्षेत्राधिकार सिविल सूट के लिए अच्छा, मध्यस्थता की सीट को प्रभावित नहीं कर सकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने माना कि केवल इसलिए कि एक भ‌िन्न न्यायालय को विशेष अधिकार क्षेत्र प्रदान किया गया है, यह विपरीत संकेत नहीं हो सकता और मध्यस्थता का स्थान अभी भी मध्यस्थता की सीट ही होगी। जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि विशेष क्षेत्राधिकार क्लॉज मध्यस्थता के स्थान/सीट के पदनाम का स्थान नहीं ले सकता है।

    केस टाइटल: मेसर्स आरके खनिज विकास प्रा लिमिटेड बनाम हिंडाल्को इंडस्ट्रीज लिमिटेड Arbitration Application No. 21 of 2019

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    पति का पत्नी को आगे की पढ़ाई के लिए कहना, बच्चा पैदा करने के बारे में विचार व्यक्त करना 'क्रूरता' नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पति अपनी पत्नी को शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए सुझाव दे या उसे ऐसा कहे तो उसे क्रूरता नहीं माना जा सकता है। ज‌स्टिस डॉ एचबी प्रभाकर शास्त्री की एकल पीठ ने डॉ शशिधर सुब्बान्ना और उनकी मां द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और भारतीय दंड की धारा 498-ए, धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए निचली अदालत द्वारा उन्हें दी गई सजा को रद्द कर दिया।

    केस टाइटल: डॉ शशिधर सुब्बान्ना बनाम कर्नाटक राज्य

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    उम्मीदवार अधिकार के रूप में यह दावा नहीं कर सकते कि किसी भी सरकारी पद पर हर साल भर्ती होनी चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि उम्मीदवार अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते कि किसी भी पद पर भर्ती हर साल की जानी चाहिए। इसके साथ ही कोर्ट ने कुछ अधिक उम्र के सहायक अभियोजन अधिकारी परीक्षा - 2022 उम्मीदवारों को राहत देने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि राज्य सरकार की ओर से साल-वार पदों पर भर्ती नहीं करने की निष्क्रियता के कारण उम्मीदवारों को अधिक आयु होने के कारण चयन प्रक्रिया में भाग लेने का अधिकार नहीं मिल सकता।

    केस टाइटल- अजय कुमार यादव और एक अन्य बनाम राज्य यू.पी. और 2 अन्य जुड़े मामलों के साथ

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    [मोटर दुर्घटना] साक्षर दावेदार विवेक का प्रयोग कर सकते हैं, ट्रिब्यूनल को बिना कारण बताए फिक्स्ड डिपॉजिट रिसीप्ट में अपना पैसा निवेश करने से बचना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने एक वायु सेना के व्यक्ति को मोटर दुर्घटना दावों में दिए गए मुआवजे की फिक्स्ड डिपॉजिट रिसीप्ट को समय से पहले निकालने की अनुमति दी, जो अपने स्थायी निवास के लिए घर खरीदने का इरादा रखता है।

    जस्टिस गीता गोपी ने कहा, "जमा किए गए धन दावेदारों के हैं। साक्षर विवेकपूर्ण ढंग से विवेक का प्रयोग कर सकते हैं, अपने फंड का प्रबंधन कर सकते हैं और व्यक्तिगत रूप से फंड के निवेश के लिए व्यवस्थित योजना के बारे में निर्णय ले सकते हैं। साक्षर व्यक्ति के मामले में, ट्रिब्यूनल को पांडित्य को नहीं अपनाकर छूट देना आवश्यक है। लंबी अवधि के जमा में पैसा निवेश करने के कारणों को दर्ज किए बिना लंबी अवधि के एफडीआर में पैसा निवेश करने का दृष्टिकोण।"

    केस टाइटल: धवलकुमार अशोकभाई अघेरा बनाम रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड।

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    साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत एक सह-आरोपी द्वारा दिया गया डिसक्लोजर बयान नॉन मेकर आरोपी के खिलाफ कानूनी सबूत नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने हाल ही में कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत एक सह-अभियुक्त द्वारा दिया गया डिसक्लोजर बयान नॉन मेकर आरोपी के खिलाफ कानूनी सबूत नहीं है। जस्टिस निजामोद्दीन जहीरोद्दीन जमादार की पीठ ने एक राजू जोखनप्रसाद गुप्ता को उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 307 [हत्या का प्रयास] के तहत दर्ज एक मामले में जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल - राजू जोखनप्रसाद गुप्ता बनाम महाराष्ट्र राज्य [जमानत आवेदन संख्या 1406 ऑफ 2022]

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    आर्बिट्रेटर की नियुक्ति की मांग करने वाले पक्षकार को अधिनियम की धारा 11(6) के तहत प्रक्रिया का पालन करके दूसरे पक्षकर की विफलता दिखाना चाहिए: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि अदालत के हस्तक्षेप के माध्यम से मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग करने वाले पक्षकार को यह प्रदर्शित करना चाहिए कि प्रक्रिया का पालन करने और पहले मध्यस्थ की नियुक्ति के अनुरोध को स्वीकार करने में दूसरे पक्ष द्वारा विफल रहा है। इसलिए वह अदालत का रुख कर रहे हैं।

    चीफ जस्टिस पंकज मिथल की एकल पीठ जम्मू-कश्मीर मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1997 की धारा 11 (6) के तहत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। यह मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 के साथ समान है, ताकि प्रतिवादी द्वारा उसे आवंटित दुकान के आवंटन के नवीनीकरण के संबंध में विवाद के समाधान के लिए स्वतंत्र मध्यस्थ की नियुक्ति की जा सके।

    केस टाइटल: अरशद हुसैन बनाम जनरल ऑफिसर कमांडिंग 56 एपीओ

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    'संभावित बचाव' पेश कर पाने में विफलता या चेक जारी करने और हस्ताक्षर करने से इनकार धारा 139 एनआई एक्ट के तहत अनुमान को मजबूत करता है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि चेक का आहर्ता "संभावित बचाव" जुटाने में विफल रहता है या कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण के अस्तित्व का विरोध करने या उसके बाद चेक जारी करने और हस्ताक्षर करने से इनकार करने में विफल रहता है तो परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 139 के तहत वैधानिक अनुमान चेक धारक के पक्ष में प्रभावी होता है।

    जस्टिस संदीप शर्मा ने एक चेक आहर्ता द्वारा दायर एक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें मजिस्ट्रेट द्वारा पारित दोषसिद्धि के फैसले और अपील में इसकी पुष्टि को चुनौती दी गई थी।

    केस टाइटल: रमेश कुमार बनाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और एएनआर।

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    प्रतिवादी द्वारा भुगतान की देयता विवादित नहीं होने पर मध्यस्थता खंड रिट याचिका के सुनवाई योग्य होने में बाधा नहीं: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने माना कि प्रतिवादी द्वारा भुगतान की देयता विवादित नहीं होने पर मध्यस्थता खंड रिट याचिका के सुनवाई योग्य होने में बाधा नहीं। जस्टिस चक्रधारी शरण सिंह और जस्टिस मधेश प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि एक बार प्रतिवादी द्वारा भुगतान की देयता स्वीकार कर लेने के बाद कोई विवाद नहीं रहता, जिसे मध्यस्थता खंड के लिए भेजा जा सकता हो। इसलिए, मध्यस्थता खंड (Arbitration Clause) अब रिट याचिका के लिए एक बार नहीं होगा।

    केस टाइटल: फुलेना कंस्ट्रक्शन प्रा. लिमिटेड बनाम बिहार राज्य, 2021 का सिविल रिट केस नंबर 3840

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    जब अनुबंध में इस तरह के शुल्क का प्रावधान नहीं है तो द मेजर पोर्ट ट्रस्ट एक्ट, 1963 के तहत विलंब शुल्क का अवार्ड मान्य नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि पक्षकारों के बीच अनुबंध में इस तरह के नुकसान के लिए कोई प्रावधान न होने पर मध्यस्थ ट्रिब्यूनल द मेजर पोर्ट ट्रस्ट एक्ट, 1963 के आधार पर विलंब शुल्क नहीं दे सकता।

    जस्टिस कृष्ण राव की खंडपीठ ने कहा कि ट्रिब्यूनल के इस तरह के आरोप लगाने के लिए समझौते में किसी प्रावधान के अभाव में विलंब शुल्क शुल्क प्रदान करने के कराया गया मध्यस्थ अवार्ड पेटेंट अवैधता से दूषित होगा। कोर्ट ने माना कि ट्रिब्यूनल विलंब शुल्क देने के लिए द मेजर पोर्ट ट्रस्ट एक्ट, 1963 के प्रावधानों का सहारा नहीं ले सकता, जब समझौते में विलंब शुल्क के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है या जब समझौते में अधिनियम का कोई संदर्भ नहीं है।

    केस टाइटल: स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया बनाम विजाग सीपोर्ट प्रा. लिमिटेड 2015 का एपी 1750

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    वेश्यालय के ग्राहकों पर अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज नहीं किया जा सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 के तहत एक वेश्यालय ग्राहक के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी। जस्टिस नीनाला जयसूर्या की पीठ ने तय कानूनी स्थिति को दोहराया कि एक ग्राहक जो वेश्या के साथ यौन संबंध रखने के लिए नकद भुगतान पर आया था, वह अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 की धारा 3, 4 और 5 के तहत अपराधों के लिए अभियोजन के लिए उत्तरदायी नहीं है।

    केस टाइटल : कोराडा सुब्रह्मण्यम बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    [आरटीई एक्ट] चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले भी शिक्षकों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (डिवीजन बेंच) ने फैसला सुनाया कि नि: शुल्क एंव अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE Act) की धारा 27 के मद्देनजर, स्थानीय निकाय, एक राज्य के विधानसभा या संसद चुनाव से संबंधित अधिसूचना जारी होने से पहले ही शिक्षकों को चुनाव ड्यूटी पर तैनात किया जा सकता है।

    चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जसप्रीत सिंह की पीठ ने आगे फैसला सुनाया कि शिक्षकों को शिक्षण दिनों या शिक्षण घंटों के दौरान तैनात नहीं किया जा सकता है, लेकिन गैर-शिक्षण दिनों और गैर-शिक्षण समय पर हो सकता है।

    केस टाइटल - निर्भय सिंह एंड अन्य बनाम यू.पी. राज्य और अन्य

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    सीआरपीसी की धारा 125-विवादित पितृत्व के मामलों में दावे की सत्यता सुनिश्चित होने तक बच्चे के भरण-पोषण देने में इंतज़ार किया जा सकता है : जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक याचिका पर विचार करने वाले मजिस्ट्रेट के लिए नाबालिग बच्चे को दिया जाने वाले भरण-पोषण एक सर्वाेपरि विचार होना चाहिए, लेकिन जब एक बच्चे के संबंध में गंभीर रूप पितृत्व विवादित (Disputed Paternity) हो तो पहले दावों की सत्यता का पता लगाए बिना एक मजिस्ट्रेट के लिए बच्चे के भरण-पोषण की जिम्मेदारी तय करना विवेकपूर्ण नहीं होगा।

    केस टाइटल- रायशा बनाम सैयद सुधांशु पांडे

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    अगर घरेलू शांति बनाए रखने का एकमात्र तरीका पति को घर से निकालना है तो उसे निकाल देना चाहिए, वैकल्पिक ठिकाना न होना प्रसांगिक नहीं : मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने स्थायी निषेधाज्ञा की मांग वाली पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि यदि घरेलू शांति सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका पति को घर से निकालना है तो फैमिली कोर्ट को ऐसे आदेश पारित करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

    जस्टिस आरएन मंजुला की पीठ ने कहा, "सुरक्षा आदेश आम तौर पर अपने घरेलू क्षेत्र में महिला के शांतिपूर्ण जीवन को सुनिश्चित करने के लिए दिए जाते हैं। जब महिला अपने पति की उपस्थिति से डरती है और चिल्लाती है तो न्यायालय केवल पति को यह निर्देश देकर उदासीन नहीं हो सकता कि वह पत्नी को परेशान न करे।"

    केस टाइटल: वी अनुषा बनाम बी कृष्णन

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    सीआरपीसी की धारा 372 के परंतुक के तहत 'पीड़ित' को अपील का वास्तविक अधिकार प्रदान करना प्रकृति में पूर्वव्यापी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि वर्ष 2009 में एक परंतुक (Proviso) जोड़कर सीआरपीसी की धारा 372 में किए गए संशोधन के तहत 'पीड़ित' को अपील का वास्तविक अधिकार प्रदान करना प्रकृति में पूर्वव्यापी नहीं है। इसका मतलब यह है कि, एक 'पीड़ित' [जैसा कि सीआरपीसी की धारा 2 w (wa) के तहत परिभाषित है] को 31 दिसंबर, 2009 से पहले पारित एक आदेश के खिलाफ अपील करने का कोई अधिकार नहीं है, जिसमें आरोपी को बरी करना/उसे अपराध के लिए दंडित करना/अपर्याप्त मुआवजा लगाना शामिल है।

    केस टाइटल - त्रियुगी नाथ तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड 2 अन्य [Criminal Appeal Defective U/S 372 CR.P.C. No- 10 of 2022]

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    मोटर दुर्घटना दावा | बाल पीड़ित को गैर-कमाई वाले वयस्क के बराबर नहीं गिना जा सकता, गैर-आर्थिक मदों के तहत मुआवजा दिया जाना चाहिए: गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि मोटर दुर्घटनाओं के शिकार बच्चे मुआवजे के मामले में कमाई न करने वाले वयस्कों से अलग पायदान पर खड़े होते हैं। जस्टिस गीता गोपी की खंडपीठ ने मल्लिकार्जुन बनाम डिवीजनल मैनेजर, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को याद करते हुए कहा कि मुआवजे से बच्चे को कुछ हासिल करने या जीवन शैली विकसित करने में सक्षम होना चाहिए, जो अपंगता से उत्पन्न होने वाली असुविधा या परेशानी को कुछ हद तक दूर करेगा।

    केस टाइटल: शैलेशभाई कंदुभाई रथवा बनाम गुर्जर शंकरलाल देवलाल

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    POCSO एक्ट आरोपियों पर सबूतों का भार डालता है, सीआरपीसी की धारा 311 के तहत महत्वपूर्ण गवाहों को समन करने की अनुमति दी जानी चाहिए : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने POCSO (लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) एक्ट के तहत दायर मुकदमे के संबंध में कहा कि अभियुक्त द्वारा सीआरपीसी की धारा 311 के तहत महत्वपूर्ण गवाहों को समन करने के लिए किए गए आवेदन को सामान्य रूप से अनुमति दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि यह अनुमति तब तक दी जानी चाहिए जब तक अदालत इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाती आरोप गलत या सही है।

    केस टाइटल: पेरियास्वामी एम बनाम कर्नाटक राज्य

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    अभियुक्तों के लिए एनआई अधिनियम की धारा 139 के तहत अनुमान का खंडन करने के लिए सबूत का मानक 'संभावनाओं की प्रबलता' का है: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया है कि जब नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट (एनआई) एक्ट की धारा 138 के तहत एक आरोपी को चेक धारक के पक्ष में अनुमान का खंडन करना होता है, तो ऐसा करने के लिए सबूत का मानक 'संभावनाओं की प्रबलता' है।

    यह टिप्पणी जस्टिस दीपक रोशन की ओर से आई: "यद्यपि अधिनियम की धारा 138 चेक के बाउंस होने के संबंध में एक मजबूत आपराधिक उपाय निर्दिष्ट करती है, धारा 139 के तहत खंडन योग्य अनुमान मुकदमेबाजी के दौरान अनुचित देरी को रोकने के लिए एक उपाय है। अनिवार्य औचित्य के अभाव में, 'रिवर्स ओनस क्लॉज' आमतौर पर एक प्रामाणिक दायित्व डालता है, न कि एक प्रभावी दायित्व। इसे ध्यान में रखते हुए, अब यह एक तय स्थिति है कि जब किसी आरोपी को धारा 139 के तहत अनुमान का खंडन करना होता है, तो ऐसा करने के लिए सबूत का मानक 'संभावनाओं की प्रबलता' है। इसलिए, यदि अभियुक्त संभावित बचाव करने में सक्षम है, जो कानूनी रूप से लागू करने योग्य ऋण या देनदारी के अस्तित्व के बारे में संदेह पैदा करता है, तो अभियोजन विफल हो जाता है।"

    केस शीर्षक: मोहम्मद सईद बनाम झारखंड सरकार और अन्य।

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    संविदात्मक अनुबंध के लिए सहमति देने वाला कामगार औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 एफ का लाभ नहीं उठा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने दोहराया कि रोजगार के सहमति पत्र में नियुक्ति अनुबंध के आधार पर विशिष्ट शर्त दी जाती है तो ऐसे में कर्मचारी प्रतिवादी प्रतिष्ठान द्वारा औद्योगिक विवाद अधिनियम धारा 25 (एफ) के उल्लंघन के तहते किसी भी लाभ का दावा नहीं कर सकता। वर्तमान याचिका वरिष्ठ अधिकारी पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए श्रम न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर की गई है। इसमें कहा गया कि श्रम न्यायालय को यह मानना चाहिए कि संविदा नियुक्ति केवल 'छलावरण' है और वह छंटनी मुआवजे की हकदार है।

    केस टाइटल: X बनाम INDEXT/C औद्योगिक विस्तार कॉटेज और 1 अन्य

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    मोटर दुर्घटना | मृतक की आय के साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफलता न्यूनतम वेतन के निम्नतम स्तर को अपनाने को उचित नहीं ठहराती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि दावेदार का मृतक की मासिक की आय दिखाने के लिए दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने में असमर्थ होने पर आय की गणना करते समय न्यूनतम वेतन के निम्नतम स्तर को अपनाने का औचित्य नहीं होना चाहिए।

    जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ ने उक्त टिप्पणी मृतक की मां को क्लेम ट्रिब्यूनल द्वारा 15,85,000 रुपए का मुआवाजा दिए जाने के आदेश के खिलाफ बीमा कंपनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की।

    केस टाइटल: यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम सुम्ना देवी

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    पति के बार-बार ताने देना और अन्य महिलाओं से तुलना मानसिक क्रूरता के समान: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पति द्वारा पत्नी के उसकी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरने के संबंध में बार-बार ताने देना और अन्य महिलाओं के साथ उसकी तुलना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आती है, जैसा कि विवाह भांग करने के उद्देश्य लिए तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10 (x) में प्रावधान दिया गया है।

    जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस सी.एस. सुधा की खंडपीठ ने कहा कि पति या पत्नी का आचरण क्रूरता के दायरे में आने के लिए यह इस आधार पर 'गंभीर और वजनदार' होना चाहिए कि याचिकाकर्ता के पति या पत्नी के दूसरे पति या पत्नी के साथ रहने की उचित उम्मीद न की जा सके।

    केस शीर्षक: xxxxxxxx बनाम xxxxxxxxxx

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    दीवानी मामला और आपराधिक कार्यवाही एक साथ तभी शुरू की जा सकती है जब "आपराधिकता" शामिल हो: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि दीवानी मामले और आपराधिक कार्यवाही दोनों एक साथ इस शर्त के साथ शुरू किया जा सकता है कि आरोपों में "आपराधिकता" की भावना शामिल हो। हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के कथित अपराध के लिए खारिज करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। उक्त मामला तथ्यों के एक ही सेट पर पैसे की वसूली के लिए दायर किया गया है।

    केस टाइटल: शिव शंकर प्रसाद @ शिव शंकर प्रसाद और झारखंड राज्य बनाम

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    सहमति से संबंध की विफलता आईपीसी की 376 (2) (n) के तहत बलात्कार के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) के जस्टिस रवि चीमालापति की सिंगल जज की पीठ ने कहा कि सहमति से संबंध की विफलता भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) (n) के तहत बलात्कार (Rape Case) के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है। आईपीसी की धारा 376(2)(एन), 417, 420, 323, 384, 506 के साथ 109 के तहत दंडनीय अपराधों के आरोपी याचिकाकर्ता ने नियमित जमानत मांगी थी।

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    पॉक्सो एक्ट जमानत देने पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं लगाता: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने हाल ही में देखा कि पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act), जो नाबालिगों के साथ यौन संबंधों को दंडित करता है, जमानत देने के लिए कोई विशेष प्रतिबंध नहीं लगाता है।

    जस्टिस सत्येन वैद्य ने टिप्पणी की, "पॉक्सो अधिनियम के तहत किए गए अपराध (अपराधों) में जमानत देने के लिए कोई विशेष प्रतिबंध नहीं लगाता है। बल्कि, इसकी धारा 31 दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधान करती है जिसमें जमानत के प्रावधान और उसमें कार्यवाही के लिए लागू बांड शामिल हैं।"

    केस टाइटल: प्रताप बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य

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    यूपीकेएसजेडपी अधिनियम | पंचायत कार्यालय में इस्तीफा नोटिस मिलने पर क्षेत्र पंचायत के निर्वाचित सदस्य का पद खाली माना जाएगा : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यू.पी. क्षेत्र पंचायत एवं जिला पंचायत अधिनियम, 1961, के तहत क्षेत्र पंचायत के एक निर्वाचित सदस्य के बारे में यह माना जाएगा कि उन्होंने क्षेत्र पंचायत के कार्यालय में उनके इस्तीफे की सूचना प्राप्त होने की तारीख से अपना पद खाली कर दिया है।

    जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने आगे कहा कि एक सदस्य का इस्तीफा नोटिस क्षेत्र पंचायत के कार्यालय में प्राप्त होते ही उसमें रिक्ति प्रभावी हो जाती है, है।

    केस टाइटल : नेहा यादव बनाम उप्र सरकार एवं चार अन्य [रिट-सिविल नं. 20091/2022]

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