मोटर वाहन अधिनियम के तहत याचिका में दलीलों के बारीक तत्वों को शामिल न करना दावेदार के लिए घातक नहीं: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

Avanish Pathak

18 Aug 2022 7:35 AM GMT

  • Consider The Establishment Of The State Commission For Protection Of Child Rights In The UT Of J&K

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक फैसले में कहा कि बहस के बारीक तत्व, जिनका दीवानी मुकदमे जैसी कार्यवाही में उल्लेख किया जाना आवश्यक है, यदि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के तहत दायर दावा याचिका में उन्हें शामिल नहीं किया गया तो यह जरूरी नहीं कि दावेदार के लिए यह घातक साबित होगा।

    जस्टिस पुनीत गुप्ता की एक पीठ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपीन में याचिकाकर्ता ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण, उधमपुर के आदेश को चुनौती दी थी, जिसने मृतक-बेटी पर उसकी निर्भरता के कारण मुआवजे के हकदारी के संबंध में फैसला उसके खिलाफ किया था।

    अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल ने मामले का बहुत सूक्ष्म दृष्टिकोण लिया था जिससे अपीलकर्ता को दावा याचिका में मुआवजे का दावा करने से वंचित कर दिया गया था। रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत यह मानने के लिए पर्याप्त थे कि अपीलकर्ता मृतक बेटी की कमाई पर निर्भर था।

    अपील का विरोध करते हुए प्रतिवादी-बीमा कंपनी के वकील ने जोरदार तर्क दिया कि अपीलकर्ता को मृत बेटी का आश्रित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि ट्रिब्यूनल के समक्ष दावेदार की ओर से पेश साक्ष्यों में निर्भरता कारक का जिक्र नहीं है।

    मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस गुप्ता ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता के बयान का हवाला दिया है, जिसमें उसने बयान दिया है कि मृतक याचिकाकर्ता को प्रति माह 5000 रुपये का भुगतान करता था और वह उसके साथ रह रही थी। दावेदार ने बयान में यह भी कहा कि उसकी तीन बेटियां और एक बेटा है और मृतक के अलावा कोई भी कामगार नहीं था। यह याचिकाकर्ता के इस बयान के संदर्भ में है कि ट्रिब्यूनल ने दावेदार के पक्ष में निर्भरता कारक नहीं पाया।

    गुणों की जांच करते हुए, पीठ ने कहा कि इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जब कोई दावा याचिका के बयान का‌ ‌विश्लेषण किया जाता है तो याचिका में विशेष रूप से कोई दलील नहीं उठाई जाती है कि याचिकाकर्ता मृतक बेटी की कमाई पर निर्भर था।

    याचिका, हालांकि मृतक के दुर्घटना के समय पुलिस विभाग में कांस्टेबल के रूप में सेवारत होने और मृतक की दुखद मौत के कारण याचिकाकर्ता और उसके परिवार को मानसिक आघात और पीड़ा का सामना करने की बात करती है...

    इस विषय पर कानून और मोटर वाहन अधिनियम के पीछे विधायी मंशा की व्याख्या करते हुए, जस्टिस गुप्ता ने कहा कि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य उन व्यक्तियों को सहायता प्रदान करना है जो मृतक पीड़ित पर निर्भर हैं, जिन्होंने एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना में जीवन खो दिया है और दलीलों के बारीक तत्वों को ऐसे दावों के लिए घातक साबित नहीं कहा जा सकता है।

    पीठ ने कहा,

    "मामले में न्याय करने के लिए दावा याचिका के सार का आकलन किया जाना चाहिए, न कि दावा याचिका के वाक्यांश का। इस संबंध में पांडित्यपूर्ण दृष्टिकोण याचिकाकर्ता को मुआवजे से वंचित कर सकता है...। यह मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों के पीछे विधायी मंशा नहीं हो सकता।",

    आगे विचार करते हुए, पीठ ने कहा कि मामला इस तरह का है कि एक संकीर्ण दृष्टिकोण मुआवजे के सही दावेदार को वंचित कर सकता है...।

    इन चर्चाओं के आलोक में अपीलकर्ता के पक्ष में मुआवजे का निर्धारण करने के लिए मामला वापस ट्रिब्यूनल को भेज दिया गया।

    केस टाइटल: राम चरण सिंह बनाम रंज्योति सिंह।

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (जेकेएल) 105

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