सीआरपीसी की धारा 372 के परंतुक के तहत 'पीड़ित' को अपील का वास्तविक अधिकार प्रदान करना प्रकृति में पूर्वव्यापी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Brij Nandan

16 Aug 2022 10:12 AM GMT

  • इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने कहा कि वर्ष 2009 में एक परंतुक (Proviso) जोड़कर सीआरपीसी की धारा 372 में किए गए संशोधन के तहत 'पीड़ित' को अपील का वास्तविक अधिकार प्रदान करना प्रकृति में पूर्वव्यापी नहीं है।

    इसका मतलब यह है कि, एक 'पीड़ित' [जैसा कि सीआरपीसी की धारा 2 w (wa) के तहत परिभाषित है] को 31 दिसंबर, 2009 से पहले पारित एक आदेश के खिलाफ अपील करने का कोई अधिकार नहीं है, जिसमें आरोपी को बरी करना/उसे अपराध के लिए दंडित करना/अपर्याप्त मुआवजा लगाना शामिल है।

    यह ध्यान दिया जा सकता है कि 31 दिसंबर, 2009, यह निर्धारित करने के लिए निर्णायक तारीख है कि क्या एक 'पीड़ित' को सीआरपीसी की धारा 372 के तहत अपील करने का अधिकार है, क्योंकि सीआरपीसी की धारा 372 में अपील करने का अधिकार जोड़ा गया था, जो 31 दिसंबर 2009 को लागू हुआ था।

    यह परंतुक तीन आधारों पर अपील करने का अधिकार 'पीड़ित' [जैसा कि सीआरपीसी की धारा 2डब्ल्यू (डब्ल्यूए) के तहत परिभाषित है] को प्रदान करता है,

    (i) जब आरोपी व्यक्ति (व्यक्तियों) को बरी कर दिया गया हो;

    (ii) जब आरोपी व्यक्ति (व्यक्तियों) को कम अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो;

    (iii) जहां कोर्ट द्वारा अपर्याप्त मुआवजा लगाया गया है।

    कोर्ट के समक्ष मामला

    जस्टिस विवेक कुमार बिर्ल और जस्टिस विकास बुधवार की पीठ सीआरपीसी की धारा 372 के तहत 'पीड़ित' द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सत्र न्यायाधीश, मिर्जापुर द्वारा पारित वर्ष 2004 के फैसले और आदेश को चुनौती देने की मांग की गई थी, जिसमें आरोपी- प्रतिवादियों को आईपीसी की धारा 302/34 के तहत अपराधों से बरी कर दिया गया।

    शुरुआत में, कोर्ट ने नोट किया कि इस तथ्य के अलावा कि स्टाम्प रिपोर्टर ने अपील दायर करने में 6228 दिनों की देरी की सूचना दी थी, अपील स्वयं बनाए रखने योग्य नहीं है क्योंकि जब निचली अदालत द्वारा बरी करने का आदेश पारित किया गया था, तो सीआरपीसी की धारा 372 में पीड़ित को ऐसे बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार देने वाला कोई प्रावधान नहीं था।

    अदालत ने टिप्पणी की,

    "यह बहुत स्पष्ट है कि वर्ष 2009 में एक प्रावधान जोड़कर सीआरपीसी की धारा 372 में किए गए संशोधन अपील का एक वास्तविक अधिकार बनाते हुए प्रकृति में पूर्वव्यापी नहीं हैं। इसलिए, यह स्पष्ट है कि वर्ष 2004 में जब चुनौती के तहत आक्षेपित निर्णय पारित किया गया था, यहां अपीलकर्ता, जो पीड़ित होने का दावा करता है, को अपील दायर करने के माध्यम से दिनांक 2.12.2004 के आदेश को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं था।"

    इसलिए, यह माना गया कि अपील, जो 2004 के फैसले को चुनौती देने के बारे में 21 साल से अधिक की देरी के बाद दायर की गई थी, जो संशोधन से बहुत पहले पारित किया गया था (31.12.2009 से प्रभावी वर्ष 2009 में प्रावधान को जोड़ना)। इसलिए यह सुनवाई योग्य नहीं है।

    तद्नुसार अपील सुनवाई योग्य नहीं होने के कारण खारिज कर दी गई।

    केस टाइटल - त्रियुगी नाथ तिवारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एंड 2 अन्य [Criminal Appeal Defective U/S 372 CR.P.C. No- 10 of 2022]

    केस टाइटल: 2022 लाइव लॉ 371

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