पति के बार-बार ताने देना और अन्य महिलाओं से तुलना मानसिक क्रूरता के समान: केरल हाईकोर्ट

Shahadat

16 Aug 2022 6:31 AM GMT

  • केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि पति द्वारा पत्नी के उसकी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरने के संबंध में बार-बार ताने देना और अन्य महिलाओं के साथ उसकी तुलना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आती है, जैसा कि विवाह भांग करने के उद्देश्य लिए तलाक अधिनियम 1869 की धारा 10 (x) में प्रावधान दिया गया है।

    जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस सी.एस. सुधा की खंडपीठ ने कहा कि पति या पत्नी का आचरण क्रूरता के दायरे में आने के लिए यह इस आधार पर 'गंभीर और वजनदार' होना चाहिए कि याचिकाकर्ता के पति या पत्नी के दूसरे पति या पत्नी के साथ रहने की उचित उम्मीद न की जा सके।

    कोर्ट ने कहा,

    "प्रतिवादी/पति के लगातार और बार-बार ताने कि याचिकाकर्ता उसकी उम्मीदों के अनुसार उसकी पत्नी नहीं है; अन्य महिलाओं के साथ उसकी तुलना आदि निश्चित रूप से मानसिक क्रूरता होगी, जिसकी उम्मीद नहीं की जा सकती।"

    याचिकाकर्ता और प्रतिवादी की शादी जनवरी, 2019 में हुई थी। शादी के 10 महीने के भीतर विवाह भंग करने की याचिका दायर की गई। निचली अदालत द्वारा भारतीय तलाक अधिनियम की धारा 10 (vii) के तहत विवाह के विघटन यानी विवाह की समाप्ति का आदेश दिया गया।

    इस डिक्री से व्यथित पति द्वारा अपील दायर की गई। इसमें आरोप लगाया गया कि निचली अदालत ने गलती से निष्कर्ष निकाला कि विवाह संपन्न नहीं हुआ, इसलिए याचिकाकर्ता-पत्नी को अधिनियम की धारा 10 (vii) के तहत विवाह विघटन का आदेश दिया।

    प्रतिवादी-पति की ओर पेश एडवोकेट तुषारा जेम्स और अमल दर्शन ने तर्क दिया कि उक्त आधार खुद में ही गलत है, क्योंकि जब तक याचिकाकर्ता शादी को समाप्त करने के लिए प्रतिवादी द्वारा जानबूझकर संयम/इनकार साबित नहीं करता है, वह सफल नहीं हो सकती। हालांकि, निचली अदालत ने कभी भी उक्त पहलू पर ध्यान नहीं दिया। इसके अलावा, यह प्रस्तुत किया गया कि मूल रूप से दायर याचिका में याचिकाकर्ता के पास कभी भी विवाह न करने का मामला नहीं है। यह भी बताया गया कि अधिनियम की धारा 10(vii) के तहत आधार स्थापित करने के लिए पर्याप्त दलीलें नहीं हैं।

    हालांकि, याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील एडवोकेट के.पी. श्रीजा और एडवोकेट एम.बी. संदीप ने कहा कि शुरू में दायर याचिका में धारा 10 (vii) के तहत आधार को शामिल करने की चूक वकील की ओर से अनजाने में हुई गलती है। इसके अलावा, वकील ने तर्क दिया कि किए गए संशोधन के माध्यम से आवश्यक दलीलें दी गई, जिसमें संशोधित अभिवचन में अधिनियम की धारा 10 (vii) के तहत मामला बनाने के लिए आवश्यक तत्व शामिल हैं।

    याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 10 (x) के तहत उठाए गए क्रूरता के आधार को खारिज करते हुए निचली अदालत के निष्कर्षों को भी चुनौती दी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आदेश XLI नियम 24 और नियम 33 के तहत इस न्यायालय को "मुद्दों को फिर से स्थापित करने और न्याय के उद्देश्यों को पूरा और मामले का निर्धारण करने" के लिए पर्याप्त शक्ति प्रदान करता है। इस पर अदालत ने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्क का पक्ष लिया।

    याचिका में याचिकाकर्ता ने शारीरिक क्रूरता के साथ-साथ मानसिक क्रूरता का भी जिक्र किया। यह आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी क्रोधी स्वभाव का व्यक्ति है, जो आसानी से उत्तेजित हो जाता है। वह छोटी-छोटी बातों पर भी याचिकाकर्ता से झगड़ा करता है। जब वह अपना आपा खो देता है तो हिंसक हो जाता है। अपने परिवार के सदस्यों पर शारीरिक हमला करता है। इसके अलावा, प्रतिवादी के खिलाफ एक आरोप यह भी है कि वह हमेशा याचिकाकर्ता की अन्य महिलाओं के साथ तुलना करके उसे नीचा दिखाने और अपमानित करता रहता है।

    न्यायालय ने इस सवाल का जवाब देते हुए कि क्या प्रतिवादी का आचरण क्रूरता के बराबर है, सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि क्रूरता की व्यापक परिभाषा देना मुश्किल है, क्योंकि यह सामाजिक अवधारणाएं और जीवन स्तर में परिवर्तन और प्रगति के अनुसार बदलता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "निरंतर दुर्व्यवहार, वैवाहिक संभोग की समाप्ति, अध्ययन की उपेक्षा, पति की ओर से उदासीनता और पति की ओर से यह दावा कि पत्नी अस्वस्थ है, ये सभी कारक मानसिक या कानूनी क्रूरता का कारण बनते हैं।"

    शोबा रानी बनाम मधुकर रेड्डी मामले पर भरोसा किया गया, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के संदर्भ में क्रूरता की अवधारणा की जांच की गई थी। कोर्ट ने कहा कि क्रूरता मानसिक या शारीरिक, जानबूझकर या अनजाने में हो सकती है। यदि यह भौतिक है तो यह तथ्य और डिग्री का प्रश्न है। यदि यह मानसिक है तो जांच शुरू होनी चाहिए कि क्रूर व्यवहार की प्रकृति और फिर पति या पत्नी के दिमाग पर इस का क्या प्रभाव है। क्या यह आशंका पैदा होती है कि दूसरे के साथ रहना हानिकारक होगा। अंततः आचरण की प्रकृति और शिकायतकर्ता पति या पत्नी पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए निष्कर्ष निकाला जाना है।

    आगे यह माना गया कि कथित क्रूरता काफी हद तक पक्षकार के जीवन के प्रकार पर निर्भर हो सकती है, जैसे उनकी आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों, संस्कृति और मानवीय मूल्यों को वे कितना महत्व देते हैं। कोर्ट ने कहा कि चूंकि प्रत्येक मामले को अपने गुणों के आधार पर तय करना होता है, इसलिए बेहतर होगा कि मिसालों पर कम भरोसा किया जाए।

    किसी मामले में क्रूरता के रूप में तय किया गया तथ्यों का सेट दूसरे मामले में भी लागू नहीं हो सकता। कथित क्रूरता काफी हद तक पक्षकारों के जीवन के प्रकार या उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थितियों पर निर्भर हो सकती है। यह उनकी संस्कृति और मानवीय मूल्यों पर भी निर्भर हो सकता है, जिन्हें वे महत्व देते हैं। इसलिए न्यायाधीशों और वकीलों को जीवन की अपनी धारणाओं का संदर्भ नहीं देना चाहिए। यह भी बेहतर होगा कि मिसालों पर कम निर्भरता हो।

    अदालत ने आगे कहा कि क्रूरता का गठन करने के लिए शिकायत की गई आचरण "गंभीर और वजनदार" होना चाहिए ताकि इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सके कि याचिकाकर्ता के पति या पत्नी से दूसरे पति या पत्नी के साथ रहने की उचित उम्मीद नहीं की जा सकत। यह "शादीशुदा जीवन के सामान्य टूट-फूट" से कहीं अधिक गंभीर होना चाहिए।

    इसके अलावा, न्यायालय ने कहा कि शारीरिक हिंसा क्रूरता के लिए यह आवश्यक नहीं है। अथाह मानसिक पीड़ा और यातना देने वाले आचरण का सुसंगत अभियान अधिनियम की धारा 10 के अर्थ के भीतर क्रूरता का गठन कर सकता है।

    कोर्टन ने कहा,

    "मानसिक क्रूरता में गंदी और अपमानजनक भाषा का उपयोग करके मौखिक गालियां और अपमान शामिल हो सकते हैं, जिससे दूसरे पक्ष की मानसिक शांति में लगातार गड़बड़ी हो सकती है। वर्तमान मामले में अदालत के समक्ष पेश किए गए अभिवचनों और साक्ष्यों से न्यायालय ने देखा कि याचिकाकर्ता को उसके प्रति प्रतिवादी के अपमानजनक रवैये और व्यवहार को सहने की अपेक्षा नहीं की जाती है।"

    हालांकि, बेंच ने कहा कि ऐसे मामले भी हो सकते हैं जहां शिकायत की गई पति का आचरण काफी खराब और गैरकानूनी या अवैध है। ऐसे मामलों में दूसरे पति या पत्नी पर हानिकारक प्रभाव की जांच करने की आवश्यकता नहीं है; यदि आचरण स्वयं सिद्ध या स्वीकृत हो जाता है तो क्रूरता स्थापित की जाएगी।

    कोर्ट ने कहा,

    "इरादे की अनुपस्थिति से मामले में कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। लेकिन क्रूरता में इरादा आवश्यक तत्व नहीं है। पक्षकार को इस आधार पर राहत से इनकार नहीं किया जा सकता है कि जानबूझकर कोई दुर्व्यवहार नहीं किया गया है।"

    चूंकि पक्षकारों के बीच वैवाहिक बंधन सुधार से परे लग रहा है और पक्षकारों के बीच विवाह केवल नाम पर है, कोर्ट ने कहा कि दिखावा रखना स्पष्ट रूप से अनैतिकता के अनुकूल है और विवाह बंधन के विघटन की तुलना में सार्वजनिक हित के लिए संभावित रूप से अधिक प्रतिकूल है।

    इस प्रकार, न्यायालय ने अपील खारिज कर दी लेकिन अधिनियम की धारा 10 (x) के तहत विवाह के विघटन के लिए निचली अदालत द्वारा दी गई डिक्री संशोधित की।

    केस शीर्षक: xxxxxxxx बनाम xxxxxxxxxx

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (केर) 433

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