POCSO एक्ट आरोपियों पर सबूतों का भार डालता है, सीआरपीसी की धारा 311 के तहत महत्वपूर्ण गवाहों को समन करने की अनुमति दी जानी चाहिए : कर्नाटक हाईकोर्ट

Shahadat

16 Aug 2022 9:09 AM GMT

  • हाईकोर्ट ऑफ कर्नाटक

    कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने POCSO (लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) एक्ट के तहत दायर मुकदमे के संबंध में कहा कि अभियुक्त द्वारा सीआरपीसी की धारा 311 के तहत महत्वपूर्ण गवाहों को समन करने के लिए किए गए आवेदन को सामान्य रूप से अनुमति दी जानी चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि यह अनुमति तब तक दी जानी चाहिए जब तक अदालत इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच जाती आरोप गलत या सही है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने पेरियास्वामी एम द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया। साथ ही बचाव पक्ष के गवाहों को पेश करने के उसके आवेदन को खारिज करने के निचली अदालत के आदेश को खारिज कर दिया।

    ट्रायल कोर्ट ने कहा कि मामले को सभी उचित संदेह से परे साबित करने का भार अभियोजन पक्ष पर है, इसलिए बचाव पक्ष के गवाहों के ट्रायल का सवाल ही नहीं उठता।

    हाईकोर्ट ने हालांकि इस बात पर जोर दिया कि चूंकि याचिकाकर्ता पोक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत आरोपों का सामना कर रहा है, इसलिए जब तक कि यह गलत साबित नहीं हो जाता है तब तक यह अनुमान लगाया जाता है कि आरोपी ने अपराध किया है।

    इस प्रकार, कोर्ट ने कहा,

    "यह पोक्सो एक्ट के प्रावधानों के तहत अभियुक्त पर साबित करने का भार है। पोक्सो एक्ट के तहत आरोपों के संबंधित अदालत इस विशिष्ट दलील पर बचाव साक्ष्य जोड़ने के आवेदन को खारिज नहीं कर सकती कि सभी उचित संदेह से परे मामले को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष पर यह बोझ है। गंभीर आरोपों का सामना कर रहे अभियुक्तों को कानून के मानकों के भीतर अपना बचाव करने का अवसर दिया जाना चाहिए।"

    एक्ट की धारा 311 के सार और भावना को ध्यान में रखते हुए पीठ ने कहा कि न्यायालय की शक्ति व्यापक है और इसे किसी भी जांच और मुकदमे के किसी भी स्तर पर प्रयोग किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल सावधानी के साथ किया जाना चाहिए।

    कोर्ट ने कहा,

    "निष्पक्ष सुनवाई आपराधिक प्रक्रिया की आत्मा है और निष्पक्षता सुनिश्चित करना न्यायालयों का कर्तव्य है। कार्यवाही के किसी भी चरण में इसे बाधित या धमकी नहीं दी जाती। यह अच्छी बात है कि निष्पक्ष सुनवाई में संबंधित व्यक्ति को उचित अवसर प्रदान करना शामिल है। सीआरपीसी की धारा 311 ऐसे कई प्रावधानों में से एक है, जो कानून द्वारा स्वीकृत प्रक्रिया द्वारा सच्चाई का पता लगाने के लिए अदालत के हाथों को मजबूत करती है। यह प्रावधान की आत्मा है।"

    केस टाइटल: पेरियास्वामी एम बनाम कर्नाटक राज्य

    मामला नंबर: आपराधिक याचिका नंबर 2022 का 6288

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 319

    आदेश की तिथि: 20 जुलाई, 2022

    उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट सतीश सी; प्रतिवादी के लिए एचसीजीपी के.पी.यशोधा

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