दीवानी मामला और आपराधिक कार्यवाही एक साथ तभी शुरू की जा सकती है जब "आपराधिकता" शामिल हो: झारखंड हाईकोर्ट

Shahadat

16 Aug 2022 5:28 AM GMT

  • झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि दीवानी मामले और आपराधिक कार्यवाही दोनों एक साथ इस शर्त के साथ शुरू किया जा सकता है कि आरोपों में "आपराधिकता" की भावना शामिल हो।

    हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के कथित अपराध के लिए खारिज करने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। उक्त मामला तथ्यों के एक ही सेट पर पैसे की वसूली के लिए दायर किया गया है।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी याचिका की अनुमति देते हुए कहा:

    "इस तथ्य के संबंध में कोई विवाद नहीं है कि यदि आपराधिकता शामिल है तो दीवानी मामला और आपराधिक कार्यवाही एक साथ चल सकती है। प्रतिवादी नंबर दो के वकील अनुराग कश्यप द्वारा कृष्णन (सुप्रा) का मामला का संदर्भ दिया, जहां दस्तावेजों की जालसाजी के गंभीर आरोप को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि दस्तावेजों की जालसाजी के गंभीर आरोप हैं, इसलिए मामले में विचाराधीन राशि की वसूली के लिए दोनों मामले एक साथ सुने जा सकते हैं।"

    शिकायतकर्ता ने पहले शिकायत का मामला दर्ज कराया। इसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता की बेटी का देवर होने के नाते दहेज की मांग की। आगे यह भी आरोप लगाया गया कि शिकायतकर्ता ने शादी से पहले ही याचिकाकर्ता के बैंक खाते में पैसे जमा कर दिए थे, लेकिन शादी के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा।

    याचिकाकर्ता ने अदालत को सूचित किया कि विचाराधीन राशि का मामला भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के तहत दायर है। निचली अदालत ने इस मामले में कहा कि शिकायतकर्ता अपने मामले को साबित करने में बुरी तरह विफल रहा है।

    अब, शिकायतकर्ता ने याचिकाकर्ता को पैसे वापस करने के लिए कानूनी नोटिस भेजा और जालसाजी और धोखाधड़ी के लिए आपराधिक मामला दर्ज किया।

    कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने और सबूतों के अवलोकन के बाद यह माना कि एक ही आरोप के लिए दो मामले चल रहे हैं, जो कोल्ला वीरा राघव राव बनाम गोरंटला वेंकटेश्वर राव के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित निर्णय के मद्देनजर स्वीकार्य नहीं हैं, जहां यह माना गया कि किसी को भी एक ही अपराध के लिए या यहां तक ​​कि अलग अपराध के लिए नहीं बल्कि एक ही तथ्य पर आधारित मुकदमा चलाया जा सकता है और दोषी ठहराया जा सकता है।

    तद्नुसार न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में लम्बित समस्त आपराधिक कार्यवाही निरस्त कर दी।

    केस टाइटल: शिव शंकर प्रसाद @ शिव शंकर प्रसाद और झारखंड राज्य बनाम

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