एक निश्चित समय बीतने और संकट समाप्त होने के बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा/पेशकश नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Shahadat

18 Aug 2022 9:46 AM GMT

  • एक निश्चित समय बीतने और संकट समाप्त होने के बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा/पेशकश नहीं की जा सकती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का दावा या पेशकश नहीं की जा सकती है, जो महत्वपूर्ण समय व्यतीत होने और संकट समाप्त होने के बाद हो।

    अदालत ने टिप्पणी की,

    "अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य संबंधित कर्मचारी की अप्रत्याशित मौत के कारण शोक संतप्त परिवार को तत्काल वित्तीय संकट से उबारना है।"

    जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने संजय कुमार सिंह की याचिका को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की। सिंह ने अपने दत्तक पिता की मृत्यु के कारण अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग की थी, जिनकी जनवरी 1995 में मृत्यु हो गई थी।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के अपने पिता की मृत्यु के 27 साल बाद देरी से अनुकंपा नियुक्ति के दावे को कायम नहीं रखा जा सकता।

    संक्षेप में मामला

    सिंह को राज्य सरकार के कर्मचारी राम अचल सिंह (जिनकी जनवरी 1995 में मृत्यु हो गई) द्वारा वर्ष 1990 में बेटे के रूप में अपनाया गया था। अपने पिता की मृत्यु के बाद सिंह ने चार साल बाद यानी वर्ष 1999 में विभाग में रोजगार के लिए आवेदन किया।

    सितंबर, 2003 में याचिकाकर्ता के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि गोद लिए गए बेटे को उत्तर प्रदेश में मरने वाले सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों की भर्ती नियम, 1974 के तहत 'परिवार' की परिभाषा में शामिल नहीं किया गया है।

    इसलिए, उसने 2003 के आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का रुख किया। उसका प्राथमिक तर्क यह है कि याचिकाकर्ता का कारण अभी भी जायज है, क्योंकि दत्तक पुत्र अब परिवार की परिभाषा में शामिल है। इसलिए, उसके दावे पर विचार किया जा सकता है और उसे अनुकंपा के आधार पर नियुक्त किया जा सकता है।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    कोर्ट ने कहा कि जब याचिकाकर्ता ने अनुकंपा नियुक्ति का दावा किया, तब नियम, 1974 में 'परिवार' की परिभाषा संबंधों तक सीमित थी, अर्थात् (i) पत्नी या पति; (ii) बेटे; (iii) अविवाहित और विधवा बेटी।

    कोर्ट ने आगे कहा कि इसके बाद एक और संशोधन किया गया। यूपी सर्कुलर दिनांक 22.12.2011 को जारी इस संशोधन में दत्तक पुत्र को भी शामिल किया गया।

    हालांकि, कोर्ट ने कहा कि जब आक्षेपित आदेश दिया गया (अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से इनकार करते हुए) तो दत्तक पुत्र को नियुक्ति प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं था, इसलिए न्यायालय ने माना कि आदेश सही है और याचिकाकर्ता का दावा सही नहीं है।

    इसके अलावा, यह देखते हुए कि याचिकाकर्ता के दत्तक पिता की मृत्यु को 27 वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य शोक संतप्त परिवार की अप्रत्याशित मृत्यु के कारण हुए तत्काल वित्तीय संकट से निपटना है।

    अदालत ने टिप्पणी की,

    "मौजूदा मामले में पर्याप्त देरी अब 27 साल से अधिक हो गई है, जो याचिकाकर्ता के दावे के खिलाफ है। इसलिए, याचिकाकर्ता के दावे को आक्षेपित आदेश के साथ-साथ अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के दावे पर विचार करते हुए खारिज किया जाता है। अपने पिता की मृत्यु के 27 साल बाद विलंबित चरण में उसे कायम नहीं रखा जा सकता। साथ ही इतने लंबे समय बाद अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, महत्वपूर्ण समय व्यतीत होने के बाद इसे पेश नहीं किया जा सकता।"

    तदनुसार, कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल- संजय कुमार सिंह बनाम. यू.पी. राज्य और अन्य [WRIT - A No. - 4725/2003]

    केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 376

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