पति का पत्नी को आगे की पढ़ाई के लिए कहना, बच्चा पैदा करने के बारे में विचार व्यक्त करना 'क्रूरता' नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
Avanish Pathak
17 Aug 2022 3:36 PM IST
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि एक पति अपनी पत्नी को शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए सुझाव दे या उसे ऐसा कहे तो उसे क्रूरता नहीं माना जा सकता है।
जस्टिस डॉ एचबी प्रभाकर शास्त्री की एकल पीठ ने डॉ शशिधर सुब्बान्ना और उनकी मां द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार कर लिया और भारतीय दंड की धारा 498-ए, धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए निचली अदालत द्वारा उन्हें दी गई सजा को रद्द कर दिया।
निचली अदालत ने 7 सितंबर 2013 के आरोपियों को दोषी ठहराया था और सत्र अदालत ने एक दिसंबर 2016 इसे बरकरार रखा था।
पति ने पत्नी से शिक्षा जारी रखने को कहा, यह क्रूरता नहीं
दंपति अमेरिका में रहते थे। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके पति ने उसे आगे की पढ़ाई जारी रखने और नौकरी खोजने के लिए कहा, ताकि इससे परिवार को चलाने और मासिक खर्चों को पूरा करने में मदद मिले।
अदालत ने टिप्पणी की, "यह नहीं समझ आ रहा कि पति द्वारा अपनी पत्नी को उच्च अध्ययन का सुझाव देना क्रूरता कैसे होगा।"
यह नोट किया गया कि शिकायतकर्ता ने शादी से पहले खुद कहा था कि अमेरिका में अपने पति के साथ जुड़ने के बाद उसे उच्च अध्ययन करना पड़ सकता है और परिवार के खर्चों को पूरा करने के लिए कुछ रोजगार करना पड़ सकता है। ऐसा नहीं था कि बिना किसी पूर्व चर्चा के उसके पति ने अचानक उसे मजबूर कर दिया कि वह रोजगार खोज ले।
अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों का "एकमात्र उद्देश्य" अमेरिका में रहना था और इस प्रयास में, पति ने शिकायतकर्ता को नौकरी सुरक्षित करने और एच1 वीजा हासिल करने के लिए कहा था, ताकि वीजा के गैर-नवीनीकरण, एक्सपायरी/लैप्स की स्थिति में वह वहां रह सके।
हालांकि अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने विदेश में रहने को अनुचित महत्व दिया हो सकता है, इसे ऐसी क्रूरता नहीं माना जा सकता कि आईपीसी की धारा 498-ए आकर्षिक हो सके।
परिवार नियोजन के लिए कहना क्रूरता नहीं
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शादी की पहली ही रात को उसके पति ने उससे कहा कि वह लगभग तीन साल तक बच्चा नहीं चाहता है, और वह अपनी एमएस की डिग्री पूरी करने के बाद उस बारे में सोचेगा, जबकि उसका परिवार बच्चा पैदा करने के लिए उसे परेशान कर रहा था।
इस संबंध में पीठ ने कहा,
"पति और पत्नी के बीच यह बातचीत की कि उन्हें कब बच्चा चाहिए या बच्चा होने के बारे में पति या पत्नी का विचार क्या है, या इसके लिए सही समय क्या होगा, पति-पत्नी के बीच परिवार की बेहतरा योजना बनाने के लिए एक आम बातचीत है। केवल इसलिए कि पति ने अपना विचार व्यक्त किया है, उसे उत्पीड़न या क्रूरता नहीं माना जा सकता है।"
अंत में, कोर्ट ने माना कि ट्रायल कोर्ट और सेशन कोर्ट दोनों ने शिकायतकर्ता की खुद की गवाही के साथ इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि आरोप निरे, अस्पष्ट और कथित कई घटनाओं के किसी भी स्पष्ट विवरण के बिना थे, जिसके बाद कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।
केस टाइटल: डॉ शशिधर सुब्बान्ना बनाम कर्नाटक राज्य
केस नंबर: Criminal Revision petition no 1612/2016 C/W Criminal revision petition 1613/2016
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर) 320
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