हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2024-06-09 04:30 GMT
High Courts

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (03 जून, 2024 से 07 जून, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

घायल गवाह की गवाही पर भरोसा किया जा सकता है, जब तक कि उसमें कोई बड़ा विरोधाभास न हो: राजस्थान हाइकोर्ट

राजस्थान हाइकोर्ट ने दोहराया कि किसी घायल गवाह की गवाही को केवल मामूली विसंगतियों के कारण खारिज नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह किसी अन्य को झूठा फंसाने के लिए वास्तविक हमलावर को नहीं छोड़ेगा। जस्टिस सुदेश बंसल की पीठ ने कहा कि घायल गवाह की गवाही को कानून में विशेष दर्जा दिया गया और इसे तब तक खारिज नहीं किया जा सकता, जब तक कि इसमें कोई बड़ी विसंगति या विरोधाभास न हो।

केस टाइटल- मुन्ना और अन्य बनाम राजस्थान राज्य

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[धारा 349 सीआरपीसी] न्यायालय साक्ष्य प्रस्तुत करने से अस्पष्ट रूप से इनकार करने पर गवाह को अधिकतम 7 दिन के कारावास की सजा दे सकता है: गुजरात हाइकोर्ट

गुजरात हाइकोर्ट ने पुलिस निरीक्षक की दोषसिद्धि रद्द की, जिसे मुकदमे में साक्ष्य प्रस्तुत करने में कथित रूप से विफल रहने के कारण सात दिन के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी।

न्यायालय ने पाया कि धारा 349 सीआरपीसी के अनुसार न्यायालय कारणों को दर्ज करने के बाद किसी गवाह को अधिकतम सात दिन के साधारण कारावास की सजा दे सकता है, जब तक कि इस बीच गवाह दस्तावेज या वस्तु प्रस्तुत न कर दे।

केस का शीर्षक: अशोकभाई भुर्जीभाई मोरी @ मोरे बनाम गुजरात राज्य

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धारा 27 साक्ष्य अधिनियम | अभियुक्त के खुलासे पर भौतिक वस्तु की बरामदगी का यह मतलब नहीं कि अपराध अभियुक्त ने ही किया: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने हत्या के दो दोषियों को बरी करते हुए कहा कि अपराध सिद्ध करने वाली सामग्री की बरामदगी से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि अपराध अभियुक्त ने ही किया।

जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस एन.एस. शेखावत की खंडपीठ ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के मद्देनजर अभियुक्त के खुलासे पर भौतिक वस्तु की बरामदगी महत्वपूर्ण है लेकिन केवल इस तरह के खुलासे से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि अपराध अभियुक्त ने ही किया। वास्तव में भौतिक वस्तुओं की बरामदगी और अपराध करने में उनके उपयोग के बीच घनिष्ठ संबंध स्थापित करने का दायित्व अभियोजन पक्ष पर है।"

केस टाइटल- रणबीर सिंह और अन्य बनाम हरियाणा राज्य

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मौखिक मृत्यु-पूर्व बयान दोषसिद्धि का आधार बन सकता है, बशर्ते कि अभिसाक्षी स्वस्थ दिमाग का और सत्यनिष्ठ हो, हालांकि पुष्टि के लिए प्रयास करना विवेकपूर्ण होगा: गुजरात हाईकोर्ट

हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट ने एक हत्या के मामले में एक आरोपी को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि मौखिक मृत्यु-पूर्व बयान की पुष्टि के लिए प्रयास करना समझदारी है।

जस्टिस इलेश जे वोहरा और ज‌स्टिस निरल आर मेहता की खंडपीठ ने कहा, "मौखिक मृत्यु-पूर्व बयान दोषसिद्धि का आधार बन सकता है, यदि अभिसाक्षी घोषणा करने के लिए स्वस्थ स्थिति में है और यदि यह सत्य पाया जाता है। न्यायालय विवेक के आधार पर मौखिक मृत्यु-पूर्व बयान की पुष्टि के लिए प्रयास करते हैं। हालांकि, यदि उक्त मृत्यु-पूर्व बयान की सत्यता या अन्यथा के संबंध में कोई संदेह है, तो दोषसिद्धि के निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले न्यायालयों को कुछ पुष्टि करने वाले साक्ष्यों की तलाश करनी चाहिए।"

केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम शशिकांत गोरधनभाई पटेल और अन्य।

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अनुकंपा नियुक्ति केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती कि यह किसी अक्षम प्राधिकारी द्वारा की गई: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट के जज जस्टिस पूर्णेंदु सिंह की एकल पीठ ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति केवल इसलिए रद्द नहीं की जा सकती कि नियुक्ति अनियमित थी।

न्यायालय सचिव/प्रतिवादी के निर्णय के विरुद्ध याचिकाकर्ता द्वारा दायर दीवानी रिट याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें प्रारंभिक नियुक्ति की अवधि से सेवा की निरंतरता के लिए उसका दावा खारिज कर दिया गया था। प्रारंभ में, याचिकाकर्ता की नियुक्ति चीफ इंजीनियर/प्रतिवादी द्वारा की गई, जो याचिकाकर्ता को अनुकंपा के आधार पर नियुक्त करने के लिए सक्षम प्राधिकारी नहीं थे। बाद में इस नियुक्ति को रद्द कर दिया गया और याचिकाकर्ता को सचिव द्वारा फिर से नियुक्त किया गया। उसे उसकी प्रारंभिक नियुक्ति की अवधि के लिए वेतन का भुगतान नहीं किया गया।

केस टाइटल: अमरेंद्र कुमार बनाम बिहार राज्य, जल संसाधन विभाग और अन्य, सिविल रिट अधिकारिता मामला संख्या 16803/2012

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पुलिस को धारा 173(8) सीआरपीसी के तहत आगे की जांच करने का निर्देश देने से पहले आरोपी को मजिस्ट्रेट द्वारा सुनवाई की आवश्यकता नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट अदालत के पास किसी मामले में आगे की जांच करने का निर्देश देने का अधिकार है। केवल इसलिए कि मजिस्ट्रेट ने पुलिस को मामले की आगे की जांच करने का निर्देश देते समय आरोपी को कोई नोटिस नहीं दिया, यह अपने आप में आगे की जांच के आदेश को रद्द करने का आधार नहीं है।

जस्टिस के नटराजन की एकल न्यायाधीश पीठ ने अनीगौड़ा द्वारा दायर याचिका खारिज की। उक्त याचिका में सीआरपीसी की धारा 173 (8) के तहत जांच अधिकारी द्वारा दायर आवेदन के खिलाफ मजिस्ट्रेट के दिनांक 26.3.2021 के आदेश को चुनौती दी गई, जिसमें आईपीसी की धारा 201 और 420 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए आरोपी के खिलाफ दर्ज मामले में आगे की जांच की अनुमति दी गई।

केस टाइटल: एनेगौड़ा और राज्य यशवंतपुरा पुलिस स्टेशन और अन्य

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जिला परिषद के अध्यक्ष/उपाध्याय के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को सफल बनाने के लिए, केवल उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत आवश्यक है: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस के. विनोद चंद्रन, जस्टिस आशुतोष कुमार और जस्टिस हरीश कुमार की पूर्ण पीठ ने कहा कि जिला परिषद के अध्यक्ष या उपाध्याय के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के सफल होने के लिए यह जरूरी है कि उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का बहुमत हो , न कि कुल निर्वाचित सदस्यों का बहुमत।

हाईकोर्ट बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 की धारा 70 (4) की जांच कर रहा था, जिसके लिए विशेष रूप से इस उद्देश्य के लिए बुलाई गई बैठक में जिला परिषद के प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत से किसी अध्यक्ष या उपाध्याय के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करना आवश्यक है।

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S.79 Juvenile Justice Act | कम वेतन और अधिक घंटों के लिए बच्चे को काम पर रखना बंधक बनाए गए बच्चे के अपराध के लिए पर्याप्त नहीं: तेलंगाना हाइकोर्ट

तेलंगाना हाइकोर्ट ने माना कि केवल कम वेतन और अधिक घंटों के लिए बच्चे को काम पर रखना किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 (Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015) की धारा 79 के तहत बंधक बनाए गए बच्चे के तहत स्वतः ही अपराध नहीं बनता।

जस्टिस के. सुजाना ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर आपराधिक याचिका में यह आदेश पारित किया, जिसमें याचिकाकर्ता/आरोपी के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की प्रार्थना की गई।

इस प्रकार याचिका स्वीकार कर ली गई और याचिकाकर्ता के विरुद्ध आपराधिक मामला रद्द कर दिया गया।

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कंपनी समापन में कोई अपरिवर्तनीय कार्रवाई नहीं, कंपनी अदालत कार्यवाही को एनसीएलटी को स्थानांतरित कर सकती है: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की एक पीठ ने कहा कि जब तक कोई अपरिवर्तनीय कार्यवाही, जैसे कि अचल या चल संपत्तियों की वास्तविक बिक्री, नहीं हुई है, तब तक कंपनी न्यायालय के पास कार्यवाही को एनसीएलटी में स्थानांतरित करने का विवेकाधिकार है। पीठ में जस्टिस अभय आहूजा शामिल थे।

पीठ ने कहा कि केवल तभी जब समापन कार्यवाही उस चरण में पहुंच गई हो जहां यह अपरिवर्तनीय हो, जिससे समय को पीछे ले जाना असंभव हो जाए, कंपनी न्यायालय को कार्यवाही को एनसीएलटी में स्थानांतरित करने के बजाय समापन के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

केस टाइटलः आईसीआईसीआई बैंक लिमिटेड बनाम क्लासिक डायमंड्स (इंडिया) लिमिटेड के मामले में ओमकारा एसेट्स रिकंस्ट्रक्शन

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अभियोक्ता की गवाही के आधार पर घटना के तथ्य और इसमें शामिल व्यक्तियों की जांच की जानी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

बलात्कार के मामलों में अभियोक्ता की ओर से सुसंगत और विश्वसनीय कथन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया कि अदालतों को अभियोक्ता की गवाही पर भरोसा करने से पहले उसकी गहन जांच करनी चाहिए।

जस्टिस संजय धर की पीठ ने कहा, “न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि घटना के तथ्य, इसमें शामिल व्यक्ति और घटना के क्रम के बारे में कोई संदेह नहीं है। यह भी देखा जाना चाहिए कि अभियोक्ता द्वारा दिया गया बयान हर दूसरे गवाह द्वारा दिए गए बयान के अनुरूप है या नहीं और क्या इसका सहायक सामग्री से कोई संबंध है।”

केस टाइटल: नरेश कुमार बनाम यूटी ऑफ जेएंडके

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दोषी के खिलाफ केवल मामलों का पंजीकरण पैरोल से इनकार करने के लिए पर्याप्त नहीं, ठोस सामग्री भी होनी चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि किसी दोषी के खिलाफ केवल विभिन्न मामलों का पंजीकरण पैरोल से इनकार करने का पर्याप्त आधार नहीं है। राहत से इनकार करने के लिए ठोस सामग्री होनी चाहिए।

जस्टिस लिसा गिल और जस्टिस अमरजोत भट्टी ने कहा कि वर्तमान मामले में जिला मजिस्ट्रेट ने पैरोल खारिज की, क्योंकि सीनियर पुलिस अधीक्षक द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार यदि याचिकाकर्ता को अस्थायी पैरोल पर रिहा किया जाता है तो वह मादक पदार्थों की तस्करी में लिप्त हो सकता है और पैरोल के दौरान फरार भी हो सकता है।

केस टाइटल- कुलविंदर सिंह उर्फ तैना बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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पत्नी द्वारा पति के खिलाफ केवल दहेज की मांग की शिकायत दर्ज कराना क्रूरता नहीं, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि यह झूठ है: मद्रास हाइकोर्ट

क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग करने वाले पति को राहत देने से इनकार करते हुए मद्रास हाइकोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा केवल पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराना क्रूरता नहीं माना जाएगा, जब तक कि पति यह साबित न कर दे कि शिकायत झूठी दहेज मांग की शिकायत थी।

इस प्रकार जस्टिस आर सुब्रमण्यन और जस्टिस आर शक्तिवेल ने कहा कि वे पत्नी के आचरण में कोई दोष नहीं पाते हैं, जो अपने पति के साथ रहने के इरादे से पुलिस में शिकायत दर्ज करा रही है।

केस टाइटल- एबीसी बनाम एक्सवाईजेड

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बेटे द्वारा भरण-पोषण की शर्त का उल्लेख नहीं करने पर सीनियर सिटीजन पिता द्वारा बेटे के पक्ष में निष्पादित गिफ्ट डीड रद्द नहीं किया जा सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि सीनियर सिटीजन द्वारा अपने बेटे के पक्ष में निष्पादित गिफ्ट डीड, जो बाद में उसे बेच देता है, उसको सीनियर सिटीजन ट्रिब्यूनल के सहायक आयुक्त द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता, यदि गिफ्ट डीड में पिता (दाता) के भरण-पोषण की कोई शर्त का उल्लेख नहीं किया गया।

जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल न्यायाधीश पीठ ने विवेक जैन द्वारा दायर याचिका स्वीकार कर ली, जिन्होंने सीएस हर्ष से संपत्ति खरीदी थी। उन्हें वर्ष 2019 में उनके पिता श्रीनिवास ने संपत्ति गिफ्ट में दी थी।

केस टाइटल: विवेक जैन और डिप्टी कमिश्नर और अन्य

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बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामलों में किसी व्यक्ति को फंसाने की लगातार धमकियां आत्महत्या के लिए उकसाने के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने आदेश में कहा कि बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामले में मृतक/पीड़ित को फंसाने की आरोपी द्वारा लगातार धमकी देना आत्महत्या के लिए उकसाने के समान हो सकता है।

धारा 482 सीआरपीसी के तहत आरोपी द्वारा प्रस्तुत आवेदन स्वीकार करने से इनकार करते हुए जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल पीठ ने कहा कि मृतक पर झूठे मामले थोपकर उसे जेल भेजने की धमकी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

केस टाइटल: डॉ. शिवानी निषाद और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य पुलिस स्टेशन बम्हनी जिला और अन्य के माध्यम से।

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सरकारी कर्मचारी की मृत्यु परिवार के लिए अनुकंपा नियुक्ति की गारंटी नहीं, वित्तीय कठिनाई साबित होनी चाहिए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सेवा में रहते हुए किसी कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिवार को स्वतः ही अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार नहीं मिल जाता। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि परिवार की वित्तीय स्थिति की जांच की जानी चाहिए। नौकरी केवल तभी दी जानी चाहिए, जब परिवार इसके बिना संकट का सामना नहीं कर सकता, बशर्ते कोई प्रासंगिक योजना या नियम हो।

जस्टिस राजेश सेखरी ने जम्मू-कश्मीर राज्य हथकरघा विकास निगम में अनुकंपा नियुक्ति की मांग करने वाले दो व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

केस टाइटल: मोहम्मद अशरफ मीर बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य

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खुद का खर्च उठाने में सक्षम पति को पत्नी का खर्च बी उठाना चाहिए; नौकरी/व्यवसाय न होना कोई बहाना नहीं: गुवाहाटी हाईकोर्ट

गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर पति स्वस्थ है, सक्षम है और खुद का खर्च उठाने की स्थिति में है तो उसे अपनी पत्नी का खर्च उठाना कानूनी तौर पर ज़रूरी है। जस्टिस मालसारी नंदी की पीठ ने कहा कि पति का यह तर्क कि उसके पास पैसे नहीं हैं, क्योंकि उसके पास कोई उपयुक्त नौकरी या व्यवसाय नहीं है, बेबुनियाद बहाना है, जो कानून में स्वीकार्य नहीं है।

केस टाइटल - माहिम अली बनाम असम राज्य और अन्य

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पीड़िता के करीबी रिश्तेदार द्वारा किसी निर्दोष को फंसाने की संभावना नहीं, उन्हें केवल 'इच्छुक गवाह' बताकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक करीबी रिश्तेदार वास्तविक अपराधी को छिपाने और किसी निर्दोष व्यक्ति पर अपराध थोपने के बजाय घटना की वास्तविक कहानी पेश करने की अधिक संभावना रखता है। जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल पीठ यह समझा रही थी कि करीबी रिश्तेदारों की गवाही को 'हितधारक गवाहों' के रूप में वर्गीकृत करके स्वतः ही अनदेखा क्यों नहीं किया जाना चाहिए।

केस टाइटल: नितिन मेवाते बनाम मध्य प्रदेश राज्य

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धारा 11 हिंदू विवाह अधिनियम | पति के माता-पिता उसकी मृत्यु के बाद विवाह को अमान्य घोषित करने की कार्यवाही का विरोध कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 के तहत (विवाह को शून्य घोषित करने) के लिए दायर किए गए पति की मृत्यु के बाद, उसके माता-पिता को आदेश 22 नियम 3 सीपीसी के तहत कार्यवाही को आगे बढ़ाने का अधिकार है क्योंकि ऐसे वैवाहिक विवादों में उत्तराधिकार के प्रश्न शामिल होते हैं।

परिवार न्यायालय के आदेश के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस विवेक कुमार बिड़ला और जस्टिस सैयद कमर हसन रिजवी की पीठ ने कहा, “कानूनी प्रतिनिधि जो “दोनों पक्षों में से कोई नहीं है” और जो विवाह में पति या पत्नी में से एक नहीं था, अधिनियम की धारा 11 के तहत दायर याचिका को आगे बढ़ा सकता है कि विवाह को शून्य घोषित किया जाना चाहिए और इसलिए, आदेश 22 नियम 3 सीपीसी के तहत दायर उनका आवेदन विचारणीय होगा।”

केस टाइटल: शताक्षी मिश्रा बनाम दीपक महेंद्र पांडे (मृत) और 2 अन्य [पहली अपील संख्या - 394/2024]

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S.13 Hindu Marriage Act | क्रूरता का पता लगने के बाद परित्याग के सबूत की परवाह किए बिना तलाक दिया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार फैमिली कोर्ट द्वारा क्रूरता के बारे में पता लगने के बाद पक्षकारों के बीच विवाह को भंग कर दिया जाना चाहिए। न्यायालय ने माना कि केवल इसलिए कि परित्याग साबित नहीं हुआ है, विवाह को बहाल नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act) की धारा 13(1) में दिए गए तलाक के आधार परस्पर अनन्य हैं। यदि इनमें से कोई भी आधार बनता है तो तलाक दिया जाना चाहिए। इसने माना कि प्रत्येक आधार के बाद 'या' शब्द का उपयोग उन्हें विभाजक बनाता है।

केस टाइटल: डॉ. बिजॉय कुंडू बनाम पियू कुंडू [पहली अपील नंबर- 31/2021]

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[Rajasthan Municipalities Act, 2009] अधिनियम के तहत उपाय का लाभ उठाए बिना सीधे सिविल कोर्ट जाने पर कोई रोक नहीं: राजस्थान हाइकोर्ट

राजस्थान हाइकोर्ट में जस्टिस बीरेंद्र कुमार की पीठ ने एक ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में ट्रायल कोर्ट ने सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत शिकायत खारिज करने से इनकार किया था।

यह याचिका राजस्थान नगर पालिका अधिनियम, 2009 के तहत वैकल्पिक उपाय के अस्तित्व के आधार पर दायर की गई थी लेकिन न्यायालय ने यह देखते हुए मामले का फैसला किया कि अधिनियम के तहत सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र पर कोई विशेष रोक नहीं है।

केस टाइटल- नीता कपूर बनाम गायत्री देवी और अन्य।

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वैधानिक जमानत देना अंतरिम आदेश नहीं बल्कि अंतिम आदेश: दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैधानिक जमानत देना अंतरिम आदेश नहीं बल्कि अंतिम आदेश है। जस्टिस नवीन चावला ने कहा, "जहां तक पुनर्विचार याचिका की स्थिरता का सवाल है, वैधानिक जमानत देना अंतरिम आदेश नहीं माना जा सकता। यह आवेदक को जमानत पर रिहा करने का अंतिम आदेश है, क्योंकि जांच पूरी नहीं हो सकी और अभियोजन पक्ष द्वारा 60/90 दिनों की अवधि के भीतर अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं की जा सकी।"

केस टाइटल- अमरजीत सिंह ढिल्लों बनाम राज्य एनसीटी ऑफ दिल्ली

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'यदि कोई कानूनी बाधा न हो तो रिटायरमेंट लाभ प्राप्त करना कर्मचारी का संवैधानिक और मौलिक अधिकार': झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पेंशन लाभ कर्मचारियों का संवैधानिक और मौलिक अधिकार है, न कि अधिकारियों का विवेकाधीन अधिकार। न्यायालय ने ऐसे कर्मचारी से रिटायरमेंट लाभ रोके जाने पर हैरानी व्यक्त की, जिसका बर्खास्तगी आदेश विभाग की ओर से किसी अपील या संशोधन के बिना अपीलीय प्राधिकारी द्वारा रद्द कर दिया गया।

जस्टिस एसएन पाठक ने मामले पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की, "यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि कानून के किस प्राधिकार के तहत किसी कर्मचारी के संपूर्ण स्वीकृत रिटायरमेंट लाभ रोके जा सकते हैं, जब बर्खास्तगी के आदेश को अपीलीय प्राधिकारी द्वारा रद्द कर दिया गया हो और उसे अलग रखा गया हो, वह भी तब जब विभाग द्वारा कोई अपील/संशोधन पेश नहीं किया गया हो। प्रतिवादी कमजोर रुख अपना रहे हैं, जो इस न्यायालय को स्वीकार्य नहीं है। रिटायरमेंट लाभ न देने के लिए प्रतिवादियों की ओर से देरी और लापरवाही का यह एक और ज्वलंत उदाहरण है।"

केस टाइटल: श्रवण कुमार दास बनाम झारखंड राज्य

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BSF Act 1968 | कमांडेंट सुरक्षा बल न्यायालय में सुनवाई के बिना BSF कर्मियों को बर्खास्त कर सकते हैं, बशर्ते BSF नियमों में उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन किया जाए: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सीमा सुरक्षा बल (BSF) के किसी सदस्य को बर्खास्त करने की कमांडेंट की शक्ति स्वतंत्र है। इसके लिए सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा पूर्व दोषसिद्धि की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते कि BSF नियम, 1969 के नियम 22 में उल्लिखित प्रक्रियाओं का पालन किया जाए।

बर्खास्तगी आदेश जारी करने में कमांडेंट की क्षमता को स्पष्ट करते हुए जस्टिस संजय धर ने कहा, “नियमों के नियम 177 के साथ अधिनियम की धारा 11(2) के तहत कमांडेंट की किसी अधिकारी या अधीनस्थ अधिकारी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को बर्खास्त करने की शक्ति स्वतंत्र शक्ति है और यह सुरक्षा बल न्यायालय द्वारा संबंधित व्यक्ति की दोषसिद्धि पर निर्भर नहीं है। केवल आवश्यकता यह है कि नियमों के नियम 22 में निहित प्रावधानों का पालन किया जाना चाहिए।'

केस टाइटल: सीता देवी बनाम भारत संघ

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पदोन्नति के लिए बेदाग रिकॉर्ड जरूरी, आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे कर्मचारी को कार्यवाही लंबित रहने के दौरान पदोन्नति का हक नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे सरकारी कर्मचारी कार्यवाही लंबित रहने के दौरान पदोन्नति का दावा नहीं कर सकते। जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने कहा कि पदोन्नति के लिए स्वच्छ और कुशल प्रशासन सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारी का कम से कम बेदाग रिकॉर्ड होना चाहिए।

अदालत ने आगे कहा कि कदाचार का दोषी पाए गए कर्मचारी को अन्य कर्मचारियों के बराबर नहीं रखा जा सकता और उसके मामले को अलग तरह से देखा जाना चाहिए। इसलिए पदोन्नति के मामले में उसके साथ अलग तरह से व्यवहार किए जाने पर कोई भेदभाव नहीं है।

केस टाइटल: नबा कुमार गिरि बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

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विवाह के दौरान पति द्वारा पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि जब पति विवाह के दौरान अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाता है तो सहमति अप्रासंगिक हो जाती है। यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत बलात्कार के दायरे में नहीं आता है। चूंकि यह धारा 375 आईपीसी के तहत बलात्कार नहीं होगा, इसलिए धारा 377 आईपीसी के तहत अपराध भी नहीं माना जाएगा।

जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की एकल पीठ ने कहा कि कथित अप्राकृतिक कृत्य, यानी महिला के मुंह में लिंग डालना, धारा 375 में परिभाषित बलात्कार के दायरे में आता है। हालांकि, विवाह के दौरान पति और पत्नी के बीच कोई भी यौन क्रिया सहमति के अभाव में भी धारा 375 आईपीसी के दायरे में नहीं लाई जा सकती।

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सर्विस में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना AAI विनियमों के तहत सर्विस में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने में बाधा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण श्रमिक संघ एवं अन्य बनाम श्रम मंत्रालय के अवर सचिव एवं अन्य के मामले में माना है कि सेवा में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना सेवा में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने पर विचार करने के लिए प्रासंगिक नहीं है। AAI विनियमों के तहत मातृत्व लाभ विनियमन का उद्देश्य जनसंख्या पर अंकुश लगाना नहीं है, बल्कि सेवा अवधि के दौरान केवल दो अवसरों पर ऐसा लाभ देना है।

केस टाइटल- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण श्रमिक संघ एवं अन्य बनाम अवर सचिव, श्रम मंत्रालय एवं अन्य

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आंगनवाड़ी केंद्र Gratuity Act के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में आते हैं: त्रिपुरा हाईकोर्ट

बीना रानी पॉल एवं अन्य बनाम त्रिपुरा राज्य एवं अन्य के मामले में जस्टिस एस. दत्ता पुरकायस्थ की त्रिपुरा हाईकोर्ट की एकल पीठ ने माना कि आंगनवाड़ी केंद्र ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (Gratuity Act) के तहत 'एस्टेब्लिशमेंट' के दायरे में आते हैं। इस प्रकार आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी सहायिका ग्रेच्युटी की हकदार हैं।

केस टाइटल- बीना रानी पॉल और अन्य बनाम त्रिपुरा राज्य और अन्य

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पत्नी और बच्चे को छोड़ने वाले पति को वित्तीय स्थिति की परवाह किए बिना भरण-पोषण देना होगा: कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने पति द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी। उक्त याचिका में ट्रायल कोर्ट द्वारा अलग हुए पति और नाबालिग बच्चे को दिए गए अंतरिम भरण-पोषण भत्ते पर सवाल उठाया गया था। जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की एकल पीठ ने पति की इस दलील को खारिज कर दिया कि वह बेरोजगार है, क्योंकि उसकी नौकरी चली गई है। वह भरण-पोषण देने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि उसके पास आय का कोई स्वतंत्र स्रोत नहीं है।

केस टाइटल: अमित चौगुले और मेघा

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एक बार धारा 321 सीआरपीसी के तहत आवेदन खारिज हो जाने के बाद सरकारी वकील को आरोपी को बरी करने के लिए ट्रायल कोर्ट से अनुरोध करने का कोई अधिकार नहीं: राजस्थान हाईकोर्ट

राजस्थान हाईकोर्ट ने माना कि धारा 321 सीआरपीसी के तहत अभियुक्त के खिलाफ अभियोजन वापस लेने के आवेदन को संबंधित न्यायालय द्वारा खारिज कर दिए जाने के बाद लोक अभियोजक का कर्तव्य है कि वह अभियुक्त पर मुकदमा चलाए और अभियोजन के लिए मामला खोले।

जस्टिस अनूप कुमार ढांड की हाईकोर्ट की पीठ अभियुक्तों/याचिकाकर्ताओं और राजस्थान राज्य द्वारा सत्र न्यायालय द्वारा उनके खिलाफ आरोप तय करने और सत्र न्यायालय द्वारा अभियुक्तों/प्रतिवादियों को आरोपमुक्त करने के खिलाफ दायर आपराधिक पुनरीक्षण याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। मामला डकैती और हत्या से संबंधित था और अभियुक्तों/याचिकाकर्ताओं तथा अभियुक्तों/प्रतिवादियों के खिलाफ तीन आरोपपत्र दायर किए गए थे।

मामला: राजेश और अन्य बनाम राजस्थान राज्य, सीआरएलआर/793/2005

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यदि बर्खास्तगी का आदेश अवैध है तो 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का सिद्धांत लागू नहीं होगा: दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाइकोर्ट के जस्टिस तुषार राव गेडेला की एकल पीठ ने मनीषा शर्मा बनाम विद्या भवन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल एवं अन्य के मामले में माना कि यदि बर्खास्तगी का आदेश अवैध है तो कर्मचारी पिछले वेतन का हकदार है और ऐसे मामलों में 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का सिद्धांत लागू नहीं होता।

केस टाइटल- मनीषा शर्मा बनाम विद्या भवन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल एवं अन्य

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गैर-वंशानुगत पद धारण करने से प्राप्त अधिकार, व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाते हैं, हस्तांतरणीय या वंशानुगत नहीं: दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाइकोर्ट के जस्टिस धर्मेश शर्मा की एकल पीठ ने रेव. जॉन एच. कैलेब बनाम दिल्ली डायोसिस-सीएनआई एवं अन्य के मामले में सिविल पुनर्विचार याचिका पर निर्णय लेते हुए माना कि गैर-वंशानुगत पद धारण करने के कारण उत्पन्न होने वाला व्यक्तिगत अधिकार संबंधित व्यक्ति की मृत्यु के साथ ही समाप्त हो जाता है तथा हस्तांतरणीय या वंशानुगत नहीं है।

केस टाइटल- रेवड. जॉन एच. कैलेब बनाम दिल्ली का सूबा-सी.एन.आई. और अन्य।

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प्रत्येक साधु या गुरु को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि बनाने की अनुमति दी जाती है तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे: दिल्ली हाइकोर्ट

दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि यदि प्रत्येक साधु, गुरु या बाबा को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि बनाने और निजी लाभ के लिए इसका उपयोग करने की अनुमति दी जाती है तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे।

जस्टिस धर्मेश शर्मा ने कहा, "हमारे देश में हमें परिदृश्य के विभिन्न हिस्सों में हजारों साधु, बाबा, फकीर या गुरु मिल सकते हैं और यदि उनमें से प्रत्येक को सार्वजनिक भूमि पर मंदिर या समाधि स्थल बनाने की अनुमति दी जाती है और इस तरह निहित स्वार्थी समूहों द्वारा निजी लाभ के लिए इसका उपयोग जारी रखा जाता है तो इसके परिणाम विनाशकारी होंगे और व्यापक सार्वजनिक हित को खतरे में डालेंगे।"

केस टाइटल- महंत श्री नागा बाबा भोला गिरी अपने उत्तराधिकारी अविनाश गिरी के माध्यम से बनाम जिला मजिस्ट्रेट जिला केंद्रीय और अन्य

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