हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (23 दिसंबर, 2024 से 27 दिसंबर, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
विकलांगता पेंशन | जब नियुक्त होने के चरण में बीमारी का कोई रिकॉर्ड न हो तो सैनिक को स्वस्थ माना जाता है: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के आदेश को निरस्त करते हुए विकलांग सशस्त्र बल अधिकारी की विकलांगता पेंशन को प्रोसेस करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने आदेश में कहा है कि विशिष्ट चिकित्सा निष्कर्ष के अभाव में सैनिक को स्वस्थ माना जाता है।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा, "संबंधित रक्षा प्रतिष्ठान के किसी भी सदस्य के स्वस्थ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में एक अनुमान लगाया जाता है, खासकर तब जब उसके रोल पर आने के चरण में, उसके किसी बीमारी से ग्रस्त होने के बारे में कोई नोट या रिकॉर्ड न हो।"
केस टाइटल: कृष्ण नंदन मिश्रा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य।
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यदि मामला मूल न्यायालय में वापस भेजा जाता है तो अपीलीय न्यायालय को कोर्ट फीस वापस करना होगा: इलाहाबाद हाईकोर्ट
कोर्ट फीस एक्ट की धारा 13 पर चर्चा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि एक बार किसी अपील को किसी भी कारण से मूल न्यायालय में वापस भेज दिया जाता है तो अपीलीय न्यायालय को अपीलकर्ता को अपील ज्ञापन के साथ भुगतान की गई पूरी कोर्ट फीस वापस प्राप्त करने के लिए प्राधिकरण का प्रमाण पत्र प्रदान करना चाहिए।
जस्टिस क्षितिज शैलेंद्र ने कहा, “धारा 13 अपीलीय न्यायालय पर यह दायित्व डालती है कि वह अपीलकर्ता को एक प्रमाण पत्र प्रदान करे, जिसमें उसे अपील ज्ञापन पर भुगतान की गई फीस की पूरी राशि कलेक्टर से वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत किया गया हो। प्रावधान ऐसे अधिकार को मूल रूप से भुगतान की गई राशि की सीमा तक सीमित करता है।”
केस टाइटल: चंद्र प्रकाश मिश्रा और 3 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 10 अन्य [प्रथम अपील संख्या - 1020/2023]
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[UAPA] आतंकवादी कृत्य पर वर्षों तक विचार करना, भले ही उसे अंजाम न दिया गया हो, आतंकवादी कृत्य माना जाता है: दिल्ली हाईकोर्ट
गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा (QIS) के सदस्य की दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आतंकवादी कृत्य पर वर्षों तक विचार करना, भले ही उसे कई वर्षों के बाद अंजाम दिया गया हो, आतंकवादी कृत्य माना जाता है।
जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "UAPA की धारा 15 के तहत 'आतंकवादी कृत्य' की परिभाषा में स्पष्ट रूप से "आतंकवाद फैलाने के इरादे से" अभिव्यक्ति शामिल है, चाहे वह किसी भी तरह का हो या होने की संभावना हो। ऐसी अभिव्यक्ति को केवल तत्काल आतंकवादी कृत्य से ही नहीं जोड़ा जाएगा, बल्कि इसमें ऐसे कृत्य भी शामिल होंगे, जो कई वर्षों से विचाराधीन हो सकते हैं। कई वर्षों के बाद प्रभावी हो सकते हैं।"
केस टाइटल: मोहम्मद अब्दुल रहमान बनाम दिल्ली राज्य एनसीटी (सीआरएल.ए. 280/2023)
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दिल्ली हाईकोर्ट ने FIR रद्द करने के लिए समझौता आधारित याचिकाओं के शीघ्र निपटान के लिए निर्देश जारी किए
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में FIR रद्द करने से संबंधित गैर-विवादास्पद समझौता आधारित याचिकाओं के शीघ्र निपटान को सुनिश्चित करने के लिए अभ्यास निर्देश जारी किए। एक्टिंग चीफ जस्टिस विभु बाखरू ने 24 दिसंबर को अभ्यास निर्देश जारी किए।
निर्देशों में कहा गया कि FIR रद्द करने से संबंधित सभी गैर-विवादास्पद समझौता आधारित याचिकाओं को आपराधिक क्षेत्राधिकार के लिए संयुक्त रजिस्ट्रार (न्यायिक) के समक्ष प्रारंभिक रूप से सूचीबद्ध किया जाएगा, जो समझौते के आधार पर दायर मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित नवीनतम दिशानिर्देशों के अनुपालन को सत्यापित और सुनिश्चित कर सकते हैं।
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सर्वेक्षण आयुक्त को साक्ष्य एकत्र करने के लिए नियुक्त नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में सर्वेक्षण आयुक्त नियुक्त करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए फैसला सुनाया कि यह आदेश सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश XXVI नियम 9 के तहत स्थानीय जांच की आवश्यकता को स्थापित करने में विफल रहा और इसमें पर्याप्त तर्क का अभाव था।
हाईकोर्ट ने सरस्वती बनाम विश्वनाथन [2002 (2) सीटीसी 199] में सुप्रीम कोर्ट के उदाहरण का हवाला देते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए इस बात पर जोर दिया कि आयुक्त की नियुक्ति का उद्देश्य साक्ष्य एकत्र करना नहीं है, बल्कि उन मामलों को स्पष्ट करना है, जो स्थानीय प्रकृति के हैं और जिन्हें केवल मौके पर स्थानीय जांच द्वारा ही किया जा सकता है।"
केस टाइटल: कृष्णा मिस्त्री @ कृष्णा विश्वकर्मा बनाम बैद्यनाथ प्रसाद यादव एवं अन्य
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BSF कार्मिक 60 वर्ष तक की सेवा के आधार पर MACP लाभ के हकदार: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस नवीन चावला और शालिंदर कौर की खंडपीठ ने BSF कार्मिकों के तीसरे संशोधित सुनिश्चित कैरियर प्रगति (MACP) लाभ का अधिकार बरकरार रखा। उन्होंने उल्लेख किया कि देव शर्मा बनाम भारत तिब्बत सीमा पुलिस ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के सभी अधिकारियों के लिए 60 वर्ष की आयु में एक समान रिटायरमेंट अनिवार्य कर दी थी।
उन्होंने माना कि 60 वर्ष तक की काल्पनिक सेवा को भी MACP मूल्यांकन के लिए 'नियमित सेवा' के रूप में गिना जाना चाहिए। इसने फैसला सुनाया कि अन्य लाभ प्रदान करते हुए MACP लाभ से इनकार करना देव शर्मा के आंशिक कार्यान्वयन के बराबर होगा।
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पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार का प्रयोग करते हुए न्यायालय मध्यस्थता अवॉर्ड में हस्तक्षेप नहीं करेगा, हस्तक्षेप का दायरा सीमित है: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट की जस्टिस श्री चंद्रशेखर और जस्टिस डॉ. नुपुर भाटी की पीठ ने कहा कि यह एक सुस्थापित कानून है कि मध्यस्थ द्वारा समझौते के खंड की व्याख्या न्यायिक हस्तक्षेप के लिए खुली नहीं होगी, जब तक कि न्यायालय के समक्ष यह प्रदर्शित न हो जाए कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा की गई व्याख्या विकृत थी।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने माना कि यदि मध्यस्थ द्वारा लिया गया दृष्टिकोण तार्किक और स्वीकार्य है, क्योंकि केवल दो दृष्टिकोण संभव हैं, तो न्यायालय अपने पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार के प्रयोग में मध्यस्थ अवॉर्ड में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
केस टाइटलः राजस्थान राज्य बनाम मेसर्स लीलाधर देवकीनंदन
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निजी पक्ष एडवोकेट जनरल की पूर्व लिखित सहमति के बिना अदालत की अवमानना के लिए सजा की मांग नहीं कर सकता: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने वकील द्वारा दायर अवमानना याचिका खारिज की, जिसमें कहा गया कि यह न्यायालय की अवमानना अधिनियम के तहत सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि याचिकाकर्ता के पास अधिकार नहीं है। वह ऐसी कार्यवाही शुरू करने के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहा है।
जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने अपने निर्णय में कहा, "यह अच्छी तरह से स्थापित है कि यदि कोई निजी पक्ष न्यायालय की अवमानना के लिए दंड की मांग करता है तो वह एडवोकेट जनरल की पूर्व लिखित सहमति से ही उक्त अधिनियम की धारा 15 के तहत याचिका दायर कर सकता है। इस मामले में एडवोकेट अभिषेक कृष्ण गुप्ता द्वारा व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर ऐसी कोई पूर्व लिखित सहमति प्राप्त नहीं की गई। इसके मद्देनजर, उन्होंने न्यायालय की अवमानना क्षेत्राधिकार का आह्वान करने के लिए अनिवार्य आवश्यकता को पूरा नहीं किया है।"
केस टाइटल: अभिषेक कृष्ण गुप्ता बनाम झारखंड राज्य और अन्य
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हाईकोर्ट ने फर्जी आठवीं कक्षा की मार्कशीट जमा करने पर हरियाणा नगर परिषद अध्यक्ष को हटाने का फैसला बरकरार रखा
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा के सोहना नगर परिषद के अध्यक्ष को आठवीं कक्षा की फर्जी मार्कशीट जमा करने के आधार पर पदच्युत करने के फैसले को बरकरार रखा है।
जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर और जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा, "वर्तमान याचिकाकर्ता के बुरे आचरण को और भी बढ़ा दिया गया है, क्योंकि मूल प्रमाण-पत्र को रोककर रखने से उसके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला गया है, इस प्रकार, यह तथ्य भी सामने आता है कि प्रमाण-पत्र मुकेश उपाध्याय नामक व्यक्ति द्वारा जारी किया गया है, जिसके बारे में यह कहा गया है कि प्रमाण-पत्र जारी करने के समय उसकी आयु 14 से 15 वर्ष थी। चूंकि, जांच अधिकारी ने ठीक ही निष्कर्ष निकाला है कि वह शैक्षणिक संस्थान का अधिकार प्राप्त कर्मचारी होने का दावा करने में पूरी तरह से अक्षम है। स्वाभाविक रूप से, वर्तमान याचिकाकर्ता के संबंध में जारी किया गया संबंधित प्रमाण-पत्र स्पष्ट रूप से फर्जी और अप्रमाणिक प्रमाण-पत्र है।"
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शहर को 'धार्मिक' बताकर बूचड़खाने की अनुमति न देना 'पूरी तरह अस्वीकार्य': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी शहर को धार्मिक होने के आधार पर बूचड़खाना स्थापित करने की अनुमति देने से इनकार करना पूरी तरह से अस्वीकार्य है। वर्तमान मामला मंदसौर शहर से संबंधित है।
जस्टिस प्रणय वर्मा की पीठ ने आगे कहा कि मध्य प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1961 के तहत राज्य सरकार की अधिसूचना, जिसमें 100 मीटर के दायरे को पवित्र क्षेत्र घोषित किया गया है, का अर्थ यह नहीं है कि पूरे शहर को पवित्र माना जाना चाहिए।
केस टाइटलः साबिर हुसैन बनाम मध्य प्रदेश राज्य
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रिस जुडिकाटा का सिद्धांत समान राहत की मांग करने वाले दूसरे संशोधन आवेदन को रोकता है: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए एक फैसले में दोहराया कि कार्यवाही के एक चरण में पारित आदेश उसी मुद्दे पर बाद के चरण में पुनर्विचार करने से रोकता है। कोर्ट ने सत्यध्यान घोषाल बनाम देवरजिन देबी (एआईआर 1960 एससी 941) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि किसी मामले में पहले दिया गया निर्णय बाद के आवेदनों में उसी मामले पर पुनर्विचार करने से रोकता है।
केस टाइटल: परवेज अख्तर और अन्य बनाम ताबिश अंसारी और अन्य
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वाहन के साथ स्टंट करना, जिससे मौत हो जाती है, गैर इरादतन हत्या के बराबर है, न कि लापरवाही से गाड़ी चलाने के बराबर: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि पब्लिक रोड पर वाहन से स्टंट करना "पैदल चलने वालों के प्रति उदासीन और बेपरवाह रवैया दर्शाता है" यह लापरवाही और जल्दबाजी से वाहन चलाने के अंतर्गत नहीं आता, बल्कि प्रथम दृष्टया यह गैर इरादतन हत्या के अंतर्गत आता है।
बाइक पर बैठे एक व्यक्ति की ट्रैक्टर से दुर्घटना में कथित तौर पर मौत हो गई। गति बढ़ाने के लिए ट्रैक्टर में अतिरिक्त टर्बो पंप लगाकर संशोधित किया गया था। ट्रैक्टर चालक ने अग्रिम जमानत मांगी थी, जिसने तर्क दिया कि पीड़ित और उसका दोस्त बाइक पर स्टंट कर रहे थे और उनके बीच दोस्ताना संबंध थे।
केस टाइटल: लखबीर सिंह @ लाखा बनाम पंजाब राज्य
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पत्नी द्वारा अपने मित्रों और परिवार को पति की इच्छा के विरुद्ध उसके घर पर थोपना क्रूरता के समान: कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि यदि पत्नी अपने मित्रों और परिवार को अपने पति की इच्छा के बिना उसके घर पर ठहराती है तो यह क्रूरता के समान है।
जस्टिस सब्यसाची भट्टाचार्य और जस्टिस उदय कुमार की खंडपीठ ने कहा: यदि अपीलकर्ता (पति) ने उसकी पेंशन या प्रतिवादी द्वारा अर्जित धन हड़प लिया होता तो प्रतिवादी (पत्नी) की मां उसके कोलाघाट स्थित घर पर नहीं रहती। किसी भी स्थिति में मौसमी पॉल (मित्र) और उसके परिवार के अन्य सदस्यों का पति की आपत्ति और असुविधा के बावजूद उसके घर पर लगातार मौजूद रहना रिकॉर्ड से प्रमाणित होता है।
केस टाइटल: मिस्टर धीरज गुइन बनाम तनुश्री मजूमदार
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उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम में संशोधन के तहत 01.01.1977 से पहले निष्पादित दत्तक डीड के रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट
40 वर्ष पुरानी रिट याचिका को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि उत्तर प्रदेश राज्य में चकबंदी कार्यवाही को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि दत्तक डीड का रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ, जबकि ऐसा डीड 01.01.1977 से पहले निष्पादित किया गया। जस्टिस चंद्र कुमार राय ने कहा कि इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता खासकर तब जब दत्तक ग्रहण के कागजात पहले ही चकबंदी अधिकारी द्वारा सत्यापित किए जा चुके हों।
केस टाइटल: जगदीश बनाम सहायक संचालक, चकबंदी अधिकारी और अन्य [रिट - बी संख्या 9423/1984]
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पंजाब राज्य चुनाव आयोग अधिनियम | निर्वाचन क्षेत्र में मकान होने मात्र से व्यक्ति सामान्य निवासी नहीं होताः हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि पंजाब चुनाव आयोग अधिनियम के अनुसार कोई व्यक्ति केवल मकान के मालिक होने अथवा उस पर कब्जा होने के आधार पर सामान्य निवासी नहीं हो सकता।
न्यायालय ने कहा, “यद्यपि वैधानिक शब्द सामान्य निवासी का अर्थ वैधानिक रूप से व्यक्त किया गया लेकिन कोई भी मतदाता किसी निर्वाचन क्षेत्र अथवा संबंधित राजस्व संपदा में केवल इस आधार पर सामान्य निवासी नहीं हो सकता कि वह उस निर्वाचन क्षेत्र/राजस्व संपदा में मकान का मालिक है अथवा उस पर उसका कब्जा है।”
टाइटल- गुरमेज बनाम पंजाब राज्य
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महाकुंभ मेले में किसी विशेष भूमि के आवंटन पर कोई संगठन निहित अधिकार का दावा नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
कुंभ मेले के बढ़ते चलन को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि महाकुंभ मेला क्षेत्र में किसी विशेष भूमि के आवंटन का कोई निहित अधिकार नहीं है, क्योंकि उन्हें पिछले वर्षों में भी यह भूमि आवंटित की गई हो सकती है।
याचिकाकर्ता ने महाकुंभ मेले के दौरान त्रिवेणी मार्ग और मुक्ति मार्ग के जंक्शन पर भूमि के आवंटन को निहित अधिकार के रूप में मांगते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता का दावा है कि उसे वर्ष 2001, 2007 और 2013 में आयोजित कुंभ मेले के दौरान भी यही भूमि आवंटित की गई।
केस टाइटल: योग सत्संग समिति अपने निदेशक/महानिदेशक के माध्यम से बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य [रिट - सी संख्या - 41969/2024]