बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामलों में किसी व्यक्ति को फंसाने की लगातार धमकियां आत्महत्या के लिए उकसाने के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Shahadat

6 Jun 2024 6:05 AM GMT

  • बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामलों में किसी व्यक्ति को फंसाने की लगातार धमकियां आत्महत्या के लिए उकसाने के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने आदेश में कहा कि बलात्कार और छेड़छाड़ के झूठे मामले में मृतक/पीड़ित को फंसाने की आरोपी द्वारा लगातार धमकी देना आत्महत्या के लिए उकसाने के समान हो सकता है।

    धारा 482 सीआरपीसी के तहत आरोपी द्वारा प्रस्तुत आवेदन स्वीकार करने से इनकार करते हुए जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की एकल पीठ ने कहा कि मृतक पर झूठे मामले थोपकर उसे जेल भेजने की धमकी को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

    पीठ ने पाया कि ये धमकियां कोई एक बार की घटना नहीं थीं। ये प्रथम दृष्टया मृतक के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने और नष्ट करने में सक्षम थीं।

    अदालत ने कहा,

    “यह स्पष्ट है कि मृतक, जो सरकारी नौकरी पाने के लिए पीएससी में शामिल होने की तैयारी कर रहा था, आपराधिक मामलों में उसके झूठे फंसाए जाने के कारण परेशान था। उसे बलात्कार और छेड़छाड़ के मामले में झूठे फंसाए जाने की लगातार धमकी के अलावा कोई सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी।”

    अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि मृतक से जुड़ी चल रही कानूनी कार्यवाही के बारे में लगातार उत्पीड़न और ताने उसे आत्महत्या करने के लिए कैसे प्रेरित कर सकते थे।

    उपरोक्त कारणों को बताते हुए अदालत ने धारा 306 आईपीसी के अपराध के लिए आवेदकों के खिलाफ उपलब्ध पर्याप्त सामग्री के आलोक में ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही में हस्तक्षेप न करना उचित समझा।

    तथ्यात्मक पहलुओं और अनुपात पर अदालत ने यूडीई सिंह और अन्य बनाम हरियाणा राज्य (2019) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के समानांतर यह माना कि लगातार उत्पीड़न से पीड़ित का करियर नष्ट हो सकता है और झूठे आरोपों के आधार पर उसे अपराधी के रूप में ब्रांड किया जा सकता।

    यूडीई सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 306 के तहत दोषसिद्धि बरकरार रखते हुए कहा कि अभियुक्तों ने पीड़ित के आत्मसम्मान और स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने में सक्रिय भूमिका निभाई, जिसके कारण अंततः पीड़ित ने आत्महत्या कर ली। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि अभियुक्त मृतक को तब तक परेशान करता रहे, जब तक कि वह/वे प्रतिक्रिया न करें या उत्तेजित न हो जाएं, तो आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बनाया जा सकता है।

    अदालत ने आगे कहा,

    “यदि मृतक भयभीत था और समाज में अपने आत्मसम्मान और सम्मान को नष्ट होने की आशंका थी तो अभियुक्तों के हाथों प्रतिदिन अपमान के कारण यदि मृतक ने आत्महत्या कर ली तो प्रथम दृष्टया आईपीसी की धारा 306 के तहत अपराध बनता है।”

    न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में मृतक के पड़ोसियों द्वारा ताने और उत्पीड़न के विशिष्ट आरोप हैं, जो आवेदक हैं।

    जब प्रथम आवेदक के वकील ने कहा कि मुवक्किलों में से एक डॉक्टर है, जिसे मुकदमे की कठिन परीक्षा से गुजरने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए, तो अदालत ने यह कहते हुए तर्क को खारिज कर दिया कि वकील ने ऐसा कोई प्रावधान नहीं बताया, जो डॉक्टर को भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों से छूट प्रदान करता हो।

    अदालत ने यह भी देखा कि दूसरी आवेदक, जो प्रथम आवेदक की माँ है, उसने भी मृतक को झूठा फंसाने का एक साझा इरादा साझा किया। हालांकि मृतक के सुसाइड नोट में उसके कार्यों का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया।

    अदालत ने उस तरीके को मंजूरी नहीं दी, जिसमें प्रतिवादी नंबर 2, जो मृतक व्यक्ति/पीड़ित है, उसको धारा 482 सीआरपीसी आवेदन में शामिल किया गया।

    मृतक की मां सहित गवाहों ने उल्लेख किया कि मृतक को कैसे लगा कि आवेदक उसके खिलाफ झूठे मामले दर्ज करके लगातार उस पर दबाव बना रहे थे।

    गवाहों के अनुसार, मृतक ने दिसंबर 2022 में आत्महत्या कर ली, क्योंकि उसे यकीन था कि आवेदक उसे अपना करियर बनाने या शांति से कोई अन्य नौकरी करने की अनुमति नहीं देंगे।

    इससे पहले, आवेदकों ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया कि धारा 107 आईपीसी के तहत उकसाने के लिए कोई भी तत्व नहीं बनाया गया। उन्होंने इस पहलू पर भी जोर दिया कि मृतक की मां हाउसिंग सोसाइटी में उपद्रव करने के लिए कुख्यात थी। उसके और उसके परिवार के खिलाफ अब तक कई शिकायतें दर्ज की गई हैं।

    प्रतिवादियों के वकील ने प्रस्तुत किया कि उत्पीड़न एक अकेली घटना नहीं थी, बल्कि लगातार यातना का एक रूप था। यह तब भी जारी रहा जब मृतक अपना घर गिरवी रखने के बाद इंदौर में कोचिंग के लिए रहने की जगह से चला गया।

    प्रतिवादियों के अनुसार, पहले आवेदक ने कथित तौर पर मृतक को घर बेचने के बाद कॉलोनी छोड़ने की धमकी दी थी, जिसे अदालत ने प्रथम दृष्टया प्रासंगिक पाया। इसलिए एकल पीठ ने धारा 482 सीआरपीसी के तहत आवेदन खारिज कर दिया।

    केस टाइटल: डॉ. शिवानी निषाद और अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य पुलिस स्टेशन बम्हनी जिला और अन्य के माध्यम से।

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