2024 के सुप्रीम कोर्ट के 100 महत्वपूर्ण फैसले - पार्ट 4 [76-100]

Update: 2025-01-01 04:15 GMT

हर साल की इस तरह इस साल भी लाइव लॉ आपने अंत की ओर बढ़ते वर्ष, 2024 के सुप्रीम कोर्ट के 100 महत्वपूर्ण निर्णयों की सूची लेकर आया है। आइये जानते हैं, सुप्रीम कोर्ट ने इस बीते वर्ष में किन अहम मुद्दों पर परिवर्तनकारी, रोचक और समाज-सुधार के क्षेत्र में अहम फ़ैसले दिए हैं। पढ़िए इन 100 फैसलों की तीसरी सूची- पार्ट 4

सुप्रीम कोर्ट के प्रस्तुत 100 फैसलों की तीसरी सूची (पार्ट-3) पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सुप्रीम कोर्ट के प्रस्तुत 100 फैसलों की दूसरी सूची (पार्ट-2) पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सुप्रीम कोर्ट के प्रस्तुत 100 फैसलों की पहली सूची (पार्ट-1) पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

76. बच्चों का यौन शोषण करने की इच्छा बाल यौन शोषण सामग्री देखने के समान: सुप्रीम कोर्ट

'चाइल्ड पोर्नोग्राफी' के संग्रह को दंडित करने वाले अपने हालिया फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि 'बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री' के उपभोग या भंडारण के कृत्य में बाल यौन शोषण के अपराध का एक समान उद्देश्य निहित है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि हालांकि व्यावहारिक रूप से अलग-अलग, CSEAM और बाल यौन शोषण दोनों के कृत्य "सामान्य, दुर्भावनापूर्ण इरादे को साझा करते हैं: शोषण करने वाले की यौन संतुष्टि के लिए बच्चे का शोषण और अपमान।"

केस टाइटल: जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस बनाम एस. हरीश डायरी नंबर- 8562 - 2024

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77. इंटरनेट पर जानबूझकर बिना डाउनलोड किए चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना POCSO Act के तहत 'कब्जा' माना जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इंटरनेट पर बिना डाउनलोड किए बाल पोर्नोग्राफी देखना भी यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) की धारा 15 के अनुसार ऐसी सामग्री का "कब्जा" माना जाएगा। धारा 15 बाल पोर्नोग्राफिक सामग्री को प्रसारित करने के इरादे से संग्रहीत या रखने के अपराध से संबंधित है। निर्णय में यह भी कहा गया कि प्रसारित करने के इरादे का अंदाजा किसी व्यक्ति द्वारा सामग्री को डिलीट करने और रिपोर्ट करने में विफलता से लगाया जा सकता है।

केस टाइटल: जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस बनाम एस. हरीश डायरी नंबर- 8562 - 2024

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78. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद हत्या मामले में सुनाया फ़ैसला

सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के बृज बिहारी प्रसाद हत्याकांड में आरोपी मुन्ना शुक्ला (पूर्व बिहार विधायक) और मंटू तिवारी की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी। कुल 8 आरोपियों में से, जबकि दो की ट्रायल कोर्ट द्वारा दोषसिद्धि बरकरार रखी गई, कोर्ट ने 6 अन्य को संदेह का लाभ दिया और पटना हाईकोर्ट द्वारा उन्हें बरी करने के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया।

जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने हत्या के मामले में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला और अन्य को बरी करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। इस मामले में 22 अगस्त को आदेश सुरक्षित रखा गया था।

केस टाइटल: रमा देवी बनाम बिहार राज्य और अन्य, सीआरएल.ए. नंबर 2623-2631/2014 (और संबंधित मामला)

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79. कैदियों को जाति के आधार पर काम देने की प्रथा समाप्त की जाए, जेल रजिस्टर में जाति का कॉलम हटाया जाए : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जाति के आधार पर भेदभाव और श्रम विभाजन की रोकथाम के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कई राज्यों के जेल मैनुअल के उन प्रावधानों को खारिज किया, जिनके अनुसार जेलों में उनकी जाति के आधार पर काम दिए जाते थे। कोर्ट ने कहा कि वंचित जातियों को सफाई और झाड़ू लगाने का काम और उच्च जाति के कैदियों को खाना पकाने का काम देना जातिगत भेदभाव और अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।

कोर्ट ने यूपी जेल मैनुअल के उन प्रावधानों पर आपत्ति जताई, जिसमें कहा गया कि साधारण कारावास में जाने वाले व्यक्ति को तब तक नीच काम नहीं दिया जाना चाहिए, जब तक कि उसकी जाति ऐसे काम करने के लिए इस्तेमाल न की गई हो।

केस टाइटल: सुकन्या शांता बनाम भारत संघ, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1404/2023

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80. कर्मचारी को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आधिकारिक सीनियर कब उत्तरदायी हो सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने समझाया

सुप्रीम कोर्ट ने समझाया कि आधिकारिक सीनियर को अपने जूनियर अधिकारी को आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए कब उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने तर्क दिया कि आत्महत्या के कृत्य को दो व्यापक श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है, यानी, जहां मृतक का आरोपी के साथ भावनात्मक संबंध है और दूसरी श्रेणी वह होगी जहां मृतक का आरोपी के साथ उसकी आधिकारिक क्षमता में संबंध है।

केस टाइटल: निपुण अनेजा और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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81. विदेशी नागरिकता प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के बच्चे नागरिकता अधिनियम की धारा 8(2) के तहत भारतीय नागरिकता पुनः प्राप्त नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय नागरिकता से संबंधित विभिन्न प्रावधानों से संबंधित एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई व्यक्ति विदेशी नागरिकता प्राप्त करता है, तो नागरिकता अधिनियम की धारा 9 के तहत कानून के संचालन द्वारा भारतीय नागरिकता समाप्त हो जाती है। इसलिए, नागरिकता की ऐसी समाप्ति को स्वैच्छिक नहीं माना जा सकता।

इसलिए ऐसे व्यक्तियों के बच्चे नागरिकता अधिनियम की धारा 8(2) के तहत भारतीय नागरिकता पुनः प्राप्त करने की मांग नहीं कर सकते। धारा 8(2) के अनुसार, स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता त्यागने वाले व्यक्तियों के बच्चे वयस्क होने के एक वर्ष के भीतर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं। न्यायालय ने व्याख्या की कि विदेशी नागरिकता प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के बच्चों के लिए यह विकल्प उपलब्ध नहीं है।

केस - भारत संघ बनाम प्रणव श्रीनिवासन

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82. सुप्रीम कोर्ट ने बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 की धारा 3 और 5 को निरस्त करने वाला फैसला वापस लिया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (अक्टूबर) को यूनियन ऑफ इंडिया बनाम गणपति डीलकॉम प्राइवेट लिमिटेड में अपने 2022 का फैसला वापस लिया, जिसमें बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 की धारा 3(2) और 5 को असंवैधानिक करार दिया गया था।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका स्वीकार करते हुए फैसले को वापस ले लिया।

मामला: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम गणपति डीलकॉम प्राइवेट लिमिटेड | आर.पी.(सी) संख्या 359/2023

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83. सुप्रीम कोर्ट ने असम समझौते को मान्यता देने वाले नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता बरकरार रखी

सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 बहुमत से नागरिकता अधिनियम (Citizenship Act) 1955 की धारा 6A की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी, जो असम समझौते को मान्यता देती है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की 5-जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया।

जस्टिस पारदीवाला ने धारा 6A को असंवैधानिक ठहराने के लिए असहमतिपूर्ण फैसला दिया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा कि असम समझौता अवैध प्रवास की समस्या का राजनीतिक समाधान था और धारा 6A विधायी समाधान था। बहुमत ने माना कि संसद के पास प्रावधान को लागू करने की विधायी क्षमता थी। बहुमत ने माना कि धारा 6A को स्थानीय आबादी की सुरक्षा की आवश्यकता के साथ मानवीय चिंताओं को संतुलित करने के लिए लागू किया गया।

केस टाइटल: धारा 6ए नागरिकता अधिनियम 1955 के संबंध में

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84. Sec. 108 Electricity Act| राज्य विद्युत नियामक आयोग राज्य/केंद्र सरकार के निर्देशों से बाध्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य विद्युत नियामक आयोग विद्युत अधिनियम, 2003 की धारा 108 के तहत जारी केंद्र/राज्य सरकार के निर्देशों से बाध्य नहीं हैं।

चीफ़ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने आदेश दिया कि, ''हम एपीटीईएल के फैसले से सहमत हैं क्योंकि यह मानता है कि राज्य सरकार द्वारा धारा 108 के तहत जारी निर्देश केरल राज्य विद्युत नियामक आयोग (KSERC) को सौंपे गए न्यायिक कार्य को विस्थापित नहीं कर सकता था। राज्य सरकार धारा 108 के तहत अपनी शक्ति के प्रयोग में एक नीति निर्देश जारी करते समय न्यायिक विवेक पर अतिक्रमण नहीं कर सकती है जो अधिनियम के तहत एक प्राधिकरण में निहित है।

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85. जन्म तिथि के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड उपयुक्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने पीड़िता की आयु निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि को स्वीकार करने के हाई कोर्ट का निर्णय खारिज किया। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने आयु के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड की उपयुक्तता को स्वीकार करने की इच्छा नहीं जताई। कोर्ट ने कहा कि मृतक की आयु निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि का संदर्भ देने के बजाय किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (JJ Act) की धारा 94 के तहत वैधानिक मान्यता प्राप्त स्कूल अवकाश प्रमाण पत्र में उल्लिखित जन्म तिथि से मृतक की आयु अधिक अधिकारपूर्वक निर्धारित की जा सकती है।

केस टाइटल: सरोज एवं अन्य बनाम इफको-टोकियो जनरल इंश्योरेंस कंपनी एवं अन्य, सी.ए. नंबर 012077 - 012078 / 2024

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86. पराली जलाना अनुच्छेद 21 के तहत प्रदूषण मुक्त पर्यावरण के मौलिक अधिकार का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस बात पर जोर दिया कि पराली जलाना केवल कानून के उल्लंघन का मुद्दा नहीं है बल्कि यह प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जिसकी गारंटी संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई है।

उन्होंने कहा कि भारत सरकार और राज्य सरकारों को यह याद दिलाने का समय आ गया है कि प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक नागरिक को मौलिक अधिकार निहित है। ये केवल मौजूदा कानूनों को लागू करने के मामले नहीं हैं, ये संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों के घोर उल्लंघन के मामले हैं। यह केवल आयोग के आदेशों को लागू करने और कानून के उल्लंघन के लिए कार्रवाई करने का प्रश्न नहीं है। सरकार को खुद इस सवाल का जवाब देना होगा कि वे नागरिकों के गरिमा के साथ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में जीने के अधिकार की रक्षा कैसे करेंगे।

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87. सुप्रीम कोर्ट ने 'Intoxicating Liquor' शब्द के अंतर्गत औद्योगिक अल्कोहल को विनियमित करने का राज्यों का अधिकार बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट की नौ जजों की संविधान पीठ ने 8:1 बहुमत से कहा कि राज्यों के पास 'विकृत स्प्रिट या औद्योगिक अल्कोहल' को विनियमित करने का अधिकार है। बहुमत ने यह निष्कर्ष निकाला कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II (राज्य सूची) की प्रविष्टि 8 में "Intoxicating Liquor" (मादक शराब) शब्द में औद्योगिक अल्कोहल शामिल होगा।

बहुमत ने कहा कि "मादक शराब" शब्द की व्याख्या संकीर्ण रूप से केवल मानव उपभोग के लिए उपयुक्त अल्कोहल को शामिल करने के लिए नहीं की जा सकती। यह माना गया कि ऐसे तरल पदार्थ जिनमें अल्कोहल होता है, जिनका मानव उपभोग के लिए उपयोग या दुरुपयोग किया जा सकता है, उन्हें "मादक शराब" शब्द के अंतर्गत शामिल किया जा सकता है।

केस टाइटल: उत्तर प्रदेश राज्य बनाम मेसर्स लालता प्रसाद वैश्य सी.ए. नंबर 000151/2007 और अन्य संबंधित मामले

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88. सुप्रीम कोर्ट ने AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित मामले में सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की पीठ ने (4:3 बहुमत से) एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में 1967 के फैसला खारिज किया। उक्त फैसले में कहा गया था कि कानून द्वारा गठित कोई संस्था अल्पसंख्यक संस्था होने का दावा नहीं कर सकती।

इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा। अब यह मुद्दा कि AMU अल्पसंख्यक संस्था है या नहीं, बहुमत के इस दृष्टिकोण के आधार पर नियमित पीठ द्वारा तय किया जाना है।

केस टाइटल: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अपने रजिस्ट्रार फैजान मुस्तफा बनाम नरेश अग्रवाल सी.ए. संख्या 002286/2006 और संबंधित मामले

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89. LMV ड्राइविंग लाइसेंस धारक को 7500 किलोग्राम से कम भार वाले परिवहन वाहन चलाने के लिए अलग से प्राधिकरण की आवश्यकता नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हल्के मोटर वाहन (LMV) के लिए ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला व्यक्ति बिना किसी विशेष अनुमोदन के, 7500 किलोग्राम से कम भार वाले परिवहन वाहन को चला सकता है। यदि वाहन का कुल भार 7500 किलोग्राम से कम है तो LMV लाइसेंस वाला चालक ऐसे परिवहन वाहन को चला सकता है। कोर्ट ने कहा कि उसके समक्ष ऐसा कोई अनुभवजन्य डेटा नहीं लाया गया है, जो यह दर्शाता हो कि परिवहन वाहन चलाने वाले LMV लाइसेंस धारक सड़क दुर्घटनाओं का महत्वपूर्ण कारण हैं।

केस टाइटल: मेसर्स. बजाज एलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम रम्भा देवी एवं अन्य | सिविल अपील नंबर 841/2018

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90. सुप्रीम कोर्ट ने UP Madarsa Education Act की वैधता बरकरार रखी

सुप्रीम कोर्ट ने 'उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम 2004' (Uttar Pradesh Board of Madarsa Education Act 2004) की संवैधानिक वैधता बरकरार रखी और इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला खारिज कर दिया, जिसने पहले इसे खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट ने इस आधार पर अधिनियम खारिज करने में गलती की कि यह धर्मनिरपेक्षता के मूल ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन करता है। किसी क़ानून को तभी खारिज किया जा सकता है, जब वह संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो या विधायी क्षमता से संबंधित प्रावधानों का उल्लंघन करता हो।

केस टाइटल: अंजुम कादरी और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य डायरी नंबर 14432-2024, मैनेजर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया यूपी बनाम भारत संघ एसएलपी (सी) नंबर 7821/2024 और संबंधित मामले।

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91. अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं है, जिसे किसी भी तरह की जांच या चयन प्रक्रिया के बिना दिया जा सकता है। कोर्ट ने दोहराया कि अनुकंपा नियुक्ति हमेशा विभिन्न मापदंडों की उचित और सख्त जांच के अधीन होती है।

जस्टिस अभय एस ओक, जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ऐसे व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर फैसला कर रही थी, जिसके पिता, जो पुलिस कांस्टेबल थे, उसकी मृत्यु के कारण अनुकंपा नियुक्ति के लिए दावा खारिज कर दिया गया।

केस टाइटल: टिंकू बनाम हरियाणा राज्य

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92. सुप्रीम कोर्ट ने 'बुल्डोज़र जस्टिस' पर कहा: केवल आपराधिक आरोपों/दोषसिद्धि के आधार पर संपत्तियां नहीं गिराई जा सकतीं

"बुलडोजर न्याय" की प्रवृत्ति के खिलाफ कड़ा संदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (13 नवंबर) को कहा कि कार्यपालिका केवल इस आधार पर किसी व्यक्ति के घर नहीं गिरा सकती कि वह किसी अपराध में आरोपी या दोषी है।

कार्यपालिका द्वारा ऐसी कार्रवाई की अनुमति देना कानून के शासन के विपरीत है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का भी उल्लंघन है, क्योंकि किसी व्यक्ति के अपराध पर फैसला सुनाना न्यायपालिका का काम है।

केस टाइटल: संरचनाओं के विध्वंस के मामले में दिशा-निर्देश बनाम और अन्य। | रिट याचिका (सिविल) संख्या 295/2022 (और संबंधित मामला)

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93. याचिका दायर किए जाने से ही लीज पेंडेंस सिद्धांत लागू होता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 की धारा 52 के तहत लीज पेंडेंस का सिद्धांत उसी क्षण से लागू होगा जब न्यायालय में याचिका दायर की जाती है, न कि उस चरण पर जब न्यायालय द्वारा नोटिस जारी किया जाता है। न्यायालय ने इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि लीज पेंडेंस सिद्धांत तब लागू नहीं होगा जब याचिका दोषपूर्ण अवस्था में रजिस्ट्री में पड़ी हो।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने 2022 के फैसले पर पुनर्विचार और उसे वापस लेते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें बिक्री के लिए समझौते के विशिष्ट प्रदर्शन की अनुमति देने से इनकार किया गया था।

केस टाइटल: मेसर्स सिद्दामसेट्टी इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम कट्टा सुजाता रेड्डी और अन्य | पुनर्विचार याचिका (सिविल) संख्या 1565/2022

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94. S. 14 HSA | हिंदू महिला अपने पूर्ववर्ती भरण-पोषण अधिकार के तहत संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का दावा कर सकती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू महिला पूर्ण स्वामित्व का दावा कर सकती है, यदि संपत्ति उसके पूर्ववर्ती भरण-पोषण अधिकार से जुड़ी हो। जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA) की धारा 14(1) के तहत किसी कब्जे के अधिकार को पूर्ण स्वामित्व में बदलने के लिए यह स्थापित होना चाहिए कि हिंदू महिला भरण-पोषण के बदले संपत्ति रखती है।

हालांकि, खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई हिंदू महिला लिखित दस्तावेज या अदालती आदेश के माध्यम से संपत्ति अर्जित करती है। ऐसा अधिग्रहण किसी पूर्ववर्ती अधिकार से जुड़ा नहीं है तो धारा 14(2) लागू होगी, जो उसे संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का दावा करने से अयोग्य बनाती है।

केस टाइटल: कल्लकुरी पट्टाभिरामस्वामी (मृत) एलआरएस के माध्यम से बनाम कल्लकुरी कामराजू और अन्य।

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95. राज्य प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि राज्य प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने कहा, "राज्य को प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से निजी संपत्ति पर कब्जा करने की अनुमति देना नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को कमजोर करेगा और सरकार में जनता का विश्वास खत्म करेगा।"

यह टिप्पणी हरियाणा राज्य द्वारा प्राइवेट सिटीजन की संपत्ति के खिलाफ प्रतिकूल कब्जे का दावा करने वाली अपील को खारिज करते हुए किए गए फैसले में की गई।

केस टाइटल: हरियाणा राज्य बनाम अमीन लाल (अब मृतक) कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से

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96. जन्मजात ईसाई जाति के पुनरुत्थान के लिए जाति ग्रहण के सिद्धांत को लागू नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ईसाई के रूप में पैदा हुआ व्यक्ति जाति के ग्रहण के सिद्धांत का आह्वान नहीं कर सकता है, क्योंकि ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था को मान्यता नहीं दी गई है।

जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि जाति ग्रहण का सिद्धांत केवल तभी लागू होता है जब जाति आधारित धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति जाति-विहीन धर्म में परिवर्तित हो जाता है। ऐसे में उनकी मूल जाति पर ग्रहण लगा हुआ माना जाता है। हालांकि, यदि ऐसे व्यक्ति अपने जीवनकाल के दौरान अपने मूल धर्म में फिर से परिवर्तित हो जाते हैं, तो ग्रहण हटा दिया जाता है, और जाति की स्थिति स्वचालित रूप से बहाल हो जाती है। यद्यपि, यह एक जन्म से मसीही विश् वासी के ऊपर लागू नहीं होगा।

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97. अनुकंपा नियुक्तियां केवल सरकारी कर्मचारियों के रिश्तेदारों के लिए, विधायकों के लिए नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (2 दिसंबर) को केरल हाईकोर्ट के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार किया, जिसमें दिवंगत विधायक रामचंद्रन नायर के बेटे की राज्य के लोक निर्माण विभाग में 'अनुकंपा रोजगार' के तहत नियुक्ति रद्द कर दी गई थी।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की खंडपीठ केरल हाईकोर्ट के उस आदेश के खिलाफ चुनौती पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दिवंगत सीपीआई(एम) विधायक के.के. रामचंद्रन नायर के बेटे आर. प्रशांत की लोक निर्माण विभाग में अनुकंपा नियुक्ति रद्द कर दी गई।

केस टाइटल: आर. प्रशांत बनाम अशोक कुमार एम. | एसएलपी (सी) नंबर 020871 - / 2021

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98. मालिक के जीवनकाल में संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम लॉ में अस्वीकार्य : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि मालिक के जीवनकाल में गिफ्ट डीड के माध्यम से संपत्ति का बंटवारा मोहम्मडन कानून के तहत मान्य नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा कि विभाजन की अवधारणा मोहम्मडन कानून के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है। इस प्रकार, गिफ्ट डीड के माध्यम से 'संपत्ति का बंटवारा' वैध नहीं माना जा सकता, क्योंकि दानकर्ता द्वारा गिफ्ट देने के इरादे की स्पष्ट और स्पष्ट 'घोषणा' नहीं की गई।

जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस फैसले की पुष्टि की गई। इसमें सुल्तान साहब द्वारा उनके जीवनकाल में किए गए बंटवारे को उनके पक्ष में मान्यता नहीं दी गई।

केस टाइटल: मंसूर साहब (मृत) और अन्य सलीमा (डी) बनाम एलआरएस और अन्य द्वारा।

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99. DHCBA चुनावों में महिला वकीलों के लिए 3 पद आरक्षित; जिला बार में कोषाध्यक्ष और अन्य पदों में 30% पद आरक्षित

सुप्रीम कोर्ट ने आगामी दिल्ली हाई कोर्ट बार एसोसिएशन (DHCBA) चुनावों में महिला वकीलों के लिए 3 पद आरक्षित करने का निर्देश दिया। इसके अलावा, जिला बार एसोसिएशनों में कोर्ट ने निर्देश दिया कि कोषाध्यक्ष के पद के साथ अन्य पदों में से 30% पद महिला वकीलों के लिए आरक्षित रहेंगे।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मामले की सुनवाई की। बताया जाता है कि DHCBA में आरक्षित 3 पदों में से पहला कोषाध्यक्ष का, दूसरा 'नामित सीनियर सदस्य कार्यकारी' का और तीसरा सीनियर डेजिग्नेशन श्रेणी के सदस्य के लिए है।

केस टाइटल: फोजिया रहमान बनाम दिल्ली बार काउंसिल और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 24485/2024 (और संबंधित मामले)

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100. 2003 के संसदीय संशोधन के बाद TP Act की धारा 106 में यूपी संशोधन निष्प्रभावी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि संसद समवर्ती सूची के किसी विषय पर कानून में संशोधन करती है तो उसी प्रावधान में पहले किया गया राज्य संशोधन निष्प्रभावी हो जाएगा। ऐसा मानते हुए कोर्ट ने माना कि संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 (TP Act) की धारा 106 में उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया संशोधन, जो 1954 में किया गया था, संसद द्वारा वर्ष 2003 में धारा 106 में संशोधन किए जाने के बाद निष्प्रभावी हो जाएगा।

यूपी संशोधन में पट्टे की समाप्ति के लिए तीस दिनों की नोटिस अवधि का प्रावधान किया गया। 2003 के संसदीय संशोधन ने धारा 106 में संशोधन करके पंद्रह दिनों की नोटिस अवधि का प्रावधान किया।

केस टाइटल: नईम बानो उर्फ गैंडो बनाम मोहम्मद रहीस

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