यदि बर्खास्तगी का आदेश अवैध है तो 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का सिद्धांत लागू नहीं होगा: दिल्ली हाइकोर्ट
Amir Ahmad
3 Jun 2024 4:18 PM IST
दिल्ली हाइकोर्ट के जस्टिस तुषार राव गेडेला की एकल पीठ ने मनीषा शर्मा बनाम विद्या भवन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल एवं अन्य के मामले में माना कि यदि बर्खास्तगी का आदेश अवैध है तो कर्मचारी पिछले वेतन का हकदार है और ऐसे मामलों में 'काम नहीं तो वेतन नहीं' का सिद्धांत लागू नहीं होता।
मामले की पृष्ठभूमि
मनीषा शर्मा (याचिकाकर्ता) को 2008 में विद्या भवन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल (प्रतिवादी) द्वारा परिवीक्षा पर प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (अंग्रेजी) (TGT) के रूप में नियुक्त किया गया। 2009 में उनकी नियुक्ति की पुष्टि की गई। 2014 में उप निदेशक के पास कथित झूठी शिकायत दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि जब याचिकाकर्ता को शुरू में नियुक्त किया गया तो उसके पास आवश्यक योग्यता नहीं थी। जांच शुरू की गई और 31.10.2016 के आदेश द्वारा सक्षम प्राधिकारी ने माना कि याचिकाकर्ता के पास TGT के पद के लिए आवश्यक योग्यता नहीं थी और याचिकाकर्ता की सेवाओं को बर्खास्त करने का आदेश पारित किया गया।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली स्कूल ट्रिब्यूनल (ट्रिब्यूनल) के समक्ष वैधानिक अपील दायर की, जिसे अनुमति दी गई और ट्रिब्यूनल ने याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी के आदेश को अवैध माना और आदेश की तारीख से पूरे वेतन के साथ उसकी बहाली का निर्देश दिया। ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ रिट याचिका दायर की गई, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके अलावा एलपीए और बाद में एसएलपी भी दायर की गई, जिन्हें भी खारिज कर दिया गया।
प्रतिवादी द्वारा 22.04.2019 को बहाली का आदेश जारी किया गया, लेकिन पिछले वेतन के संबंध में कोई आदेश नहीं था। याचिकाकर्ता ने पिछला वेतन न दिए जाने के लिए अवमानना याचिका दायर की लेकिन अवमानना याचिका पर सुनवाई से पहले, शिक्षा निदेशक द्वारा दिनांक 18.09.2019 को आदेश पारित किया गया। इसमें याचिकाकर्ता को इस आधार पर पिछला वेतन देने से फिर से इनकार कर दिया गया कि याचिकाकर्ता ने निपटान अवधि के दौरान काम नहीं किया और काम नहीं तो वेतन नहीं के सिद्धांत पर कोई पिछला वेतन देय नहीं था।
दिनांक 02.01.2020 के शुद्धिपत्र द्वारा, 28.07.2017 से 24.04.2019 तक की अवधि के लिए पिछला वेतन भुगतान करने का निर्देश दिया गया, अर्थात जिस तारीख को याचिकाकर्ता को बहाल किया गया। उन आदेशों को चुनौती देते हुए रिट याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता को बर्खास्तगी की तारीख (31.10.2016) से ट्रिब्यूनल के आदेश पारित होने तक (28.07.2017) पिछला वेतन देने से इनकार कर दिया गया।
न्यायालय के निष्कर्ष
न्यायालय ने दीपाली गुंडू सुरवासे बनाम क्रांति जूनियर अध्यापक महाविद्यालय एवं अन्य के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया, जिसमें यह माना गया कि यदि किसी कर्मचारी को इस आधार पर बहाल करने का आदेश दिया जाता है कि सक्षम प्राधिकारी ने प्रासंगिक वैधानिक प्रावधानों या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध कोई कार्रवाई की है तो कर्मचारी पूर्ण बकाया वेतन का दावा करने का हकदार है।
न्यायालय ने पाया कि न्यायाधिकरण ने सेवा से बर्खास्तगी को स्पष्ट रूप से अवैध पाया। इसके अलावा, न्यायाधिकरण ने माना कि याचिकाकर्ता उस आदेश की तिथि से पूर्ण वेतन की हकदार है और वह सभी परिणामी लाभों की भी हकदार होगी।
न्यायालय ने आगे माना कि शिक्षा उपनिदेशक द्वारा लागू किया गया काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत दीपाली गुंडू सुरवासे के मामले में निर्धारित अनुपात के मद्देनजर लागू नहीं था। काम नहीं तो वेतन नहीं का सिद्धांत कई मामलों में लागू होता है, लेकिन दीपाली गुंडू सुरवासे ने इस सिद्धांत का अपवाद बनाया।
आगे कहा,
“उन मामलों में अंतर किया गया, जहां बर्खास्तगी के आदेश को अवैध माना गया। साथ ही यह पाया गया कि बर्खास्त कर्मचारी ने सेवाओं में बने रहने की अपनी इच्छा दिखाई, लेकिन प्राधिकरण द्वारा किसी न किसी कारण से उसे वंचित कर दिया गया। ऐसे मामलों में कर्मचारियों को पिछले वेतन का हकदार माना गया।”
अदालत ने हेना दत्ता बनाम शिक्षा निदेशक और अन्य के मामले पर भरोसा किया, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जहां किसी व्यक्ति ने काम नहीं किया है, वह वेतन के किसी भी बकाया का हकदार नहीं होगा लेकिन यदि व्यक्ति को सेवाएं देने से वंचित/रोका जाता है तो वह व्यक्ति वेतन और अन्य परिलब्धियों के बकाया का हकदार होगा।
उपर्युक्त टिप्पणियों के साथ अदालत ने रिट याचिका को अनुमति दी और याचिकाकर्ता को 31.01.2016 से 28.07.2017 की अवधि तक पिछले वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया।
केस टाइटल- मनीषा शर्मा बनाम विद्या भवन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल एवं अन्य