सर्विस में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना AAI विनियमों के तहत सर्विस में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने में बाधा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

Shahadat

4 Jun 2024 5:33 AM GMT

  • सर्विस में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना AAI विनियमों के तहत सर्विस में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने में बाधा नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की खंडपीठ ने भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण श्रमिक संघ एवं अन्य बनाम श्रम मंत्रालय के अवर सचिव एवं अन्य के मामले में माना है कि सेवा में आने से पहले पहले बच्चे का जन्म होना सेवा में आने के बाद मातृत्व अवकाश लेने पर विचार करने के लिए प्रासंगिक नहीं है। AAI विनियमों के तहत मातृत्व लाभ विनियमन का उद्देश्य जनसंख्या पर अंकुश लगाना नहीं है, बल्कि सेवा अवधि के दौरान केवल दो अवसरों पर ऐसा लाभ देना है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    कनकावली राजा अर्मुगम (याचिकाकर्ता) की शादी जुलाई 1997 में हुई और उसने उक्त विवाह से बच्चे को जन्म दिया। हालांकि, याचिकाकर्ता के पति का 2000 में निधन हो गया। याचिकाकर्ता को 2004 में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (प्रतिवादी) में जूनियर अटेंडेंट के रूप में अनुकंपा नियुक्ति दी गई। याचिकाकर्ता ने 2008 में दोबारा शादी की और विवाह से बाहर 2 और बच्चों को जन्म दिया, एक 2009 में और दूसरा 2012 में।

    2012 में तीसरे बच्चे को जन्म देने के समय याचिकाकर्ता ने मातृत्व अवकाश के लिए प्रतिवादी को आवेदन किया, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ता के पहले से ही 2 से अधिक बच्चे जीवित हैं। इस प्रकार वह भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (छुट्टी) विनियम, 2003 (2003 विनियम) के अनुसार मेडिकल लीव के लिए पात्र नहीं है। इस प्रकार, रिट याचिका दायर की गई।

    याचिकाकर्ता द्वारा यह तर्क दिया गया कि 2003 का विनियमन उस पर लागू नहीं होगा, क्योंकि उसने नियुक्ति के बाद केवल 2 बच्चों को जन्म दिया। मातृत्व अवकाश के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए याचिकाकर्ता के मातृत्व अवकाश लाभ आवेदन को अस्वीकार करने में प्रतिवादी का कोई औचित्य नहीं था।

    दूसरी ओर, प्रतिवादी द्वारा यह तर्क दिया गया कि 2003 विनियमन के अनुसार, चूंकि याचिकाकर्ता के तीसरे बच्चे को जन्म देने के समय उसके पास पहले से ही 2 जीवित बच्चे थे, इसलिए वह मातृत्व अवकाश के लिए पात्र नहीं थी। 2003 विनियमन के उद्देश्य के लिए याचिकाकर्ता के द्वारा जन्मे बच्चों की संख्या को देखा जाना चाहिए।

    न्यायालय के निष्कर्ष

    न्यायालय ने पाया कि 2003 विनियमन के अनुसार, 2 से कम जीवित बच्चों वाली महिला कर्मचारी को उनकी सेवा अवधि में दो बार 135 दिनों का मातृत्व अवकाश दिया जा सकता है। "कर्मचारी" का अर्थ प्रतिवादी की पूर्णकालिक सेवा में कार्यरत व्यक्ति है।

    इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 42 में प्रावधान है कि राज्य न्यायसंगत और मानवीय कार्य स्थितियों को सुनिश्चित करने और मातृत्व राहत के लिए प्रावधान करेगा। इस प्रकार, मातृत्व लाभ से इनकार करने में कार्यकारी या प्रशासनिक कार्रवाई की वैधता की जांच भारत के संविधान के अनुच्छेद 42 के आधार पर की जानी चाहिए, जो हालांकि लागू करने योग्य नहीं है, लेकिन शिकायत की गई कार्रवाई की कानूनी प्रभावकारिता निर्धारित करने के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है। साथ ही प्रजनन के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्ति की निजता, गरिमा और शारीरिक अखंडता के अधिकार के महत्वपूर्ण पहलू के रूप में मान्यता दी गई।

    अदालत ने बी. शाह बनाम पीठासीन अधिकारी, श्रम न्यायालय, कोयंबटूर के मामले पर भरोसा किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने माना कि मातृत्व अवकाश के लिए कानून का उद्देश्य महिला श्रमिकों को सामाजिक न्याय प्रदान करना है।

    अदालत ने देखा कि 2003 के विनियमन के तहत मातृत्व अवकाश प्रावधान का उद्देश्य कर्मचारी को अपने बच्चे को दूध पिलाने, अपनी नष्ट हुई ऊर्जा की भरपाई करने और गर्भावस्था से पहले की तरह अपनी दक्षता के स्तर को पुनः प्राप्त करने में सक्षम बनाना था। "2 से कम जीवित बच्चे" और "अपनी सेवा अवधि में दो बार" शब्दों के उपयोग के कारण विनियमन का उद्देश्य सेवा अवधि के दौरान केवल 2 बार मातृत्व अवकाश लाभ देना है।

    इस प्रकार यदि इस संदर्भ में "2 जीवित बच्चों" की शर्त को पढ़ा जाए तो इसका मतलब यह होगा कि महिला कर्मचारी को सेवा अवधि के दौरान ही 2 जीवित बच्चों को जन्म देना होगा। विनियमन का उद्देश्य मातृत्व लाभ देना था, न कि जनसंख्या पर अंकुश लगाना। विनियमन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संगठन दो बार से अधिक कर्मचारी की सेवाओं के बिना न रहे।

    न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता का पहला बच्चा उसकी नियुक्ति से पहले पैदा हुआ था और याचिकाकर्ता ने अपने दूसरे बच्चे को जन्म देने के समय मातृत्व लाभ नहीं लिया था। याचिकाकर्ता ने तीसरे बच्चे के जन्म के समय ही मातृत्व लाभ के लिए आवेदन किया था। इस प्रकार न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता मातृत्व अवकाश की हकदार है, क्योंकि उक्त अवकाश सेवा में शामिल होने के बाद केवल एक बार ही लिया जाना था।

    न्यायालय ने आगे कहा,

    "हमारे विचारार्थ प्रस्तुत मातृत्व लाभ विनियमन का उद्देश्य जनसंख्या पर अंकुश लगाना नहीं है, बल्कि सेवा अवधि के दौरान केवल दो अवसरों पर ऐसा लाभ देना है। इसलिए इसी संदर्भ में दो जीवित बच्चों की शर्त लगाई गई।"

    इस प्रकार न्यायालय ने माना कि सेवा में शामिल होने से पहले पहली शादी से पहले बच्चे का जन्म प्रतिवादी द्वारा 2003 विनियमन के प्रयोजनों के लिए मातृत्व अवकाश के दावे पर विचार करने के लिए प्रासंगिक नहीं होगा। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने रिट याचिका को अनुमति दी।

    केस टाइटल- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण श्रमिक संघ एवं अन्य बनाम अवर सचिव, श्रम मंत्रालय एवं अन्य

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