'यदि कोई कानूनी बाधा न हो तो रिटायरमेंट लाभ प्राप्त करना कर्मचारी का संवैधानिक और मौलिक अधिकार': झारखंड हाईकोर्ट
Shahadat
4 Jun 2024 12:06 PM IST
झारखंड हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि पेंशन लाभ कर्मचारियों का संवैधानिक और मौलिक अधिकार है, न कि अधिकारियों का विवेकाधीन अधिकार। न्यायालय ने ऐसे कर्मचारी से रिटायरमेंट लाभ रोके जाने पर हैरानी व्यक्त की, जिसका बर्खास्तगी आदेश विभाग की ओर से किसी अपील या संशोधन के बिना अपीलीय प्राधिकारी द्वारा रद्द कर दिया गया।
जस्टिस एसएन पाठक ने मामले पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की,
"यह न्यायालय यह समझने में विफल है कि कानून के किस प्राधिकार के तहत किसी कर्मचारी के संपूर्ण स्वीकृत रिटायरमेंट लाभ रोके जा सकते हैं, जब बर्खास्तगी के आदेश को अपीलीय प्राधिकारी द्वारा रद्द कर दिया गया हो और उसे अलग रखा गया हो, वह भी तब जब विभाग द्वारा कोई अपील/संशोधन पेश नहीं किया गया हो। प्रतिवादी कमजोर रुख अपना रहे हैं, जो इस न्यायालय को स्वीकार्य नहीं है। रिटायरमेंट लाभ न देने के लिए प्रतिवादियों की ओर से देरी और लापरवाही का यह एक और ज्वलंत उदाहरण है।"
यह मामला रिटायर्ड सहायक शिक्षक से जुड़ा था, जिसने पेंशन, ग्रेच्युटी, जीपीएफ, जीआईएस, अवकाश नकदीकरण और वेतन माइनस निर्वाह भत्ता सहित अपने पूर्ण पेंशन लाभ के भुगतान के लिए निर्देश मांगा। याचिकाकर्ता को ज्ञापन के माध्यम से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, जिसे बाद में अपीलीय प्राधिकारी ने पलट दिया। इसके बावजूद, याचिकाकर्ता को न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करनी पड़ी, क्योंकि उसकी सेवानिवृत्ति से जुड़े लाभ प्रदान नहीं किए गए।
जस्टिस पाठक ने कहा,
“31.1.2023 को रिटायर्ड हुए कर्मचारी को स्वीकृत बकाया राशि का भुगतान भी नहीं किया गया। लगभग एक साल बीत चुका है। प्रतिवादियों के हाथों बेचारे कर्मचारी को परेशान किया जा रहा है। इस न्यायालय ने अपने अनेक निर्णयों में माना है कि पेंशन लाभ अधिकारियों की मर्जी से वितरित किए जाने वाले उपहार नहीं हैं। यदि कोई कानूनी बाधा नहीं है तो रिटायरमेंट लाभ प्राप्त करना कर्मचारी का संवैधानिक और मौलिक अधिकार है। ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं लाया गया, जिससे पता चले कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई आपराधिक मामला या विभागीय कार्यवाही लंबित थी।”
जस्टिस पाठक ने यह भी टिप्पणी की कि प्रतिवादियों के सुस्त और उदासीन रवैये के कारण याचिकाकर्ता को कठिनाई का सामना करना पड़ा और उसे आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा, जिसके कारण प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता को क्षतिपूर्ति देने के लिए उचित दर पर देय राशि पर ब्याज का भुगतान करना पड़ा।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसे ज्ञापन के माध्यम से गलत तरीके से सेवा से बर्खास्त कर दिया गया, एक निर्णय जिसे बाद में अपीलीय प्राधिकारी ने पलट दिया। इसके बावजूद, याचिकाकर्ता को न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करने के लिए मजबूर होना पड़ा, क्योंकि उसकी स्वीकृत रिटायरमेंट से जुड़े लाभ, जैसे निलंबन अवधि के दौरान पूर्ण वेतन और बर्खास्तगी आदेश की तारीख से रिटायरमेंट की तारीख तक पूर्ण वेतन, प्रदान नहीं किए गए।
दूसरी ओर, राज्य ने तर्क दिया कि सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान नहीं किए जा सकते, क्योंकि उनके वितरण के बारे में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया।
न्यायालय ने प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे पेंशन सहित सभी सेवानिवृत्ति लाभों का भुगतान 6% प्रति वर्ष की दर से साधारण ब्याज के साथ करें, रिटायरमेंट लाभों के विलंबित भुगतान पर, जिसमें परिणामी लाभ भी शामिल हैं, जो अपीलीय प्राधिकारी द्वारा बर्खास्तगी आदेश रद्द करने पर भुगतान किए जाने थे, पात्रता की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक।
न्यायालय ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए स्पष्ट किया,
"यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि इस आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से छह सप्ताह के भीतर राशि का भुगतान नहीं किया जाता है तो उस पर याचिकाकर्ता को देय राशि की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 18% प्रति वर्ष की दर से ब्याज लगेगा।"
केस टाइटल: श्रवण कुमार दास बनाम झारखंड राज्य