हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

17 July 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (11 जुलाई, 2022 से 15 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एक ही तथ्य पर अभियुक्त के ‌खिलाफ धारा 420 आईपीसी और धारा 138 एनआई एक्ट के तहत अभियोजन "दोहरा खतरा" नहीं: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि संविधान के अनुच्छेद 20 (2) के तहत गारंटीकृत "दोहरे खतरे" के खिलाफ मौलिक अधिकार का पता लगाने और उसे बनाए रखने के लिए परीक्षण यह है कि क्या पूर्व अपराध और अपराध, जिसे अब आरोपित किया गया है इस अर्थ में समान तत्व हैं कि एक को बनाने वाले तथ्य दूसरे की दोषसिद्धि को सही ठहराने के लिए पर्याप्त हैं न कि यह कि अभियोजन द्वारा भरोसा किए गए तथ्य दो परीक्षणों में समान हैं।

    केस टाइटल: फयाज अहमद शेख बनाम मुश्ताक अहमद खान

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    पति के साथ हिसाब बराबर करने के लिए आईपीसी की धारा 498-ए को ससुराल वालों को सबक सिखाने के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकताः छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि पति के साथ वैवाहिक हिसाब निपटाने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के तहत दायर रिपोर्ट को पति के पूरे परिवार को सबक सिखाने के लिए एक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की खंडपीठ ने पति के पक्ष में तलाक का एक आदेश देते हुए कहा कि शादी पूरी तरह टूट चुकी है,जिसे अब ठीक नहीं किया जा सकता है।

    केस टाइटल- डॉ. रामकेश्वर सिंह बनाम श्रीमती शीला सिंह उर्फ मधुसिंह, एफएएम नंबर 94/2013

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    अदालतें चयन प्रक्रिया की योग्यता में तब तक प्रवेश नहीं कर सकतीं जब तक चयन समिति दुर्भावनापूर्ण या वैधानिक नियमों का उल्लंघन नहीं करती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि यह कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है कि वह चयन प्रक्रिया के गुणों की जांच करे, यह चयन समिति का विशेषाधिकार और विशेषज्ञों का क्षेत्र है।

    जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने कहा कि वह एक अपीलीय प्राधिकारी के रूप में कार्य नहीं कर सकते और जहां सक्षम प्राधिकारी के साथ-साथ खोज और चयन समिति के विशेषज्ञ, जो पात्रता और उपयुक्तता तय करने में सक्षम हैं, उन्होंने किसी दिए गए पद के लिए, प्रासंगिक कानूनों का उचित अनुपालन किया है, उनकी राय से अपनी राय को स्थानापन्न नहीं कर सकती है।

    केस टाइटल: दिलीप कुमार बनाम एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य।

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    मध्यस्थता अधिनियम की धारा 11 के तहत आवेदन दाखिल करने के लिए 3 साल की सीमा अवधि मध्यस्थता की मांग से 30 दिनों की समाप्ति से शुरू होती है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 (6) के तहत 2017 के एक आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि यह सीमा द्वारा प्रतिबंध‌ित है। आवेदन में एक मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि पक्षों के बीच विवाद 2007 में उत्पन्न हुआ, जिसके बाद आवेदक ने 2011 में मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए प्रतिवादियों को एक कानूनी नोटिस भेजा, जिस पर उत्तरदाताओं ने जवाब दिया कि आवेदक को दावा राशि का आवश्यक 10% जमा करना होगा जिसके विफल होने पर वह देरी के लिए जिम्मेदार होगा।

    केस टाइटल: मेसर्स गर्ग कंस्ट्रक्शन कंपनी बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

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    जब अभियुक्तों को अपराध से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी हो तो अन्य पुष्ट साक्ष्य महत्वहीन हो जाते हैं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि जिस मामले में किसी आरोपी को अपराध से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूतों की कमी है, वहीं अन्य पुष्ट साक्ष्य अपना महत्व खो देते हैं।

    जस्टिस एसएच वोरा और जस्टिस राजेंद्र सरीन की पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 143, 147, 148 और 302 और बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135(1) के तहत एक आपराधिक मामले में सत्र न्यायालय द्वारा पारित बरी के आदेश को बरकरार रखा।

    केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम किशोरभाई देवजीभाई परमार और 4 अन्य

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    जेजे एक्ट | कानूनी रूप से विवाद में आया बच्चा सीआरपीसी धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (जेजे एक्ट) के तहत कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा अग्रिम जमानत के लिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत एक आवेदन दायर कर सकता है।

    जस्टिस सारंग कोतवाल और जस्टिस भरत देशपांडे की खंडपीठ ने कहा, "जब कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को पकड़ा जाता है तो उसकी स्वतंत्रता पर रोक लगा दी जाती है। सीआरपीसी की धारा 438 एक ऐसे व्यक्ति को मूल्यवान अधिकार प्रदान करती है, जिसके गिरफ्तार होने की संभावना है या दूसरे शब्दों में जिसकी स्वतंत्रता में कटौती की संभावना है। सीआरपीसी की धारा 438 विभिन्न व्यक्तियों के बीच कोई भेद नहीं करती है।"

    केस टाइटल: रमन और मंथन बनाम महाराष्ट्र राज्य

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    आरटीआई एक्ट| धारा 2(j) के तहत किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के 'कार्य के निरीक्षण' में 'संपत्ति का निरीक्षण' शामिल नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम, 2005 की धारा 2 (जे) के तहत "कार्य का निरीक्षण" शब्दों के दायरे में "संपत्ति का निरीक्षण" शामिल नहीं है।

    धारा 2(जे) में कहा गया है कि सूचना के अधिकार का अर्थ अधिनियम के तहत सुलभ सूचना का अधिकार है, जो किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण के पास या उसके नियंत्रण में है और इसमें निम्नलिखित अधिकार शामिल हैं- (i) कार्य, दस्तावेजों, रिकॉर्ड्स का निरीक्षण; (ii) दस्तावेजों या रिकॉर्ड्स के नोट्स, उद्धरण या प्रमाणित प्रतियां लेना; आदि।

    केस टाइटल: वीना जोशी बनाम सीपीआईओ, केंद्रीय सूचना आयोग और अन्य।

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    कर्मचारी को ऊंची ग्रेच्युटी पाने का प्रावधान उस प्रावधान पर प्रभावी होगा, जो ग्रेच्युटी राशि को सीमित करता हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को दोहराया कि पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट के प्रावधान, जो एक कर्मचारी को ग्रेच्युटी की बेहतर शर्तों का विकल्प चुनने में सक्षम बनाता है, केरल राज्य सहकारी समिति अधिनियम में प्रावधान पर लागू होगा, जो ग्रेच्युटी के रूप में देय राशि को सीमित करता है।

    जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने कहा कि जब दो विकल्प उपलब्ध हैं, तो कर्मचारी को उन उच्च लाभों को प्राप्त करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है।

    केस शीर्षक: केरल स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड बनाम एस विश्वनाथमल्लन और अन्य।

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    यदि निविदा की शर्तें/अनुबंध का अवार्ड जनहित में है तो अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती, भले ही प्रक्रियात्मक मूल्यांकन में त्रुटि हुई हो: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने दोहराया कि निविदा शर्तों या अनुबंधों के अवार्ड से संबंधित मामलों में न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग करते समय न्यायालयों को निर्णयों में हस्तक्षेप करने में धैर्य दिखाना चाहिए, जब तक कि वे विकृत न हों।

    चीफ जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, "यदि अनुबंध की शर्तों या अवार्ड से संबंधित निर्णय वास्तविक और जनहित में है तो अदालतें हस्तक्षेप करने के लिए न्यायिक समीक्षा की अपनी शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगी, भले ही प्रक्रियात्मक विपथन या मूल्यांकन में त्रुटि या किसी निविदा के प्रति पूर्वाग्रह क्यों न हो।"

    केस टाइटल: दिल्ली विद्युत ठेकेदार कल्याण संघ बनाम बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड और अन्य।

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    [वैवाहिक अपराध] पहली शादी को साबित करने और दूसरी शादी की वैधता साबित करने के लिए सबूत का बोझ अभियोजन पक्ष पर होता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (इंदौर खंडपीठ) ने कहा कि वैवाहिक अपराध (Matrimonial Offence) के मामले में पहली शादी साबित करने और दूसरी शादी की वैधता साबित करने के लिए सबूत का बोझ अभियोजन पक्ष पर होता है।

    इसके साथ ही जस्टिस अनिल वर्मा की खंडपीठ ने कैलाश नाम के एक व्यक्ति को भारतीय दंड संहिता की धारा 494 और 143 के तहत आरोपों से बरी किए जाने को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी।

    केस टाइटल - कैलाश बनाम गोरधन एंड अन्य [आपराधिक अपील संख्या 958 ऑफ 1998]

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    [आदेश XXII नियम 3 सीपीसी] कानूनी उत्तराधिकारियों के प्रतिस्थापन के लिए आवेदन दाखिल करने में देरी को पर्याप्त रूप से समझाया जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि कानूनी उत्तराधिकारियों के प्रतिस्थापन के लिए सीपीसी के आदेश XXII नियम 3 के तहत, या कार्यवाही के उन्मूलन के लिए संहिता के आदेश XXII नियम 9 के तहत आवेदनों पर उदारतापूर्वक विचार किया जाना चाहिए। हालांकि, ऐसे आवेदनों को स्थानांतरित करने में देरी को पर्याप्त रूप से उचित ठहराया जाना चाहिए।

    जस्टिस सी हरि शंकर की एकल पीठ ने आगे कहा कि इस तरह की किसी भी देरी को सीमा की आवश्यकता को पूरा करना चाहिए, जिसे पूरा करने के लिए देरी की माफी मांगने वाले आवेदन की आवश्यकता होती है।

    केस टाइटल- डीएलएफ होम्स राजापुरा प्रा लिमिटेड बनाम स्वर्गीय ओपी मेहता और एएनआर।

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    मुख्य सुर्खियां [बेनामी लेनदेन अधिनियम का निषेध] कारण बताओ नोटिस के चरण में जिरह का अवसर प्रदान करने की आवश्यकता नहीं: मद्रास हाइकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने बेनामी संपत्ति लेनदेन अधिनियम, 1988 के निषेध के तहत अनंतिम कुर्की की चुनौती को खारिज करने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश की पुष्टि करते हुए माना कि गवाहों से जिरह करने का अवसर प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है, जिनसे उन्होंने बेनामी संपत्ति के संबंध में प्रारंभिक चरण में सूचना एकत्र की है, और इसलिए प्रारंभिक चरण में नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन का प्रश्न ही नहीं उठता। यह केवल न्यायिक कार्यवाही के दौरान लागू होता है।

    केस टाइटल: वीएसजे दिनाकरण बनाम आयकर उपायुक्त (बेनामी निषेध) और अन्य

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    धारा 7 फैमिली कोर्ट्स एक्ट| वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न परिस्थितियों में पति और पत्नी ही नहीं माता-पिता भी शामिल हो सकते हैं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि फैमिली कोर्ट्स एक्ट, 1984 की धारा 7 (1) के स्पष्टीकरण के खंड (डी) के तहत निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर करने के संदर्भ में इस्तेमाल किए गए शब्द "वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न परिस्थितियां" में केवल पति और पत्नी ही शामिल नहीं होंगे, बल्‍कि इसमें सास-ससुर भी शामिल हो सकते हैं।

    ज‌स्टिस सी हरि शंकर की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि जो देखा जाना है वह पार्टियों के बीच संबंध नहीं है, बल्‍कि यह है कि जिन परिस्थितियों में मुकदमा दायर किया गया है, क्या वे वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न हुए हैं। यदि पूर्वोक्त का उत्तर सकारात्मक है, तो प्रावधान लागू होगा और निषेधाज्ञा के लिए ऐसे आवेदनों से निपटने के लिए परिवार न्यायालयों के पास विशेष अधिकार क्षेत्र होगा।

    केस शीर्षक: अवनीत कौर बनाम साधु सिंह और अन्य।

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    जिरह के दौरान गवाह द्वारा स्वीकार या अस्वीकार किए गए दस्तावेज वापस नहीं किए जा सकते, अदालत की फाइल पर अनिवार्य रूप से रखा जाना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि किसी गवाह से जिरह के दौरान पेश किए गए दस्तावेज को उक्त गवाह द्वारा स्वीकार या अस्वीकार कर दिया जाता है, तो ऐसे दस्तावेज को वापस नहीं किया जा सकता है और इसे अदालत की फाइल पर अनिवार्य रूप से रखा जाना चाहिए।

    जस्टिस मिनी पुष्कर्ण सीपीसी की धारा 151 के तहत दीवानी वाद में वादी की ओर से दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थीं, जिसमें उन्हें अतिरिक्त दस्तावेज रिकॉर्ड में रखने की अनुमति दी गई थी।

    केस टाइटल: भाग सिंह गंभीर और अन्य बनाम रमा अरोड़ा

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    सीपीसी आदेश 6 नियम 17 | पार्टी को साबित करना होगा कि उचित प्रयास के बावजूद प्रस्तावित संशोधन पहले नहीं लाया जा सका था: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए लिखित बयान में संशोधन के लिए सीपीसी के आदेश 6 नियम 17 के तहत दायर एक आवेदन को देरी के आधार पर खारिज कर दिया और कहा कि संशोधन की मांग करने वाले पक्षों को यह साबित करना होगा कि उचित प्रयास के बावजूद, प्रस्तावित संशोधन बहुत पहले या ट्रायल शुरू होने से पहले नहीं लाया जा सका।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की खंडपीठ ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि कोर्ट को इस तरह के संशोधनों की अनुमति देने में उदार दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, जो पक्षों के बीच विवाद के न्यायसंगत और प्रभावी निर्णय के लिए आवश्यक हो सकता है। हालांकि, यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि कोर्ट आंखें मूंद ले, लेकिन किसी भी पूर्वाग्रह या अन्याय के प्रति उसे खड़ा रहना चाहिए, क्योंकि यदि संशोधन अर्जी ठुकरा दी जाती है तो कहीं दूसरे पक्ष के लिए अन्याय या पूर्वाग्रह न हो।

    केस शीर्षक: भगीरथ @ भगा (मृत) ) कानूनी प्रतिनिधियों के जरिये बनाम रंजीत सिंह और अन्य

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    सजा की अपर्याप्तता के आधार पर सीआरपीसी के तहत 'पीड़ित' कोई अपील नहीं दायर कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया है कि सजा की अपर्याप्तता के आधार पर सीआरपीसी की धारा 372 के तहत पीड़ित की ओर से दायर कोई अपील बरकरार नहीं रखी जा सकती है। इसलिए, अपराध के 'पीड़ित' [जैसा कि सीआरपीसी की धारा 2 डब्ल्यू (डब्ल्यूए) के तहत परिभाषित है] की ओर से सजा की अपर्याप्तता के खिलाफ की गई अपील सुनवाई योग्य नहीं है।

    केस टाइटल - शिरीन बनाम स्टेट ऑफ यूपी और अन्य [Appication U/S 378 No.-142 of 2017]

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    पत्नी का पति के चरित्र पर शक करना और सहकर्मियों के सामने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाना क्रूरता के समान : मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा की गई क्रूरता के आधार पर एक पति के पक्ष में तलाक की डिक्री जारी करते हुए हाल ही में कहा कि पत्नी का अपने पति के चरित्र पर संदेह करना और उसके सहयोगियों की उपस्थिति में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समान है।

    केस टाइटल- सी शिवकुमार बनाम ए श्रीविद्या

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    शादी के झूठे वादे का बलात्कार के अपराध को आकर्षित करने के लिए यौन क्रिया में शामिल होने के महिला के फैसले से सीधा संबंध होना चाहिए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी का झूठा वादा तत्काल प्रासंगिकता का होना चाहिए या बलात्कार के अपराध को आकर्षित करने के लिए यौन क्रिया में शामिल होने के महिला के फैसले से सीधा संबंध होना चाहिए।

    जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल पीठ ने शिवू उर्फ शिव कुमार द्वारा दायर एक याचिका की अनुमति देते हुए और धारा 417, 376, 313, 341, 354, 509, 09, 506 आईपीसी सहपठित धारा 34 और एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(xi) के तहत दंडनीय अपराधों के तहत लंबित मामले को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस शीर्षक: शिवू @ शिव कुमार बनाम कर्नाटक राज्य और एएनआर

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    न्यायनिर्णयन प्राधिकारी के निर्णय पर केवल इसलिए संदेह नहीं किया जा सकता क्योंकि यह सरकारी अंग है, पूर्वाग्रह को इंगित करने वाले विश्वसनीय साक्ष्य आवश्यक: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना है कि यह इंगित करने के लिए विश्वसनीय सबूत होना चाहिए कि आपत्तियों पर ‌निर्णय कर रहा प्राधिकारी पक्षपाती है और निर्णय पर केवल इसलिए सवाल नहीं उठाया जा सकता है क्योंकि अधिकारी सरकार का अंग है।

    कार्यवाहक चीफ जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस जेएम खाजी की खंडपीठ ने सिंगल जज द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती देने वाली फिलिप्स इंडिया लिमिटेड द्वारा दायर एक इंट्रा-कोर्ट अपील को खारिज करते हुए अवलोकन किया, जिसके द्वारा निविदाओं को रद्द करने की मांग वाली रिट याचिका का निपटारा अपीलीय प्राधिकारी को चार सप्ताह के भीतर अपील पर निर्णय लेने के निर्देश के साथ किया गया था।

    केस टाइटल: फिलिप्स इंडिया लिमिटेड बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य

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    अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम तब आकर्षित नहीं होता जब अपराध इस इरादे से नहीं किया गया हो कि पीड़ित एक विशेष जाति की है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जज जस्टिस सुब्बा रेड्डी सत्ती की सिंगल जज बेंच ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420, 376 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के धारा 3 (2) (V), 3 (1)(w), 3(1)(r)(s), 3(2)(v), 3(2) (va) के तहत दंडनीय अपराधों के आरोपी को जमानत दे दी।

    पीठ ने कहा कि जब कथित अपराध इस इरादे से नहीं किया जाता है कि पीड़ित किसी विशेष जाति से संबंधित है, तो अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधान आकर्षित नहीं होंगे।

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    पीसी एक्ट तहत लोक सेवक पर मुकदमा चलाने की मंजूरी ना हो तो अभियोजन एजेंसी समान तथ्यों पर अन्य दंड कानूनों के तहत चालान दायर नहीं कर सकती: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि केंद्रीय सतर्कता आयोग रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्र‌ियों की जांच करने के बाद जब एक बार इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि आरोपी लोक सेवक के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है और वह राय सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वीकार की जाती है, तब भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराधों को छोड़कर और अन्य दंड प्रावधानों के तहत अपराधों को केवल चालान तक सीमित करके आरोपी लोक सेवक के खिलाफ तथ्यों के एक ही सेट पर चालान दायर करने का विकल्प जांच एजेंसी के पास नहीं होता।

    केस टाइटल: संजय कुमार श्रीवास्तव और अन्य बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो

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    यदि संपत्ति शिकायतकर्ता के कब्जे में नहीं है तो क्रिमिनल ट्रेसपास की शिकायत नहीं की जा सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा कि यदि संपत्ति शिकायतकर्ता के कब्जे में नहीं है तो क्रिमिनल ट्रेसपास (Criminal Trespass) की शिकायत नहीं की जा सकती है।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने शिवास्वामी और अन्य के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 143, 427, 447, 448, 506 और 149 के तहत दायर एक शिकायत को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: शिवास्वामी एंड अन्य बनाम कर्नाटक एंड उत्तर राज्य

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    बैंक की एकमुश्त निपटान योजना के आधार पर ग्राहक अधिनियमों के बाद प्रॉमिसरी एस्टॉपेल का सिद्धांत लागू होता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि एक बार जब कोई ग्राहक बैंक की ओर से वन टाइम सेटलमेंट स्कीम के तहत दिए गए प्रस्ताव के आधार पर कार्य करता है तो वचन-पत्र का सिद्धांत लागू होता है और बाद वाले को पहले की हानि के लिए कार्य करने से रोक दिया जाता है। "यह स्पष्ट है कि प्रॉमिसरी एस्टॉपेल का सिद्धांत लागू होता है।

    बैंक ने ओटीएस स्कीम की पेशकश के अपने आचरण से कानूनी संबंध बनाने का इरादा जाहिर किया था, जिस पर याचिकाकर्ताओं ने 30 दिसंबर 2017 को या उससे पहले किए गए वादे के आलोक में काम किया था और राशि का भुगतान किया था। इस कार्रवाई को बैंक द्वारा सैद्धांतिक रूप से न केवल टाइटल क्लीयरेंस सर्टिफिकेट के लिए स्वीकार किया गया था, बल्कि बैंक ने एडवोकेट और मूल्यांकनकर्ताओं को लिखे गए मूल्यांकन रिपोर्ट पत्र के रूप में स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया था।

    केस टाइटल: मेसर्स हरेकृष्ण इंफ्रा प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड और एक अन्य बनाम भारतीय स्टेट बैंक

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    दिव्यांग सरकारी शिक्षकों पर 'इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर' के खिलाफ रोक लागू नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने दिव्यांगता न्यायशास्त्र के क्षेत्र से संबंधित मामले में माना कि 'इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर' के खिलाफ प्रतिबंध उन शिक्षकों पर लागू नहीं किया जा सकता है जिन्हें दिव्यांग व्यक्तियों के रूप में मान्यता प्राप्त है।

    डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ हाईकोर्ट ने कई निर्णयों के माध्यम से यह दोहराया है कि अलग-अलग सक्षम व्यक्ति सहानुभूतिपूर्ण विचार के पात्र हैं और स्थानांतरण करते समय अधिकारियों को भी ध्यान देने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि तबादलों को पारदर्शी और तर्कसंगत तरीके से अत्यधिक के साथ लिया जाता है। जनहित को प्राथमिकता देने और जहां तक संभव हो मानवीय कठिनाइयों पर उचित विचार करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों को इसके संबंध में उचित दिशा-निर्देश तैयार करने चाहिए।"

    केस टाइटल: नबा कृष्ण महापात्रा बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

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    प्रस्थापन की डीड गलत करने वाले के खिलाफ मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू करने के बीमा धारक के अधिकार समाप्त नहीं करती : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बीमा कंपनी के साथ सबरोगेशन-कम-असाइनमेंट (Subrogation-Cum-Assignment) समझौता करने के बाद भी बीमाधारक द्वारा मध्यस्थता का आह्वान किया जा सकता है।

    जस्टिस संजीव सचदेवा की एकल पीठ ने माना कि प्रस्थापना (Subrogation) डीड गलत करने वाले के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू करने के आश्वासन के अधिकार को समाप्त नहीं करता है, यह केवल बीमाकर्ता को नुकसान की वसूली के लिए बीमाधारक को कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देता है।

    केस टाइटल: फ्रेसेनियस मेडिकल केयर डायलिसिस सर्विस इंडिया प्रा. लिमिटेड बनाम केरी इंदेव रसद प्रा. लिमिटेड अरब. 2022 का पी नंबर 180।

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    कोई कानून नहीं कि 'ओसिफिकेशन टेस्ट' द्वारा निर्धारित बाहरी आयु सीमा में दो साल जोड़े जाने चाहिए: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि ऐसा कोई कानून नहीं है कि 'ओसिफिकेशन टेस्ट' द्वारा निर्धारित उम्र की बाहरी सीमा में दो साल अनिवार्य रूप से जोड़े जाएं।

    जस्टिस शशिकांत मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने इस आशय के तर्क को खारिज करते हुए कहा, "... ऐसा कोई कानून नहीं है जो यह कहता हो कि प्रत्येक मामले में दो साल को ऑसिफिकेशन टेस्ट द्वारा निर्धारित बाहरी आयु सीमा में जोड़ा जाना चाहिए। न्यायालय द्वारा निर्धारित आयु की उच्च सीमा को स्वीकार करना ही विवेकपूर्ण होगा। वर्तमान मामले में ऑसिफिकेशन रिपोर्ट में आयु 16 वर्ष है।"

    केस टाइटल: गोवर्धन गडबा @ गडवा बनाम ओडिशा राज्य

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    अगर महिला खुद हाथ पकड़ने' के कृत्य को उसकी शालीनता पर आक्रमण नहीं मानती है तो आईपीसी की धारा 354 आकर्षित नहीं होगी : तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि यदि कोई महिला स्वयं 'हाथ पकड़ने' के कृत्य को अपनी शालीनता पर आक्रमण के रूप में नहीं देखती है तो आरोपी की ओर से इस तरह का कार्य आईपीसी की धारा 354 के अवयवों को आकर्षित नहीं करेगा। आईपीसी की धारा 354 महिला के शील भंग करने के "इरादे" से उसके साथ मारपीट या आपराधिक बल के कृत्यों के लिए सज़ा का प्रावधान करती है।

    केस टाइटल : के. रत्तैया @ रत्नाजी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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    शादी के झूठे वादे के तहत किसी अन्य पुरुष के साथ जानबूझकर शारीरिक संबंध रखने वाली विवाहित महिला उस पर बलात्कार का मुकदमा नहीं चला सकती: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि एक विवाहित महिला, जो किसी अन्य पुरुष के साथ जानबूझकर शारीरिक संबंध स्‍थापित कर रही है, पुरुष द्वारा शादी करने से इनकार करने के बाद उसके खिलाफ बलात्कार का मुकदमा नहीं चला सकती है।

    जस्टिस के सुरेंद्र ने कहा, "जब एक विवाह पहले से मौजूद हो तो प्रतिवादी/अभियुक्त द्वारा पीडब्‍लू 1 से विवाह करने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि ऐसा विवाह द्विविवाह के रूप में दंडनीय अपराध है और अमान्य है... पीडब्‍लू 1 और प्रतिवादी/अभियुक्त के बीच सहमति से शारीरिक संबंध है, बलात्कार का सवाल ही नहीं उठता।"

    केस शीर्षक: तेलंगाना राज्य बनाम दसारी मुरली

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    रोजगार की शर्तें नियोक्ता के कार्यों के न्यायिक पुन‌र्विचार की मांग के कर्मचारियों के अधिकार को नहीं छीन सकती: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक फैसले में कहा कि कि एक नियोक्ता रोजगार की ऐसी शर्तें नहीं लगा सकता है, जो कर्मचारियों से नियोक्ता के कार्यों के न्यायिक पुनर्विचार कराने के उनके अधिकार को छीनने का प्रभाव डालती हो।

    अदालत ने माना कि न्यायिक पुनर्विचार का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त महत्वपूर्ण अधिकार है और रोजगार का कोई भी नियम और शर्त, जो किसी व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रवर्तन के लिए कानूनी उपायों की तलाश करने से रोकती हैं, शून्य हैं।

    केस टाइटल: जफर हजाम मोहम्मद अब्बास और अन्य बनाम अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, एफसीआई और अन्य।

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    आंशिक छूट के मामले में निलंबन अवधि को 'पूरी तरह से अनुचित' नहीं माना जा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने एक कर्मचारी द्वारा दायर याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि उसके निलंबन की अवधि को इस आधार पर 'नियमित' माना जाना चाहिए कि याचिकाकर्ता को चार्जशीट किया गया था और उसके खिलाफ आरोपों से केवल आंशिक रूप से बरी किया गया था।

    केस टाइटल: नरेंद्रसिंह दोसाभाई गोहिल बनाम प्रबंध निदेशक और 2 अन्य

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    प्रत्यर्पण अधिनियम | जिस मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में गिरफ्तार किया गया, वही मजिस्ट्रेट जांच नहीं कर सकता: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि केंद्र सरकार को प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत भगोड़े अपराधियों से निपटने के लिए किसी भी मजिस्ट्रेट को चुनने की स्वतंत्रता है। हालांकि, ऐसा मजिस्ट्रेट वह नहीं होना चाहिए जिसके अधिकार क्षेत्र में भगोड़ा पकड़ा गया है।

    केस टाइटल: एस.रमेश बनाम भारत संघ और अन्य

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    मानवाधिकार आयोग केवल मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 18 के तहत मुआवजे की 'सिफारिश' कर सकता: उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने कहा कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम (Protection of Human Rights Act), 1993 की धारा 18 मानवाधिकार आयोग (Human Rights Commission) को केवल 'सिफारिश' करने का अधिकार देती है न कि मुआवजे का निर्देश देने का। विशेष रूप से प्रावधान "जांच के दौरान और बाद में" आयोग द्वारा उठाए जाने वाले कदमों का प्रावधान करता है।

    जस्टिस अरिंदम सिन्हा की एकल पीठ ने कहा, "धारा 18 में जांच के दौरान और बाद में कदम उठाने का प्रावधान है। जैसा कि ऊपर बताया गया है कि आयोग ने जांच करने में चूक की थी और इस तरह धारा 18 को उसके तहत उठाए जाने वाले किसी भी कदम के लिए लागू नहीं किया जा सकता था। यह प्रावधान आयोग को केवल सिफारिश करने का अधिकार देता है।"

    केस टाइटल: ओडिशा राज्य एंड अन्य बनाम राधाकांत त्रिपाठी एंड अन्य

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    हिंदू विवाह अधिनियम | कमाने की क्षमता रखने वाला पति पत्नी से स्थायी गुजारा भत्ता नहीं मांग सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि कमाने की क्षमता रखने वाला सक्षम व्यक्ति पत्नी से तलाक पर स्थायी गुजारा भत्ता की मांग नहीं कर सकता। जस्टिस आलोक अराधे और जस्टिस जे एम खाजी की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के तहत पत्नी से स्थायी गुजारा भत्ता की मांग करने वाले टी.सदानंद पई द्वारा दायर अपील खारिज कर दी।

    पीठ ने कहा, "अपीलकर्ता सक्षम शरीर वाला व्यक्ति है और उसके पास कमाने की क्षमता है। इसलिए फैमिली कोर्ट ने अपीलकर्ता द्वारा अधिनियम की धारा 25 के तहत दायर याचिका खारिज कर दी।"

    केस टाइटल: टी. सदानंद पाई बनाम सुजाता एस पाई

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    ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट | शिकायतकर्ता को उस परिसर पर आरोपी का "विशेष कब्जा" साबित करना होगा जहां से ड्रग्स बरामदगी हुई है: तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के तहत शिकायतकर्ता को उस परिसर पर आरोपी का "विशेष कब्जा" साबित करना होगा जहां से ड्रग्स बरामदगी हुई है।

    न्यायमूर्ति के. सुरेंदर की ओर से यह टिप्पणी आई, "परिसर के अनन्य कब्जे के संबंध में प्रतिवादी/अभियुक्त के खिलाफ उचित संदेह से परे साबित करना शिकायतकर्ता का बाध्य कर्तव्य है, जिसमें विफल होने पर अभियोजन प्रतिवादी/अभियुक्त की पृष्ठभूमि में परिसर के बारे में किसी भी जानकारी से पूरी तरह से इनकार करने में विफल रहता है और जब पी.डब्ल्यू.1 का समर्थन करने के लिए मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा कोई पुष्टि नहीं होती है कि प्रतिवादी/अभियुक्त के पास से उसके परिसर में ड्रग्स जब्त किए गए है तो पीडब्ल्यू1 पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।"

    केस टाइटल: ड्रग्स इंस्पेक्टर बनाम चिप्पा थिरुपति

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    साक्ष्य अधिनियम की धारा 139 | जिस आईओ ने दस्तावेज जमा किये, सामग्री के संबंध में उससे क्रॉस एक्ज़ामिनेशन नहीं किया जा सकता : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 139 का हवाला देते हुए जांच अधिकारी (आईओ) से क्रॉस एक्ज़ामिनेशन (प्रति परीक्षण) की अनुमति देने से इनकार कर दिया। उक्त आईओ ने भ्रष्टाचार के मामले में याचिकाकर्ता-आरोपी के खिलाफ दस्तावेज एकत्र किए थे।

    प्रावधान में कहा गया कि किसी दस्तावेज़ को पेश करने के लिए बुलाया गया व्यक्ति केवल इस तथ्य से गवाह नहीं बन जाता है कि वह इसे पेश करता है। फिर जब तक उसे गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाता है तब तक उससे क्रॉस एक्ज़ामिनेशन नहीं की जा सकती है।

    केस टाइटल: राकेश जैन बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो

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    [सीपीसी आदेश VII नियम 11] नुकसान की मात्रा का फैसला ट्रायल के बाद ही किया जा सकता है, वाद को खारिज करने का आधार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत एक वाद को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि इसमें दावा किए गए नुकसान की मात्रा प्रदान नहीं की जा सकती है।

    न्यायमूर्ति अमित बंसल ने कहा कि वादी को दिए जाने वाले हर्जाने की मात्रा का फैसला सुनवाई के बाद ही किया जा सकता है। इसलिए, एक ट्रायल आवश्यक होगा और इसलिए, वादपत्र को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि वादपत्र में दावा की गई क्षति की मात्रा प्रदान नहीं की जा सकती है।

    केस टाइटल: हेमा गुसाईं बनाम इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एवं अन्य

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    पति और उसके परिवार के खिलाफ लगातार शिकायतें दर्ज करना जिसके परिणामस्वरूप गिरफ्तारी और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है, क्रूरता के बराबर: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने हाल ही में ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पति द्वारा अपील की अनुमति दी जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 की धारा 13 के तहत विवाह के विघटन के लिए उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी।

    जस्टिस मीनाक्षी आई मेहता की पीठ ने कहा कि प्रतिवादी-पत्नी ने याचिकाकर्ता के साथ क्रूरता की है, इसलिए याचिकाकर्ता के लिए अब उसके साथ रहना असंभव होगा।

    केस टाइटल: अनमोल वर्मा बनाम राधिका सरीन

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