रोजगार की शर्तें नियोक्ता के कार्यों के न्यायिक पुन‌र्विचार की मांग के कर्मचारियों के अधिकार को नहीं छीन सकती: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

Avanish Pathak

11 July 2022 1:05 PM GMT

  • रोजगार की शर्तें नियोक्ता के कार्यों के न्यायिक पुन‌र्विचार की मांग के कर्मचारियों के अधिकार को नहीं छीन सकती: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक फैसले में कहा कि कि एक नियोक्ता रोजगार की ऐसी शर्तें नहीं लगा सकता है, जो कर्मचारियों से नियोक्ता के कार्यों के न्यायिक पुनर्विचार कराने के उनके अधिकार को छीनने का प्रभाव डालती हो।

    अदालत ने माना कि न्यायिक पुनर्विचार का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त महत्वपूर्ण अधिकार है और रोजगार का कोई भी नियम और शर्त, जो किसी व्यक्ति को अपने अधिकारों के प्रवर्तन के लिए कानूनी उपायों की तलाश करने से रोकती हैं, शून्य हैं।

    अदालत ने 24 नवंबर, 2016 को क्षेत्रीय प्रबंधक, भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की ओर से जारी आदेश के खिलाफ कैजुअल मजदूरों द्वारा दायर दो याचिकाओं की सुनवाई पर यह टिप्पणी की।

    आदेश में याचिकाकर्ताओं को प्रोफार्मा प्रतिवादियों के साथ अस्थायी दर्जा दिया गया था, कुछ आदेश में निर्धारित नियम और शर्तों के अधीन था। याचिकाकर्ताओं को अस्थायी दर्जा दिया गया था, जिसके तहत उन्हें एफसीआई में कार्यरत नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के समान न्यूनतम वेतनमान, डीए, एचआरए, लंच, सब्सिडी और वाहन भत्ता आदि दिया जाता।

    याचिकाकर्ताओं ने एफसीआई के उक्त आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत याचिकाकर्ताओं सहित अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी पेरोल पर नहीं लाया गया था और जिसके तहत यह कहा गया था कि वे एफसीआई के कर्मचारी नहीं बनेंगे जब तक कि एफसीआई द्वारा भविष्य में नियमितीकरण या स्थायी अवशोषण की नीति जारी नहीं की जाती है। याचिकाकर्ताओं ने आदेश को इस आधार पर चुनौती दी थी कि इसने न्यायिक पुनर्विचार की मांग करने का उनका अधिकार छीन लिया था।

    याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि वे उसी तरह से स्थायी किए जाने के हकदार थे जिस तरह से एक अन्य याचिका में समान रूप से स्थित याचिकाकर्ताओं को नियमित किया गया था और भारतीय खाद्य निगम की स्थायी स्थापना पर लाया गया था।

    रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का अवलोकन करते हुए पीठ ने कहा कि आक्षेपित आदेश में शर्त संख्या (iii) द्वारा याचिकाकर्ताओं और अन्य लाभार्थियों को उनके नियमितीकरण और बकाया आदि की मांग के लिए मुकदमे का सहारा लेने से वंचित करना, कानून में टिकाऊ नहीं है। बेंच ने दर्ज किया कि आदेश की शर्तों में से एक यानी शर्त संख्या (iii) कानून की नजर में खराब है और इसे उक्त आदेश से हटाया गया..माना जाएगा।

    मामले में किसी भी हस्तक्षेप से इनकार करते हुए, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पांच साल के अंतराल के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया और याचिकाकर्ताओं ने प्रोफार्मा प्रतिवादियों के साथ आक्षेपित आदेश के तहत तय किए गए लाभ प्राप्त किया और बिना किसी आपत्ति के लगभग पांच साल तक काम किया है।

    अदालत ने कहा, "याचिकाकर्ता मेरे संज्ञान में आदेश के खिलाफ किसी भी अभ्यावेदन या विरोध याचिका को लाने में सक्षम नहीं हैं।"

    कोर्ट ने आदेश में कहा, वर्ष 2021 में याचिकाकर्ता और प्रोफार्मा प्रतिवादी नींद से जाग गए और 26 जुलाई, 2021 को एफसीआई को एक कानूनी नोटिस जारी किया। हालांकि कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा कि यह "आशा और विश्वास" है कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जल्द से जल्द नियमितीकरण की उचित नीति पेश करेंगे।

    केस टाइटल: जफर हजाम मोहम्मद अब्बास और अन्य बनाम अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, एफसीआई और अन्य।

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