दिव्यांग सरकारी शिक्षकों पर 'इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर' के खिलाफ रोक लागू नहीं: उड़ीसा हाईकोर्ट
Shahadat
12 July 2022 3:58 PM IST
उड़ीसा हाईकोर्ट ने दिव्यांगता न्यायशास्त्र के क्षेत्र से संबंधित मामले में माना कि 'इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर' के खिलाफ प्रतिबंध उन शिक्षकों पर लागू नहीं किया जा सकता है जिन्हें दिव्यांग व्यक्तियों के रूप में मान्यता प्राप्त है।
डॉ. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
"सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ हाईकोर्ट ने कई निर्णयों के माध्यम से यह दोहराया है कि अलग-अलग सक्षम व्यक्ति सहानुभूतिपूर्ण विचार के पात्र हैं और स्थानांतरण करते समय अधिकारियों को भी ध्यान देने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि तबादलों को पारदर्शी और तर्कसंगत तरीके से अत्यधिक के साथ लिया जाता है। जनहित को प्राथमिकता देने और जहां तक संभव हो मानवीय कठिनाइयों पर उचित विचार करने के लिए संबंधित राज्य सरकारों को इसके संबंध में उचित दिशा-निर्देश तैयार करने चाहिए।"
मामले के तथ्य:
याचिकाकर्ता ने निदेशक, प्रारंभिक शिक्षा को डीईओ के माध्यम से इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के लिए अपने मौजूदा स्थान से कुंडापोशी यूजीयूपी स्कूल, कुचिंडा में बीईओ, कुचिंडा, संबलपुर जिले के तहत अभ्यावेदन दिया, जो उनके मूल स्थान के पास है। निदेशक को डीईओ, झारसुगुड़ा द्वारा इस तरह के प्रतिनिधित्व की विधिवत सिफारिश की गई थी।
हालांकि, निदेशक ने कार्यालय आदेश दिनांक 14.02.2022 के माध्यम से इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के लिए याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया। निःशक्तता के प्रतिशत को स्वीकार करते हुए (जो कि 70% स्थायी निःशक्तता पाई गई) निदेशक ने 1997 के नियमों यथा संशोधित का हवाला देते हुए इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के याचिकाकर्ता के दावे को खारिज कर दिया। अधिसूचना दिनांक 04.10.2018 अर्थात स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 17.05.2016 के सपठित इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के लिए जारी दिशा-निर्देश के तहत उक्त निर्देश दिया गया। इस तरह की अस्वीकृति से व्यथित याचिकाकर्ता ने इस रिट याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता की दलीलें:
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील दिलीप कुमार महापात्र ने बताया कि आक्षेपित आदेश सरकारी अधिसूचना दिनांक 04.03.2018 के क्षेत्र को नियंत्रित कर रहा है। उक्त दिशानिर्देश का खंड-एल स्पष्ट रूप से बताता है कि "दिव्यांग व्यक्तियों के स्थानांतरण मामलों पर राज्य मेडिकलक बोर्ड द्वारा दिव्यांगता के प्रमाणीकरण के आधार पर विचार किया जाएगा"।
हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि दावे को खारिज करते समय निदेशक द्वारा उपरोक्त तथ्यों पर विचार नहीं किया गया और उन्होंने इस संबंध में सरकार से कोई स्पष्टीकरण भी नहीं मांगा। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के संकल्प दिनांक 17.09.2016 द्वारा निर्धारित रोग के आधार पर आपसी ट्रांसफर की धारा का प्रयोग करते हुए बिना सोचे-समझे दावा खारिज कर दिया।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा जारी अधिसूचना दिनांक 17.05.2016 का खंड 6(डी) भी ऐसे स्थानांतरण की अनुमति देता है। आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि सामान्य प्रशासन विभाग के दिनांक 03.12.2013 के संकल्प का खंड 16 भी इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर की अनुमति देता है जिस पर विचार नहीं किया गया।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि निदेशक सामाजिक सुरक्षा और दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारिता विभाग के संकल्प दिनांक 25.02.2021 को नोट करने में भी विफल रहे, जहां खंड -17 में रेखांकित किया गया कि विकलांग कर्मचारियों को यथासंभव उनके मूल स्थानों के निकट तैनात या ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, उन्होंने जोर देकर कहा कि इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के लिए 1977 के नियमों के तहत कोई रोक नहीं है। बल्कि, सरकार द्वारा अधिसूचना दिनांक 04.10.2018 के अनुसार, इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर की अनुमति है और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रावधान के मद्देनजर, सरकारी अधिसूचना (सुप्रा) के साथ पढ़ा गया, याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व, जो इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के लिए है, अनुमेय और निदेशक द्वारा पारित अस्वीकृति आदेश न केवल गलत है बल्कि विवेक के स्पष्ट गैर-प्रयोग का उदाहरण भी है।
प्रतिवादियों की दलीलें:
सरकारी वकील सोनक मिश्रा ने प्रस्तुत किया कि ओडिशा प्रारंभिक शिक्षा (शिक्षा का तरीका, शिक्षकों और अधिकारियों की सेवा की विधि और शर्तें) संशोधन नियम, 2014 और ओडिशा प्रारंभिक शिक्षा (भर्ती की विधि और सेवा की शर्तें) के प्रावधान के अनुसार शिक्षकों और अधिकारियों के संशोधन नियम, 2019, याचिकाकर्ता की सेवा जिला संवर्ग के अंतर्गत आती है और उक्त जिला संवर्ग के अनुसार, याचिकाकर्ता की सेवा केवल झारसुगुडा जिले तक ही सीमित है। उसके स्थानांतरण के लिए क्षेत्र में कोई नियम नहीं है। अपनी पसंद का जिला यानि संबलपुर और इसकी अनुमति नहीं है।
यह भी प्रस्तुत किया गया कि दिशा-निर्देशों के अनुसार प्राथमिक संवर्ग के शिक्षकों के इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर पर केवल आपसी आधार पर या स्वयं की लाइलाज बीमारी के आधार पर दिशानिर्देशों में निर्धारित शर्तों के अधीन विचार किया जाएगा। लेकिन वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता द्वारा की गई प्रार्थना न तो इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर के लिए है और न ही आपसी आधार पर या स्वयं की लाइलाज बीमारी के आधार पर। इस प्रकार, यह तर्क दिया गया कि जहां तक इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफर का संबंध है, याचिकाकर्ता के मामले पर सरकार की नई ट्रांसफर पॉलिसी दिनांक 04.10.2018 के अनुसार विचार नहीं किया जा सकता है।
इसके अलावा, अधिसूचना दिनांक 04.10.2018 के पैरा-2 (ए) पर भी प्रकाश डाला गया, जिसमें कहा गया कि "ट्रांसफर प्रक्रिया केवल कंप्यूटर आधारित कार्यक्रम पर ऑनलाइन मोड में आयोजित की जाएगी"। जैसा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता ने कभी भी ऑनलाइन मोड के माध्यम से आवेदन नहीं किया है तो यह तर्क दिया गया कि उसका मामला इस उद्देश्य के लिए गठित ट्रांसफर कमेटी के समक्ष विचार के क्षेत्र में नहीं आता है।
न्यायालय की टिप्पणियां:
कोर्ट ने उक्त राज्य के दिशा-निर्देशों और दीपिका कांतिलाल शुक्ला बनाम गुजरात राज्य में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले का भी संदर्भ दिया, जिसमें यह माना गया था कि राज्य सरकरों को उनके द्वारा बनाए गए दिशानिर्देशों के भीतर कार्य करना होगा, अन्यथा यह खाली कागज पर औपचारिकता से ज्यादा कुछ नहीं होगा। कमलेश शर्मा बनाम मध्य प्रदेश राज्य में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के निर्णय का भी संदर्भ दिया गया था, जिसमें विकलांग व्यक्तियों के स्थानांतरण के मामले से निपटने के दौरान, न्यायालय ने उस कानून को स्वीकार किया जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को आगे बढ़ाने दिव्यांग व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करने के लिए अधिनियमित किया गया है।
नतीजतन, अदालत ने निष्कर्ष निकाला,
"इसलिए, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अंतर जिला स्थानांतरण के लिए 1977 के नियमों के तहत बार दिव्यांग व्यक्ति पर लागू नहीं होगा। इसके अलावा, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रावधान को ध्यान में रखते हुए सरकार की अधिसूचना के सपठित ( सुप्रा) विकलांग व्यक्ति के अंतर जिला स्थानांतरण की अनुमति देता है। इसलिए, निदेशक द्वारा पारित कार्यालय आदेश दिनांक 14.02.2022 द्वारा अस्वीकृति आदेश एतद्द्वारा निरस्त किया जाता है। निदेशक को एतद्द्वारा तीन महीने की अवधि के भीतर स्थानांतरण प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया जाता है।"
केस टाइटल: नबा कृष्ण महापात्रा बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।
केस नंबर: डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 6880 ऑफ 2022
निर्णय दिनांक: 11 जुलाई 2022
कोरम: डॉ. न्यायमूर्ति संजीव कुमार पाणिग्रही
याचिकाकर्ता के वकील: एडवोकेट दिलीप कुमार महापात्रा।
प्रतिवादियों के लिए वकील: सोनाक मिश्रा, एससी (एस एंड एमई विभाग के लिए)
साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (ओरि) 111
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