अगर महिला खुद हाथ पकड़ने' के कृत्य को उसकी शालीनता पर आक्रमण नहीं मानती है तो आईपीसी की धारा 354 आकर्षित नहीं होगी : तेलंगाना हाईकोर्ट

Sharafat

11 July 2022 3:02 PM GMT

  • अगर महिला खुद हाथ पकड़ने के कृत्य को उसकी शालीनता पर आक्रमण नहीं मानती है तो आईपीसी की धारा 354 आकर्षित नहीं होगी : तेलंगाना हाईकोर्ट

    तेलंगाना हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि यदि कोई महिला स्वयं 'हाथ पकड़ने' के कृत्य को अपनी शालीनता पर आक्रमण के रूप में नहीं देखती है तो आरोपी की ओर से इस तरह का कार्य आईपीसी की धारा 354 के अवयवों को आकर्षित नहीं करेगा।

    आईपीसी की धारा 354 महिला के शील भंग करने के "इरादे" से उसके साथ मारपीट या आपराधिक बल के कृत्यों के लिए सज़ा का प्रावधान करती है।

    जस्टिस के सुरेंद्र ने देखा:

    " मामले के वर्तमान तथ्यों और परिस्थितियों में, चूंकि अभियोजन पक्ष के गवाह (पीडब्लू1) ने खुद उसका हाथ पकड़ने के कृत्य को एक महिला के रूप में उसकी शालीनता पर आक्रमण करने के रूप में नहीं देखा, इसलिए दृढ़ विश्वास से यह नहीं कहा जा सकता कि आईपीसी की धारा 354 के अवयव आकर्षित होते हैं।"

    यहां अपीलकर्ता को आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया गया था और पांच साल की अवधि के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई थी और साथ ही 2,000/- रुपये का जुर्माना लगाया गया। जुर्माना न भरने की स्थिति में छह महीने की अवधि का अतिरिक्त कारावास भुगतने का भी आदेश पारित किया गया।

    हाईकोर्ट में कंप्यूटर रिपेयरर के रूप में कार्यरत अपीलकर्ता पर हाईकोर्ट के तत्कालीन रजिस्ट्रार जनरल के घर में नौकरानी के रूप में काम करने वाली शिकायतकर्ता का शील भंग करने का आरोप लगाया गया था। आरोप है कि अपीलकर्ता ने उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी चूड़ियां तोड़ी। तुरंत, वह मदद के लिए चिल्लाई और अपीलकर्ता फ्लैट से भाग गया।

    हाईकोर्ट ने कहा कि जब मुख्य परीक्षा के दौरान पूछताछ की गई तो शिकायतकर्ता ने कहा कि जब आरोपी ने उसका हाथ पकड़ा तो वह गुस्सा हो गई और वह उस उद्देश्य या इरादे को नहीं जानती जिसके तहत आरोपी ने उसका हाथ पकड़ा था।

    इस प्रकार रूपन देओल बजाज बनाम कंवर पाल सिंह गिल में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए अदालत ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि शिकायतकर्ता का हाथ पकड़ना वर्तमान तथ्यों में उसकी शील भंग करने के समान है। उसका हाथ पकड़ने में आरोपी के किसी इरादे या उद्देश्य के बारे में शिकायतकर्ता को पता नहीं था।

    इस प्रकार अदालत ने दोषसिद्धि अपास्त करते हुए अपील स्वीकार कर ली।

    केस टाइटल : के. रत्तैया @ रत्नाजी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य


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