हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

26 Jun 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (20 जून, 2022 से 24 जून, 2022 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत अनुमान साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 में शामिल साक्ष्य के सामान्य नियम के समान : झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा है कि एनआई एक्ट की धारा 139 के तहत अनुमान साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 में शामिल साक्ष्य के सामान्य नियम के समान है। जस्टिस श्री चंद्रशेखर की खंडपीठ ने आगे कहा कि आरोपी को यह दिखाने का अधिकार है कि इस बात की संभावना है कि उसके खिलाफ दायर किया गया मामला सही नहीं है।

    हालांकि, यह चरण तभी आएगा जब शिकायतकर्ता द्वारा प्रथम दृष्टया मामला स्थापित किया जाएगा। यह ध्यान दिया जा सकता है कि धारा 139 एनआई एक्ट में कहा गया है कि जब तक इसके विपरीत साबित नहीं होता है, यह माना जाना चाहिए कि चेक धारक को किसी भी ऋण या अन्य देनदारी के भुगतान के लिए चेक पूर्ण या आंशिक रूप से प्राप्त हुआ।

    केस टाइटल- हजारी प्रसाद बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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    अगर मुकदमे की मूल प्रकृति प्रभावित नहीं हो रही है तो मुकदमे की सुनवाई शुरू होने के बाद वाद में संशोधन की अनुमति दी जा सकती है : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वादी के वादपत्र में संशोधन के अनुरोध पर ट्रायल शुरू होने के बाद भी विचार किया जा सकता है, यदि वाद का मूल स्वरूप नहीं बदला जाता है और प्रतिवादी पक्ष को कोई पूर्वाग्रह नहीं होता है।

    ज‌स्टिस सचिन शंकर मखादुम की सिंगल जज बेंच ने उक्त टिप्‍पणियों के साथ वादी द्वारा, पार्टिशन के एक मुकदमे में, मामले में वादी की आगे की जिरह तय होने के बाद, आदेश 6 नियम 17 के तहत दायर एक याचिका को अनुमति दी।

    केस टाइटल: रेखा और अन्य बनाम ललितम्मा और अन्य

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    एलएलबी एडमिशन के लिए एग्जाम- यूनिवर्सिटी के नियम बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों से ऊपर होंगे: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट के जज, जस्टिस वैभवी डी. नानावती की एकल पीठ ने माना कि एलएलबी कोर्स में एडमिशन के लिए परीक्षा और परिणाम के मामले में यूनिवर्सिटी के नियम बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों पर प्रबल होंगे। इस मामले में हाईकोर्ट ने सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी के नियमों को बरकरार रखा, जो उन मामलों में एलएलबी कोर्स में एडमिशन पर रोक लगाते हैं, जहां ग्रेजुएट ने एक भी प्रयास में अपनी परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की थी।

    केस टाइटल: मधुसूदन गुणवंत्रे पांड्या बनाम सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी

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    अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति प्रमाण पत्र की सत्यता सुनिश्चित करने के लिए जिला कलेक्टर निर्धारित प्रक्रिया से बंधा: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में थेनी जिले के जिला कलेक्टर के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें कलेक्टर ने मानवविज्ञानी की रिपोर्ट और उप-कलेक्टर की जांच रिपोर्ट के आधार पर सामुदायिक प्रमाण पत्र की वास्तविकता पर निर्णय दिया था।

    जस्टिस एसएस सुंदर और जस्टिस एस श्रीमती की खंडपीठ ने कहा, सामुदायिक स्थिति के संबंध में याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए विद्वान एडवोकेट द्वारा उठाए गए विशिष्ट तर्कों को छोड़ दें, यह तथ्य कि जिला कलेक्टर ने ऊपर उल्लिखित दो सरकारी आदेशों के तहत अपेक्षित प्रक्रिया का पालन किए बिना आक्षेपित आदेश पारित किया है, विवाद में नहीं है...इस न्यायालय का विचार है कि पांचवें प्रतिवादी द्वारा पारित आक्षेपित आदेश टिकाऊ नहीं है।

    केस टाइटल: पी माहेश्वरी बनाम सचिव, सरकार

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    सीआरपीसी की धारा 439- जमानत- कोर्ट किसी भी अन्य अधिनियम के तहत परिकल्पित शक्तियों का प्रयोग करने के लिए कोई शर्त नहीं लगा सकता: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) के जस्टिस निरल आर मेहता की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 439 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए, अदालत ऐसी कोई शर्त नहीं लगा सकती है, जो किसी अन्य अधिनियम के तहत परिकल्पित शक्तियों का प्रयोग करती हो।

    अदालत ने माना कि इस तरह की कोई भी शर्त पूरी तरह से अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर होगी। संक्षेप में, मामले के तथ्य यह है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 406, 420, 114 और 120 (बी) और गुजरात प्रोटेक्शन ऑफ इंटरेस्ट ऑफ डिपॉजिटर्स (वित्तीय प्रतिष्ठानों में) एक्ट, 2003 की धारा 3 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

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    धारा 148 एनआई एक्ट के तहत पारित आदेश इंटरलोक्यूटरी प्रकृति में, पुनरीक्षण योग्य नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 148 के तहत पारित आदेशों के मामले में संशोधन के दायरे पर चर्चा करते हुए, मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ऐसे आदेश प्रकृति में अंतर्वर्ती हैं और हाईकोर्ट के पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।

    जस्टिस डी भरत चक्रवर्ती की पीठ प्रधान सत्र न्यायाधीश, चेन्नई के एक आदेश के खिलाफ एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने अधिनियम की धारा 148 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए चेक अनादर के लिए कारावास (अपील के निपटान तक) के आदेश को, चेक राशि का 15% जमा करने के अधीन, निलंबित कर दिया।

    केस टाइटल: बापूजी मुरुगेसन बनाम मैथिली राजगोपालन

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    दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट के तहत रेंट कंट्रोलर मकान मालिक को किराएदार परिसर की मरम्मत के लिए नहीं कह सकता: हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट, 1958 के तहत रेंट कंट्रोलर मकान मालिक को किराएदार परिसर की मरम्मत के लिए नहीं कह सकता है।

    जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि रेंट कंट्रोलर किरायेदार को धारा 44(3) के तहत मरम्मत करने की अनुमति दे सकता है। यदि, उस संबंध में किरायेदार से नोटिस प्राप्त होने के बाद, मकान मालिक परिसर की मरम्मत करने में विफल रहता है। फिर खर्चे को मकान मालिक को देय किराए में से घटाया जा सकता है या मकान मालिक से वसूल किया जा सकता है।

    केस टाइटल: बाबा रहीम अली शाह एंड अन्य बनाम वी. एसएच. अतुल कुमार गर्ग

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    सीआरपीसी धारा 482 के तहत हाईकोर्ट से पैरोल बढ़ाने की मांग नहीं की जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि एक कैदी/दोषी दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए पैरोल बढ़ाने की मांग नहीं कर सकता है। जस्टिस विवेक सिंह ठाकुर की एकल न्यायाधीश पीठ ने यह भी सुझाव दिया कि ऐसे मामलों पर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में विचार किया जा सकता है।

    केस टाइटल: मोहम्मद मार्गूब (जेल में) बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एंड अन्य।

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    धारा 143A एनआई एक्ट| अंतरिम मुआवजे के लिए आवेदन पर निर्णय लेते समय 'अभियुक्त के आचरण' पर विचार किया जाए: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने निर्देश दिया है कि अदाकर्ता (drawee) द्वारा चेक ड‌िसऑनर के मामलों में, एनआई एक्ट 1881 की धारा 143ए के तहत अंतरिम मुआवजे की मांग संबंधी आवेदन पर फैसला करते समय मजिस्ट्रेट अदालतों को आरोपी के आचरण पर विचार करना चाहिए।

    जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने कहा, मजिस्ट्रेटों को यह निर्देश देना आवश्यक हो गया है कि अधिनियम की धारा 143ए के तहत दायर आवेदनों पर विचार करते समय, आरोपी के आचरण पर ध्यान दें। यदि आरोपी अनावश्यक रूप से स्थगन की मांग करके कार्यवाही से बच रहा है तो आवेदन पर विचार करना अनिवार्य हो जाएगा। यह संशोधन ऐसे प्राप्तकर्ताओं की क्षतिपू‌र्ति के लिए ही पेश किया गया है, जिन्हें बेईमान आहरणकर्ता विलंब की रणनीति अपनाकर परेशान करते हैं।

    केस टाइटल: वी. कृष्णमूर्ति बनाम डायरी क्लासिक आइस क्रीम प्रा लिमिटेड

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    हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 'अजन्मे बच्चे' को गोद लेने के लिए एग्रीमेंट की परिकल्पना नहीं करता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने अजन्मे बच्चे को गोद लेने के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के तहत अजन्मे बच्चे को गोद लेने के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 ऐसे बच्चे को गोद लेने के एग्रीमेंट की परिकल्पना नहीं करता, जो अभी तक पैदा नहीं हुआ है।

    जस्टिस एम.एस. रामचंद्र राव नवजात शिशु की प्राकृतिक मां द्वारा उसे प्रतिवादी नंबर चार और पांच की कस्टडी से मुक्त कराने के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिन्होंने बच्चे के माता-पिता से अनुरोध किया कि वह उसके जन्म से पहले उसे गोद दे दे।

    केस टाइटल: पूजा रानी बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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    पत्नी और नाबालिग बच्चे को आर्थिक सहायता से वंचित करना 'घरेलू हिंसा' के बराबर, भले ही पार्टियां साझा घर में नहीं रह रही हों: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने गुरुवार को कहा कि पत्नी और नाबालिग बच्चे को आर्थिक सहायता से वंचित करना घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (DV Act, 2005) की धारा 3 के तहत 'घरेलू हिंसा' का गठन करता है और यह महत्वहीन है कि क्या पार्टियां अभी भी एक साझा घर में रह रही हैं या नहीं। धारा 3 घरेलू हिंसा को परिभाषित करती है और इसमें शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक शोषण शामिल है।

    केस टाइटल: मोहम्मद सफीक मल्लिक बनाम पश्चिम बंगाल राज्य एंड अन्य

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    शिकायतकर्ता की ओर से नियुक्त प्राइवेट प्रॉसिक्यूटर अतिरिक्त आरोप तय करने की मांग कर सकता है, यह अभियोजन का नियंत्रण लेने के बराबर नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) ने हाल ही में न्यायिक मजिस्ट्रेट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि एक निजी वकील, जिसे लोक अभियोजक (Public Prosecutor) की सहायता के लिए शिकायतकर्ता द्वारा नियुक्त किया गया है, वह सीआरपीसी की धारा 301 (2) के तहत एक स्वतंत्र अभियोजन नहीं चला सकता है और इसलिए अभियोजन पक्ष की ओर से पैरवी करने और मामले का संचालन करने का कोई अधिकार नहीं है।

    केस टाइटल: एन श्यामसुंदर नायडू बनाम वी दक्षिणमूर्ति एंड अन्य

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    सीपीसी| विभिन्न डिक्री धारकों के बीच संपत्ति के रेटेबल डिस्ट्रीब्यूशन का आदेश उन्हें उनके व्यक्तिगत ऋण को सेट-ऑफ करने से रोकता है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत, जब अलग-अलग डिक्रीधारकों के पक्ष में एक संपत्ति के लिए 'रेटेबल डिस्ट्रीब्यूशन' का आदेश होता है, तो उनमें से कोई भी बिक्री से प्राप्त राशि से अपने पूरे ऋण को समायोजित करने का दावा नहीं कर सकता है।

    न्यायमूर्ति अनिल के. नरेंद्रन और न्यायमूर्ति पी.जी. अजितकुमार की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामले में जहां न्यायालय द्वारा 'रेटेबल डिस्ट्रीब्यूशन' का आदेश दिया जाता है, वहां डिक्री धारक को केवल उस आनुपातिक राशि को ही अलग करने का अधिकार है, जिसका वह हकदार है।

    केस शीर्षक: सुबैदा इब्राहिम बनाम मूसा सी एवं अन्य।

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    आईपीसी की धारा 498 ए के तहत महिला के खिलाफ शिकायतकर्ता के पति के साथ अवैध संबंध का आरोप सुनवाई योग्य नहीं : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने महिला के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए, 506, 504 और 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत अन्य महिला द्वारा दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया। उक्त एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि आरोपी के उसके पति के साथ अवैध संबंध हैं।

    जस्टिस हेमंत चंदनगौदर की एकल पीठ ने महिला द्वारा दायर याचिका की अनुमति देते हुए कहा, "याचिकाकर्ता-आरोपी नंबर 5 के खिलाफ एकमात्र आरोप यह है कि उसके शिकायत नंबर दो के साथ अवैध संबंध हैं, जो प्रतिवादी नंबर एक का पति है। यह आरोप याचिकाकर्ता आरोपी नंबर 5 के खिलाफ आरोपित अपराधों के कमीशन का गठन नहीं करता।"

    केस टाइटल: XXX बनाम कर्नाटक राज्य

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    धारा 171 अनुबंध अधिनियम| बैंक एक ऋण के पुनर्भुगतान के बाद, एक और ऋण के लंबित होने का हवाला देते हुए मालिकाना दस्तावेज अपने पास नहीं रख सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्‍बे हाईकोर्ट ने कहा है कि एक बैंक ऋण के पुनर्भुगतान के बाद किसी अन्य ऋण के लंबित होने के कारण दस्तावेजों पर सामान्य ग्रहणाधिकार का हवाला देते हुए एक उधारकर्ता के घर के मालिकाने के दस्तावेजों को अपने पास नहीं रख सकता है। पीठ ने एक उधारकर्ता की रिट याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता की कंपनी की ओर से अदा नहीं किए गए एक और ऋण की वसूली की कार्यवाही के बावजूद उसके फ्लैट के मालिकाने के दस्तावेज उन्हें सौंप दे।

    केस टाइटल: श्री सुनील बनाम यूनियन बैंक ऑफ इंडिया

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    औद्योगिक विवाद अधिनियम वक्फ बोर्ड के साथ पंजीकृत ऐसे संस्थानों पर लागू जो वाणिज्यिक गतिविधि में संलग्न: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि वक्फ बोर्ड के तहत पंजीकृत एक संस्था, जो धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के अलावा पत्रिकाओं की छपाई जैसी व्यावसायिक गतिविधियों में लिप्त है, औद्योगिक विवाद अधिनियम के प्रयोजनों के लिए एक 'उद्योग' है। कोर्ट ने कहा कि एक 'मौलवी' जिसे इस तरह की व्यावसायिक गतिविधि का प्रबंधन सौंपा गया है, जो वर्तमान मामले में मुद्रण सामग्री आदि का प्रबंधक है, अधिनियम के तहत एक 'वर्कमैन' है और इस प्रकार, अधिनियम के तहत सेवा की समाप्त‌ि (Termination) से संबंधित प्रावधान आकर्षित होंगे।

    केस टाइटल: दारुल उलुनारबिय्याह इस्लामियाह बनाम मौलवी महमरुदुल हसन और एक अन्य

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    अपराधी को जांच रिपोर्ट प्राप्त करने का अधिकार हर क़ानून में होना चाहिए, भले ही स्पष्ट रूप से न कहा गया हो: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि जांच रिपोर्ट प्राप्त करने के अपराधी के अधिकार को उन्हें दिए जाने का अनिवार्य हिस्सा माना जाता है। उन्हें रिपोर्ट देने से इनकार करना अनुशासनात्मक कार्यवाही में खुद के बचाव के उनके अधिकार का उल्लंघन है।

    जस्टिस एके जयशंकरन नांबियार और जस्टिस मोहम्मद नियास सी.पी की खंडपीठ ने यह भी कहा कि भले ही इस तरह के अधिकार को क़ानून में स्पष्ट रूप से नहीं कहा गया है, प्राकृतिक न्याय का मौलिक और अनिवार्य हिस्सा होने के नाते इसे हर क़ानून में पढ़ा जाना चाहिए।

    केस टाइटल: जयचंद्रन वी. वी. केरल राज्य और अन्य।

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    धारा 313 सीआरपीसी | अभियुक्त का आपत्तिजनक सामग्री पर 'विशिष्ट रूप से ध्यान' खींचना ट्रायल कोर्ट के लिए आवश्यक: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 313 के तहत ट्रायल कोर्ट द्वारा अपने कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन करने में विफलता के कारण हत्या के एक आरोपी की दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया है।

    न्यायालय की राय थी कि ट्रायल कोर्ट को अभियुक्तों का 'विशिष्ट ध्यान' उन सामग्रियों की ओर आकर्षित करने की आवश्यकता है, जिन पर दोषसिद्धि दर्ज करते समय विचार किए जाने की संभावना है। धारा 313 के चरण से पुन: परीक्षण का आदेश पारित करते हुए, चीफ जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की खंडपीठ ने कहा, "मौजूदा मामले में, रिकॉर्ड यह नहीं बताते हैं कि ट्रायल कोर्ट ने उचित तरीके से ट्रायल किया गया था।"

    केस टाइटल: टेंगसल डी संगमा बनाम मेघालय राज्य और अन्य।

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    भारत से बाहर का व्यक्ति अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल कर सकता है; लेकिन अंतिम सुनवाई से पहले आरोपी भारत में होना चाहिए: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 में कोई प्रतिबंधात्मक आदेश नहीं है कि भारत से बाहर का व्यक्ति अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दायर नहीं कर सकता। इसकी एकमात्र सीमा यह है कि अंतिम सुनवाई से पहले आवेदक को देश के अंदर होना चाहिए ताकि अदालत वैधानिक प्रावधानों के तहत अपेक्षित शर्तों को लागू कर सके और लागू कर सके। जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की एकल पीठ ने अभिनेता-निर्माता विजय बाबू को बलात्कार के मामले में अग्रिम जमानत देते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटस: विजय बाबू बनाम केरल राज्य और अन्य।

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    मध्यस्थता समझौते के अभाव में समझौता योजना के तहत डिबेंचर ट्रस्टी पर मध्यस्थ कार्यवाही नहीं की जा सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने माना कि भले ही कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 391 के तहत समझौते की एक योजना प्रभावित पक्षों के बीच सभी समझौतों पर प्रभावी होती है, फिर भी कंपनी डिबेंचर ट्रस्टी पर, मध्यस्थता समझौते की अनुपस्थिति में, केवल उक्त योजना के आधार पर मध्यस्थ कार्यवाही नहीं कर सकती है।

    ज‌स्टिस एके मेनन ने एक फैसले में कहा कि डिबेंचर ट्रस्टी कंपनी का एक स्वतंत्र दायित्व था और इस प्रकार, योजना में निहित मध्यस्थता खंड डिबेंचर ट्रस्टी पर बाध्यकारी नहीं था।

    केस टाइटल: एचएमजी इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम केनरा बैंक

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    औद्योगिक विवाद अधिनियम | छंटनी और पुनर्नियोजन प्रक्रिया के उल्लंघन में बर्खास्त किए गए कर्मचारी धारा 25G और 25H के तहत बहाली के हकदार: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि जहां औद्योगिक विवाद अधिनियम की धारा 25 (जी) और 25 (एच) के तहत प्रदान की गई छंटनी और पुन: रोजगार की प्रक्रिया के उल्लंघन में एक कर्मचारी की सेवा समाप्त की जाती है, वहां बहाली के आदेश पालन होना चाहिए।

    जस्टिस बीरेन वैष्णव ने श्रम न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें नौकरी से हटाए गए कर्मचारियों को 72,000 रुपये का बकाया वेतन दिया गया था और सेवा की निरंतरता के साथ सेवा में उनकी बहाली का निर्देश दिया।

    केस टाइटल: गेमलभाई मोतीभाई सोलंकी बनाम उप कार्यकारी अभियंता

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    भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत अधिसूचना जारी होने के बाद के खरीदार अधिग्रहण की कार्यवाही को चुनौती नहीं दे सकते: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक व्यक्ति अगर भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 की धारा 4 के तहत सरकार द्वारा अधिग्रहण की अधिसूचना जारी करने के बाद जमीन का एक टुकड़ा खरीदता है तो उसे अधिग्रहण की कार्यवाही को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

    चीफ ज‌‌स्टिस मुनीश्वर नाथ भंडारी और जस्टिस एन माला की पीठ ने एक संपत्ति के बाद के खरीदारों की अपील को खारिज कर दिया। उन्होंने बीस साल बाद अधिग्रहण को चुनौती दी थी।

    केस टाइटल: बी नागराज बनाम राज्य और अन्य

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    फर्म के खिलाफ मुकदमा उन सभी व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा है जो इसके भागीदार हैं: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते कहा कि फर्म द्वारा या उसके खिलाफ दायर मुकदमा फर्म के सभी भागीदारों द्वारा या उनके खिलाफ मुकदमा है। हाईकोर्ट ने कहा कि फर्म का नाम उन सभी के लिए है, जो फर्म में उस समय भागीदार थे जब कार्रवाई का कारण उत्पन्न हुआ था।

    जस्टिस पी.बी. सुरेश कुमार और जस्टिस सी.एस. सुधा ने बताया कि आदेश XXX (स्वयं के अलावा अन्य नामों से व्यवसाय करने वाले व्यक्तियों द्वारा या उनके खिलाफ सूट) सीपीसी में निहित नीति, पक्षकारों की लंबी श्रृंखला से बचने और संस्था के सुविधाजनक तरीके की अनुमति देने के लिए है। सामुहिक रूप से साझेदारों द्वारा/के खिलाफ मुकदमों का, जो एक विशेष नाम के तहत कारोबार करते हैं।

    केस टाइटल: मेसर्स सीएस कंपनी और अन्य बनाम केरल राज्य विद्युत बोर्ड और अन्य।

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    सीआरपीसी की धारा 306/307| अपराध के लिए आरोपी के अलावा अन्य व्यक्ति को भी माफ़ी दी जा सकती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 306 और 307 के तहत आरोपी के अलावा अन्य किसी व्यक्ति को भी माफी दी जा सकती है, भले ही उसे अंतिम रिपोर्ट में आरोपी के रूप में पेश न किया गया हो।

    जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस सी. जयचंद्रन की खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 306 और 307 में प्रयुक्त भाषा 'आरोपी व्यक्ति' नहीं है, बल्कि माफी मांगने वाला 'किसी भी व्यक्ति' की केवल 'प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपराध से संबंधित या गुप्त तरीके से' जुड़े होने की संभावना है।

    केस टाइटल: सुरेश राज बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी

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    कोर्ट को पार्टियों को गॉर्जियनशिप के मामलों में मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य देने की अनुमति देनी चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट की एक पीठ ने हाल ही में एक सिंगल जज के फैसले पर दिए अवलोकन में कहा कि सिंगल जज का आदेश पार्टियों को मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य देने का अवसर दिए बिना पारित किया गया था। जस्टिस एम दुरईस्वामी और जस्टिस सुंदर मोहन की पीठ ने मामले में अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी की मांग कर रहे एक पिता की अपील को अनुमति दे दी।

    कोर्ट ने कहा, "यह तय कानून है कि अभिभावक की नियुक्ति के मुद्दे पर दायर मूल याचिका पर निर्णय लेते समय अदालतों को पार्टियों को मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य देने की अनुमति देनी चाहिए। केवल इसी आधार पर विद्वान एकल जज द्वारा पारित 2020 के आदेश OP No.423 रद्द किए जाने योग्य है।"

    केस टाइटल: ए शामसुदीन राजा बनाम रानीशा पीवी

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    अगर किसी वकील की कोई कानूनी सलाह गलत हो जाती है, तो इसके लिए वकील के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती: राजस्थान हाईकोट

    राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने कहा है कि अगर किसी वकील की कोई कानूनी सलाह गलत हो जाती है, तो इसके लिए वकील के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती, सबूत के आधार पर केवल पेशेवर कदाचार के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है।

    डॉ. जस्टिस पुष्पेंद्र सिंह भाटी ने कहा, "अगर किसी वकील की कोई कानूनी सलाह गलत हो जाती है, तो इसके लिए वकील के खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जा सकती, सबूत के आधार पर केवल पेशेवर कदाचार के लिए उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। लेकिन अन्य साजिशकर्ताओं के साथ, एक वकील को अपराधों के लिए आरोपित नहीं किया जा सकता है, जैसा कि यहां आरोप लगाया गया है।"

    केस टाइटल: गोपी किशन बनाम राजस्थान राज्य

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    16 वर्ष से अधिक उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह का अनुबंध कर सकती है : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते एक मुस्लिम लड़की (16 वर्ष की उम्र) को सुरक्षा प्रदान की, जिसने अपनी पसंद के मुस्लिम लड़के (21 वर्ष) से शादी की। कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत लड़की की उम्र विवाह योग्य है।

    जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की खंडपीठ इस जोड़े (दोनों मुस्लिम) द्वारा दायर एक प्रोटेक्शन पिटिशन पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने मुस्लिम रीति-रिवाजों और समारोहों के अनुसार शादी की थी।

    केस टाइटल - गुलाम दीन और दूसरा बनाम पंजाब राज्य और अन्य

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    वादी अगर मध्यस्थता के लिए रेफर किया जाता है तो कोर्ट फीस की वापसी का हकदार नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि वादी मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 8 के तहत आवेदन की स्थिति में अदालत की फीस वापसी का हकदार नहीं हो सकता है, क्योंकि पक्षकारों को मध्यस्थता के लिए भेजा जा रहा है।

    जस्टिस अमित बंसल ने दोहराया कि सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत वादपत्र खारिज होने की स्थिति में वादी अदालती फीस वापस पाने का हकदार नहीं है, जहां वादी कार्यवाही के कारण का खुलासा नहीं करता है।

    केस टाइटल: ए-वन रीयलटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड।

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    'व्यापार और वाणिज्य' में प्रयुक्त संपत्ति से संबंधित समझौतों से उत्पन्न विवाद "वाणिज्यिक विवाद" का गठन करता है: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि वाणिज्यिक न्यायालय के अधिनियम, 2015 के तहत संपत्ति से संबंधित विवाद "व्यावसायिक विवाद" (Commercial Dispute) है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए एसिड ट्रायल यह है कि विचाराधीन संपत्ति का उपयोग व्यापार या वाणिज्य में "विशेष रूप से" किया जाता है।

    जस्टिस एनवी अंजारिया और जस्टिस समीर दवे की खंडपीठ ने कहा, "विशेष रूप से व्यापार और वाणिज्य में उपयोग की जाने वाली संपत्ति से संबंधित समझौतों से उत्पन्न विवाद वाणिज्यिक विवाद का गठन करेगा ... अचल संपत्ति की वसूली या अचल संपत्ति से धन की वसूली या अचल संपत्ति से संबंधित कोई अन्य राहत शामिल है।"

    केस टाइटल: एम/एस. कुशाल लिमिटेड ऑटो के माध्यम से। संकेत। एवं प्रबंध निदेशक योगेश घनश्यामभाई पटेल बनाम मेसर्स. तिरुमाला टेक्नोकास्ट प्राइवेट लिमिटेड

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    [जन्म प्रमाण पत्र में पिता का नाम बदलना] दत्तक ग्रहण विलेख को चुनौती न देने पर जैविक पिता की सहमति की आवश्यकता नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने हाल ही में जन्म और मृत्यु के रजिस्ट्रार/मुख्य अधिकारी को एक नाबालिग के जैविक पिता के नाम को उसके जन्म प्रमाण पत्र से हटाने और उसे बदलकर अपने दत्तक पिता का नाम दर्ज करने के निर्देश देने संबंधी रिट याचिका की अनुमति दी।

    जस्टिस ए.एस. सुपेहिया ने कहा कि न तो जैविक पिता की सहमति रजिस्ट्रार द्वारा प्राप्त करने की आवश्यकता है और न ही उसे रिट याचिका के एक पक्ष के रूप में पेश करने की आवश्यकता है, क्योंकि दत्तक ग्रहण विलेख को लेकर कोई प्रश्न नहीं था।

    केस टाइटल: छायाबेन @ हेतलबेन अतुलभाई असोदरिया बनाम जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रार / मुख्य अधिकारी

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    छापेमारी के दौरान वेश्यालय में केवल व्यक्ति की उपस्थिति अपराधों को आकर्षित नहीं करती: मद्रास हाईकोर्ट

    एक मसाज सेंटर में छापेमारी के दौरान आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करते हुए, जो कथित तौर पर एक वेश्यालय में उपस्थित था, मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) के जस्टिस एन सतीश कुमार की पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता उस जगह पर था, उसे दंडात्मक परिणामों के साथ बांधा जा सकता है।

    केस टाइटल: उदय कुमार बनाम राज्य एंड अन्य

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