हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

14 Aug 2022 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (8 अगस्त, 2022 से 14 अगस्त, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    धारा 106 साक्ष्य अधिनियम उचित संदेह से परे मामले को साबित करने के कर्तव्य से अभियोजन को मुक्त नहीं करता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पाया है कि इस बात के पुख्ता सबूत के अभाव में कि हत्या का आरोपी मृतक के साथ प्रासंगिक समय पर घर में था, साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के प्रावधानों को उस पर यह समझाने के लिए लागू नहीं किया जा सकता है कि मृतक की मृत्यु किन परिस्थितियों में हुई थी।

    जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सैयद आफताब हुसैन रिजवी की खंडपीठ ने एटा के सत्र न्यायाधीश के 2003 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें उन्होंने आईपीसी की धारा 302 के तहत राज किशोर उर्फ पप्पू को दोषी ठहराया था और उम्रकैद की सजा का आदेश दिया था।

    केस टाइटल- राज किशोर @ पप्पू बनाम यूपी राज्य [CRIMINAL APPEAL No. - 1443 of 2008]

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    लोन फ्रॉड| जब कर्जदार के 'विलफुल डिफॉल्टर' के रूप में घोषणा पर अदालत ने रोक लगाई तो बैंक आपराधिक कार्यवाही शुरू नहीं कर सकता: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने सीबीआई की बैंकिंग सिक्योरिटीज फ्रॉड ब्रांच द्वारा स्टील हाइपरमार्ट इंडिया और इसके संस्थापक के खिलाफ 200 करोड़ रुपये से अधिक की कथित बैंक धोखाधड़ी के मामले में दर्ज एफआईआर रद्द कर दी है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा कि कंपनी की 'विलफुल डिफॉल्टर' के रूप में घोषणा पर अदालत ने रोक लगा दी थी और मामला इंडियन बैंक की समीक्षा समिति के समक्ष लंबित है।

    केस टाइटल: स्टील हाइपरमार्ट इंडिया प्रा लिमिटेड और अन्य बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सजा बढ़ाने के लिए सीआरपीसी की धारा 372 के तहत अपील सुनवाई योग्य नहीं : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दोहराया कि आरोपी को दी गई सजा को बढ़ाने के लिए सीआरपीसी की धारा 372 के तहत दायर अपील सुनवाई योग्य नहीं है। उल्लेखनीय है कि धारा 372 सीआरपीसी के तहत 'पीड़ित' को अधिकार प्रदान किया गया है [जैसा कि सीआरपीसी की धारा 2 डब्ल्यू (डब्ल्यूए) के तहत परिभाषित किया गया है] तीन आधारों पर अपील दायर की जा सकती है।

    केस टाइटल - अर्चना देवी बनाम यूपी राज्य और 5 अन्य [आपराधिक MISC। आवेदन सीआरपीसी की धारा 372 के तहत आवेदन 2014/1

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीबीआई जांच के आदेश ने पुलिस के वैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन करने का अधिकार छीन लिया, इसे नियमित रूप से पारित नहीं किया जाना चाहिए: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की जलपाईगुड़ी सर्किट बेंच ने सरकारी स्कूल शिक्षक के ट्रांसफर में कथित अनियमितताओं की जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को निर्देश देने वाले एकल पीठ के आदेश पर "बिना शर्त" रोक लगा दी। जस्टिस बिवास पटनायक और जस्टिस रवि कृष्ण कपूर की पीठ ने कहा कि सीबीआई जांच का आदेश या निर्देश नियमित रूप से या किसी पक्ष की आशंका पर पारित नहीं किया जाने चाहिए।

    केस टाइटल: सांता मोंडल बनाम प्रसून सुंदर तारफदार और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अनुच्छेद 226 | रिट याचिकाओं में लिखित प्रस्तुतियों को छोड़ा नहीं जा सकता : जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि रिट याचिकाओं में लिखित प्रस्तुतियों को छोड़ा नहीं जा सकता। यह किसी व्यक्ति या संस्था के याचिकाकर्ता के रिट याचिका दायर करने के लिए अधिकार के किसी अपवाद को मान्यता नहीं देता।

    जस्टिस सिंधु शर्मा और जस्टिस राहुल भारती की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। इस याचिका में याचिकाकर्ता ने जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग (जेएंडके पीएससी) संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल, जम्मू बेंच के फैसले को चुनौती दी है।

    केस टाइटल: जम्मू-कश्मीर पीएससी बनाम डॉ राजीव गुप्ता

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मोटर दुर्घटना में माता-पिता की मृत्यु होने पर विवाहित बेटियां मुआवजे की हकदार; बेटे-बेटियों में भेदभाव नहीं कर सकते: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा कि मोटर दुर्घटना में माता-पिता की मृत्यु होने पर विवाहित बेटियां मुआवजे की हकदार हैं। जस्टिस एच पी संदेश की एकल न्यायाधीश पीठ ने 9 मई, 2014 के मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती देने वाली जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की।

    केस टाइटल: रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम गंगप्पा एस/ओ छिन्नप्पा सौंशी

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    यदि मरने से पहले दिया गया बयान स्वस्थ मानसिक स्थिति में दिया है तो उसकी पुष्टि करने की कोई आवश्यकता नहीं : कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस देबांगसू बसाक और जस्टिस बिभास रंजन डे की खंडपीठ ने दोहराया कि मरने से पहले दिया गया बयान (Dying Declaration)निर्णायक सबूत है, जो आरोपी की सजा के लिए स्वीकार्य है, जिसमें मृतक की मानसिक स्थिति के फिट होने की पुष्टि अनिवार्य नहीं है, इसलिए, अदालत ने विस्तार से बताया कि दोषसिद्धि केवल मरने से पहले दिए गए बयान के आधार पर ही की जा सकती है। पुष्टि कानून का पूर्ण सिद्धांत नहीं है, यह केवल विवेक का नियम है।

    केस टाइटल: गणेश माली बनाम पश्चिम बंगाल राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जमानत की शर्तों का उल्लंघन अपने आप में जमानत रद्द करने का आधार नहीं हो सकता : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि केवल जमानत की शर्तों का पालन न करना आरोपी को पहले से दी गई जमानत को रद्द करने का आधार नहीं है क्योंकि इस तरह का रद्दीकरण संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।

    जस्टिस ज़ियाद रहमान ए.ए ने स्पष्ट किया कि शर्तों का पालन न करने के आधार पर जमानत रद्द करने के लिए एक आवेदन पर विचार करते समय अदालत को इस सवाल पर विचार करना होगा कि क्या कथित उल्लंघन न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के प्रयास के समान है या यह कि क्या यह उस मामले की सुनवाई को प्रभावित करता है जिसमें अभियुक्त के खिलाफ मामला बनाया गया है।

    केस टाइटल : गोडसन बनाम केरल राज्य और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    समान काम के लिए समान वेतन से इनकार करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन : आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने दिनांक 01.04.2019 से डाटा प्रोसेसिंग अधिकारी के पद से जुड़े राज्य के विभिन्न जिला न्यायालयों में अनुबंध के आधार पर लगे कंप्यूटर सहायकों को दिए जाने वाले वेतन में वृद्धि नहीं करने के राज्य के फैसले को पलट दिया।

    जस्टिस एवी शेषा और जस्टिस जी. रामकृष्ण प्रसाद की खंडपीठ ने कहा कि संशोधित पारिश्रमिक का लाभ पहले डेटा प्रोसेसिंग अधिकारियों के समान बढ़ा दिया गया था, अब लाभों से इनकार करने का कोई औचित्य नहीं है।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मध्यस्थता समझौता एमएसएमईडी अधिनियम के तहत पक्षकारों को फेसिटिलेशन काउंसिल में भेजने पर रोक नहीं लगाता: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि सुलह और बाद में मध्यस्थता के लिए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSMED अधिनियम) के तहत फेसिटिलेशन काउंसिल का संदर्भ पक्षकारों के बीच मध्यस्थता समझौते की उपस्थिति के कारण वर्जित नहीं है।

    जस्टिस आर. रघुनंदन राव की एकल पीठ ने कहा कि भले ही पक्षकारों के बीच मध्यस्थता समझौता मध्यस्थ न्यायाधिकरण के गठन की अलग विधि प्रदान करता है, पक्षकार को बकाया वसूली के लिए MSEFC अधिनियम की धारा 18 के तहत फेसिटिलेशन काउंसिल को संदर्भित किया जा सकता है।

    केस शीर्षक: मेसर्स दलपति कंस्ट्रक्शन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 14ए एससी/एसटी एक्ट | संज्ञान लेने और समन जारी करने का आदेश अपील योग्य, क्योंकि यह 'मध्यवर्ती आदेश' है न कि 'अंतर्वर्ती आदेश': उड़ीसा हाईकोर्ट

    उड़ीसा हाईकोर्ट ने माना कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत कथित अपराधों के लिए संज्ञान लेने और समन जारी करने का आदेश अधिनियम की धारा 14-ए (1) के संदर्भ में एक 'अपील योग्य आदेश' है।

    जस्टिस आदित्य कुमार महापात्र की एकल न्यायाधीश पीठ ने आगे कहा कि इस तरह के आदेश को 'अंतर्वर्ती आदेश (इंटरलोक्यूटरी ऑर्डर)' के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह ' मध्यवर्ती आदेश (इंटरमीडिएट ऑर्डर)' होने के योग्य है।

    केस शीर्षक: स्मृतिकांत रथ और अन्य बनाम ओडिशा राज्य और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जुवेनाइल को गिरफ्तारी की आशंका हो तो वह 'स्वतः संज्ञान' से जेजे बोर्ड के समक्ष पेश हो सकता है और जमानत मांग सकता है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कानून का उल्लंघनकारी एक किशोर से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए माना कि यदि कानून का उल्लंघनकारी किशोर याचिका अपराधों में संबंधित किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष पेश होता है तो उक्त उपस्थिति को रचनात्मक हिरासत में माना जाएगा। किशोर ने कथित तौर पर आईपीसी की धारा 379-बी, 427, 511 के तहत दंडनीय अपराध किया था।

    जस्टिस सुरेश्वर ठाकुर की पीठ ने कहा कि इस प्रकार की उपस्थिति के बाद कानून का उल्लंघनकारी किशोर, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम की धारा 12 (1) के अनुसार जमानत का दावा करने का अधिकार प्राप्त करता है।

    केस टाइटल: कानून का उल्‍लंघन करने वाला बच्चा 'एस' बनाम पंजाब राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    भले ही प्रथम दृष्टया मामला स्थापित हो, जमानत प्री-ट्रायल सजा को ओवरराइड करती है : जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भले ही किसी आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित हो, जमानत देने में अदालत का दृष्टिकोण यह होना चाहिए कि आरोपी को रूप में प्री-ट्रायल सजा के रूप में हिरासत में नहीं लिया जाना चाहिए। यही स्पष्ट रूप से आपराधिक न्यायशास्त्र के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है।

    जस्टिस मोहन लाल की पीठ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की 120-बी और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 7 के तहत अपराध करने के लिए पुलिस स्टेशन सीबीआई, एसीबी, जम्मू के साथ दर्ज एफआईआर में जमानत देने के लिए अदालत में शामिल होने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

    केस टाइटल: दविंदर शर्मा बनाम सीबीआई

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मोटर दुर्घटना न्यायाधिकरण दावेदारों को "जीवन की अत्यावशकताओं" को पूरा करने के लिए समय से पहले एफडी से मुआवजा निकालने की अनुमति दे सकते हैं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण "जीवन की अत्यावश्यकताओं" को पूरा करने के लिए उन दावेदारों को, जिनका मुआवजा सावधि जमा में निवेश किया गया है, समय से पहले उसे निकालने की अनुमति दे सकता है।

    जस्टिस गीता गोपी ने इस प्रकार एक न्यायाधिकरण के आदेश को खारिज कर दिया, जिसने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में अपने पक्ष में की गई सावधि जमा की समयपूर्व निकासी के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज कर दिया था।

    केस टाइटल: बिपिनचंद्र बाबूलाल ठक्कर बनाम गोविंदभाई एम प्रजापति

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    गुजरात खनिज नियम | जब्ती के 45 दिनों के भीतर उल्लंघन की एफआईआर दर्ज नहीं होने पर जब्त वाहन को छोड़ा जाएगा: हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि गुजरात खनिज (अवैध खनन, परिवहन और भंडारण की रोकथाम) नियम, 2017 के तहत निर्दिष्ट 45 दिनों की अवधि की समाप्ति पर जांचकर्ता के लिए लिखित शिकायत के साथ सत्र न्यायालय से संपर्क करना अनिवार्य है। साथ ही संपत्तियों को जब्त करना भी अनिवार्य है।

    केस टाइटल: मिनलबेन सतीशभाई सोलंकी बनाम गुजरात राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    वेजाइनल वाल्स में लालपन और सूजन 'पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट' दिखाने के लिए पर्याप्त है, हालांकि पुरुष अंग लगाने का आरोप नहीं है: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने माना कि यौन उत्पीड़न की शिकार महिला द्वारा वेजाइनल वॉल्स में लालपन और सूजन, पेशाब करने में कठिनाई के साथ योनि में लिंग प्रवेश के पर्याप्त प्रमाण हैं, भले ही पुरुष अंग के 'पूर्ण सम्मिलन' का विशेष रूप से आरोप नहीं लगाया गया हो।

    चीफ जस्टिस संजीव बनर्जी और जस्टिस डब्ल्यू डिएंगदोह की खंडपीठ ने युवा लड़की पर यौन उत्पीड़न करने के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि प्रवेश के अपराध के लिए लिंग प्रवेश की थोड़ी सी भी डिग्री पर्याप्त होगा।

    केस टाइटल: मेहुन लामुरोंग बनाम मेघालय राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अदालत पासपोर्ट अधिकारी को किसी नागरिक को पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट जारी करने का निर्देश दे सकती है: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

    आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक रीज़नल पासपोर्ट अधिकारी को अंगोला स्थित भारतीय नागरिक के खिलाफ दायर सभी आपराधिक मामलों को दर्ज करने के बाद, उसके वीजा के रिन्यूवल के लिए इस नागरिक को पुलिस मंजूरी प्रमाण पत्र (Police Clearance Certificate) जारी करने का निर्देश दिया।

    जस्टिस आर रघुनंदन राव की एकल पीठ ने कहा कि प्राधिकरण विदेश में रहने वाले नागरिकों को इस तरह के प्रमाण पत्र जारी करता रहा है और यह स्टैंड नहीं ले सकता है कि चूंकि यह एक "स्वैच्छिक सेवा" है, इसलिए ऐसे प्रमाण पत्र जारी करने या जारी करने के लिए कोई निर्देश नहीं हो सकता।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    बिजली कंपनी को ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए भूमि मालिक की सहमति की आवश्यकता नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट ने माना कि एक बिजली कंपनी को ओवरहेड हाई टेंशन ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए एक निजी भूमि मालिक की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है और अधिक से अध‌िक ऐसी भूमि के मालिक किसी भी नुकसान के लिए मुआवजे का दावा कर सकते हैं।

    केस टाइटल: पार्थ कृष्णकांत पटेल बनाम प्रबंध निदेशक/ महा प्रबंधक (कानूनी प्रकोष्ठ)

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जब अनुपस्थिति को सक्षम प्राधिकारी ने नियमित कर दिया हो तो अनुपस्थिति के लिए अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं चल सकती : मद्रास हाईकोर्ट

    एक बर्खास्त पुलिस अधिकारी के बचाव में आते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि एक बार सक्षम प्राधिकारी ने चिकित्सा अवकाश की अवधि को नियमित कर दिया है, तो कदाचार के लिए कोई और अनुशासनात्मक कार्यवाही नहीं चलेगी। वर्तमान मामले में, हालांकि याचिकाकर्ता को तीन साल से अधिक समय से सेवा से अनुपस्थित बताया गया था, अदालत ने माना कि उसकी अनुपस्थिति को नियमित करने से उसे माफ कर दिया गया था।

    केस: सी जगदीशन बनाम अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    दोषसिद्धि और सजा के फैसले के समय लागू नीति के तहत कैदियों को समय पूर्व रिहाई का लाभ दिया जा सकता है : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि कैदियों की समयपूर्व रिहाई, संबंधित दावे के संबंध में राज्य सरकार की लागू नीति, दोषसिद्धि और सजा के फैसले के समय लागू होने वाली नीति होगी। यह प्राचीन कानून है कि प्रासंगिक दावे पर नीति, उस समय की लागू नीति होगी, जब दोषसिद्धि का फैसला, और इसके परिणामस्वरूप कैदी पर आजीवन कारावास की सजा दी जाती है।

    केस: कबल सिंह बनाम पंजाब राज्य और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    [वैधानिक जमानत] जमानत अदालत के पास सीआरपीसी धारा 167(2) के तहत मामले की मेरिट में जाने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक बेल कोर्ट धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत एक आवेदन पर विचार करते हुए मामले के गुण-दोष में में नहीं जा सकती है। अदालत डिफॉल्ट जमानत के एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह विचार करना पड़ा कि क्या आरोप पत्र या चालान दाखिल करने की वैधानिक अवधि समाप्त हो गई है, क्या आरोप पत्र या चालान दायर किया गया था और क्या आरोपी जमानत के लिए तैयार था और प्रस्तुत किया था।

    केस टाइटल: कन्नन बनाम पुलिस उपाधीक्षक के माध्यम से राज्य और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीआरपीसी | निष्पादन कार्यवाही लंबित रहने के दरमियान निस्तारण के कारण भरण-पोषण का आदेश समाप्त नहीं होता: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने हाल ही में यह माना कि केवल इसलिए कि निष्पादन की कार्यवाही के लंबित रहने के दरमियान एक दूसरे के खिलाफ मुकदमे में शामिल पति-पत्नी के बीच समझौता हो गया है, जम्मू-कश्मीर सीआरपीसी की धारा 488 के तहत एक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित भरण-पोषण का आदेश समाप्त नहीं हो जाता, यदि दोनों के बीच समझौता काम नहीं कर रहा।

    केस टाइटल: अब्दुल कयूम भट बनाम दानिश उल इस्लाम और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    संयुक्त संपत्ति पर निर्माण के खिलाफ आदेश देने के लिए 'टाइटल' या 'टाइटल और कब्जे दोनों' का विस्तृत दावा पर्याप्त है: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने संयुक्त स्वामित्व और कब्जे के दावे वाली एक संपत्ति के स्वत्वाधिकार (टाइटल) और विभाजन की घोषणा के मामले में कहा कि प्रतिवादी को संपत्ति पर निर्माण करने से रोकने के आदेश की मांग करने वाले वादी को प्रथम दृष्टया यह साबित करने की आवश्यकता है कि उसके पास इसका मालिकाना है या उसके कब्जे का हकदार है या दोनों का हकदार है।

    केस का शीर्षक: प्रशांत माजी और अन्य बनाम सुखबिंदर सिंह व अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    जिला प्राथमिक विद्यालय परिषद के चेयरमैन शिक्षकों के ट्रांसफर का आदेश नहीं दे सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट की एक एकल न्यायाधीश की बेंच ने उत्तर 24 परगना जिला प्राथमिक विद्यालय परिषद के चेयरमैन द्वारा अपीलकर्ता के खिलाफ जारी ट्रांसफर के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। इसके बाद शुक्रवार को दायर हुई इंट्रा-कोर्ट अपील में हाईकोर्ट ने कहा कि चेयरमैन के पास प्राथमिक विद्यालय के अपीलकर्ता सहायक शिक्षक को आक्षेपित ट्रांसफर आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है।

    केस टाइटल: दीपिका बाला विश्वास बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    डिफ़ॉल्ट जमानत का उद्देश्य स्वाभाविक रूप से अनुच्छेद 21 से जुड़ा है, जो बचाव पक्ष के जीवन और मनमाने ढंग से हिरासत के खिलाफ व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर जोर देता है: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने पाया कि डिफ़ॉल्ट जमानत का उद्देश्य स्वाभाविक रूप से भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 से जुड़ा हुआ है, जिसमें मनमाने ढंग से हिरासत के खिलाफ आरोपी के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने पर जोर दिया गया है।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस) के तहत दर्ज मामले के संबंध में आरोपी द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी। पुनर्विचार याचिका में ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए उसकी याचिका खारिज कर दी गई।

    टाइटल: सुलेमान बनाम राज्य (दिल्ली का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र)

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    डिक्री में आदेश 7 नियम 11 सीपीसी के तहत वाद को खारिज करने का आदेश शामिल, यह धारा 96 के तहत अपील के उपचार लिए उत्तरदायी: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में अतिरिक्त सिविल जज (सीनियर डिवीजन), चंडीगढ़ के एक आदेश को रद्द करने के लिए दायर एक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया। आक्षेपित आदेश के तहत, एक समरी सूट की अस्वीकृति के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत एक आवेदन को अनुमति दी गई थी।

    जस्टिस मंजरी नेहरू कौल की पीठ ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में, जब पहले से ही आक्षेपित आदेश के खिलाफ अपील का एक वैधानिक उपाय मौजूद है, संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत मौजूदा याचिका पर विचार करना उचित नहीं है।

    केस टाइटल: निम्रता शेरगिल और एक अन्य बनाम शॉप ओनर्स वेलफेयर एसोसिएशन

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मोटर दुर्घटना के दावेदार को वाहन चालक के स्वामित्व को साबित करने की आवश्यकता नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने कहा कि मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT) के मामलों में परीक्षण 'उचित संदेह से परे' नहीं बल्कि 'संभावनाओं की प्रबलता' है और यह कि एक दावेदार को वाहन चालक के स्वामित्व को साबित करने की आवश्यकता नहीं है।

    जस्टिस पंकज जैन की पीठ ने आगे कहा कि कथित अपराधी के खिलाफ लंबित आपराधिक मामले के परिणाम का दावा अधिकरण के समक्ष लंबित मुआवजे की मांग वाली याचिका पर कोई असर नहीं पड़ता है।

    केस टाइटल : मोहिंदर लाल @ मोहिंदर पाल बनाम लाडी एंड अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    फैमिली पेंशन के लिए दूसरी पत्नी तभी हकदार होगी, जब मृतक कर्मचारी पर लागू पर्सनल लॉ के तहत द्विविवाह की अनुमति हो: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में देखा कि एक मृत कर्मचारी की दूसरी पत्नी केंद्रीय सिविल सेवा पेंशन नियमों के तहत पारिवारिक पेंशन की हकदार नहीं है, जब तक कि ऐसे कर्मचारी पर लागू व्यक्तिगत कानून एक से अधिक जीवित विवाह की अनुमति नहीं देता है।

    जस्टिस ज्योत्सना रेवाल दुआ ने एक कर्मचारी की दूसरी पत्नी द्वारा किए गए दावे की सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जो वर्ष 1983 में सेवानिवृत्त हुई और 2002 में गुजर गई। याचिकाकर्ता ने अपने पति की पहली पत्नी के निधन के बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

    केस टाइटल: दुर्गा देवी बनाम हिमाचल प्रदेश और अन्य राज्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    धारा 102(3) सीआरपीसी | बैंक खाते को फ्रीज करने के संबंध में सूचना जुरस्डिक्शनल मजिस्ट्रेट को दी जानी चाहिए: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने लोन फ्रॉड की जांच के लिए जब्त एक खाते को डी-फ्रीज करने का आदेश देते हुए माना कि यह सीआरपीसी की धारा 102 (3) की एक अनिवार्य आवश्यकता थी कि जब्ती की जानकारी मजिस्ट्रेट को दी जानी चाहिए। ज‌स्टिस जीके इलांथिरैया ने कहा कि मामले में जब्ती की जानकारी काफी देरी के बाद दी गई थी।

    केस टाइटल: कार्तिका एजेंसीज एक्सपोर्ट हाउस बनाम पुलिस आयुक्त और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मजिस्ट्रेट पुलिस को मूल शिकायतों को अग्रेषित नहीं कर सकते, यह अदालत के रिकॉर्ड को नष्ट करने के बराबर हो सकता है: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक फैसला में कहा कि यदि अदालत द्वारा प्राप्त कोई भी आवेदन, वह दीवानी हो या आपराधिक, उचित ढंग से डायरीकृत और पंजीकृत नहीं किया जाता है तो न्यायिक मजिस्ट्रेट को प्रशासनिक कार्रवाई के साथ-साथ अदालत के रिकॉर्ड को नष्ट करने के आरोप का सामना करन पड़ सकता है।

    ज‌स्टिस संजय धर की खंडपीठ ने कहा कि जब भी कोई आवेदन, चाहे वह नागरिक पक्ष या आपराधिक पक्ष से प्राप्त हो, न्यायालय द्वारा प्राप्त किया जाता है, उसे अनिवार्य रूप से डायरी और पंजीकृत किया जाना चाहिए।

    केस टाइटल: नज़ीर अहमद पारा बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    मोटर दुर्घटना का दावा "बोनान्जा" नहीं, बीमा कंपनी पर अस्थायी चोटों के लिए अत्यधिक राशि का बोझ नहीं डाला जा सकता: त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वह मोटर वाहन अधिनियम के तहत किसी दावेदार को अस्थायी रूप से लगी चोटों के लिए बीमा कंपनी पर बहुत ज्यादा राशि नहीं लगा सकती।

    जस्टिस टी अमरनाथ गौड़ ने कहा, "दोनों पक्षों को सुनने के बाद और रिकॉर्ड पर मौजूदा सबूतों को देखने के बाद कोर्ट को लगता है कि दावेदार-अपीलकर्ता को लगीं चोटें अस्थायी प्रकृति की हैं। विद्वान दावा न्यायाधिकरण ने 3,00,000/- रुपये का अवॉर्ड दिया है...।

    केस टाइटल: श्रीमती सुरबाला रियांग बनाम श्री अमल मजूमदार और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    दिव्यांग व्यक्तियों की जरूरतों को पूरा करने में नियोक्ता की विफलता "उचित आवास" के मानदंडों का उल्लंघन करती है: त्रिपुरा हाईकोर्ट

    त्रिपुरा दिव्यांग ने हाल ही में कहा कि नियोक्ताओं को दिव्यांग व्यक्तियों को सेवा में "उचित रूप से समायोजित" करना चाहिए। ऐसा करने में विफलता विकलांग व्यक्ति अधिनियम, 2016 (Persons with Disabilities Act, 2016) के तहत उनके अधिकारों का उल्लंघन करती है।

    जस्टिस अरिंदम लाउड ने इस प्रकार टिप्पणी की: "संबंधित अधिकारी का आचरण उस उद्देश्य के अनुरूप नहीं है जिसे विधायिका हासिल करना चाहती है। दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए प्रतिवादियों को यह महसूस करना चाहिए कि याचिकाकर्ता जिस चुनौती का सामना कर रहा है और उसे मानवीय दृष्टिकोण के साथ समायोजित करें। दिव्यांग व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने में कोई भी विफलता निश्चित रूप से उचित आवास के मानदंडों का उल्लंघन करेगी।"

    केस टाइटल: बिजॉय कुमार हरंगखवल बनाम त्रिपुरा स्टेट इलेक्ट्रिसिटी कॉर्पोरेशन लिमिटेड (टीएसईसीएल) और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    महाराष्ट्र स्टाम्प एक्ट- ' कलेक्टर के पास पहले ही लगाया गया और भुगतान किया जा चुका स्टाम्प ड्यूटी को संशोधित करने का कोई अधिकार नहीं है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने कहा कि महाराष्ट्र स्टाम्प एक्ट (Maharashtra Stamp Act) के तहत स्टाम्प शुल्क लगाने और भुगतान करने के बाद स्टाम्प शुल्क में संशोधन नहीं किया जा सकता है। अदालत ने नोटिस को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता ने असाइनमेंट डीड के लिए स्टांप ड्यूटी में चूक की है। 1 करोड़ रुपये से अधिक की कथित बकाया राशि का भुगतान न करने के लिए याचिकाकर्ता की संपत्तियों को कुर्क क्यों नहीं किया जाना चाहिए, यह पूछने वाला एक कारण बताओ नोटिस भी रद्द कर दिया गया था।

    केस टाइटल - सुकून कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम स्टाम्प के कलेक्टर एंड अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    एड-हॉक आधार पर नियुक्त अयोग्य व्यक्ति रोजगार में बने रहने के अधिकार का दावा अधिकार के रूप में नहीं कर सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि योग्यता मानदंड और आवश्यक प्रमाणीकरण को पूरा नहीं करने वाला दैनिक वेतन भोगी या एड-हॉक आधार पर नियुक्त व्यक्ति रोजगार में बने रहने का दावेदार नहीं हो सकता।

    जस्टिस चंद्रधारी सिंह की एकल न्यायाधीश की पीठ ने कहा, "मामले के रिकॉर्ड को देखने और मामले के तथ्यों का विश्लेषण करने पर यह सामने आया कि याचिकाकर्ता योग्यता मानदंड और आवश्यक प्रमाणीकरण को पूरा नहीं करता। दिए गए अवसरों के बावजूद वह अपेक्षित पेशेवर या कौशल से गुजरने में विफल रहा है। साथ ही आधारित प्रशिक्षण और उसके लिए प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहा। दैनिक वेतन पर या एड-हॉक आधार पर नियुक्त कर्मचारी अधिकार के रूप में उस पद के लिए नियोजित होने का दावा नहीं कर सकता जिसके लिए वह अपात्र है।"

    केस टाइटल: दिनेश कुमार बनाम दिल्ली यूनिवर्सिट और अन्य।

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीआरपीसी की धारा 320 उपयुक्त मामलों में नॉन कंपाउंंडेबल अपराध रद्द करने के लिए धारा 482 के तहत शक्ति पर रोक नहीं लगाती : हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दोहराया कि यदि न्याय के उद्देश्य के लिए एफआईआर रद्द करना आवश्यक है तो सीआरपीसी की धारा 320 गैर-शमनीय अपराधों (Non-Compoundable Offences) के लिए संहिता की धारा 482 के तहत शक्तियों के प्रयोग पर रोक नहीं लगाती।

    जस्टिस भूषण बरोवालिया ने कहा: "यदि न्याय के उद्देश्य के लिए एफआईआर रद्द करना आवश्यक हो जाता है तो सीआरपीसी की धारा 320 रद्द करने की शक्ति के प्रयोग के लिए बाधा नहीं होगी। यह अच्छी तरह से स्थापित है कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत शक्तियों की कोई सीमा नहीं है। बेशक, जहां अधिक शक्ति हो, वहाँ ऐसी शक्तियों का प्रयोग करते समय अत्यधिक सावधानी बरतना आवश्यक हो जाता है।"

    केस टाइटल: सुनीता देवी बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सेक्स वर्कर भी नागरिकों के लिए उपलब्ध सभी अधिकारों की हकदार है, लेकिन कानून का उल्लंघन करने पर विशेष उपचार का दावा नहीं कर सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि यद्यपि यौनकर्मी उन सभी अधिकारों की हकदार है जो आम नागरिक को उपलब्ध हैं, लेकिन अगर वह कानून का उल्लंघन करती है तो वह विशेष उपचार का दावा नहीं कर सकती।

    जस्टिस आशा मेनन ने कहा: "इसमें कोई संदेह नहीं है कि सेक्स वर्कर भी आम नागरिक के लिए उपलब्ध सभी अधिकारों की हकदार है, लेकिन अगर वह कानून का उल्लंघन करती है, तो उसे कानून के तहत समान परिणाम भुगतने होंगे और वह किसी विशेष उपचार का दावा नहीं कर सकती है।"

    केस टाइटल: सारिका@राधा@लोवन्या टी वी. स्टेट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली और एएनआर

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    सीनियर सिटीजन एक्ट के तहत रिश्तेदार की परिभाषा को इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के समान नहीं माना जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता का इरादा यह सुनिश्चित करना है कि गिफ्ट टैक्स प्राप्तकर्ता पर नहीं लगाया जाए। याचिका सीनियर सिटीजन के रखरखाव और कल्याण को बढ़ावा नहीं देती है।

    जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने कहा कि माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) और इनकम टैक्स एक्ट, 1961 के उद्देश्य के अनुसार, "रिश्तेदार" (Relative) शब्द का प्रयोग समान संदर्भ में नहीं किया जाता है। "रिश्तेदार" शब्द पूरी तरह से संदर्भ-विशिष्ट होने के कारण यह मानने का कोई आधार नहीं है कि एक संदर्भ में इसे परिभाषित करने में उपयोग किए जाने वाले मानदंड दूसरे संदर्भ में उपयोगी प्रारंभिक बिंदु भी प्रदान करेंगे।

    केस टाइटल: मिस इंदिरा उप्पल बनाम यूओआई

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    अभियुक्त की खास जानकारी वाले गुप्त स्थान से हथियार की बरामदगी पूरी तरह से विश्वसनीय: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि हथियार छुपाने का स्थान विशेष रूप से अभियुक्त की जानकारी में है और वह स्थान यदि किसी अन्य व्यक्ति की जानकारी में नहीं हो सकता है या नहीं है, तथा यदि हथियार उसी स्थान से बरामद किया गया है, तो इस प्रकार का बरामदगी पूरी तरह विश्वसनीय है।

    केस टाइटल : अनुराग शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (क्रिमिनल अपील नं:- 3603/2018)

    आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

    Next Story