[वैधानिक जमानत] जमानत अदालत के पास सीआरपीसी धारा 167(2) के तहत मामले की मेरिट में जाने का कोई क्षेत्राधिकार नहीं है: मद्रास हाईकोर्ट

Avanish Pathak

10 Aug 2022 8:24 AM GMT

  • मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक बेल कोर्ट धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत एक आवेदन पर विचार करते हुए मामले के गुण-दोष में में नहीं जा सकती है।

    अदालत डिफॉल्ट जमानत के एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह विचार करना पड़ा कि क्या आरोप पत्र या चालान दाखिल करने की वैधानिक अवधि समाप्त हो गई है, क्या आरोप पत्र या चालान दायर किया गया था और क्या आरोपी जमानत के लिए तैयार था और प्रस्तुत किया था।

    जस्टिस मुरली शंकर ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश की भी आलोचना की। अदालत ने जिस तरह से आक्षेपित आदेश पारित किया गया था और आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को न्यायिक अधिकारी द्वारा नियंत्रित किया गया था, उस पर आश्चर्य व्यक्त किया।

    फैसले में कहा गया,

    इस न्यायालय को यह समझ में नहीं आ रहा है कि सत्र न्यायाधीश, जिन्हें न्यायिक सेवा में 19 वर्षों का अनुभव है, उन्होंने माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानूनी प्रावधानों और कानूनी आदेश की अनदेखी की और जिस तरह से उन्होंने अपीलकर्ता/अभियुक्त की स्वतंत्रता के साथ खिलावाड़ किया है, उन बुनियादी प्रावधानों से पूर्णतया बेखबर है, जो आपराधिक मामलों पर काम करने वाले प्रत्येक अधिकारी के सामने अक्सर ही आते हैं।।

    कोर्ट ने कहा कि अनुभव के अलावा राज्य न्यायिक अकादमी के माध्यम से कानूनी ज्ञान भी लगातार दिया जा रहा है। इस प्रकार, अधिकारी के आचरण को अस्वीकार्य पाते हुए, अदालत ने रजिस्ट्री को संबंधित न्यायिक अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगने का निर्देश दिया।

    अदालत ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमारे संवैधानिक जनादेश का एक महत्वपूर्ण पहलू है। अदालत ने राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य (2017) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए विचार पर चर्चा की, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में हम बहुत तकनीकी नहीं हो सकते हैं, न होना चाहिए और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के पक्ष में झुकना चाहिए।

    मामले में आरोपी धारा 376(2)(एन), 417, 506(आई) आईपीसी और एससी/एससी (पीओए) एक्ट 1989 की धारा 3(1)(डब्लू)(i), 3(2)(व्ही) के तहत अपराध का एकमात्र आरोपी था। उसने धारा 439 सीआरपीसी के तहत नियमित जमानत के लिए आवेदन किया ‌था, हालांकि उसे खारिज कर दिया गया था। उसने हाईकोर्ट में एक अपील दायर की, उसे भी खारिज कर दिया गया।

    इसके बाद, आरोपी ने धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत एक और आवेदन दायर किया, जिसे सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया। यह आक्षेपित आदेश वर्तमान मामले में चुनौती के अधीन था। हाईकोर्ट ने कहा कि आक्षेपित आदेश का सरसरी अवलोकन भी दिखाता है कि सत्र न्यायाधीश ने आदेश पारित किया है माना याचिका नियमित जमानत के लिए हो , न कि धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत।

    सत्र न्यायाधीश उदय मोहनलाल आचार्य बनाम महाराष्ट्र राज्य (2001) और यहां तक ​​कि हाल ही में एम रवींद्रन बनाम खुफिया अधिकारी, राजस्व खुफिया निदेशालय (2021) के फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित न्यायिक उदाहरणों पर विचार करने में विफल रहे थे, जहां अदालतों ने सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत जिस तरीके से मजिस्ट्रेट/अदालत को वैधानिक जमानत के आवेदनों से निपटना था, उस पर चर्चा की है।

    यहां तक ​​​​कि मद्रास हाईकोर्ट ने के मुथुइरुल बनाम पुलिस निरीक्षक, समयनल्लूर (2022) के फैसले में यह माना था कि धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत जमानत पर विचार करते हुए जमानत अदालत के पास मामले के गुण-दोष पर विचार करने की कोई शक्ति या अधिकार क्षेत्र नहीं है।

    वर्तमान मामले में, चूंकि 90 दिनों की वैधानिक अवधि समाप्त होने के बाद भी अंतिम रिपोर्ट दाखिल नहीं की गई थी। इस प्रकार, सत्र न्यायाधीश के पास वैधानिक जमानत देने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। उसी के मद्देनजर, अदालत ने अपीलकर्ता/अभियुक्त को शर्तों के साथ वैधानिक जमानत पर रिहा कर दिया।

    केस टाइटल: कन्नन बनाम पुलिस उपाधीक्षक के माध्यम से राज्य और अन्य

    केस नंबर: Crl. A (MD) No. 461 of 2022

    साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (MAD) 341

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