अभियुक्त की खास जानकारी वाले गुप्त स्थान से हथियार की बरामदगी पूरी तरह से विश्वसनीय: इलाहाबाद हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

7 Aug 2022 10:00 AM GMT

  • अभियुक्त की खास जानकारी वाले गुप्त स्थान से हथियार की बरामदगी पूरी तरह से विश्वसनीय: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि हथियार छुपाने का स्थान विशेष रूप से अभियुक्त की जानकारी में है और वह स्थान यदि किसी अन्य व्यक्ति की जानकारी में नहीं हो सकता है या नहीं है, तथा यदि हथियार उसी स्थान से बरामद किया गया है, तो इस प्रकार का बरामदगी पूरी तरह विश्वसनीय है।

    जस्टिस डॉ कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस अजय त्यागी की बेंच ने हत्या के एक आरोपी (अनुराग शर्मा) की सजा बरकरार रखते हुए यह टिप्पणी की है। अनुराग शर्मा ने अपने ही पिता की हत्या कर दी थी और उसे 2018 में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, मेरठ द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी।

    इस मामले में आरोपी को अपने ही पिता की हत्या का दोषी ठहराया गया था, और बाद में उसके कहने पर हत्या का हथियार (हथौड़ा) बरामद किया गया था। इसके मद्देनजर, कोर्ट ने तर्क दिया कि हथियार छुपाने की जगह आरोपी की विशेष जानकारी में थी और हथियार वास्तव में उस जगह से बरामद किया गया था, ऐसो में कोर्ट ने माना कि ऐसी बरामदगी पूरी तरह से विश्वसनीय थी।

    संक्षेप में मामला

    शिकायतकर्ता शैल कुमारी शर्मा ने प्राथमिकी दर्ज कर आरोप लगाया है कि वह अपने 70 वर्षीय पति प्रेम किशन शर्मा (मृतक) और अपने बेटे अनुराग शर्मा (आरोपी) को घर पर छोड़ गई थी।

    जब वह अपने घर लौटी तो उसने देखा कि उसका पति घर की पहली मंजिल के गलियारे में मृत अवस्था में पड़ा हुआ था और उसका बेटा अनुराग (आरोपी) घर से गायब था। अनुराग नशे का आदी था और अपने पिता से हमेशा पैसे मांगा करता था।

    आरोपी अपीलकर्ता को घटना वाले दिन ही गिरफ्तार कर लिया गया था और जांच अधिकारी ने आरोपी की निशानदेही पर घर के किचन से सटे कमरे में रखे बक्से के अंदर से हथौड़ा बरामद किया था। उस हथौड़े पर खून लगा था, जिसका इस्तेमाल अपराध को अंजाम देने के लिए किया गया था।

    जांच पूरी होने के बाद आरोपी-अपीलकर्ता अनुराग शर्मा के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई। उसके खिलाफ सबूत सामने रखकर सीआरपीसी की धारा 313 के तहत पड़ताल की गई, लेकिन उसने अपने खिलाफ सबूतों का यह कहते हुए खंडन किया कि उसके पिता की हत्या उसके घर को लूटने या डकैती करने के लिए की गई थी।

    उन्होंने आगे कहा कि पुलिस ने उक्त जघन्य अपराध को दबाने के लिए उन्हें झूठा फंसाया था। आरोपी ने यह भी कहा कि वह 60 प्रतिशत विकलांग था, लेकिन वह कभी नशे का आदी नहीं था। विकलांगता के कारण वह डिप्रेशन में था, इसलिए डॉक्टर उसे नींद की दवा पिलाते थे।

    कोर्ट की टिप्पणियां

    कोर्ट ने इस तथ्य को ध्यान में रखा कि भले ही शिकायतकर्ता (पीडब्ल्यू1/आरोपी की मां) मुकर गई, लेकिन अपनी मुख्य पड़ताल के दौरान, उसने प्राथमिकी के बयान की पुष्टि की थी। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि आरोपी की मां ने जिरह के दौरान स्वीकार किया था कि जब वह घर लौटी, तो आरोपी घर पर नहीं था और वह बाद में आया।

    कोर्ट ने कहा कि अपराध करने के बाद आरोपी भाग गया था, और इसलिए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि एफआईआर के तथ्यों पर संदेह नहीं किया जा सकता है, भले ही प्राथमिकी लिखवाने वाली (आरोपी की मां) मुकर गई हो।

    उसकी गवाही को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने कहा कि आरोपी की मां/शिकायतकर्ता ने प्राथमिकी के तथ्यों की पुष्टि की थी कि उसने मृतक पति और आरोपी पुत्र को घर पर छोड़ दिया था और वहां कोई और मौजूद नहीं था।

    कोर्ट ने कहा,

    "इसका मतलब है कि जब मृतक की हत्या की गई थी, तो वहां केवल आरोपी था, जो मृतक के साथ घर में था। इसलिए, यहां भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 लागू होती है।" कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत आरोपों को दरकिनार करने में विफल रहा है।"

    कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अपने बयान में कहा था, कि उसके घर में लूट या डकैती के दौरान उसके पिता की हत्या कर दी गई थी, हालांकि, कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कि घटना के दिन घर में कोई डकैती और लूट हुई थी, इसे साबित करने के लिए कोई सबूत रिकॉर्ड पर नहीं रखा गया था।

    कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि अपीलकर्ता अपने (आरोपों को दरकिनार करने के) दायित्व के निर्वहन में विफल रहा है।

    अब, अपराध को अंजाम देने के लिए इस्तेमाल किए गए हथौड़ा की बरामदगी के संबंध में, कोर्ट ने कहा कि यह आरोपी-अपीलकर्ता की निशानदेही पर एक बहुत ही विशिष्ट और ऐसे स्थान से बरामद किया गया था जिसके बारे में केवल उसे ही जानकारी थी।

    इस बात पर जोर देते हुए कि हथौड़े को छिपाने का स्थान केवल, केवल और केवल अभियुक्त की जानकारी में था और यह किसी अन्य व्यक्ति को नहीं पता था, कोर्ट ने इस प्रकार टिप्पणी की:

    "यदि हथियार छुपाने का स्थान विशेष रूप से अभियुक्त की जानकारी में है और वह स्थान किसी अन्य व्यक्ति के ज्ञान में नहीं हो सकता है या नहीं है और हथियार उसी स्थान से बरामद किया गया है, तो इस प्रकार की बरामदगी बिल्कुल विश्वसनीय है और इसे लेकर कोई संदेह नहीं किया जा सकता या यह नहीं माना जा सकता है कि हथियार बाद में रखा गया है। इस मामले में, अपीलकर्ता की निशानदेही पर आईओ द्वारा हथौड़ा बरामद किया गया था और हथौड़ा बरामदगी के समय आईओ अपीलकर्ता को अपने साथ ले गया और अपीलकर्ता ने बक्से निकालकर हथौड़ा सौंपा था। जांच अधिकारी (पीडब्ल्यू 6) ने भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपनी गवाही में हथौड़ा बरामदगी के तथ्य को साबित किया है।"

    इसके अलावा, कोर्ट ने इस बात का भी संज्ञान लिया कि हथौड़ा खून से सना हुआ था और जब इसे रासायनिक जांच के लिए एफएसएल को भेजा गया था, तो प्रयोगशाला की रिपोर्ट अपीलकर्ता के खिलाफ आई थी, क्योंकि पूर्वोक्त रिपोर्ट के अनुसार, हथौड़े पर खून पाया गया था।

    आरोपी-अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए रुख के बारे में कि वह 60 फीसदी तक विकलांग था और उसकी विकलांगता एक हाथ और एक पैर में है, कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष का हवाला दिया, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला गया था कि आरोपी हथौड़े का इस कदर इस्तेमाल करने की स्थिति में था कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में उल्लेखित जख्म दिया जा सके।

    नतीजतन, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि अपीलकर्ता का मकसद अपराध करने का था, पीडब्ल्यू-1 और पीडब्ल्यू-3 ने मुकरने के बाद भी अभियोजन पक्ष का समर्थन किया है। आरोपी-अपीलकर्ता भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत अपने ऊपर लगे आरोपों को खारिज करने के लिए सबूत पेश करने में विफल रहा है, इसलिए कोर्ट ने उसकी दोषसिद्धि को बरकरार रखा और अपील खारिज कर दी।


    केस टाइटल : अनुराग शर्मा बनाम उत्तर प्रदेश सरकार (क्रिमिनल अपील नं:- 3603/2018)

    साटेशन : 2022 लाइवलॉ (इलाहाबाद) 359

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